वामपंथियों और कुबुद्धिजीवियों का एक बड़ा प्रसिद्ध जुमला है--स्त्रियों को वेद पढ़ने का अधिकार नहीं था,,
हालांकि जब पैर में जूता या खड़ाऊ है तो उनको मौखिक क्या जवाब देना,, वे लोग इसी की भाषा समझते हैं वैसे तो,,
फिर भी जवाब दे दिया जाए तो कुछ बुरा भी नहीं,,
देखो भाई,, वेद पढ़ने के तरीके होते हैं,, अगर उनका पता नहीं हो तो ऐसी हास्यास्पद बातें करते रहते हैं बेचारे बुद्धिजीवी कहीं के।
वेद दो तरह से पढ़ाया जाता है,, संहिता और श्रुति,,,
संहिता वह है जिसे हम कागज़ पर लिखा एक ग्रन्थ रूप में देखते हैं,, उसमें हमने मंत्र पढ़ा--फिर आचार्य से पता किया कि मंत्र आदिदैविक अर्थ को प्रकट कर रहा है या आदिभौतिक या आध्यात्मिक अर्थ को,,
फिर उसका यह भी पता किया कि मंत्र का अर्थ ज्ञान है या कर्म या उपासना,, फिर यह भी जाना कि उपासना है तो उपासना का स्वरूप,,कर्म है तो कैसा कर्म??ज्ञान है तो किस तरह का ज्ञान मंत्र में निहित है,,
श्रुति परम्परा में मंत्रों का गायन किया जाता है,, आचार्य गायन करता है,, सातों स्वरों के उतार चढ़ाव के साथ उदात्त--अनुदात्त--स्वरित का ज्ञान शिष्यों को कराया जाता है,, वह भी पढ़ाकर नहीं बल्कि गाकर,,ऐसे ही आचार्य से सुनकर गाते गाते वेद स्मरण कर लिए जाते थे,,जो एकबार में सुनकर याद कर ले वो एकपाठी,, दो बार में सुनकर याद कर ले वह द्विपाठी,, तीन बार में सुनकर याद कर ले मंत्र को वह त्रिपाठी,,इसमें दस बार सुनकर याद करने वाले तक को गुरुकुल में रक्खा जाता था,,
ठीक इसी तरह दो वेद कंठस्थ करने वाले द्विवेदी,, तीन वेद कंठाग्र करने वाले त्रिवेदी और चारों वेद आत्मसात करने वाले चतुर्वेदी कहे जाते थे,,आजकल के चतुर्वेदियों की तरह नहीं जिनको नाम भी न पता हों कि वेद होता क्या है,,
बाकी बचे हुओं का क्या किया जाता था यह फिर कभी,,
तो बात इतनी ही है मेरे भाई,, जब मंत्र गाते हैं तो शरीर में तकरीबन आठ सौ पॉइंट्स पर ऊर्जा के झटके पड़ते हैं जिनमें से ज्यादातर नाभि से जुड़े हैं,, बाकी बचे पॉइंट्स रीढ़ की हड्डी और मस्तिष्क से,,
अगर बेटियों को श्रुति परम्परा से पढ़ाया जाए तो उनकी नाभि के पॉइंट पर और मूलाधार चक्र पर जो धक्के पड़ेंगे और ऊर्जा के झटके पड़ेंगे उनसे अगर बेटी छोटी उम्र की है तो उसके अंदर से ऊर्जा के उर्ध्वगामी होने के कारण कामवासना बिल्कुल समाप्त हो जाएगी,,, जिस कारण गृहस्थ आश्रम समाप्त ही हो जाएगा,, जबर्दस्ती शादी कर भी दी तो वह पति को उस तरह स्वीकार कर ही नहीं पाएगी,,
और अगर माता गर्भवती है उस समय पाठ कराया जाए या पढ़ाया जाए श्रुति परम्परा से तो झटकों से गर्भ गिर जाएगा निश्चित ही,,इसलिए ऋषियों ने व्यवस्था बनाए रखने के लिए गायन रूप में वेद का पढ़ना बंद कराया सुखी गृहस्थ जीवन के लिए,,
लेकिन संहिता को पढ़ने से कभी मना नहीं किया गया,, इसलिए हमारे यहां कुमारी ऋषिकाएं भी खूब हुई हैं जो सस्वर वेदपाठ करती थी और जिन्हें गृहस्थ आश्रम में नहीं जाना था,, इसके अलावा संहिता रूप में मंत्रों को पढ़कर उन्हें आत्मसात करके आश्रमों में ऋषिपत्नी या आचार्यपत्नी के रूप में भी सुशोभित रही हैं,,
मैं जहां यज्ञ कराता हूँ वहां प्रयास करता हूँ कि माता पिता आसपास बैठें और मुख्य यज्ञमान कोई बिटिया ही बने,, ताकि आगे चलकर संतानों को भी उत्तम वेदज्ञान के मार्ग पर चला सके,, संस्कारों से आपूरित कर सके,,
स्त्री ब्रह्मा: बभूविथ---ऋषि कहते हैं कि स्त्री भी यज्ञ की ब्रह्मा होवे,,
*सूर्यदेव*
@Sanatan
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