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क्रीं ह्रीं ह्रीं दक्षिण कालिके स्वाहा ॥


            महाकाली नाचे जा रही है, वह परम कामरता हैं, उनमें काम तत्व बहुत है, उन्होंने ही इस सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड की रचना की है, इस सृष्टि में सब कुछ उन्हीं से निकला है, वही इस सृष्टि की सृजनकर्ता है। उन्होंने ही बुद्ध को बनाया था, उन्होंने ही राम को बनाया था, उन्होंने ही कृष्ण को बनाया था, उन्हें अभी इससे भी बेहतर कुछ और बनाना है। राम, कृष्ण, महावीर, बुद्ध सभी आ गये लेकिन वह तृप्त नहीं हुई, चाहे वह कितनी भी अच्छी रचना क्यों न बना ले पर वह कभी तृप्त नहीं होती हैं, वह निरंतर नयी नयी रचनाएं रचती चली जा रही हैं, उनकी अतृति का कोई अंत नहीं है। जिस रचना को एक बार बना दिया फिर वह उस मॉडल को पुनः दुबारा नहीं रचती हैं वह न दुबारा राम को रचती है, न वह दुबारा कृष्ण को रचती है, किसी चीज को दुबारा नहीं रचती हैं जिनमें मौलिकता की कमी होती है, जो ओरिजनल नहीं हैं, जो मौलिक नहीं है वही लोग एक ही क्रिया को बार-बार दोहराते रहते हैं।

          एक गीतकार कोई बहुत अच्छा गीत लिख देता है फिर लोग उसी गीत को अपने हिसाब से, उसमें नई नई कड़ियाँ जोड़कर गाये चले जाते हैं, एक चित्रकार बहुत सुन्दर चित्र बना लेता है फिर कुछ लोग वैसा ही चित्र अपने हिसाब से बनाकर उसकी नकल करने लगते हैं उसी प्रकार आप लोग भी अपनी पुरानी, घिसी- पिटी दिनचर्या में उसी पुरानी जीवन शैली में जिये चले जा रहे हो, जिन्दगी भर आप वही क्रियायें जन्म से लेकर अंत समय तक दोहराते रहते हो लेकिन काली अद्भुत है इस पृथ्वी पर आज तक न जाने कितने अरबों-खरबों लोग जमीन पर पैदा हुए है और निरंतर पैदा हो रहे है। पर उनमे से किसी की भी रचना में रिपीटेशन नहीं हुआ है क्योंकि उनकी रचना बड़ी ही सृजनात्मक एंव भौतिक है, वह प्रतिपत्त नित्य नए-नए जीव को पैदा करती है, वह यहां से बूढ़े को विदा कर देती है, बच्चों को खड़ा कर देती है एवं वह बुजुर्गों से कहती हैं अब आप लोग पीछे हट जाइए, अब आप बहुत पुराने हो गए है, अब आप मंच के पीछे आ जाइए और नए बच्चो को मंच पर सामने लाकर खड़ा कर देती है। वह जानती है बूढ़े में जिंदगी भर का अनुभव होता है वह अनुभव जो उसने अपने ज्ञान से अर्जित किया है फिर भी वह उसे विदा कर देती है, उसकी जगह वह एक अंजान अपरिचित को खड़ा कर देती है जिस पर बिलकुल भरोसा नहीं किया जा सकता। यह क्या करेगा क्या नहीं करेगा, इसका चाल चलन कैसा होगा, यह चोर होगा, बेईमान होगा, साधु संयासी होगा, इसका कुछ भी अता पता नहीं फिर भी वह एक नए को पुराने के सामने लाकर खड़ा कर देती है। काली कहती है, अब तुम पुराने हो गए हो, अब तुम हट जाओ नए में जीवन है, पुराने में मृत्यु है, जो पुराना है वह अब मरने के करीब पहुँच गया है। जो नया है जियेगा, फलेगा-फूलेगा और आगे बढ़ेगा, जो लोग जीवन के विरोध में है मैं उन्हें धार्मिक नहीं कहता इसी शिक्षा के कारण आज हमारी पृथ्वी धार्मिक नहीं हो पाई। 

         जीवन को छोड़ना असम्भव है, कोई भी जीवन छोड़ना नहीं चाहता, सभी को जीवन से अत्यंत प्रेम होता है, हर माता पिता अपने बच्चों के लिए चिंतित रहते हैं, उसी प्रकार एक गुरू भी अपने शिष्यो के लिए बहुत ज्यादा चिंतित रहता है। जीवन नई-नई शक्लों में हमारे सामने आता है, जिंदगी से कोई भाग नहीं सकता, हम जहाँ भी जाएगें यहां जिंदगी को पास में पाएगें, हर जगह जीवन है हम रूप बदल सकते हैं, सूरत शक्ल बदल सकते हैं, द्वार बदल सकते हैं। 

      काली कहती हैं आनन्दपूर्ण रहो, सदा आनन्दमय रहो, तुम अपने आप से भागोमत बल्कि तुम हालात का डटकर मुकाबला करो तुम्हे अवश्य सफलता मिलेगी। इससे क्या फर्क पड़ता है कि तुम किस मकान में रहते हो, तुम क्या खाते हो, इससे क्या फर्क पड़ता है। इससे आपके अंदर एक प्रकार की हिप्पोक्रेसी पैदा होती है, आपके अंदर एक प्रकार का पाखण्ड झूठा दिखावा पैदा होता है हम सदा दूसरे की नकल करते रहते है उसने मकान लिया तो हम भी उससे अच्छा मकान लेंगे, उस औरत ने एक मंहगी साड़ी ली है मैं भी वैसी ही साड़ी लूंगी बस दूसरों से होड़ करने में लगे रहते हैं अगर हम जिंदगी को सीधे-साधे ढंग से स्वीकार कर लें तब हमें किसी प्रकार का कोई झूठा पाखण्ड नहीं करना पड़ेगा, न ही हमें किसी प्रकार की कोई बेईमानी खोजनी पड़ेगी, न झूठा दिखावा करना पड़ेगा। मैंने अपने जीवन में ऐसे बहुत से सन्यासी वस्त्र धारण किए हुए व्यक्ति देखे हैं वह अपने पास पैसा नहीं रखते, वह अपने साथ एक आदमी को रखते हैं जो पैसा रखता है वह लोग कहते हैं मैंने पैसे का बंधन छोड़ दिया है इसलिए अब मैं पैसों को अपने पास नहीं रखता हूँ, अब मैं पैसों को हाथ भी नहीं लगाता हूँ। जो व्यक्ति उनके साथ में चलता है वही उनके सारे लेन-देन है, वही आटो टेक्सी का लेन-देन करता है,  

वही होटल में रुकने की व्यवस्था करता है, जितने भी प्रकार के हिसाब किताब है वही देखता है। यह भी एक प्रकार का उपद्रव है कहीं भी जाओ तो एक व्यक्ति पैसा रखने के लिए साथ में होना चाहिये क्योंकि वह तो पैसा छूते नहीं है यह सब एक प्रकार का झूठा दिखावा है, यह सब एक पाखण्ड है, अगर आप किसी भी आटो या टेक्सी, बस, रेल इत्यादि में बैठेंगे तो आपको पैसा तो देना ही पड़ेगा। अब वह पैसा चाहे आपकी जेब में रखा हो या आपके साथी की जेब में इससे क्या फर्क पड़ता है। 

            जिंदगी से भागने का परिणाम पाखण्ड है मैं देखत हूँ चारों तरफ एक नंगा पाखण्डं खड़ा हो गया है जिन्दगी से भागोगे कैसे वह तो चारों तरफ है अगर आप कमायेंगे नहीं तो आपको भीख मांगनी पड़ेगी, भीख मांगने का मतलब है हमारे लिए कोई ओर कमायेगा, हम किसी और पर निर्भर रहेंगे। लोग पैसा कमाने को पाप कहते हैं वहीं लोग दूसरे की कमाई को लेने और उसे खर्च करने को पाप नहीं समझते हैं यह तो सिर्फ एक प्रकार की लीगल कानूनी तरकीबें हैं। जिन्दगी से पलायन करना ठीक नहीं है आप जहाँ भी जायेंगे वहाँ पर जिन्दगी को हाथ जोड़कर सामने खड़ा पायेंगे, वह कहेगी आइये यहाँ पर आपका स्वागत है, आप भी जिंदगी है, मैं भी एक जिंदगी हूं, हम सब एक जिंदगी है अगर आप सबसे भाग भी गये तो अपने आप से कैसे भागोगे ? लोगों ने अध्यात्म के क्षेत्र में भी कई तरकीबें निकाल रखी हैं, लोग ऐसी बेवकूफी करते हैं जिसे सोचकर मुझे बड़ी हैरानी होती हैं। जिन्दगी से भागो मत, जिन्दगी को देखे, उसे समझे आपके अंदर जीवन को देखने का इकहरा मापदण्ड होना चाहिए जो जीवन को ठीक से देखता है, वह इकहरा मापदण्ड बनाता है। आप अपने को जिस तराजू में तोलते है दूसरे को भी उसी तराजू में तोले, किसी से भेदभाव मत रखो जो व्यवहार आप अपने लिए पसंद नहीं वह आप दूसरे के साथ भी मत करो। जो व्यक्ति एक तराजू बनायेगा वह अपने आप में बहुत करुणावान हो जायेगा फिर वह कभी कठोर नहीं रह सकता, जो लोग दो तराजू बनाते हैं वह बहुत कठोर हो जाते हैं, दूसरों को वह बिल्कुल पापी समझते हैं वह कहेंगे यह बहुत दुष्ट है, इसे तो नर्क में डाल देना चाहिये वह कहेगा इसे अदालत में घसीटो, बड़ी से बड़ी सजा दो, इसको तो फाँसी पर लटका दो। 

         प्राचीन काल से ही हमारा इतिहास दोहरे मापदण्ड का काल है इसलिए मनुष्य नैतिक नहीं हो पाया क्योंकि नैतिकता का मूल बिन्दु करुणा है जब किसी व्यक्ति में कम्पेशन अर्थात करुणा पैदा नहीं होती तो वह व्यक्ति बहुत कठोर हो जाता है हम कठोर व्यक्ति को नैतिक कहते हैं। आपको अगर जिन्दगी खोजनी है तो पहले अपने घर जाओ आपका घर कहाँ है? जहाँ से आप आये हो वही आपका घर है, वहीं से जीवन के आनंद की यात्रा शुरु होती है। जीवन की यात्रा काली से ही शुरु होती है क्योंकि अध्यात्म की प्रथमा काली ही हैं वही जीवन का द्वार है, वही पराम्बा है, उन्हीं से जीवन शुरु होता है, उन्हीं पर जीवन का अंत होता है। महाकाली रहस्य को आप जीवन के आनंद के बिना समझ नहीं सकते जब महाकाली की कृपा होती है तब जातक के जीवन में आनंदमय कोष जागृत हो जाता है, महाकाली की कृपा से ही आनंदमय कोष जागृत होता है तब आपका जीवन धीरे-धीरे आगे बढ़ेगा, चारों ओर उसका प्रकाश फैलेगा यह पहाड़, वृक्ष, चाँद तारे आपमे समा जायेंगे, सारे लोग आपमे समा जायेंगे, सारा ब्रह्माण्ड आपमे समा जायेगा, आपकी चेतना जितनी फैलती जायेगी उतने बड़े आनंद को, उतने ही बड़े जीवन को आप उपलब्ध होते चले जाओगे फिर आपकी आँखों में आनंद होगा, आपके जीवन में सौन्दर्य होगा, आपके जीवन में सत्य होगा, आपके जीवन में संगीत होगा, आपके जीवन में रस होगा, आपकी आँखों में पराम्बा होगी इसी को मैं जिन्दगी कहता हूँ।

            मनुष्य ने अपने जीवन में चाहे कितने भी पाप क्यों न किये हों काली सहस्त्रनाम स्तोत्र का पाठ करने से ब्रह्म की प्राप्ति होती हैं, धन धान्य की विपुलता रहती है, वहाँ पर सर्वदा मंगल होता है महामारी, राज्यभय, चोरभय, अग्निभय, सभी भयों से वह मुक्त हो जाता है इससे अति घोर व्याधियाँ समाप्त हो जाती हैं, इससे शत्रुओं के संकट का निवारण होता है इसके पाठ मात्र से साधक को इष्ट सिद्धि प्राप्त होती है। राम ने भी काली के सहस्त्र नाम स्तोत्र का पाठ किया और उनका पूजन किया, सभी साधकों को इस सहस्त्र स्त्रोत का पाठ करना चाहिये जो। इसका पाठ करने से जीवन में परम तत्व की प्राप्ति होती है, इसका पाठ करने वाले साधक को अतुल लक्ष्मी, अद्भुत पराक्रम की प्राप्ति होती है उसके शरीर से सभी प्रकार के रोग एवं समस्त प्रकार की व्याधियाँ साधक को गुप्त धन एवं गुप्त ज्ञान की प्राप्ति होती है। 

            काली के विभिन्न नामों में उन्हें कामा भी कहा गया है, उन्हें काम तत्परा भी कहा गया है, उन्हें कामाचार वर्धिनी भी कहा गया है। 

लोगों ने समझा काली काम की देवी हैं, काम को परिभाषा लोगों ने अपने-अपने अर्थों में लगा ली, काम तत्परा का मतलब होता है जो सदा काम करने को तत्पर रहती हैं, काम विनोदनी का मतलब है वह बड़े से बड़ा कार्य खेल-खेल में ही कर देती हैं वही शक्ति देती हैं, काम का मतलब है अद्भुत पराक्रम करने की शक्ति जो कि साधक को महाकाली ही प्रदान करती हैं महाकाली को काम विशारद भी कहते हैं। इसका मतलब होता है किसी दिव्य काम को करने के लिए जिस दिव्य ज्ञान की आवश्यकता होती हैं वह ज्ञान साधक को भगवती महाकाली ही प्रदान करती हैं क्योंकि बिना ज्ञान के गुरुत्व नहीं आ सकता, गुरुत्व काली ही प्रदान करती हैं। क्रियाशक्ति, ज्ञानशक्ति और भाव शक्ति यह तीनों शक्तियाँ अनायास ही काली के साधक को प्राप्त हो जाती है फिर ऐसा कोई कार्य नहीं है जो साधक के लिए असम्भव हो। काली ही भयहारिणी, भक्तारिणी, भव भामिनी एवं भव बंधन मोचनी हैं काली की प्रामाणिकता इस कलियुग में भी देखी जा सकती है अगर माथे पर मिट्टी और भस्म लगाने से मोक्ष मिलता तो आज मिट्टी में पाये जाने वाले समस्त जीव-जन्तु, कीटाणु मुक्त हो जाते और मोक्ष को प्राप्त हो जाते अगर घर-परिवार छोड़कर वन में जाने से मोक्ष मिलता तो आज सभी वन्य प्राणी मोक्ष प्राप्त कर चुके होते, बिना महाकाली की कृपा के मोक्ष पाना असम्भव है। 

          जब महाकाली कृपा करती हैं तब वह अपनी कृपा दृष्टि से साधक को दिव्य ज्ञान चक्षु प्रदान करती हैं, वह आत्मा को मोह के बंधन से मुक्त कर देती है। साधक को तत्व ज्ञान भी काली ही प्रदान करती हैं "आगम निगम बखानी" आगम निगम का बखान वही प्रदान करती है, उन्हें दो रूपो में पूजा जाता है रक्ता और श्यामा उनके काले स्वरूप को देखकर ब्रह्मा भी कह उठते हैं "नमामि कृष्ण रूपिणि" हे काली तुझे मेरा नमन है। रक्ता रूप में वह श्री सुन्दरी कहलाती हैं, श्री सुन्दरी श्रीविद्या को कहते हैं श्री विद्या श्रीविद्या, कालिका को विद्याराज्ञी भी कहा जाता है, रक्ता और कृष्णा के रूप में भगवती काली ही प्रतिष्ठित हैं, विद्याराज्ञी ही भोग और मोक्ष प्रदान करती हैं इस बात को सभी ऋषि-मुनियों ने स्वीकार किया है। कालिका के अत्यंत प्राचीन एवं प्रामाणिक ग्रंथों में भी इस बात का उल्लेख है वह कहते हैं महाशक्ति अलग-अलग आसनों पर विराजमान होकर शोभायमान हो रही हैं। 

          जब वह पूर्व आमान्य में बैठ जाती है तब वह षोडशी कहलाती है, जब वह पश्चिम आमान्य के सिंहासन पर बैठती है तब वह सारे क्लेशों का निवारण करती है तब वह कुब्जिका कहलाती है। जब वह दक्षिण आमान्य के सिंहासन पर बैठती है तब वह विश्वेश्वरी कहलाती है। पूर्व आमान्य में उन्हें पूर्णश्वरी भी कहा जाता है, उत्तर आमान्य में वह भोग, मोक्ष तथा समस्त सिद्धियों की दात्री कहलाती है तब हम सब उन्हें कालिका के नाम से जानते हैं। तुम ही अध्यात्म की माता हो, मैंने भगवती तुम्हारे किसी भी रूप की साधना की हो पर तुमने सदा मेरे सिर पर हाथ कालिका के रूप में ही रखा है, तुम ही सत्य हो, तुम ही शिव हो, तुम ही सुन्दर हो तुम ही सुन्दर हो, माँ तुम कितनी सुन्दर हो । 

    जब आप किसी काली दीवार अर्थात ब्लेक बोर्ड पर चॉक से लिखते है तब दीवार जितनी ज्यादा काली होगी उस पर लिखाई उतनी ज्यादा सफेद होगी। सफेद दीवार पर आप सफेद चॉक से नहीं लिख सकते, सफेद दीवार पर सफेद चॉक से आप कुछ भी नहीं लिख सकते अगर कुछ लिखने की कोशिश भी करोगे तो वह किसी के समझ में नहीं आयेगा और आपका सारा लिखना बेकार चला जायेगा। यदि काली दीवार मिट जाये तो तुम्हारी लिखाई भी मिट जायेगी। किस दीवार पर क्या लिखना है, क्या नहीं लिखना है इसका सारा ज्ञान भी महाकाली ही देती हैं। बिन्दु-बिन्दु तो सब कहते हैं पर आखिर बिन्दु क्या है? सिर्फ एक तत्व ज्ञानी व्यक्ति ही बिन्दु को समझ सकता है उस बिन्दु में जब आप छलांग लगाते हो तब आपके अंदर एक प्रकार का अद्वैतभाव आता है, बिन्दु में छलांग लगाने से पहले द्वैत हो, द्वैत और अद्वैत की बात करने से कुछ नहीं होगा इसका खण्डन-मण्डन करने से भी कुछ नहीं होगा आत्मा-परमात्मा की बात करने से भी कुछ नहीं होगा, दो चार शास्त्र रटकर प्रवचन करने से भी कुछ नहीं होगा इससे तो बस एक प्रकार का मरघटिया ज्ञान की प्राप्ति होती है। काली का साधक जब उस बिन्दु के अंदर छलांग लगाता है उस छलांग के बाद उसके भीतर से जो अद्वैतवाद आता है तब वह आँखों में करुणा लाता है, आँखों में रस लाता है जीवन में अमृत लाता है फिर सारे विरोध स्वत: समाप्त हो जाते हैं, दोनों ध्रुव समाप्त हो जाते हैं तब न कोई निगेटिव रहता है न ही कोई पॉजीटिव रहता है, दोनों एक साथ मिल जाते हैं, एक दूसरे को काट देते हैं और समास हो जाते हैं तब एक शुद्ध और निर्दोष आत्मा बची रहती है यह आत्म ज्ञान महाकाली प्रदान करती है।
                     शिव शासनत: शिव शासनत:

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