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दीपदान ।।

       पवनपुत्र हनुमान की आराधना व उनकी कृपा प्राप्ति के यूं तो अनेक साधन हैं किन्तु दीप दान एक ऐसा अमोघ साधन है जिससे प्रसन्न होकर हनुमान जी साधक को मनोवांछित फल अवश्य प्रदान करते हैं। विभिन्न प्रयोजनों के लिए विविध प्रकार से दीपदान का विधान है।

            पुष्प से वासित तैल के द्वारा दिया हुआ दीपक सम्पूर्ण कामनाओं को देने वाला माना गया है। किसी पथिक के आने पर उसकी सेवा के लिये तिल का तैल अर्पण किया जाय तो वह लक्ष्मी प्राप्ति का कारण होता है। सरसों का तेल रोग नाश करने वाला है, ऐसा कर्मकुशल विद्वानों का कथन है। गेहूँ, तिल, उड़द, मूँग और चावल ये पाँच धान्य कहे गये हैं। हनुमानजी के लिये सदा इनके दीप देने चाहिए। पञ्चधान्य का आटा बहुत सुन्दर होता है। वह दीपदान में सदा सम्पूर्ण कामनाओं को देने वाला कहा गया है।

              संधि में तीन प्रकार के आटे का दीप देना उचित है,लक्ष्मी प्राप्ति के लिये कस्तूरी का दीप विहित है, कन्या प्राप्ति के लिये इलायची, लौंग, कपूर और कस्तूरी का दीपक बताया गया है। सोमवार को धान्य लेकर उसे जल में डुबोकर रखें। फिर प्रमाण के अनुसार कुँवारी कन्या के हाथ से उसको पिसाना चाहिये। पीसे हुए धान्य को शुद्ध पात्र में रखकर नदी के जल से उसकी पिण्डी बनानी चाहिये। उसी से शुद्ध एवं एकाग्रचित्त होकर दीपपात्र बनाये। जिस समय दीपक जलाया जाता हो, हनुमत्कवच का पाठ करे। मंगलवार को शुद्ध भूमि पर रखकर दीपदान करे। कूट बीज ग्यारह बताये गये हैं, अत: उतने ही तंतु ग्राह्य है पात्र के लिये कोई नियम नहीं हैं मार्ग में जो दीपक जलाये जाते हैं, उनकी बत्ती में इक्कीस तंतु होने चाहिये। हनुमान जी के दीपदान में लाल सूत ग्राह्य बताया गया है। कूट की जितनी संख्या हो उतना ही पल तेल दीपक में डालना चाहिए। गुरु कार्य में ग्यारह पल से लाभ होता है। नित्यकर्म में पाँच पल तेल आवश्यक बताया गया है। अथवा अपने मन की जैसी रुचि हो उतना ही तेल का मान रखे। नित्य नैमित्तिक कर्मों के अवसर पर हनुमान जी की प्रतिमा के समीप अथवा शिव मंदिर में दीपदान कराना चाहिये।

              देव प्रतिमा के आगे, प्रमोद के अवसर पर, ग्रहों के निमित्त, भूतों के निमित्त, गृहों में और चौराहों पर इन छ: स्थलों में दीप जलाना चाहिये। स्फटिक मय शिवलिङ्ग के समीप, शालग्राम शिला के निकट हनुमान जी के लिये किया हुआ दीपदान नाना प्रकार के भोग और लक्ष्मी की प्राप्ति का हेतु कहा गया है। विघ्न तथा महान् संकटों का नाश करने के लिये गणेश जी के निकट हनुमान जी के उद्देश्य से दीपदान करे। भयंकर विष तथा व्याधि का भय उपस्थित होने पर हनुमद्विग्रह के समीप दीपदान का विधान है। व्याधिनाश के लिये तथा दुष्ट ग्रहों की दृष्टि से रक्षा के लिये चौराहे पर दीप देना चाहिए। बन्धन से छूटने के लिये राजद्वार पर अथवा कारागार के समीप दीप देना उचित है। सम्पूर्ण कार्यों की सिद्धि के लिये पीपल और वट के मूलभाग में दीप देना चाहिये। भय-निवारण और विवाद- शांति के लिये, गृहसंकट और युद्धसंकट की निवृत्ति के लिये और विष, व्याधि तथा ज्वर को उतारने के लिए भूतग्रह का निवारण करने, कृत्या से छुटकारा पाने तथा कटे हुए घाव को जोड़ने के लिए, दुर्गम एवं भारी वन में व्याघ्र हाथी तथा सम्पूर्ण जीवों के आक्रमण से बचने के लिये, सदा के लिये बन्धन से छूटने के लिये, पथिक के आगमन में आने-जाने के मार्ग में तथा राजद्वार पर हनुमान जी के लिये दीपदान आवश्यक बताया गया है। ग्यारह, इक्कीस और पिण्ड तीन प्रकार का मण्डलमान होता है। पाँच, सात अथवा नौ इन्हें लघुमान कहा गया है। दीप-दान के समय दूध, दही, मक्खन अथवा गोबर से हनुमान जी की प्रतिमा बनाने का विधान किया गया है। सिंह के समान पराक्रमी वीरवर हनुमान जी को दक्षिणाभिमुख करके उनके पैर को रोछ पर रखा हुआ दिखाये। उनका मस्तक किरीट से सुशोभित होना चाहिये। सुन्दर वस्त्र, पीठ अथवा दीवार पर हनुमान जी की प्रतिमा अंकित करनी चाहिये। कूटादि में तथा नित्य दीप में द्वादशाक्षर मंत्र का प्रयोग करना चाहिए।

           उपरोक्त विधि से पूर्ण श्रद्धा व विश्वास के साथ जो प्रतिदिन हनुमान जी को दीप देता है तीनों लोकों में उसके लिए कुछ भी असाध्य नहीं है यह ध्रुव सत्य है।
            
                   शिव शासनत: शिव शासनत:

दीपक कई प्रकार के होते हैं....

  चांदी के दीपक, मिट्टी के दीपक, लोहे के दीपक, ताम्बे के दीपक, पीतल की धातु से बने हुए दीपक तथा आटे से बनाए हुए दीपक।

 दीपावली पर मिट्टी के दीपक ही जलाने का महत्व है। मिट्टी के दीपक अधिक शुभ होते हैं। आओ जानते हैं कि कौन-सा दीप किस हेतु जलाया जाता है?
 
1. आटे का दीपक
किसी भी प्रकार की साधना या सिद्धि हेतु आटे का दीपक बनाते हैं और इसे ही पूजा करने के लिए सबसे उत्तम मानते हैं।
 
2. घी का दीपक
आर्थिक तंगी से मुक्ति पाने के लिए रोजाना घर के देवालय में शुद्ध घी का दीपक जलाना चाहिए। इससे देवी-देवता भी प्रसन्न होते हैं। आश्रम तथा देवालय में अखंड ज्योत जलाने के लिए भी शुद्ध गाय के घी का या तिल के तेल का उपयोग किया जाता है।
 
3. सरसों के तेल का दीपक
शत्रुओं से बचने के लिए भैरवजी के यहां सरसों के तेल का दीपक जलाना चाहिए। सूर्यदेव को प्रसन्न करने के लिए भी सरसों का दीपक जलाते हैं।
 
4. तिल के तेल का दीपक
शनि ग्रह की आपदा से मुक्ति हेतु तिल के तेल का दीपक जलाना चाहिए। इससे देवी-देवता भी प्रसन्न होते हैं।

5. महूए के तेल का दीपक
पति की लंबी आयु की मनोकामना को पूर्ण करने के लिए घर के मंदिर में महुए के तेल का दीपक जलाना चाहिए।

6. अलसी के तेल का दीपक
राहु और केतु ग्रहों की दशा को शांत करने के लिए अलसी के तेल का दीपक जलाना चाहिए।

7. चमेली के तेल से भरा तिकोना दीपक
संकटहरण हनुमानजी की पूजा करने के लिए तथा उनकी कृपा आप पर सदैव बनी रहे, इसके लिए तीन कोनों वाला दीपक जलाना चाहिए।
 
8. तीन बत्तियों वाला घी का दीपक
गणेश भगवान की कृपा पाने के लिए रोजाना तीन बत्तियों वाला घी का दीपक जलाना चाहिए।

9. चार मुख वाला सरसों के तेल का दीपक
भैरव देवता को प्रसन्न करने के लिए चार मुख वाला सरसों के तेल का दीपक जलाना चाहिए। इस उपाय को करने से व्यक्ति के जीवन के सभी कष्ट दूर हो जाते हैं।

10. पांच मुखी दीपक
किसी केस या मुकदमे को जीतने के लिए भगवान के आगे पांच मुखी दीपक जलाना चाहिए। इससे कार्तिकेय भगवान प्रसन्न होते हैं।

11. सात मुखी दीपक
माता लक्ष्मी की कृपा हमेशा घर पर बनी रहे, इसके लिए हमें उनके समक्ष सात मुख वाला दीपक जलाना चाहिए। दीपावली पर यह कार्य अवश्य कीजिए।.

12. आठ या बारह मुख वाला दीपक
शिव भगवान को प्रसन्न करने के लिए घी या सरसों के तेल का आठ या बारह मुख वाला दीपक जलाना चाहिए।

13. सोलह बत्तियों का दीपक
विष्णु भगवान को प्रसन्न करने के लिए इनके समक्ष रोजाना सोलह बत्तियों का दीपक जलाना चाहिए। दशावतार की पूजा हेतु दशमुख वाला दीपक जलाएं।

14. गहरा और गोल दीपक 
ईष्ट सिद्धि के लिए या ज्ञान प्राप्त करने के लिए एक गहरा और गोल दीपक प्रज्वलित करें।

15. मध्य से ऊपर की ओर उठा हुआ दीपक
शत्रुओं से बचने या किसी भी आपत्ति के निवारण के लिए मध्य से ऊपर की ओर उठे हुए दीपक का प्रयोग जलाने के लिए करना चाहिए.

                                  साभार - मनीष शेखर
                               सिद्धाश्रम साधक परिवार

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