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आइये आज कुण्डलिनी से सम्बंधित कुछ बेसिक बातों की चर्चा करते हैं ।

 सबसे पहले कुण्डलिनी नाम पड़ा कुंड से कुंड मतलब गड्ढा । गड्ढा किस चीज का, उर्जा से भरा हुआ कुंड या गड्ढा । कुंडलिनी वलयाकार साढ़े तीन फेरे लगाते हुए मूलाधार चक्र में स्थित है । मूलाधार चक्र रीढ़ की अंतिम हड्डी के इर्द गिर्द स्थित है । मूलाधार से उपर स्वाधिष्ठान चक्र स्थित है जो जननेन्द्रिय के इर्द गिर्द स्थित है । ठीक इसके उपर मणिपुर चक्र स्थित है यह नाभि से दो अंगुल नीचे है । इसके ऊपर अनाहत चक्र है जो छाती के दोनों पसलियों के ठीक मध्य में स्थित है । इसके उपर ग्रीवा ( गर्दन ) में कंठ के पास विशुद्ध चक्र स्थित है । और इसके ऊपर दोनों भौंह् के बीच आज्ञा चक्र स्थित है । सहस्त्रार कोई चक्र नही है बल्कि यह कुण्डलिनी की पूर्ण जाग्रत अवस्था है जिस अवस्था में दिमाग का नस नस सक्रीय रहता है । इसलिए इसे हजार कमल वाला बताया जाता है । इसका अर्थ हुआ सहस्त्रार जाग्रति मतलब पूर्ण रूप से जागृत मष्तिष्क । 
कुछ यौगिक क्रियाएं करने पर कुण्डलिनी अपने स्थान मूलाधार से ऊपर उठती है और परस्पर प्रत्येक चक्रो को भेदती हुई सहस्त्रार तक पहुँचती है । यह जीवनी उर्जा है जो मूलाधार में कुंड में स्थित रहती है । यह उर्जा स्वाभाविक रूप में निचे क्षरण होते हुए सृजन का कार्य करती है । ध्यान के द्वारा चक्रो को सक्रीय किया जाता है जबकि चक्रो को पूर्ण जागृत यौगिक क्रियाओं के द्वारा किया जाता है जब कुण्डलिनी ऊपर उठती है । 
प्रत्येक चक्र के बीज मन्त्र नीचे लिखे हुए हैं ।
 
मूलाधार बीज मन्त्र - लं ( LAM )

स्वाधिष्ठान बीज मन्त्र - वं ( VAM )
मणिपुर चक्र बीज मन्त्र - रं ( RAM ) 
अनाहत चक्र बीज मन्त्र - यं ( YAM )
विशुद्ध चक्र बीज मन्त्र - हं ( HAM )
आज्ञा चक्र बीज मन्त्र - ॐ ( OM MMMM ....)
सहस्त्रार - यह चक्र नही बल्कि अवस्था है | ईश्वर लीन अवस्था | 
मन्त्रों का मानसिक जाप करते हुए चक्र ध्यान कर सकते हैं | ( साधारण गृहस्थ या जिन्हें ज्यादा ध्यान अभ्यास न हो दस मिनट से ज्यादा बीज मन्त्रों का मानसिक जाप न करें ) प्रत्येक चक्र की अपनी खासियत है और यह अपने खासियत के हिसाब से सक्रीय होते हुए अलग अलग सकारात्मक गुण उत्पन्न करने लगते हैं |

अधिक उर्जावान या क्रोधी व्यक्ति मणिपुर चक्र का बीज मन्त्र अधिक न जपे.

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