प्रारब्ध का नाश भोगने से ही होता है किन्तु भगवान के नाम में प्रारब्ध का नाश करने की अतुल शक्ति है। तुलसीदासजी ने कहा है—‘मेटत कठिन कुअंक भाल के।’
—संतजनों ने कहा है कि सादा-सात्विक भोजन व संयम के साथ इस महामन्त्र का तीन करोड़ जप करने से मनुष्य के हाथ की रेखाएं बदलने लगती हैं। जन्मपत्री के ग्रह शुद्ध होने लगते हैं। उसके शरीर में कोई भी महारोग नहीं होता है।
—इस महामन्त्र का साढ़े तीन करोड़ बार जप करने से मनुष्य ब्रह्महत्या, चोरी, पितर, देव व मनुष्यों के प्रति किए गए अपराध से मुक्त हो जाता है।
—चार करोड़ जप करने से मनुष्य का धनस्थान शुद्ध हो जाता है और वह कभी दरिद्र नहीं होता है।
—जिसने इस महामन्त्रका पांच करोड़ जप किया है उसके हृदय में ज्ञान प्रकट हो जाता है।
—छह करोड़ जप से साधक के बाह्य व आन्तरिक समस्त शत्रु नष्ट हो जाते हैं।
—सात करोड़ जप करने से आयु की वृद्धि होती है।
—आठ करोड़ जप करने से मनुष्य का मरण सुधरता है। अंत समय में भगवान उस साधक को किसी तीर्थ में बुलाते हैं और वहां वह पवित्र अवस्था में मृत्यु को प्राप्त होता है।
—नौ करोड़ मन्त्रों का जप करने से साधक को स्वप्न में भगवान के दर्शन होते हैं।
—दस, ग्यारह व बारह करोड़ जप करने से संचित, क्रियमाण और प्रारब्ध—तीनों कर्मों का नाश हो जाता है।
—तेरह करोड़ जप करने से भगवान का प्रत्यक्ष साक्षात्कार होता है। समर्थ गुरु रामदास ने गोदावरी के किनारे इस महामन्त्र का तेरह करोड़ जप किया और वहां भगवान राम प्रकट हो गये थे। नासिक में उस स्थान पर ‘काले रामजी का मन्दिर’ है।
साभार.......
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