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कुछ भी असम्भव नहीं है सब कुछ सम्भव है ।।

         कुछ भी असम्भव नहीं है सब कुछ सम्भव है। ब्रह्मज्ञानी इसी वाक्य में जीते हैं और वैज्ञानिक भी इसी वाक्य में जीते हैं। बस इसी महावाक्य को एकमात्र आधार बिन्दु मानकर सरस्वती की आराधना की जाती है तभी हाथ को प्रयोगशाला में उगाया जा सकता है, अंतरिक्ष में पहुँचा जा सकता है, सिद्धि प्राप्त की जा सकती है, बिगड़े कार्य बनाये जा सकते हैं, कुछ भी किया जा सकता है। शिव ने जीव को बुद्धि प्रदान करने की कृपा की है और इसी के सहारे उसे अभय भी प्रदान किया है कि वह जब तक चाहे, जैसे चाहे, जिस प्रकार चाहे अनंत काल तक स्वतंत्रता के साथ जहाँ भी चाहे वहाँ पर जिस रूप में चाहे उस रूप में स्वयं को प्रतिरोपित, विकसित और स्थापित कर सकता है। जीव शिव का प्रिय है। अपने प्रिय को बुद्धि के रूप में शिव ने सर्वश्रेष्ठ शक्ति प्रदान की है। यह शक्ति ही उसे आज असंख्य अवरोधों के पश्चात भी पल्लवित किये हुए हैं। 

        जीवन को विविधता बुद्धि ने ही प्रदान की है। जीव के इतिहास में कितनी भीषण समस्याएं आई हैं, कितने भीषण युद्ध आये हैं, कितनी भीषण महामारियाँ आईं हैं, प्रलय आयें हैं और आते रहेंगे परन्तु जीवन खत्म नहीं हुआ। चुनौतियों का जमकर मुकाबला जीवन ने बुद्धि के माध्यम से ही किया है और करता रहेगा। युग बदल जायेंगे, काल बदल जायेंगे, ग्रह-नक्षत्र- मण्डल नष्ट हो जायेंगे, नया ब्रह्माण्ड उदित हो जायेगा परन्तु जीव बुद्धि के माध्यम से किसी और रूप में, किसी और स्थिति में, कहीं और प्रतिरोपित एवं स्थापित हो जायेगा। बुद्धि का विकास अनंत है, इसमें तुलना नहीं हो सकती। बुद्धि अनंत जीवों के पास हैं यही सबसे बड़ी विशेषता है। एक प्रबुद्ध, प्रज्ञावान और परम चेतना से जागृत जीव अनंत जीवों को प्रकाश देने में सक्षम है। एक व्यक्ति की बुद्धि अनंत लोगों को लाभान्वित करने में सक्षम है अविष्कार एक व्यक्ति करता है अनंत लोग लाभ लेते हैं। कुण्डली जागृत एक व्यक्ति की होगी, अनंत लाभान्वित होंगे। 

       सत्ता पर बैठे एक व्यक्ति की बुद्धि भ्रष्ट होगी और अनंत काल-कवलित हो जायेंगे एवं भीषण संत्राश झेलेंगे। चेतना मस्तिष्क आधारित नहीं है, वृक्षों में तो मस्तिष्क जैसी संरचना नहीं है फिर भी आप उन्हें मूढ़ नहीं कह सकते। चेतना कोशिका आधारित है, प्रत्येक कोशिका बुद्धि की संरचना से युक्त है, यह वैज्ञानिक सत्य है तभी तो एक कोशिका से पूरा का पूरा शरीर निर्मित किया जा सकता है अर्थात कोशिका के अंदर भी मस्तिष्क है नहीं तो फिर कोशिका से निर्मित शरीर में मस्तिष्क कहाँ से आया? बीज के अंदर जड़ तो नहीं दिखा रही फिर भी जड़ बीज से ही उत्पन्न होगी। रचना के पीछे परम चेतना छिपी हुई है, अदृश्य हाथ शिव के हर जगह मौजूद हैं। दृश्य पंचेन्द्रियों का विषय है, सभी दृश्य पंचेन्द्रियाँ देखने में सक्षम भी नहीं हैं। सरस्वती उपासना एकान्त का विषय है। सरस्वती एकांत प्रदान करती है, सरस्वती अपने साधक को सबसे काटकर अलग बैठा देती है अतः उसके परम प्रिय पुत्रों को देख पाना पंचेन्द्रियों के वश में नहीं है। उपासना के पश्चात् ही पंचेन्द्रियाँ देख पाती हैं। 

          जब अविष्कार हो जाता है तब जनमानस वैज्ञानिक को देख पाता है, जब दिव्य ग्रंथ रच जाता है तब लोग उसे पढ़ पाते हैं इससे पहले तो साधक अदृश्य कर ही दिया जाता है। रामानुज बहुत बड़े गणितज्ञ हुए हैं। 25 वर्ष की उम्र में ही गणित के अनुत्तरित प्रश्नों को हल करके रख दिया था बिना किसी सहारे के बिना किसी अध्यापक के। आदि गुरु शंकराचार्य जी क्षण भर में स्तोत्र रच देते थे। तीस वर्ष की उम्र में सैकड़ों ग्रंथ लिख डाले, अनेकों अनुत्तरित प्रश्नों के उत्तर दे दिये। उन पर साक्षात् सरस्वती की कृपा थी। हंस देव महाराष्ट्र के बहुत बड़े संत हुए हैं कभी भी स्कूल नहीं गये थे परन्तु आठ भाषाओं में एक साथ बोलते थे, विश्व की किसी भी घटना के बारे में बता देने में सक्षम थे और मजे की बात तो यह थी कि कभी पुस्तक भी नहीं पड़ी थी।

       विलक्षणता का कोई छोर नहीं है, विलक्षणता किसी स्कूल या कालेज में प्राप्त नहीं होती। विलक्षणता तो गुरु कृपा या शिव कृपा से ही प्राप्त होती है। साधनायें भारतीय जीवन का महत्वपूर्ण अंग हैं, साधनायें अर्थात सरस्वती सिद्धि । ज्ञान, विज्ञान, साधना यह सब तो सरस्वती के ही उपांग हैं और इन्हीं के माध्यम से जैविक काया में विलक्षणना प्रस्फुरित होती है और इसी विलक्षणता के आगे दुनिया सजदा करती है। विद्या सर्वमान्य है, आपमें अगर भविष्य बताने की विद्या है तो आपके घर के आगे भीड़ लगेगी। आपमें अगर रोग निवारण की क्षमता है तो मरीज आयेंगे ही। उपासक की पदवी प्राप्त करने के लिए एकमात्र जो शक्ति बुद्धि पक्ष में प्रतिष्ठित होनी चाहिए वह है सरस्वती। कालान्तर महासरस्वती का यही रूप आपके जीवन में यश, धन, ऐश्वर्य, सम्मान इत्यादि सब कुछ प्रदान करेगा। बुद्धि दुधारी तलवार है, पतन और उत्थान बुद्धि पर ही निर्भर है। एक गलत निर्णय सम्पूर्ण पतन के लिए काफी है तो वहीं उचित निर्णय उत्थान की ऊँचाइयों पर ले जायेगा। 

        सबसे शापित होना पर गुरु के द्वारा शापित मत होना अन्यथा बुद्धि पक्ष नहीं सुधर सकता। सबने एक स्वर में गुरु को परम ब्रह्म कहा है, शिव ने गुरु को यह पद प्रदान किया है। बुद्धि शापित हो गई तो कुछ नहीं बचता। गुरु ही ज्ञान का प्रतीक है, गुरु सिर्फ ज्ञान देता है, चेतना देता है, ज्ञान और चेतना के अभाव में बुद्धिमय कोष सिर्फ अन्धकार से भर जाता है। जितने भी प्रबुद्ध एवं प्रज्ञाशील मनुष्य हुए हैं उनकी बुद्धि बाल्य सुलभ ही होती है, सयानों को कोई ज्ञान नहीं देता। जो सयाने बनने की कोशिश करते हैं उन्हें उनके सयानेपन पर छोड़ दिया जाता है। ज्ञान का उपयोग केवल आपातकालीन परिस्थितियों में ही करते हैं, मर्यादा में रहते हैं। जो अज्ञानी होते हैं, पाखण्डी होते हैं वे ही प्रदर्शन करते हैं। सिद्धियाँ प्रदर्शन के लिए नहीं हैं ज्ञान प्रदर्शन के लिए नहीं है। विलक्षण ज्ञान हमेशा गोपनीय रखा जाता है। ज्ञान की तो अत्यंत ही परम अवस्थायें हैं, सदैव से रही हैं। 
                           शिव: शासनत शिव शासनत:

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