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दीपावली पर सम्पन्न किये जाने वाले अन्य पूजन ।।

   भगवती लक्ष्मी की कृपा की आवश्यकता किसे नहीं होती यह बात अलग है कि लक्ष्मी (धन) की प्राप्ति के साधन (श्रोत) अलग-अलग होते हैं। व्यापारी अपने व्यापार या सूद में रुपया देकर लक्ष्मी प्राप्त करते हैं तो लेखक अपनी लेखनी के दम पर ही नई-नई रचनाओं का सृजन कर अपनी जीविका चलाते हैं। दीपावली पर धनाधीश कुबेर का भी पूजन होता है। आपका जो भी व्यवसाय हो और आपकी आय का जो भी श्रोत हो जिसमें आप अपनी आय व्यय का हिसाब | रखते हों जैसे बहीखाता आदि या जिस तराजू से अन्य सामग्री का व्यापार करते हों उसे जल छिड़ककर पवित्र करें अपने सम्मुख आसन पर अपना बहीखाता लेखनी आदि स्थापित करें और स्वयं पवित्र होकर धूप, दीप, पुष्प, नैवेद्य आदि से उसका पूजन करें विभिन्न पूजनों के प्रयुक्त मंत्र क्रमश: निम्नानुसार हैं-

बहीखाता पूजन

याकुन्देन्दु तुषारहार धवला या शुभ्र वस्त्रावृता । 
या वीणा वरदण्डमण्डित करा या श्वेत पद्मासना ।। 
या ब्रह्माच्युत शङ्कर प्रभृतिभिर्देवैः सदा वन्दिता । 
सा मां पातु सरस्वती भगवती निःशेष जाड्यापहा ।।

लेखनी पूजन

लेखनी निर्मितां पूर्वं ब्रह्मणा परमेष्ठिना, लोकानां च हितार्थाय तस्मात्तां पूजयाम्यहम्। 
लेखन्यै ते नमस्तेऽस्तु लाभकर्त्यै नमो नमः ॥ 
पुस्तके चर्चिता देवी सर्वं विद्यान्नदाभव । 
मद्गृहे धनधान्यादि समृद्धिं कुरु सर्वदा ॥ 
कृष्णानने कृष्णजिह्वे चित्रगुप्तकर स्थिते । 
पुष्पांजलि गृहाणत्वं सदैव वरदाभाव ॥

कुबेर प्रार्थना

देविप्रियश्च नाथस्य कोषाध्यक्ष महामते । 
घ्यायेऽहं प्रभुं श्रेष्ठंकुबेरं धनदायकम् ॥ 
क्षमस्व मम दौरात्म्यं कृपासिन्धो सुरप्रियः । 
धनदोऽसि धनं देहि अपराधांश्च नाशय ।। 
महाराज कुबेर त्वं भूयो भूयो नमाम्यहम् । 
दीनोपि च दया यस्य जायतुं वै महाधनः ॥

तुला पूजन

त्वं तुले सर्वदेवानां प्रमाणामिह कीर्तिता। 
अतस्त्वां पूजयिष्यामि धर्मार्थं सुख हेतवे ॥ 
पदार्थ मानसिद्धयर्थे ब्रह्मणा कल्पिता पुरा । 
तुलनामेति कथितां संख्या रूपामुपास्महे ॥

तिजोरी पूजन

धनदाय नमस्तुभ्यं निधि पद्मधिपाय च । 
भवन्तु त्वत्प्रदानं मे धन धान्यादि सम्पदा ॥ 
कुबेराय नमस्तुभ्यं नानाभाण्डार संस्थिता ।
 यत्र लक्ष्मीभवेद्देवि धनं चिह्न नमोऽस्तुते ॥

मानदण्ड पूजन
ब्रह्मदण्डं त्वमेवासि ब्रह्मणा निर्मितं च तत् । 
तस्मात्सव तत्पदे तुभ्यं मानदण्ड नमोऽस्तुते ।। 

अन्योन्य पूजन 
त्वमेव सर्वभूतानां साक्षि भूतं च वस्त्वसि । 
तस्मात् तुभ्यं नमः सद्यो ब्रह्माविष्णु शिवात्मकम् ॥.

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