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गायत्री पंजर स्तोत्र रहस्य ।।

        सृष्टि की आचार संहिता मां गायत्री निर्मित करती है। अध्यात्म का क्षेत्र स्पष्ट त्रूटी विहीन परम शैव आदर्शों के माध्यम से एक निश्चित आचार संहिता लिए हुए होता है। कोई शंका कोई शका इत्यादि की कोई गुंजाइश नहीं होती आध्यात की आचार संहिता के नियम कभी नहीं बदलते। यह आचार संहिता विश्व के विभिन्न मानव समाज के नियम धर्म कानून चिंतन से भी अत्यधिक कठोर स्पष्ट एवं साफ होते हैं। पूर्ण पारदर्शी और पूर्ण पारदर्शिता पर ही विश्वास करती है। वास्तविक आध्यात्मिक साधक के जीवन का प्रत्येक क्षण प्रत्येक क्रिया कलाप प्रत्येक कर्म इत्यादि पूर्व निर्धारित होता है। उसमें किसी भी प्रकार का हेरफेर बदलाव इत्यादि संभव नहीं होता। मां गायत्री की जब कृपा होती है तो साधक का मन कहीं नहीं भटकता उसके अंदर स्वत: ही दिव्य अनुशासन निर्मित हो जाता है वह ऊपर उठ जाता है। पॉइंट टू पॉइंट बात लक्ष्य की तरफ सीधी दृष्टि यही है गायत्री पंजर स्तोत्र का रहस्य।

गायत्री कवच
           सूर्य प्रकाश उत्सर्जित करता है और पुनः खींच लेता है चंद्रमा अमृतमयी किरणे उत्सर्जित करता है और पुनः वापस भी ले लेता है समुद्र वर्षा का जल उत्पन्न करता है और पुनः वापस भी ले लेता है। यह नियंत्रण व्यवस्था अतः इस प्रकार शक्ति का दुरुपयोग नहीं हो पाता। प्रत्येक युग में जीवन जीने के लिए एक विशेष प्रकार की शक्ति की जरूरत होती है। सतयुग में जीवो में इतनी ताकत थी कि वह उछल कर कई मिल जा सकते थे पक्षियों के समान उड़ सकते थे। त्रेता युग में केवल हनुमान में उड़ने की ताकत बची इसलिए वह आश्चर्यजनक मानी गई। द्वापर आते-आते इस शक्ति की जरूरत नहीं थी। कलयुग में तो यह असंभव लगता है परंतु यह सत्य है कि महामत्स्य, महासिंह, महा मकर, महामृग, महागज, महामानव थे। अब तो वैज्ञानिकों ने भी यह सिद्ध कर दिया है। महागज आज के हाथियों से कई गुना बड़े थे, महासिंह आज के सिहो से हजार गुना शक्तिशाली थे, महा पक्षी पचास पचास फिट लंम्बे पंखों से युक्त होते थे, वृक्षों और पत्तियों को खाने वाले आदि मृग अर्थात डायनासोर साठ साठ फीट ऊंचे होते थे पंद्रह पंद्रह फ़ीट के मनुष्य के कंकाल मिले हैं। जैसा युग होता है उस युग से सामंजस्य करने हेतु ज्ञान शक्ति बल बुद्धि विशेष रूप से जीव को मां गायत्री प्रदान करती है। आज यंत्रों का युग है विज्ञान का युग है बुद्धि का युग है। इस युग में बाह्य विकास चरम पर है अतः जिव युगानुसार पुरातन विरोधी असहज ना हो जाए। उसका युग, काल, समय, स्थान, भूमि, जलवायु, समाज के साथ सामंजस्य बना रहे वह नव सृष्टि का उपयोगी अंग बना रहे इसकी व्यवस्था मां गायत्री करती है। चाहे कोई सा भी युग हो गायत्री कवच के माध्यम से जातक जीवन के प्रत्येक आयाम में सामंजस्य बनाने में सफल होता है।

रौद्रा गायत्री कवच
            स्त्री शक्ति रहस्यमय है। रहस्यमय क्यों? क्योंकि उसके अंदर ग्रहण करने की प्राप्त करने की विकसित करने की चमत्कारिक शक्ति होती है। वह ब्रह्मांड से कुछ भी प्राप्त कर सकती है। आचार्य श्रीराम शर्मा जी ने लिखा कि अगर स्त्री तंत्र क्षेत्र में आ जाए साधनात्मक क्षेत्र में आ जाए अध्यात्म में उतर जाए तो वह पुरुषों के मुकाबले असंख्य गुना ज्यादा विकसित हो सकती है। उसकी अनुभूति उसका पूजन उसका तत्वज्ञान ग्रहण करने की क्षमता साक्षात्कार ईस्ट से संवाद ब्रह्म से तार्तम्य पुरुषों के मुकाबले असंग गुना ज्यादा नै:सर्गिक रूप से विकसित हो जाता है। उसकी संरचना ही इस प्रकार की है। अदिति ने देवताओं को गर्भ में प्रतिष्ठित कर लिया वह देव पिंण्डो की जननी बन गई सूर्य भी उसकी कोख से उदित हो उठे। सती अनुसुइया ने ब्रह्मा विष्णु महेश को बालक रूप में धारण कर दत्तात्रेय को निर्मित कर दिया। उमा ने गणपति निर्मित कर दिए और शिव देखते रह गए। कुंती ने गायत्री मंत्र के माध्यम से सूर्य देव को आकर्षित कर कर्ण को उत्पन्न कर लिया अंजना ने वायु गायत्री मंत्र के माध्यम से हनुमान उत्पन्न कर लिए। लोपामुद्रा ने श्रीविद्या सिद्ध कर ली भूमि गायत्री मंत्र के माध्यम से जनक ने भूमि पुत्री सीता उत्पन्न कर ली। रौंद्रा गायत्री कवच मे ब्रह्मांड की समस्त अप्सराओं, सुंदरियों, देवियों, नायिकाओं, शक्तियों, महाविद्याओं इत्यादि को साधक अपने शरीर के विभिन्न परम गोपनीय आध्यात्मिक कोशो में जागृत कर लेता है। ऐसा अद्भुत कवच है ये। यह एक तरह से सांगोपांङ्ग है। तंत्र क्षेत्र में मेरे हिसाब से यह श्रेष्ठतम अति दुर्लभम् कवच है। यह रुद्रयामल तंत्र नामक तंत्र ग्रंथ में वर्णित है। यही वास्तव में कामधेनु गायत्री भी है।
                           शिव शासनत:शिव शासनत:

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