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द्वादशज्योतिर्लिंग पूजन ।।


           द्वादश ज्योतिर्लिङ्ग यंत्र या फिर शिव विग्रह के पर नीचे वर्णित श्लोकों का पाठ करते हुए उनके ऊपर एक-एक कमल या बिल्व पत्र या फिर पुष्प इत्यादि अर्पित करते जायें अगर उपरोक्त वर्णित वस्तुएं आपके पास न हों तो शिव जी के ऊपर जल का अभिषेक करते हुए इन श्लोकों का पाठ करते हुए आप भारतवर्ष में स्थित बारह ज्योतिर्लिङ्गों का अभिषेक घर बैठे ही सम्पन्न कर लेंगे। 

ॐ सौराष्ट्रदेशे विशदेऽतिरम्ये ज्योतिर्मयं चन्द्रकला वसन्तम । भक्तिप्रदानाय कृपावतीर्णं तं सोमनाथं शरणं प्रपद्ये ॥ 
                     ॥ ॐ सोमनाथाय नमः ॥

ॐ श्रीशैलश्रृंगे विबुधातिसंगे तुलाद्रितुंगेऽपि मुदा वसन्तम्। तमर्जुनं मल्लिकपूर्वमेकं नमामि संसार समुद्रसेतुं ॥ 
                   ॥ ॐ मल्लिकार्जुनाय नमः ॥

ॐ अवन्तिकायां विहितावतारं भक्तिप्रदानाय च सज्जनानाम् । अकालमृत्यो परिरक्षणार्थं वन्देमहाकाल महासुरेशम् ॥ 
                  ॥ ॐ महाकालेश्वराय नमः ॥

ॐ कावेरिकानमर्दयोः पवित्रे समागमे सज्जन तारणाय । 
सदैव मान्धातृपदे वसन्तमोंकारमीशं शिवमेकमीडे ॥ 
                  ॥ ॐ ओंकारेश्वराय नमः ॥


ॐ पूर्वोत्तरे प्रज्वलिका निधाने सदा वसन्तं गिरजासमेतं । सुरासुरैराधित पादपद्मं श्रीवैद्यनाथं शरणं प्रपद्ये ॥ 
                  ॥ ॐ वैद्यनाथाय नमः ॥

ॐ याम्ये सदङ्गे नगरेऽतिरम्ये विभूषिताङ्गं विविधैश्च भोगैः । सदभक्तिमुक्तिं प्रदमेकमीशं श्रीनागनाथं शरणं प्रपद्ये ॥ 
                 ॥ ॐ नागनाथाय नमः ॥


ॐ महाद्रिपार्श्वे च तटे रमन्तं सम्पूज्यमानं सततं मुनीन्द्रै । सुरासुरैयक्षमहोरगाद्यै केदारमीशं शिवमेकमीडे ॥ 
                  ॥ ॐ केदारनाथाय नमः ॥

ॐ सह्याद्रिशीर्षे विमलेवसन्तं गोदावरीतीर पवित्रदेशे । यद्दशनात्पावकमाशु नाशं प्रयाति तं त्र्यम्बकमीशमीडे ॥
                  ॥ ॐ त्र्यम्बकेश्वराय नमः ॥

ॐ सुताम्रपर्णी जलराशियोगे निवद्धसेतुं विशिखैरसंख्यैः । श्रीरामचन्द्रेण समर्पितं तत् रामेश्वराख्यं नियतं नमामि ॥ 
                  ॥ ॐ रामेश्वराय नमः ॥

ॐ यं डाकिनी शाकिनिका निसेव्यमानं पिशिताशनैश्च । सदैव भीमादिपद प्रसिद्धं तं शङ्करं भक्तहितं नमामि ॥ 
                 ॥ ॐ भीमशंकराय नमः ॥

ॐ सानन्दमानन्दवने वसन्तं आनन्दकन्दं हृतपापवृन्दम् । वाराणसीनाथमनाथनाथं श्रीविश्वनाथं शरणं प्रपद्ये ॥ 
                    ॥ ॐ काशीविश्वनाथाय नमः ॥

ॐ इलापुरे रम्यविशालकेऽस्मिन् समुल्लसंतं च जगद्वरेण्यं । वन्दे महोदारतर स्वभावं घृष्णेश्वराख्यं शिवमेकमीडे ॥ 
                 ॥ ॐ घृष्णेश्वराय नमः ॥

ॐ ज्योतिर्मयं द्वादश लिङ्गकां शिवात्मनां प्रोक्तमिदं क्रमेण । स्तोत्रं पठित्वा मनुजोति भक्तया फलं तदालोक्य निजंभवेच्च ॥
                 ॥ द्वादशज्योतिर्लिङ्ग देवताभ्यो नमः ॥

                       ‌ शिव शासनत: शिव शासनत:

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