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श्री कालीका षोडशोपचार पुजन ।।

         षोडशोपचार पूजन का अर्थ है जल, दुग्ध, मधु, दही एवं घृत से स्नान, पुष्प, अक्षत, धूप, दीप नैवेद्य आदि 16 प्रकार से अपने ईष्ट देवी देवता का पूजन भगवती महाकाली का स्वरूप विकराल एवं तेजस्वी है। वे दुष्टों पर अत्यधिक क्रोधित होकर उनका सहार करती हैं तो वहीं अपने भक्तो के प्रति उनमे आपर दया व करुणा भाव है। माँ   
काली के भक्तों का कभी अमंगल हो ही नहीं सकता क्योंकि भगवती काली की एक हुंकार मात्र से आसुरी शक्तियाँ नष्ट हो जाती हैं। 

पूजन विधि
साधक सर्वप्रथम स्नानादि से निवृत्त होकर पूजा स्थल पर पवित्र आसन पर बैठे अपने सम्मुख किसी चौकी पर भगवती काली की प्रतिमा या यंत्र स्थापित करें यह ध्यान रहे कि प्रतिमा जिस आसन पर स्थापित हो वह साधक की नाभि से ऊंचा हो अर्थात आसन पर बैठने के बाद साधक का नाभि स्थल जिस ऊंचाई पर हो देवी प्रतिमा उससे ऊंची हो ।पहले पवित्रीकरण, आचमन, गणेश वंदना एवं गुरु वंदना करें उसके बाद मूर्ति स्थापना के बाद दोनों हाथ जोड़कर निम्न श्लोकों का उच्चारण करें। 

ॐ कराल वदनां घोरां मुक्तकेशीं चतुर्भुजाम् । 
आद्यं कालिकां दिव्यां मुण्डमाला विभूषिताम् ॥ 
सद्यश्छिन्न शिरः खड्ग वामोर्ध्व कराम्बुजाम् । 
महामेघप्रभां कालिकां तथा चैव दिगम्बराम् ॥कण्ठावसक्तमुण्डाली गलटुधिर चर्चिताम् । कर्णावतंसतानीत शव युग्म भयानकाम् ॥ 
घोरदंष्ट्रां करालास्यां पीनोन्नत पयोधराम् । 
शवानां करसंघाते कृतकांची हसन्मुखीम् ॥ 
सुक्कद्वय गलदक्त धारा विस्फुरिताननाम् । 
घोररावां महारौद्री श्मशानालय वासिनीम् ॥ 
बालार्क मण्डलाकारां लोचन त्रितयान्विताम् । 
दन्नुरां दक्षिण व्यापि मुक्तालबिकचोच्चयाम् ॥ 
शव रूप महादेव हृदयोपरि संस्थिताम् । 
शिवाभिर्घोर रावाभिश्चतुर्दिक्षु समन्विताम् ॥ 
महाकालेन् च समं विपरीत रतातुराम् । 
सुख प्रसन्न वदनां स्मेराननसरोरुहाम् ॥

अब दोनो हाथों में पुष्प उठाकर निम्न मंत्र का उच्चारण 

ॐ देवेशि भक्ति सुलभे परिवार समन्विते । 
यावत्त्वां पूजयिष्यामि तावद्देवि स्थिरा भव ॥

अब पुष्प भगवती प्रतिमा पर अर्पित कर दें फिर दोनो हाथों में पुष्पांजलि लेकर निम्न श्लोकों का उच्चारण करें और अतं मे पुष्पांजलि देवी के दाहिने भाग में डाल दें।

ॐ महाकालं यजेद देव्या दक्षिणे धूम्रवर्णकम् । 
विभ्रतं दण्डखट्वांगी दष्ट्रा भीम मुखं शिवम् ॥ 
व्याघ्र चर्मावृतकटिं तुन्दिलं रक्त वाससम् । 
त्रिनेत्र मूद्धर्वकेशंच मुण्डमाला विभूषिताम् ॥ 
जटाभीषण सच्चन्द्र खण्डं तेजो जवलन्निव ।
ॐ हूँ स्फ्रौं यां रां लां वां क्रौं महाकाल भैरव सर्व विघ्नन्नाशय नाशय ह्रीं श्रीं फट् स्वाहा ।।

अपने हाथों मे छः पुष्प लेकर निम्न मंत्र का उच्चारण करें और पुष्प प्रतिमा पर चढ़ा दें -

स्वागतं ते महामाये चण्डिके सर्वमंगले । 
पूजा गृहाण विविधां सर्वकल्याण कारिणी ॥

अब दाहिने हाथ में एक पुष्प उठाकर निम्न मंत्र का उच्चारण करते हुये देवी प्रतिमा पर डाल दें -

ॐ देवेशि भक्ति सुलभे परिवार समन्विते । 
यावत्वां पूजाविष्यामि तावत्वं सुस्थिरा भव ॥

आसन
हाथ में पाँच पुष्प लेकर आसन के रूप में देवी प्रतिमा के चरणों पर रखें, निम्न मंत्र का उच्चारण करें 

ॐ आसनं भास्वरं तुंगं मागल्यं सर्वमंगले । 
भजस्व जगतां मातः प्रसीद जगदीश्वरी ॥ 
(ह्रीं श्रीं क्रीं परमेश्वरि स्वाहा आसनं समर्पयामि)

पाद्य
आचमनीं अथवा किसी अन्य पात्र मे जल लेकर उसमे दूर्बा, कमल तथा अपराजिता के पुष्प पत्रादि डालकर निम्न मंत्र का उच्चारण करते हुऐ भगवती काली को अर्पित करें - 

ॐ गंगादि सलिलाधारं तीर्थ मन्त्राभिमन्त्रिम् । 
दूर यात्रा भ्रम हरं पाद्यं तत्प्रति गृह्यताम ।।** 
(ह्रीं श्रीं क्रीं परमेश्वरि स्वाहा पाद्यं समर्पयामि )

उद्वर्तन
नाना प्रकार के सुगन्धित द्रव्य, इत्रादि, तेल तथा तिल से उद्वर्तन बनाकर निम्न मंत्रोच्चार करते हुये देवी को अर्पित करें 

ॐ तिल तेल समायुक्तं सुगन्धित द्रव्य निर्मितम् । उद्वर्तनमिंदं देवि गृहाण त्वं प्रसीद में ॥ 
(ह्रीं श्रीं क्रीं परमेश्वरि स्वाहा)

अर्ध्य
किसी पात्र में जल लेकर उसमे पुष्प, अक्षत, दूब, तिल, कुशा का अग्रभाग और सफेद सरसों मिलाकर निम्न मंत्र का उच्चारण करते देवी को अर्पित करें 

ॐ तिल तण्डुल संयुक्तं कुश पुष्प समन्वितम् । 
सुगन्धं फल सयुक्तंमर्ध्य देवि गृहाण मे ॥ 
(ह्रीं श्रीं क्रीं परमेश्वरि स्वाहा )

आचमन
अब आचमनी मे जल लेकर निम्न मंत्र का उच्चारण करते हुये देवी को आचमनी दें। जल में जायफल, लवंग तथा कंकोल का चूर्ण मिला लें तो उत्तम है -

ॐ स्नानादिक विधायापि यतः शुद्धिरवाप्यते । 
इदं आचमनीयं हि कालिके देवि प्रगृहाताम् । 
(ह्रीं श्रीं क्रीं परमेश्वरि स्वाहा आचमनीयं निवेदयामि)

स्नान
किसी पात्र में स्वच्छ जल लेकर उसमें इत्र केशर आदि मिला लें फिर निम्न मंत्र का उच्चारण करते हुये देवी को स्नान करायें - 

ॐ रखमापः पृथिवी चैव ज्योतिषं वायुरेव च ।
लोक संस्मृति मात्रेण वारिणा स्नापयाम्यहम् ॥ 
(ह्रीं श्रीं क्रीं परमेश्वरि स्वाहा स्नानं निवेदयामि)

मधुपर्क
किसी कांसे के पात्र मे शुद्ध घी, दही एवं मधु (शहद) तीनो को मिलाकर देवी को अर्पित करें। निम्न मंत्र का उच्चारण करें 

ॐ मधुपर्क महादेव ब्रह्माघेः कल्पितं तव । 
मया निवेदितं भक्त्या गृहाण् गिरि पुत्रिके ॥ 
(ह्रीं श्रीं क्रीं परमेश्वरी स्वाहा मधुपर्क समर्पयामि) 

मधुपर्क अर्पित करने के पश्चात पुनः आचमन करायें । निम्न मंत्र का उच्चारण करें 

ॐ स्नानादिकं पुरः कृत्वा पुनः शुद्धिरवाप्यते । पुनराचमनीयं च कालिके देवि प्रगृह्यताम ।।
 ( पुनराचमनीयं समर्पयामि ) 

चन्दन
 निम्न मंत्र का उच्चारण करते हुये देवी को चन्दन अर्पित करें 

ॐ मलयांचल सम्भूतं नाना गंध समन्वितम् । शीतलं बहुलामोदं चन्दनम् गृह्यतामिदम्।।
 (चन्दनम् निवेदयामि )

रक्त चन्दन 
रक्त चन्दन देवी को अत्यन्त प्रिय है अतः निम्न मंत्र का उच्चारण करते हुये रक्त चन्दन अर्पित करें - 

ॐ रक्तानुलेपनम् देवि स्वयं देव्या प्रकाशितम् । 
तद गृहाण महाभागे शुभं देहि नमोऽस्तुते ॥ 
(रक्त चन्दनम् निवेदयामि)

सिन्दूर
 निम्न मंत्र का उच्चारण करते हुये देवी को सिन्दूर अर्पित करे
ॐ सिन्दूरं सर्वसाध्वीनां भूषणाय विनिर्मितम् । 
गृहरण वर दे देवि भूषणानि प्रयच्छ में ॥ 
(सिन्दूरम् समर्पयामि ) 

कुंकुम 
 निम्न मंत्र का उच्चारण करते हुये देवी को कुंकुम अर्पित करे

ॐ जपापुष्पप्रभं रम्यं नारी भात विभूषणम् । 
भास्वरं कुंकुमं रक्तं देवि दत्तं प्रगृह्म में ॥ 
( कुंकुम् समर्पयामि)

अक्षत
हाँथ मे अक्षत लेकर निम्न मंत्र का उच्चारण करें तत्पश्चात् अक्षत देवी को अर्पित कर दें 

ॐ अक्षतं धान्यजं देवि ब्रह्मणा निर्मितं पुरा । 
प्राणंद सर्वभूतानां गृहाण वर दे शुभे ॥
(अक्षतं समर्पयामि)

पुष्प

हाथ मे पुष्प लेकर निम्न मंत्र का उच्चारण करें फिर पुष्प देवी के चरणों में अर्पित कर दें - 

ॐ चलत्परिमलामोदमत्तालि गण संकुलम् । आनन्दनन्दनोदभूतं कालिकायै कुसुमं नमः ॥ 
( पुष्पं समर्पयामि )

विल्वपत्र
निम्न मंत्र का उच्चारण करते हुये देवी को बिल्व पत्र अर्पित करें -
ॐ अमृतोदभवं श्रीवृक्षं शंकरस्य सदाप्रियम् । 
पवित्रं ते प्रयच्छामि सर्व कार्यार्थ सिद्धये ॥ 
( विल्वपत्रम् समर्पयामि )

माला
सुगन्धित पुष्पों (यथासम्भव रक्त पुष्प) की माला बनाकर निम्न मंत्र का उच्चारण करते हुये देवी को अर्पित करें - 

ॐ नाना पुष्प विचित्राढ्यां पुष्प मालां सुशोभनाम् । प्रयच्छामि सदा भद्रे गृहाण परमेश्वरि ॥ 
( माल्यम् समर्पयामि )

वस्त्र
देवी को दो वस्त्र अर्पित करना चाहिये। ध्यान रहे कि वस्त्र की लम्बाई चौड़ाई बारह अंगुल से कम कदापि न हो तथा वस्त्र नया हो। क्रमशः निम्न मंत्रो का उच्चारण करते हुये दोनो वस्त्र अर्पित करें 

ॐ तन्तु सन्तानसंयुक्तं कला कौशल कल्पितं । सर्वांगाभरण श्रेष्ठं वसनं परिधीयताम् ।। 
( प्रथम वस्त्रं समर्पयामि) 
ॐ यामाश्रित्य महादेवी जगत्संहारकः सदा । 
तस्यै ते परमेशान्यै कल्पयाम्युत्तरीयकम् ॥ 
(द्वितीय वस्त्रं समर्पयामि) 
धूप 
धूप जला लें तथा उसे कांस्य पात्र में रखकर देवी की नासिका के पास कुछ देर स्थिर रखें तत्पश्चात् नीचे रख दें निम्न मंत्र का उच्चारण करें 

ॐ गुग्गुलं घृत संयुक्तं नाना भक्ष्यैश्च संयुतम् । 
दशांग गृसतां धूपं कालिके देवि नमोऽस्तुते ॥ 
 ( धूपं समर्पयामि ) 

दीप
कपास की बत्ती में कपूर का चूर्ण मिलाकर शुद्ध घी का दीपक जलायें । बत्ती की लम्बाई कम से कम चार अंगुल होनी चाहिये । दीपक हाथ मे लेकर देवी को दिखायें । निम्न मंत्र का उच्चारण करें 

ॐ मार्तण्ड मण्डलान्तस्य चन्द्र बिम्बाग्नि तेजसाम् । निधानं देवि कालिके दीपोऽयं निर्मितस्तव भक्तितः ॥ 
(दीपं दर्शयामि)

इत्र 
निम्न मंत्र का उच्चारण करते हुये इत्रादि सुगन्धित द्रव्य देवी को अर्पित करें। - 

ॐ परमानन्द सौरभ्यं परिपूर्ण दिगम्बरम् । 
गृहाण सौरभं दिव्यं कृपया जगदम्बिके ।। 
(सुगन्धितं द्रव्यं समर्पयामि )

कपूर दीप 
एक दीपक में कपूर रखकर दीप के भाँति जलाकर देवी के समक्ष घुमायें। बाद में रख दें। निम्न मंत्र का उच्चारण करें -

 ॐ त्वं चन्द्र सूर्य ज्योतिषिं विद्युदग्न्योस्तथैव च । त्वमेव जगतां ज्योतिदीपोऽयं प्रतिगृह्यताम् ॥ 
(कर्पूर दीपं समर्पयामि )

नैवेद्य 
नैवेद्य पात्र मे कम से कम एक व्यक्ति के आहार योग्य नाना प्रकार के पकवान रखकर निम्न मंत्र का उच्चारण करते हुऐ देवी को समर्पित कर दें 
ॐ दिव्यान्नरस संयुक्तं नानाभक्ष्यैस्तु संयुतम् । 
चौष्यपेय समायुक्तमन्नं देवि गृहाण मे ॥ 
(नैवेद्यं समर्पयामि )

खीर
निम्न मंत्र का उच्चारण करते हुये देवी को खीर अर्पित करे

ॐ गव्यसर्पि पयोयुक्तं नाना मधुर मिश्रितम् । 
निवेदितं मया भक्त्या परमान्नं प्रगृहाताम् ॥ 
(पायसम् समर्पयामि )

मोदक
निम्न मंत्र का उच्चारण करते हुये देवी को मोदक (लड्डू) अर्पित करें 

ॐ मोदकं स्वादु रुचिरं कर्पूरादिभिरन्वितम् । मिश्रनानाविधैर्दव्ये प्रति गृह्माशु भुज्यताम् ॥ 
(मोदकं समर्पयामि)

फल
निम्न मंत्र का उच्चारण करते हुये देवा को विविध फल अर्पित करें 

ॐ फल मूलानि सर्वाणि ग्राम्यांऽरण्यानि यानि च ।
 विधि सुगन्धीनि गृहाण देवि ममाचिरम् ॥** 
( फलमूलानि समर्पयामि)

जल
एक गिलास स्वस्छ जल में केवड़ा, कपूर आदि सुगन्धित चीजें मिलाकर देवी को अर्पित करें। निम्न मंत्र का उच्चारण करें 

ॐ पानीयं शीतलं स्वच्छं कर्पूरादि सुवासितम् । 
भोजने तृप्तिकृद्यस्मात् कृपया प्रतिगृह्णताम् ॥ 
(पानीयं समर्पयामि) 
अब एक कटोरे में सुवासित जल भरकर निम्न मंत्र का उच्चारण करते हुये देवी को अर्पित करें 

ॐ कर्पूरादीनि द्रव्याणि सुगन्धीनि महेश्वरि । 
गृहाण जगतां नाथे करोद्वर्तन हेतवे । 
(करोद्वर्तनजलं समर्पयामि) 

आचमन 
निम्न मंत्र का उच्चारण करते हुये देवी को आचमनी दें 

ॐ अमोदवस्तु सुरभीकृतमेतदनुत्तमम् । 
गृहाणाचमनीयं त्वं मया भक्त्या निवेदितम् ।।
 (आचमनीयं समर्पयामि) 

ताम्बूल 
निम्न मंत्र का उच्चारण करते हुये देवी को सुगन्धित मीठा पान अर्पित करें 

ॐ पूंगीफलं महाद्दिव्यं नागवल्ली दलैर्युतम् । 
कर्पूरैलास समायुक्तं ताम्बूलं प्रतिगृह्यताम् ॥
 (ताम्बूलं समर्पयामि ) 

काजल 
निम्न मंत्र का उच्चारण करते हुये देवी को काजल अर्पित करें

ॐ स्निग्धमुष्णं हृद्यतमं दृशां शोभाकरं तव । गृहीत्वा कज्जलं सघो नेत्राण्यंजय कालिके । 
(कज्जलम् समर्पयामि) 

निम्न मंत्र का उच्चारण करते हुये देवी को सुर्मा (अंजन) अर्पित करें - 

ॐ नेत्रत्रयं महामाये भूषयामल कज्जलैः । 
सुसी दिव्यैर्जगदम्व नमोऽस्तुते ॥ 
(सोवीरांजनम् समर्पयामि )

महावर

निम्न मंत्र का उच्चारण करते हुये देवी को महावर अर्पित करें - 

ॐ त्वत्पदाम्भोजनखर घुतिकारि मनोहरम् । अलक्तकमिदं देवि मया दत्तं प्रगृह्यताम् ।। 
( अलक्ततम् समर्पयामि)

चामर 
निम्न मंत्र का उच्चारण करते हुये देवी को चामर अर्पित 

ॐ चामरं चमरी पुच्छं हेमदण्ड समन्वितम् । 
मयार्पितं राजचिह्नं चामरं प्रतिगृह्यताम् ।। 
( चामरं समर्पयामि)

व्यंजन
निम्न मंत्र का उच्चारण करते हुये देवी को व्यंजन अर्पित करें।

ॐ वर्हिवहं कृताकारं मध्य दण्ड समन्वितम् । गृतां व्यंजनं कालिके देहस्वेदापनुक्तये ॥ 
(व्यजनं समर्पयामि)

घण्टा वाद्यम्
निम्न मंत्र का उच्चारण करते हुये घण्टा (वाद्य यंत्र) बजायें और देवी को अर्पित कर दें 

ॐ यथा भीषयसे देत्यान् यथा पूरवसेऽसुरम् । तां घण्टां सम्प्रयच्छामि महिषध्नि प्रसीद में ।। 
( घण्टावाद्यम समर्पयामि)

दक्षिणा 
निम्न मंत्र का उच्चारण करते हुये देवी को द्रव्य दक्षिणा (स्वर्ण, रजत, मुद्रा आदि) अर्पित करें 

ॐ कांचनं रजतोपेतं नानारत्न समन्वितम् । 
दक्षिणार्थं च देवेशि गृहाण त्वं नमोऽस्तुते ॥ 
(दक्षिणाम् समर्पयामि) 

पुष्पांजलि 
दोनों हाथों में पुष्प लेकर निम्न मंत्र का उच्चारण करते हुये देवी को पुष्पांजलि अर्पित करें 

ॐ काली काली महाकाली कालिके पाप नाशिनी । काली कराली निष्क्रांते कालिके तवन्नमोऽस्तुते ॥ 
ॐ उत्तिष्ठ देवि चामुण्डे शुभां पूजां प्रगृह्य मे । 
कुरुष्व मम कल्याणमष्टाभि शक्तिभि सह ॥ 
भूत प्रेत पिशाचेभ्यो रक्षोभ्यश्च महेश्वरि ।
देवेभ्यो मानुषेभ्योश्च भवेभ्यो रक्ष मा सदर।।
 सर्वदेवमयी देवीं सर्व रोगभयापहाम् । 
ब्रह्मेश विष्णु नमितां प्रणमामि सदा उमाम् ॥
आयुर्ददातुं मे काली पुत्रानादि सदा शिवा । 
अर्थ कामो महामाया विभवं सर्व मङ्गला ॥ 
ह्रीं श्रीं क्रीं परमेश्वरि पुष्पांजलिम् समर्पयामि ॥

नीराजन 
दीप प्रज्वलित कर दाहिने हाथ में दीप लेकर घण्टा बजाते हुये देवी की आरती करें निम्न मंत्र का उच्चारण करें 

ॐ कर्पूरवर्ति संयुक्तं वह्निना दीपितंचयत् । 
नीराजनं च देवेशि गृह्यतां जगदम्बिके ।।

क्षमा प्रार्थना
 
निम्न मंत्र का उच्चारण करते हुये देवी से क्षमा याचना करें।

ॐ प्रार्थयामि महामाये यत्किचिंत स्खलितं मम् । 
क्षम्यतां तज्जगन्मातः कालिके देवि नमोऽस्तुते ॥ 
ॐ विधिहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं वदर्चितम् । 
पूर्णम्भवतु तत्सर्वं त्वत्प्रसादान्महेश्वरि ॥ 
शक्नुवन्ति न ते पूजां कर्तुं ब्रह्मदयः सुराः । 
अहं किं वा करिष्यामि मृत्युर्धर्मा नरोऽल्पधीः ॥ 
न जानेऽहं स्वरूप ते न शरीरं न वा गुणान् । 
एकामेव ही जानामि भक्ति त्वच्चरणाब्जयोः ॥

               ॥ श्री काली जी की आरती ॥
मंगल की सेवा सुन मेरी देवा, हाथ जोड़ तेरे द्वार खड़े। 
पान सुपारी ध्वजा नारियल, ले ज्वाला तेरी भेंट घरे ॥ 
सुन जगदम्बा ! कर न विलम्बा, सन्तन केभण्डार भरे । संतन प्रतिपाली सदा खुशाली, जे काली कल्याण करे ।। बुद्धिविधा तू जगमाता, मेरा कारज सिद्ध करे । 
चरण कमल का लिया आसरा, शरण तम्हारी आन परे ॥ जब जब भीर पड़ी भक्तन पर, तब तब ऑय सहाय करे । संतन प्रतिपाली सदा खुशाली, जै काली कल्याण करे ।। बार बार तैं सब जग मोह्यो, तरुणी रूप अनूप धरे । 
माता होकर पुत्र खिलावे, कहीं भार्या हो भोग करे ॥ 
संतन सुखदाई सदा सहाई, सन्त खड़े जयकार करे । 
संतन प्रतिपाली सदा खुशाली, जे काली कल्याण करे।।
ब्रह्मा विष्णु महेश सहसफन, लिए भेंट तेरे द्वार खड़े । अटल सिंहासन बैठी माता, सिर सोने का छत्र घरे ॥ 
हुए शनिश्चर कुंकुमवरणी, जबलांगुर पर हुकुम करे । 
संतन प्रतिपाली सदा खुशाली, जे काली कल्याण करे ॥ 
कुपित होई कर दानव मारे, चण्ड मुण्ड सब चूर करे । खड्ग त्रिशूर, रक्तबीज को भस्म करें ।। 
शुम्भ निशुम्भ पछाड़े माता, महिषासुर को पकड़ दरे । प्रतिपादखुशाली, जै काली कल्याण करे ॥ 
जब तुम दयारूप को धारो पल में संकट दूर करे । आदितवार आदि का राजत, अपने जन का कष्ट हरे ।। सौम्यस्वभाव धरा मेरी माता, जन की अरज कबूल करे ।
संतन प्रतिपाली सदा खुशाली, जैकाली कल्याण करे॥ सिंह पीठ पर चढ़ी भवानी, अटल भवन में राज करे। 
दर्शन पावें मंगल गावे, सिद्ध सधु चर भेंट घरे ॥ 
ध्यान धरत ही श्री काली को, चार पदारथ हाथ परे । 
संतन प्रतिपाली सदा खुशाली, जे काली कल्याण करे ॥ ब्रह्मा वेद पढ़ें तेरे द्वारे, शिवशंकर जी ध्यान धरें। 
इन्द्र कृष्ण तेरी करें आरती, चैवर कुबेर डुलाय करे ॥ 
जय जननी जय मातु भवानी, अचल भवन में राज करे। संतन प्रतिपाली सदा खुशाली, जे काली कल्याण करे ।।

उपरोक्तानुसार पूजन समाप्त कर प्रसाद वितरित करें तथा स्वयं भी प्रसाद गृहण करें। अगले दिन पूजन सामग्री को नदी या सरोवर में विसर्जित कर दें।
                           
शिव शासनत: शिव शासनत:


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