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शास्त्रोक्त शिवपूजन ।।

        देवाधिदेव महादेव की कृपा जिसे प्राप्त हो जाय संसार में उसके लिये कुछ भी असंभव नहीं है । भगवान शिव की कृपा से मनुष्य इस लोक में नाना प्रकार के सुखों का उपभोग करते हुये मोक्ष को प्राप्त होता है इसमें कोई सन्देह नहीं है । भगवान शिव जिनके तीन नेत्र हैं. मस्तक पर चन्द्रमा शुसोभित है, सांप बिच्छू आदि जिनके आभूषण हैं, अंगों में भस्म लपेटे हुये हैं, हाथ में डमरू और त्रिशूल धारण करते हैं ऐसे भक्त वत्सल भगवान शिव का स्मरण मात्र ही प्राणियों के लिये अत्यन्त कल्याणकारी है । शास्त्र साक्षी है कि जिस किसी ने भी सच्ची श्रद्धा व लगन से भगवान भोले नाथ की आराधना की है उन्होंने - प्रसन्न होकर उसे अभीष्ट सिद्धि का वरदान दिया है भले ही वह असुर ही क्यों न हो । भगवान शिव इतने दयालु हैं कि वे सामान्य या लघुत्तम विधि से आराधना करने पर भी प्रसन्न हो जाते हैं। शायद ही ऐसा कोई शास्त्र हो जिसने।।।भगवान शिव की महत्ता व श्रेष्ठता को स्वीकार न किया हो । शास्त्रों में ऐसे कई वृतान्त आये हैं कि जब-जब देवताओं पर कोई संकट आया है देवाधिदेव महादेव ने ही देवताओं की रक्षा की है। ऐसे भगवान शिव की आराधना अपने आप में ही मंगलकारक है। । 

पूजन कैसे करें -
 साधक को चाहए कि वह स्नानादि नित्य क्रियाओं से निवृत्त होकर स्वच्छ वस्त्र धारण कर पूजा स्थल में कुसासन अथवा कंबल के आसन पर बैठ जाय । पूजा स्थल का स्वच्छ एवं पवित्र होना आवश्यक है। पूजन के लिये सभी आवश्यक सामग्री अक्षत कुंकुम, रोली, चन्दन, धूप, दीप, बिल्व पत्र, दूध, दही, मधु, शक्कर, पान, सुपारी आदि अपने पास रख लें। अब उत्तर या पूर्व की ओर मुँह करके आसन पर बैठने के पश्चात अपने समक्ष चौकी पर सफेद वस्त्र बिछाकर उस पर भगवान शिव की प्रतिमा या लिंग (पिण्डी) को स्थापित कर दें। धूप-दीप आदि जला लें ताकि वातावरण शुद्ध हो जाय । 
आचमन - अब आचमनी से दाहने हाथ में जल लेकर तीन बार, पियें हर बार क्रमश: निम्न मंत्र का उच्चारण करें 
ॐ केशवाय नमः । 
ॐ माधवाय नमः । 
ॐ नारायणाय नमः । 

पवित्रीकरण
 आचमन के हाथ धो लें तत्पश्चात निम्न मंत्र बोलते हुये पुष्प से जल लेकर अपने ऊपर छिड़कें 
ॐ अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोऽपि व । यः स्मरेत पुण्डरीकाक्षं स वाहयाभ्यान्तरः शुचिः ।। 

अब दाहिने हाथ में पुष्प-अक्ष व जल लेकर संकल्प करें 

संकल्प - ॐ विष्णु र्विष्णुः विष्णु श्रीमद्भगवतो विष्णोराज्ञया प्रवर्तमानस्य श्री श्वेत वाराह कल्पेकलियुगे कलि प्रथम चरणे "अमुक" मासे 'अमुक' तिथौ 'अमुक' वासरे अमुक शर्माऽहं सर्वमंगल सिद्धि निमितं, सकल वाधा निवारणाय, सर्वपापक्षयार्थं श्री साम्ब सदाशिव प्रीत्यर्थं भगवत: श्री साम्ब सदाशिवस्य पूजनमहं करिष्ये अब जल को भूमि पर छोड़ दें।

 अब सबसे पहले सभी देवताओं में प्रथम पूज्य विघ्नहर्ता गणेश जी का स्मरण करें । दोनों हाथ जोड़कर निम्न मंत्र का उच्चारण करें। 

 गणपति स्मरण - गौरीपते नमस्तुभ्यमिहागच्छ महेश्वरः । निर्विघ्न कुरु में देव सर्व कार्येषु सर्वदा ॥ गजाननं भूतगणाधि सेवितं कपित्थजम्बू फल चारु भक्षणम् । उमासुतं शोक विनाश कारकं, नमामि विध्नेश्वर पाद पंकज ॥ 
अब अपने गुरु का स्मरण करें । दोनों हाथ जोड़ लें तथा निम्न मंत्र का उच्चारण करें. 

ध्यान - गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णु गुरुर्देवो महेश्वर: गुरु: साक्षात परब्रह्म तस्मै श्री गुरुवे नमः । 

अब देवाधिदेव महादेव का ध्यान करें :-

ध्यायेन्नित्यं महेशं रजतगिरि निभं चारु चन्द्रावतंसं रत्नाकल्पोज्ज्वलाङ्गं परशु मृगवराभीति हस्तंप्रसन्नम् पद्मासीनं समन्तात स्तुतममरगण्रर्व्याघ्रकृतिंवसानं विश्वाद्यं विश्ववन्धं निखिलभय हरं पञ्चवक्त्रं त्रिनेत्रम् आवाहन 

अब दाहिने हाथ में अक्षत लेकर भगवान शिव का आह्वान करें। निम्न मंत्र का उच्चारण करें

 आवाहयामि देवेशमादिमध्यान्तवर्जितम् आधारं सर्वलोकानामाभ्रितार्थ प्रदानियम ॥
 
उक्त श्लोक का उच्चारण करने के पश्चात् 'ॐ उमामहेश्वराय नम: आवाहनम् समर्पयामि” बोलते हुयए अक्षत को भूमि पर छोड़ दें। 
आसन अब भगवान शिव को आसन समर्पित करें। 
निम्न मंत्र का उच्चारण करें - 

रम्यं सुशोभनं दिव्यं सर्व सौरव्यकरं शुभम् आसन न गया दत्तं गृहाण परमेश्वर । (आसनं समर्पयामि) 

पाद्य 
आचमनी में जल लेकर भगवान शिव के चरणों में दो बार चढ़ायें । 
निम्न मंत्र का उच्चारण करें - 

उष्णोदकं निर्मलं च सर्व सौगन्ध संयुतम् । पाद प्रक्षालनार्थाय दत्तं ते प्रति गृह्यताम् ॥ (पाद्यं समर्पयामि)

 अर्ध्य 
अब दाहिने हाथ में जल लेकर उसमें पुष्प अक्षत मिलाकर भगवान शिव के हाथों में अर्पित करें

तान्त्रय हरं दिव्यं परमानन्दलक्षणम् । तापत्रय विनिर्मुक्तं तवार्घ्यं कल्पयाम्हम् ॥ (अर्घ्यं समर्पयामि ) 

आचमन 
अब आचमनी में जल लेकर भगवान को तीन बार आचमन करायें 
सर्वतीर्थ समायुक्तं सुगन्धिं निर्मलं जलम् । आचमनार्थं मया दत्तं गृहीत्वा परमेश्वर ॥ (आचमनीयं जलं समर्पयामि )

 स्नान 

अब पुष्प से जल लेकर भगवान को स्नान करायें। निम्न मंत्र का उच्चारण करें ।

गंगा सरस्वती रेवा पयोष्णी नर्मदा जलैः । स्नापितोऽसि मया देव तथा शातिं कुरुष्व में || (स्नानं समर्पयामि)

दुग्ध स्नान
किसी पात्र में दूध लेकर भगवान को स्नान करायें

 कामधेनु समुत्पनं सर्वेषां जीवनं परम् पावनं यज्ञ हेतुश्च पयः स्नानार्थमर्पितम् । ( दुग्ध स्नानं समर्पयामि) 

दधिस्नान 
अब निम्न मंत्र का उच्चारण करते हुये दही से स्नान कराएं

 पयसस्तु समुद्भूतं मधुराम्लं शशिप्रभम् । दध्यानीतं मया देव स्नानार्थं प्रति गृह्यताम् ॥ (दधि स्नानं समर्पयामि ) 

घृत 
स्नान अब निम्न मंत्र का उच्चारण करते हुये घृत (घी) से स्नान करायें। 

नवनीत समुत्पन्नं सर्वसंतोष कारकम् । घृतं तुभ्वं प्रदास्यामि स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम ॥ (घृत स्नानं समर्पयामि ) 

मधु स्नान
 निम्न मंत्र का उच्चारण करते हुये मधु (शहद) से स्नान करायें।

 तरुपुष्प समुद्भूतं सुस्वादु मधुरं मधु । तेजः पुष्टिकरं दिव्यं स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम ॥ ( मधु स्नानं समर्पयामि) 

शर्करा स्नान 
अब निम्न मंत्र का उच्चारण करते हुये शक्कर से स्नान करायें।

 इक्षुसार समुद्भूता शर्करा पुष्टिकारिका । मलापहारिका दिव्या स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम ॥ (शर्करा स्नानं समर्पयामि ) 

पञ्चामृत स्नान 
अब पंचामृत (दूध, दही, शहद, पंचमेवा के मिश्रण) से स्नान करायें । निम्न मंत्र का उच्चारण करें 
पयोदधि घृतं चैव मधु च शर्करायुतम् ।पञ्चामृतं मयानीवं स्नामार्थं प्रतिगृह्यताम ॥ ( पञ्चामृत स्नानं समर्पयामि ) 

शुद्धोदक स्नान 
अब किसी पात्र में जल लेकर भगवान की प्रतिमा पर जलधारा छोड़ें । निम्न मंत्र का उच्चारण करें।

 मन्दाकिन्यातु यद्धारि सर्वपापहरं शुभम् । तदिदं कल्पितं देव स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम ॥ (स्नानं समर्पयामि ) 

वस्त्र 
अब वस्त्र अर्पित करें। निम्न मंत्र का । उच्चारण करें ।

सर्वभूषादिके सौम्ये लोकलज्जा निवारणे । मयापसादिते तुभ्यं वाससी प्रति गृह्यताम् ॥ (वस्त्रं समर्पयामि) 

यज्ञोपवीत 
अब निम्न मंत्र का उच्चारण करते हुये यज्ञोपवीत अर्पित करें।

 नवभिस्तन्तुभिर्युक्तं त्रिगुणं देवतामयम् । उपवीतं मया दत्तं गृहाण परमेश्वर ॥ ( यज्ञोपवीतं समर्पयामि) 

गंध 
अब धूप अगरबत्ती आदि जला लें तथा चन्दन अर्पित करें 

श्री खण्डं चन्दन दिव्यं गन्धाढ्यं सुमनोहरम् । विलेपनं सुरश्रेष्ठ चन्दनं प्रतिगृह्यताम ॥ ( गन्धं समर्पयामि ) 

अक्षत
 निम्न मंत्र का उच्चारण करते हुये अक्षत (चावल) चढ़ाएं

अक्षताश्च सुरश्रेष्ठ कुंकुमाक्ता सुशोभिताः । मया निवेदिता भक्त्या गृहाण परमेश्वर ॥ ( अक्षतं समर्पयामि ) 

इसी प्रकार पुष्प, बिल्व पत्र, तुलसी दल, दूर्वा (दूब एक प्रकार की घास). धूप, दीप, नैवेद्य, फत्नादि अर्पित करें। क्रमश: निम्न मंत्रों का उच्चारण करें।

 पुष्प माल्यादीनि सुगन्धीनि मलत्यादीनि वै प्रभो मयानीतानि पुष्पाणि गृहाण परमेश्वर ॥ (पुष्पाणि समर्पयामि) 

विल्व पत्र त्रिदलं त्रिगुणाकारं त्रिनेत्रंच विधायुधं । त्रिजन्मपाप सहारं विल्व पत्रं शिर्वापर्णम् ॥ (विल्वपत्र समर्पयामि)

 तुलसी तुलसीं हेमरूपांच रत्न रूपांच मञ्जरीम् । भव मोक्षप्रदां तुभ्यमपयामि हरिप्रियाम् ॥ ( तुलसीदलं समर्पयामि)

 दूर्वा विष्ण्वादि सर्वदेवानां दूर्वे त्वं प्रीतिदा यतः । क्षीरसागर सम्भूते वंश वृद्धिकरी भव || ( दुर्वाकुरान् समर्पयामि ) 

वनस्पति रसोद्भूतो गन्धादयो गंध उत्तम । आधेय: सर्व देवानां धूपोऽयं प्रतिगृह्यताम | (धूपमाघ्रापयामि) 

दीप

आज्यं च वर्तिसयुक्तंवह्निना योजिंत मया । दीपं गृहाण देवेश त्रैलोक्यतिमिरापहम् ॥ (दीपं दर्शयामि) 

नैवेद्य 

शर्कराघृत समाक्तं मधुरं स्वादुचोत्तमम | उपहार समुयुक्तं नैवेद्यं प्रतिगृह्यताम ॥ (नैवेद्यं समर्पयामि ) 

अब पुन: आचमन हेतु जल अर्पत करें। निम्न मंत्र का उच्चारण करें।

 गंङ्गाजलं समानीतं सुवर्ण कलश स्थितम् । आचम्यतां सुरश्रेष्ठ शुद्धमाचमनीयकम ॥ (आचमनीयं समर्पयामि)

 ताम्बूल पुंगीफलं अब निम्न मंत्र का उच्चारण करते हुये पान, सुपारी लौंग इलायची आदि अर्पित करें।

 पुंगीफलं महादिव्यं नागवल्ली दलैर्युतम् । एलाचुर्णादिसंयुक्तं ताम्बूलं प्रतिगृह्यताम् ॥ (ताम्बूलं पुंगीफलं समर्पयामि ) 

दक्षिणा 

न्यूनातिरिक्त पूजायां सम्पूर्ण फल हेतवे । दक्षिणां कांचनीं देव स्थापयामि तवाग्रतः ॥ (द्रव्य दक्षिणां समर्पयामि)

अब शिवजी की आरती करें - 

जै शिव ओंकारा हर जै शिव ओंकारा । ब्रह्मा विष्णु सदाशिव अद्धाङ्गी धारा || जै०।।

एकानन चतुरानन पंचानन राजे । हंसासन गरुड़ासन वृषवाहन साजे ।। जै० ।। 

दो भुज चार चतुर्भुज दशभुज अति सोहै । तीनों रूप निरखता त्रिभुवन मन मोहै | जै० ।। 

अक्षमाला वनमाला मुण्डमाला धारी । चन्दन मृगमद चन्दा भाले शुभकारी ॥ जै० ।। 

श्वेताम्बर पीताम्बर बाघम्बर अंगे । सनकादिक प्रभुतादिक भूतादिक संगे । जै०॥ 

कर के मध्य कमण्डलु चक्र त्रिशुल धर्ता । जन-कर्ता जगभर्ता जग संहार कर्ता ॥ जै०॥ 

ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका । प्रणवाक्षर में शोभित ये तीनों एका । जै० ।। 

त्रिगुण स्वामीजी की आरती को कोई नर गावै। कहत शिवानन्दस्वामी मन वांछित फल पावै ॥जै० शिव ओंकारा ।। 

अब निम्न मंत्र का उच्चारण करते हुये पूजास्थल में प्रदक्षिणा करें।

 यानि कानि च पापानि जन्मान्तरकृतानिच । तानि तानि प्रणश्न्ति प्रदक्षिणा पदे पदे ॥ 

और अंत में भगवान शिव का स्मरण करते हुये क्षमा प्रार्थना करें । निम्न मंत्र का उच्चारण करें

 आवाहनं न जानामि च जानामि विसर्जनम | पूजां चैव न जानामि क्षमस्व परमेश्वर ॥ अन्यथा शरणं नास्ति त्मेव शरणं ममं । तस्मात कारुण्यभावेन रक्ष रक्ष महेश्वर

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