इसके लिए, आप एक नया रंगबिरंगा ऊनी कम्बल ले सकते हैं और इसे सिद्ध करने के पश्चात, इसके ऊपर आप, अपने वांछित रंग का रेशमी या ऊनी वस्त्र भी , बिछा सकते हैं |
मैथुन चक्र
मंगलवार की प्रातः, पूर्ण स्नान कर, लाल वस्त्र धारण कर, लाल आसन पर बैठकर, भूमि पर तीन मैथुन चक्र का निर्माण क्रम से , कुमकुम के द्वारा कर ले । 1 और 3 चक्र छोटे होंगे और मध्य वाला आकार में , थोडा बड़ा होगा । मध्य वाले चक्र के मध्य में , बिंदु का अंकन किया जायेगा। बाकी के , दोनों चक्र में , ये अंकन नहीं होगा । मध्य वाले चक्र में , आप उस कम्बल को मोड़कर रख दे । अपने बाएं तरफ वाले , चक्र के मध्य में , तिल के तेल का दीपक, प्रज्वलित कर ले। और, दाहिने तरफ वाले चक्र में, गौघृत का दीपक प्रज्वलित कर ले। हां, दोनों दीपक, चार चार बत्तियों वाले होने चाहिए । अब, गुरु पूजन और गणपति पूजन के पश्चात, पंचोपचार विधि से , उन दोनों दीपकों का भी पूजन करे। नैवेद्य की जगह कोई भी , मौसमी फल अर्पित करें ।
इसके बाद, उस कम्बल का पंचोपचार पूजन करें | तत्पश्चात कुमकुम मिले 108-108 अक्षत को, निम्न मंत्र क्रम से बोलते हुए, उस कम्बल पर डालें –
" ऐं ज्ञान शक्ति स्थापयामि नमः।
ह्रीं इच्छाशक्ति स्थापयामि नमः।
क्लीं क्रियाशक्ति स्थापयामि नमः।। "
तत्पश्चात, निम्न ध्यान मंत्र का 7 बार उच्चारण करे। और ध्यान के बाद, जल के छींटे , उस वस्त्र पर छिडके ।
" ॐ पृथ्वी त्वया धृता लोका देवी त्वं विष्णुना धृता । त्वं च धारय माम देवी: पवित्रं कुरु च आसनं ।।
ॐ सिद्धासनाय नमः ॐ कमलासनाय नमः ॐ सिद्ध सिद्धासनाय नमः।। "
इसके बाद, निम्न मंत्र का, उच्चारण करते हुए, पुष्प मिश्रित अक्षत को, उस कम्बल या वस्त्र पर 324 बार अर्पित करें ।
" ॐ ह्रीं क्लीं ऐं श्रीं सप्तलोकं धात्रि अमुकं आसने सिद्धिं भू: देव्यै नमः ।। "
ये क्रम गुरूवार तक, नित्य संपन्न करें । मात्र 3 दिन में ही , आप इस सामान्य (किंतु दुर्लभ) प्रक्रिया के माध्यम से , अपने आसन को सिद्ध कर सकते हैं । ये 3 दिन की मेहनत, आपके जीवन भर काम आयेगी ।
जहां पर अमुक लिखा हुआ है , वहां अपना नाम उच्चारित करना है ।अंतिम दिवस, क्रिया पूर्ण होने के बाद, किसी भी देवी के मंदिर में , कुछ दक्षिणा और भोजन सामग्री अर्पित कर दें तथा कुछ धन राशि, जो आपके सामर्थ्यानुसार हो , अपने गुरु के चरणों में, अर्पित कर दें या गुरु धाम में, भेज दें तथा सदगुरुदेव से , इस क्रिया में पूर्ण सफलता का आशीर्वाद लें । अद्भुत बात ये है कि , आप इस कम्बल को जब भी बिछाकर, इस पर बैठेंगे , तो ना सिर्फ सहजता का अनुभव करेंगे ।अपितु , समय कैसे बीत जाएगा, आपको ज्ञात भी नहीं होगा।
दीर्घ कालीन साधना , कहीं ज्यादा सरलता से, ऐसे सिद्ध आसन पर, संपन्न की जा सकती है। आप इसके तेज की जांच करवा कर देख सकते हैं कि, कितना अंतर है , सामान्य आसन में और इस पद्धति से सिद्ध आसन में । आप ऐसे दो आसन, सिद्ध कर लीजिए; एक आसन आप अपने , गुरु के बैठने के निमित्त, प्रयोग कर सकते हैं । आपको दो बातों का , ध्यान रखना होगा ।
1. इन आसनों को , धोया नहीं जाता है ।
2. इन पर, हमारे अतिरिक्त कोई और नहीं बैठ सकता है। अन्यथा, उसकी मानसिक स्थिति व्यथित हो सकती है ।
अतः , यदि किसी और के निमित्त आसन तैयार करना हो तो , अमुक की जगह, उसका नाम उच्चारित कर आसन सिद्ध करना होगा । स्वयं के अतिरिक्त, जो हम गुरु सत्ता या सिद्धों के , आवाहन हेतु , जो आसन प्रयोग करेंगे। उसे सिद्ध करने के लिए, अमुक की स्थान पर, ज्ञानशक्तिं का उच्चारण होगा। .
“पूर्णम पूर्णै सपरिपूर्ण: आसन: दिव्यताम सिद्धि:”
अर्थात, आसन मात्र आसन न हो । अपितु , उसमे पूर्ण दिव्यता का संचार हो और वो दिव्यता से , युक्त हो ।तभी, उसके प्रयोग से, साधक की देह, दिव्य भाव युक्त होती है । यदि, उसका भाव या साधना पक्ष, उसे पूर्णत्व के मार्ग पर, सहजता से, गतिशील करा देता है और, साधक को पूर्णता प्राप्त होती ही है । यहां पूर्णम का अर्थ भी यही है कि , माध्यम पूर्णत्व गुण युक्त हो , तभी तो पूर्णत्व प्राप्त होगा ।
ये ज्ञात नहीं है कि , आसन। यदि , पूर्ण प्रतिष्ठा से युक्त ना हो तो, हम चाहे कितने भी गुदगुदे आसन पर या गद्दे पर बैठ जाएं, हम हिलते-डुलते रहेंगे और हमारे चित्त में बैचेनी की तीव्रता बनी रहेगी । इसका कारण, हमारे शरीर का मजबूत होना नहीं है । अपितु , भूमि के भीतर रहने वाली नकारात्मक शक्तियां , सुरक्षा आवरण विहीन हमारी , इस भौतिक देह से , सरलता से संपर्क कर लेती हैं । तब, उनके दुष्प्रभाव से , हमारा चित्त भी बैचेन हो जाता है और शरीर भी टूटने लगता है। वे सतत हमें , साधना से, विमुख होने के भाव से, प्रभावित करते रहते हैं । जब ऐसी स्थिति होगी, आप व्याकुल मन और अस्थिर शरीर से, कैसे साधना करोगे और कैसे आपको सफलता मिलेगी । यदि, आप आसन से अलग हो जाते हो तो, पुनःना सिर्फ, आपका शरीर स्वस्थ हो जाता है ।बल्कि, आपका चित्त भी प्रसन्न हो जाता है । .
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