मननाद् विश्वविज्ञानं त्रांणसंसार बन्धनात्।
त्रायते सतंत चैव तस्मांन्मत्र इतीरित:।।
(जिसका मनन करने से समस्त ब्रह्मान्ड का ज्ञान हो जाता है, साधक सांसारिक बन्धन से छूट जाता है तथा जो रोग-शोक, भय, दु:ख एवं मृत्यु से सदैव रक्षा करता है उसको ही मंत्र कहते हैं।)
मनना प्राणनां चैव मद्रूपस्याव बोधनात्।
त्रायते सर्वभयत: तस्मान्मंत्र इतीरित।।
(जो साधक की सभी भयों से रक्षा करता है तथा जिसका चिन्तन-मनन करने से आत्मतत्व-शिवरूप का बोध हो जाता है उसी को मंत्र कहते हैं।).
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