श्रीयंत्र में चौंसठ मातृका (मातृ) शक्तियों का निवास होता है। ठीक इसी प्रकार मणिद्वीप जो कि श्रीयंत्र का ही प्रारूप है उसमें भी मुख्य रूप से चौंसठ मातृ शक्तियाँ निवास करती हैं। श्रीयंत्र क्या है? बाजार से खरीदोगे तो सिर्फ एक पिण्ड है ठीक उसी प्रकार का पिण्ड जैसे कि आप बाजार से गुड़िया खरीद लाते हैं। देखने में वह मनुष्य के बच्चे के समान लगती है पर प्राणों के अभाव में वह निर्जीव है। अतः श्रीयंत्र गुरु के द्वारा ही प्राण-प्रतिष्ठित कराके ही प्राप्त करना चाहिए। आम जनता के लिए श्रीयंत्र एक प्रकार से वस्तु है परन्तु है आध्यात्मिक दृष्टिकोण से श्रीयंत्र प्रतीक हैं माँ भुवनेश्वरी का श्रीयंत्र की पूजा नहीं की जाती है बल्कि पूजा होती है उसमें प्रतिष्ठित माता भुवनेश्वरी पूजा चतुःषष्ठि पूजन से सम्पन्न की जाती है।.चतुःषष्ठि का मतलब चौंसठ दिव्य वस्तुओं का उन्हें समर्पण आम व्यक्ति के लिए लम्बा चौड़ा पूजन उपयुक्त नहीं है। नीचे मैं एक मंत्र लिख रहा हूँ जिसमें वाक बीज, माया बीज और लक्ष्मी बीज के साथ चौंसठ वस्तुएं समर्पित करने का प्रावधान है। यह अत्यंत ही उच्च कोटि का मानस पूजन एवं गृहस्थ पूजन है। इसके रचयिता हैं आदि गुरु शंकराचार्य जी इस पूजन के द्वारा कोई भी व्यक्ति श्रीयंत्र में स्थापित भुवनेश्वरी की अटूट कृपा को प्राप्त कर सकता है।
पूजन विधि ---
सर्वप्रथम स्नानादि से निवृत्त होकर श्रीयंत्र को चाँदी की थाली में स्थापित कर लें तत्पश्चात् उनका श्री षोडशी स्वरूप में ध्यान करते हुए निम्नलिखित मंत्र को पढ़े।
बालार्कायुत तेजसां त्रिनयनां रक्ताम्बरोल्लासिनीं नानालंकृति राजमानवपुषं बालोडुराट् शेखराम्। हस्तैरिक्षुधनुः सृर्णिं सुमशरं पाशं मुदा विभ्रतीं।
श्रीचक्रस्थित सुन्दरीं त्रिजगतामाधारभूतां स्मरेत् ।
तत्पश्चात् एक चाँदी की कटोरी में चावल को कुंकुम, सिन्दूर, सुगन्ध, चन्दन, कपूर इत्यादि से मिश्रित कर लें फिर जैसे कि पाद्य के समय ॐ ऐं ह्रीं श्रीं पाद्यम् कल्पयामि नमः कहते हुए चावल के दाने श्रीयंत्र को समर्पित करते जायें। प्रत्येक उपचार का नाम जोड़ते यही मंत्र बोलते जायें। जैसे कि सिमंत सिन्दूर समर्पित करते समय ॐ ऐं ह्रीं श्रीं सिमन्त सिन्दूरम कल्पयामि नमः। नीचे चौंसठ उपचारों का वर्णन किया जा रहा है -
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं पाद्यम् कल्पयामि नमः ।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं अर्ध्यम् कल्पयामि नमः ।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं आसनम् कल्पयामि नमः ।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं सुगन्धितैलाभ्यङ्गम् कल्पयामि नमः ।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं मज्जनशालाप्रवेशनम् कल्पयामि नमः ।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं मज्जनमणिपीठोपवेशनम् कल्पयामि नमः ।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं दिव्यस्त्रानीयम् कल्पयामि नमः ।
ॐ ॐ ऐं ह्रीं श्रीं उद्वर्तनम् कल्पयामि नमः ।
ॐ ॐ ऐं ह्रीं श्रीं उष्णोदकस्नानम् कल्पयामि नमः ।
ॐ ॐ ऐं ह्रीं श्रीं कनककलशस्थितसर्वतीर्थाभिषेकम् ॐ कल्पयामि नमः ।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं धौतवस्त्रपरिमार्जनम् कल्पयामि नमः ।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं अरुणदुकूलपरिधानम् कल्पयामि नमः ।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं अरुणदुकूलोत्तरीयम् कल्पयामि नमः ।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं आलेपमण्डपप्रवेशनम् कल्पयामि नमः ।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं आलेपमणिपीठोपवेशनम् कल्पयानि मः ।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं चन्दनागुरुकुङ्कुममृगमद-कर्पूरकस्तूरीरोच- नादिव्यगन्धसर्वाङ्गानुलेपनम् कल्पयामि नमः ।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं केशभारस्य कालागुरुधूपमल्लिका मालतीजाती-चम्पकाशोकशत-पत्रपूगकुहरीमुन्नाग कह्लारयूथीसर्वर्तुकुसुम-मालाभूषणम् कल्पयामि नमः ।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं भूषणमण्डपप्रवेशनम् कल्पयामि नमः ।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं भूषणमणिपीठोपवेशनम् कल्पयामि नमः ।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं नवरत्नमुकुटम् कल्पयामि नमः ।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं चन्द्रशकलम् कल्पयामि नमः ।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं सीमन्तसिन्दूरम् कल्पयामि नमः ।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं तिलकरत्नम् कल्पयामि नमः ।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं कालाञ्जनम् कल्पयामि नमः ।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं कर्णपालीयुगलम् कल्पयामि नमः ।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं नासाभरणम् कल्पयामि नमः ।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं अधरयावकम् कल्पयामि नमः ।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं ग्रथनभूषणम् कल्पयामि नमः ।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं कनकचित्रपदकम् कल्पयामि नमः ।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं महापदकम् कल्पयामि नमः।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं मुक्तावलीम् कल्पयामि नमः।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं एकावलीम् कल्पयामि नमः।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं देवच्छन्दकम् कल्पयामि नमः।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं केयूरयुगलचतुष्कम् कल्पयामि नमः ।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं वलयावलीम् कल्पयामि नमः ।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं ऊर्मिकावलीम् कल्पयामि नमः ।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं काञ्चीदामकटिसूत्रम् कल्पयामि नमः ।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं शोभाख्याभरणम् कल्पयामि नमः ।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं पादकटकयुगलम् कल्पयामि नमः ।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं रत्ननूपुरम् कल्पयामि नमः ।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं पादाङ्गुलीयकम् कल्पयामि नमः ।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं एककरे पाशम् कल्पयामि नमः ।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं अन्यकरे अङ्कुशम् कल्पयामि नमः ।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं इतरकरेषु पुण्ड्रेक्षुचापम् कल्पयामि नमः ।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं अपरकरे पुष्पबाणान् कल्पयामि नमः ।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्रीमन्माणिक्यपादुकाम् कल्पयामि नमः ।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं स्वसमानवेशास्त्रावरणदेवताभिः सह सिंहासनारोहणम् कल्पयामि नमः ।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं कामेश्वरपर्योपवेशनम् कल्पयामि नमः ।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं अमृताशनम् कल्पयामि नमः।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं आचमनीय् कल्पयामि नमः ।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं कर्पूरवटिकाम् कल्पयामि नमः ।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं आनन्दोल्लास-विलासहासम् कल्पयामि नमः। ॐ ऐं ह्रीं श्रीं मङ्गलारात्रिकम् कल्पयामि नमः ।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्वेतच्छत्रम् कल्पयामि नमः ।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं चामरयुगलम् कल्पयामि नमः ।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं दर्पणम् कल्पयामि नमः ।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं तालवृन्तम् कल्पयामि नमः ।
ॐ ह्रीं श्रीं गन्धम् कल्पयामि नमः ।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं पुष्पम् कल्पयामि नमः ।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं धूपम् कल्पयामि नमः ।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं दीपम् कल्पयामि नमः ।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं नैवेद्यम् कल्पयामि नमः ।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं पानम् कल्पयामि नमः ।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं पुनराचमनीयम् कल्पयामि नमः ।
इसके पश्चात ताम्बूलम्, नमस्कारम् इत्यादि से भी पूजन करना चाहिए।
इस प्रकार श्रीयंत्र का अत्यंत ही चमत्कारी पूजन सम्पन्न हो जायेगा.एवं आपको अविस्मरणीय सफलताएं जीवन में मिलने लगेंगी। पूजन के पश्चात् आदि गुरु शंकराचार्य जी द्वारा रचित श्री सूक्तम का पाठ कर लेना चाहिए। इस प्रकार पंद्रह मिनिट के अंदर आप सम्पूर्ण श्रीयंत्र पूजन सम्पन्न कर लेंगे।
शिव शासनत: शिव शासनत:
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