यह अत्यन्त गोपनीय व चमत्कारिक मंत्र होते हुये भी शीघ्र फल देने वाला है। इसका पाठ करने मात्र से व्यक्ति को कभी नेत्र सम्बन्धी रोग नहीं होते। आजीवन उसकी आँखों का तेज बना रहता है तथा वह कभी अंधा नहीं होता।
वर्तमान सामाजिक परिवेश में जहाँ स्वच्छ प्राणवायु भी मुश्किल से मिल पाती है चारों ओर धूल व धुयें आदि का प्रदूषण है ऐसी दशा में शरीर के सबसे अहम् व नाजुक अंग आँखों की सुरक्षा का खतरा हमेशा बना रहता है इसीलिए सनातन धर्म के पाठकों को यह दुर्लभ-प्रयोग हम दे रहे हैं जिसे सम्पन्न कर वे अपनी आँखों को अदृश्य आध्यात्मिक सुरक्षा कवच दे सकते हैं।
पाठ विधि
स्नानादि नित्य क्रियाओं से निवृत्त होकर पूजा स्थल में स्वच्छ आसन पर बैठे फिर भगवान आदित्य का ध्यान करते हुए निम्नानुसार विनियोग कर चाक्षुषी विद्या का पाठ करें
ॐ अस्याश्चाक्षुषीविद्याया अहिर्बुध्न्य ऋषिः, गायत्री छन्दः, सूर्यो देवता, चक्षुरोगनिवृत्तये जपे विनियोगः ।
चक्षुषीविद्या
ॐ चक्षुः चक्षुः चक्षुः तेजः स्थिरो भव । मां पाहि पाहि त्वरितं चक्षुरोगान् शमय शमय मम जातरूपं तेजो दर्शय दर्शय यथाहम् अन्धो न स्यां तथा कल्पय कल्पय कल्याणं कुरु कुरु । यानि ममपूर्व जन्मां पार्जितानि चक्षुः प्रतिरोधक दुष्कृ तानि सर्वाणि निर्मूलय निर्मूलय | ॐ नमः चक्षुस्तेजोदात्रे दिव्याय भास्कराय। ॐ नमः करुणाकरायामृताय । ॐ नमः सूर्याय। ॐ नमो भगवते सूर्यायाक्षितेजसे नमः । खेचराय नमः । महते नमः । रजसे नमः । तमसे नमः । असतो मा सद्गमय। तमसो मा ज्योतिर्गमय । मृत्योर्मा अमृतं गमय। उष्णो भगवाञ्छुचिरूपः । हंसो भगवान् शुचिरप्रतिरूपः । य इमां चक्षुष्मतीविद्यां ब्राह्मणो नित्यमधीते न तस्याक्षिरोगो भवति। न तस्य कुले अन्धो भवति । अष्टौ ब्राह्मणान् ग्राहयित्वा विद्यासिद्धिर्भवति ॥
अनुभूत प्रयोग
ऊपर वर्णित चाक्षुषी विद्या के प्रयोग द्वारा अब तक सैंकड़ों लोग नेत्र रोगों से छुटकारा पा चुके हैं यहाँ हम स्वयं द्वारा अनुभूत एक अत्यन्त चमत्कारिक लघु प्रयोग दे रहे हैं जिसे सम्पन्न कर लेने से सभी प्रकार के नेत्र रोग नष्ट हो जाते हैं। नेत्र रोग से पीड़ित व्यक्ति को चाहिए कि वह प्रतिदिन प्रातः काल स्नानादि नित्य क्रियाओं से निवृत्त होकर हल्दी का घोल बनाकर अनार की कलम से कॉसे के पात्र में ऊपर फोटो में वर्णित यंत्र को अंकित करे अब इसी यंत्र पर तांबे की कटोरी में चार बत्तियों का घी का दीपक जलाकर रख दें दीपक की चारों बत्तियां चारों दिशाओं की ओर हों। अब गन्ध, पुष्प आदि विविध उपचारों से यंत्र की पूजा करें फिर पूर्व की ओर मुख करके बैठें और हल्दी की माला से निम्न मंत्र की 6 माला जप करें तत्पश्चात् चक्षुषोपनिषद ( ऊपर वर्णित) के कम से कम 12 पाठ करें पाठ की समाप्ति पर पुनः इसी बीज मंत्र की पांच माला जपें।
'ॐ ह्रीं हंसः'
तत्पश्चात् भगवान सूर्य को श्रद्धापूर्वक अर्ध्य देकर प्रणाम करें और मन में यह निश्चय करें कि मेरा नेत्र रोग शीघ्र ही नष्ट हो जायेगा। ऐसा करने से मात्र 21 दिन में ही आश्चर्य जनक परिणाम देखने को मिलेंगे इसमें संदेह नहीं है।
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