शिव और काली प्रत्येक काल में पूर्ण चैतन्य एवं शाश्वत आदि शक्तियां हैं। आप किसी भी काल में किसी भी समय शिवपूजन या काली पूजन संपन्न करें तो ह्रदय के साथ-साथ रोम रोम से चेतन्यता शुद्धता की तरंगे प्रवाहित होने लगेगी। कैसा भी पतीत साधक हो कितना बड़ा नास्तिक भी क्यों ना हो शिव और काली के मंदिर में वह आध्यात्मिक तरंग अवश्य महसूस कर लेगा। इनके विग्रह देखते ही स्वत: व्यक्ति नम्र हो जाता है अपलक निहारने लगता है संज्ञा शुन्य हो जाता है और कुछ ही क्षणों में कुछ विशेष प्राप्त कर लेता है।
ये कभी अनित्य या शुन्य या क्षीण नहीं होते इसलिए शिव और काली का पूजन सबसे आसान बिना किसी प्रपंच के किसी भी समय किसी भी प्रकार किसी भी वस्तु के द्वारा संपन्न किया जा सकता है और काली के पूजन में पूजन प्रपंच कदापि नहीं है जिससे चाहो उसे पूजो जैसे चाहो वैसे उपासना करो जब चाहो तब करो मुहूर्त की भी जरूरत नहीं है। जो काल के शासक काल के निर्माता काल के नियंत्रणकर्ता है वे भला कब से मुहूर्त काल के प्रपंच मे उलझने लगे। भस्म से पूजो अनार के रस से पूछो दुग्ध समर्पित करो दीपक जलाओ या मत जलाओ कोई फर्क नहीं पड़ता। जो समस्त ब्रह्मांड को प्रकाशित कर रहे हैं जिनकी उपासना करके त्रिदेव सब कुछ प्राप्त कर रहे हैं जिनकी कृपा पर सभी देवगण पल रहे हैं उन्हें किसी की क्या जरूरत। किसी चीज की जरूरत नहीं है किसी की जरूरत नहीं है यही इनके परब्रह्म स्वरूप की परिभाषा है। जो चाहिए होगा वह स्वयं निर्मित कर लेंगे। प्रसन्न कुपित इत्यादि तो छोटी मोटी शक्तियां होती रहती हैं महाकाली एवं महाकाल इन सबसे परे हैं। यह दोनों परम परमेश्वर अलख निरंजन से प्रदुर्भावित मूल शरीर है जिनमें से कि नाना प्रकार के अनगिनत शरीर उत्पन्न होते रहते हैं।
मूल कहां है? यही रहस्य है। वैसे परा ब्रह्मांडीय मुल शरीर से निकलकर एक विशुद्ध शरीर पृथ्वी पर सदैव निवास करता है। आज भी हिमालय पर शिव और काली का विशुद्ध शरीर पराब्रह्मांडीय मूल शरीर से उत्सर्जित हो गोपनीय रूप से समस्त सृष्टि का संचालन करता है। उस तक पहुंचना उनकी कृपा पर ही निर्भर है इनकी उपासना का एक महत्व और है कि एक बार आवाज दो और एक उपस्थित। आते हैं कार्य संपन्न कर देते हैं और कब चले जाते हैं पता ही नहीं चलता परंतु आते जरूर हैं। यह हमारी न्यूनता है क्षीणता है कि हम अनुभूत नहीं कर पाते क्योंकि हम प्रपंच में फंसे हुए हैं। प्रपंच से स्वयं को परे रखने वाले महाकाल और महाकाली को प्रपंच के माध्यम से सूचित करने पर कुछ हासिल होने वाला नहीं है। महाकाली 24 घंटे महाकाल के सानिध्य में रहती है अब तक ब्रह्मांड में ना वह क्षण आया है और ना वह क्षण आएगा जब महाकाली महाकाल से क्षण के सुक्ष्मातीत अंश के लिए भी अलग हुई हो यही अर्धनारीश्वर योग है जितने भी शैव उपासक होते हैं वह सब के सब गौरी शंकर रुद्राक्ष धारण करते हैं शंकराचार्य तो गौरी शंकर रुद्राक्षो का कंठा धारण करते थे। कभी आध्यात्मिक प्रवृत्ति आध्यात्मिक चिंतन से विरत ना हो पाए कभी शिव और शक्ति के चरण कमलों से ध्यान ना हट पाय यही महाकाली पूजन का गूढ़ रहस्य है शिव और काली उवाच के मध्य ही 64 तंत्र ग्रंथों की संरचना हुई है। शिव ने कहा और काली ने सुना शिव और काली उवाच ही समस्त रहस्यों की खान है हां बहुत से तंत्र ग्रंथों को कोमलंगी ने आच्छादित कर दिया है बिरले साधक ही उनकी कृपा से इनको प्राप्त कर पाते हैं शिव पर शासन करने वाली शक्ति का नाम है महाकाली।
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