Nirvana Shatakam मंत्र (स्तोत्रम) आदि शंकराचार्य द्वारा लिखा गया है ! Nirvana Shatakam सबसे प्रभावी और शक्तिशाली मंत्रों में से एक माना जाता है जिसे आप मन की शांति और मोक्ष प्राप्त करने के लिए जाप कर सकते हैं।
🙏 What is Nirvana Shatakam ?
निंवाना शातकम् को अल्मा षटकम के नाम से भी जाना जाता है! एक भक्तिपूर्ण रचना है जिसमें 6 छंद संस्कृत में है ! श्री आदि शंकराचार्य द्वारा ९वीं शताब्दी के आसपास इसे लिखा गया था ! इस ग्रन्थ का उद्येश शिक्षाओं को बढ़ाना था ! यह हिंदू एसओपीयूआर के रूप में माना जाता है ! इसे पढ़ने से जीवन में सुख और शांति आता है !
🙏 Who is Adi Shankaracharya ?
आदि शंकराचार्य भारत के एक महान धर्मप्रवर्तक थे ! उन्होने बहुत सारे वेड और उपनिसाद लिखे हैं , उनमे से भगवद्गीता, उपनिषदों और वेदांतसूत्रों पर लिखी हुई इनकी रचना बहुत प्रसिद्ध हैं ! उन्होंने सांख्य दर्शन का प्रधानकारणवाद और मीमांसा दर्शन के ज्ञान-कर्मसमुच्चयवाद आदि को रचना किया !
इन्होंने भारतवर्ष में चार कोनों में चार मठों की स्थापना कीये थी जो अभी तक बहुत विश्व प्रसिद्ध और पवित्र माने जाते हैं ! और इन्ही के वजह से संन्यासी ‘शंकराचार्य’ कहे जाते हैं ! वे चारों स्थान ये हैं- (१) ज्योतिष्पीठ बदरिकाश्रम, (२) श्रृंगेरी पीठ, (३) द्वारिका शारदा पीठ और (४) पुरी गोवर्धन पीठ ! इन्हें शंकर के अवतार भी माना जाता हैं !
🙏 Nirvana Shatakam Mantra
मनोबुद्ध्यहंकार चित्तानि नाहं न च श्रोत्रजिह्वे न च घ्राणनेत्रे !
न च व्योमभूमि- र्न तेजो न वायुः चिदानंदरूपः शिवोऽहं शिवोऽहम् !!१!!
न च प्राणसंज्ञो न वै पञ्चवायुः न वा सप्तधातु- र्न वा पञ्चकोशाः!
न वाक्पाणिपादं न चोपस्थपायू चिदानंदरूपः शिवोऽहं शिवोऽहम् !!2 !!
न मे द्वेषरागौ न मे लोभ मोहौ मदो नैव मे नैव मात्सर्यभावः !
न धर्मो न चार्थो न कामो न मोक्षः चिदानंदरूपः शिवोऽहं शिवोऽहम् !! 3 !!
न पुण्यं न पापं न सौख्यं न दुःखम् न मंत्रो न तीर्थ न वेदा न यज्ञाः !
अहं भोजनं नैव भोज्यं न भोक्ता चिदानंदरूपः शिवोऽहं शिवोऽहम् !!4 !!
न मे मृत्युशंका न मे जातिभेदः पिता नैव मे नैव माता न जन्म !
न बन्धुर्न मित्रं गुरुर्नैव शिष्यः चिदानंदरूपः शिवोऽहं शिवोऽहम् !!5 !!
अहं निर्विकल्पो निराकाररूपः विभुर्व्याप्य सर्वत्र सर्वेन्द्रियाणाम् !
सदा मे समत्वं न मुक्तिर्न बन्धः चिदानंदरूपः शिवोऽहं शिवोऽहम् !! 6 !!
🙏 Nirvana Shatakam Mantra in Hindi
• सरल अर्थ : मैं (जीव ) मन, बुद्धि, अहंकार और स्मृति नहीं हूँ (चार प्रकार के अन्तः कारन ) ! मैं कान, नाक और आँख भी नहीं हूँ ! मैं आकाश, भूमि, तेज और वायु भी नहीं हूँ ! मैं शिव हूँ ! शिव से अभिप्राय शुद्ध रूप से है जिसमे कोई मिलावट नहीं है। चेतन शक्ति ही शुभ है !
• सरल अर्थ : मैं प्राण भी नहीं हूँ और ना ही मैं पञ्च प्राणों (प्राण, उदान, अपान, व्यान, समान) में से कोई हूँ, ना मैं सप्त धातुओं (त्वचा, मांस, मेद, रक्त, पेशी, अस्थि, मज्जा) में कोई हूँ। जीव का निर्माण साथ धातुओं से माना जाता है। मैं ना ही पञ्च कोष (अन्नमय, मनोमय, प्राणमय, विज्ञानमय, आनंदमय) में से कोई हूँ , न मैं वाणी, हाथ, पैर हूँ और न मैं जननेंद्रिय या गुदा हूँ, मैं चैतन्य रूप हूँ, आनंद हूँ, शिव हूँ, शिव हूँ। भाव है की जीव अज्ञानता के कारण ही स्वंय को स्थूल रूप से जोड़ लेता है, जैसे की हाथ पैर आदि जो दिखाई देते हैं या नहीं, लेकिन जीव तो शिव ही है जो स्वंय समस्त संसार है।
• सरल अर्थ : मैं राग और द्वेष नहीं हूँ (मैं आसक्ति और विरक्ति में नहीं हूँ ) और नाही मुझमे लोभ और मोह है। न ही मुझमें मद है न ही ईर्ष्या की भावना, न मुझमें धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष ही हैं, मैं चैतन्य रूप हूँ, आनंद हूँ, शिव हूँ, शिव हूँ। लगाव या विरक्ति, लोभ आदि चित्त का अशुद्ध रूप है और जीव ऐसा नहीं है। जीव शुद्ध है जो की शिव है।
• सरल अर्थ : न तो पुण्य हूँ (अच्छे कर्म) सद्कर्म हूँ, न ही मैं पापम (बुरे कर्म) हूँ। मैं सुख और दुःख दोनों ही नहीं हूँ नो की अज्ञान के कारन उत्पन्न होते हैं। ना मैं मन्त्र हूँ, न तीर्थ, ना वेद और ना यज्ञ हूँ। मैं ना भोजन हूँ, ना खाया जाने वाला हूँ और ना खाने वाला ही हूँ। मैं चैतन्य रूप हूँ, आनंद हूँ और शिव हूँ।
• सरल अर्थ : ना मुझे मृत्यु का भय है (मृत्यु का भी अज्ञान का सूचक है), ना मुझमें जाति का कोई भेद है (अद्वैत की भावना नहीं है), ना मेरा कोई पिता ही है, न कोई माता ही है (मेरा अस्तित्व और उत्पत्ति भी निश्चित नहीं है जिसे आकार रूप में पहचाना जा सके ), ना मेरा जन्म हुआ है, ना मेरा कोई भाई है (जन्म मरण से मैं मुक्त हूँ और मेरा कोई सबंधी नहीं है ) ना कोई मेरा मित्र है और ना ही मेरा कोई गुरु है। मेरा कोई शिष्य भी नहीं है। मैं चैतन्य रूप हूँ, आनंद हूँ और मैं शिव हूँ
• सरल अर्थ : आत्मा क्या नहीं है यह समझाने के उपरांत आदि शंकराचार्य जी अब बता रहे हैं की आत्मा वास्तव मैं है क्या। मुझमे कोई संदेह नहीं है और मैं सभी संदेहों से ऊपर हूँ। मेरा कोई आकार भी नहीं है। मैं हर अवस्था में सम रहने वाला हूँ। मैं तो सभी इन्द्रियों को व्याप्त करके स्थित हूँ, मैं सदैव समता में स्थित हूँ। मैं किसी बंधन में नहीं हूँ और नांहि किसी मुक्ति में ही हूँ। मैं आनंद हूँ, शिव हूँ।
🙏 Nirvana Shatakam Benefits
ऐसे तो इस ग्रंथ को पढने का बहुत सारे लाभ है , लेकिन कुछ महत्वपूर्ण लाभ मै इस आर्टिकल में आपके साथ शेयर करने बाला हूँ ! ये निर्वाण शातकम बहुत ही लाभकारी होता है इसे हर व्यक्ति को पढ़ना चाहिए !
चाहे वह शारीरिक हो या मानसिक ! मैं शिव हूँ ! इस मंत्र स्वयं पाठक को सांसारिक मोह माया को त्यागने और एक न्यूनतम जीवन शैली अपनाने के लिए प्रोत्साहित करता है !
दिन में एक बार निर्वाण शातकम का पढने या सुनने से आपके आस-पास सकारात्मक बातावरण पैदा कर सकता है और चेतना की भावना पैदा कर सकता है !
आज की व्यस्त जीवन शैली में, तनाव और क्रोध जैसी भावनाओं और मानसिक ट्रिगर्स से आसानी से दूर किया जा सकता है ! ताकि ये कंपन आपको शांत रहने में मदद करते हैं।
यह आपका चिंता और तनाव को दूर करता हैं,
इसको पढने से हमारा मानसिक तनाव दूर होत्ता ! और हमारा स्वास्थ ठीक रहता हाई !
इस ग्रन्थ को पढने से नकारात्मक सोच दूर हो जाता है !
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