भगवती महालक्ष्मी समस्त चल और अचल सम्पत्तियों सिद्धियों एवं निधियों की अधिष्ठात्री देवी हैं उनकी कृपा के बिना जीवन में सुख व ऐश्वर्य सम्भव नहीं है। देवों में प्रथम आराध्य विघ्नहर्ता श्री गणेश व महालक्ष्मी का पूजन साधक को सफल तथा समृद्ध बनाता है। भगवती महालक्ष्मी की आराधना का यद्यपि कोई निश्चित दिन या तिथि निश्चित नहीं है किन्तु 'दीपावली' पर की गयी पूजा अर्चना विशेष फलदायी होती है। वैसे तो जीवन में हमें पग-पग पर लक्ष्मी (अर्थ) की आवश्यकता होती है इसलिये यदि व्यापार व्यवसाय में लाभन हो रहा हो तथा किसी प्रकार का आर्थिक संकट हो तो किसी भी शुभ तिथि पर पूर्ण श्रद्धा व विश्वास के साथ भगवती महालक्ष्मी की आराधना करने से निश्चय ही सफलता मिलती है।
दरिद्र (निर्धन) व्यक्ति की संसार में कहीं भी प्रतिष्ठा नहीं होती। जिसके घर में लक्ष्मी नहीं होती वह सदैव दुःखी व परेशान रहता है जो कर्ज के बोझ से दबा हुआ है उससे ज्यादा दयनीय और दुःखी व्यक्ति कोई नहीं हो सकता। कुछ लोगों का मानना है कि परिश्रम से लक्ष्मी प्राप्त होती है किन्तु यह धारणा स्वयं में पूर्ण नहीं है। परिश्रम करके कुछ मात्रा में धन तो कमाया जा सकता है किन्तु जीवन में पूर्ण सौभाग्य, सुख और ऐश्वर्य प्राप्त नहीं हो सकता। यदि कोई मनुष्य यह समझता है कि व्यर्थ प्रयत्न और कुचक्र रचने से, छल-कपट व असत्य का सहारा लेने से घर में लक्ष्मी का स्थायित्व हो जायेगा तो यह उसकी भूल है। कुल मिलाकर विभिन्न साधनाओं व प्रयोगों के द्वारा ही घर में लक्ष्मी की स्थापना सम्भव है।
महालक्ष्मी का पूजन साधक को पूर्ण मनोयोग, श्रद्धा व विश्वास के साथ करना चाहिये। महालक्ष्मी का पूजन रात्रि के समय करना श्रेष्ठ फलदायक है। शास्त्रों के अनुसार स्थिर लग्न (वृषभ या सिंह) में महालक्ष्मी का पूजन करने से स्थिरता, सुख, समृद्धि तथा धन धान्य की प्राप्ति होती है। साधक को चाहिये कि वह पूजन आरम्भ करने से पूर्व पूजन के लिये आवश्यक समस्त सामग्री अक्षत, मौली, कुकुम, गुलाल, लौंग, इलायची, नारियल, सिन्दूर, दीपक, अगरबत्ती, रुई, माचिस, पंचामृत, यज्ञोपवीत, पंचमेवा, जल, कलश, फल, चन्दन, पान, सुपारी, सरसों, कपूर, पीला वस्त्र, कमल के फूल, इत्र, काली मिर्च, दूध तथा महालक्ष्मी के श्रृंगार हेतु आवश्यक सामग्री अपने पास रख लें।
सर्वप्रथम स्नानादि से निवृत्त होकर स्वच्छ वस्त्र धारण कर पूजा स्थल में शुद्ध आसन पर पूर्व या उत्तर की ओर मुख करके बैठ जायें। अपने सम्मुख किसी चौकी पर पीला वस्त्र बिछाकर उस पर महालक्ष्मी की मूर्ति या चित्र स्थापित करें । मूर्ति के समीप ही प्राण प्रतिष्ठा युक्त श्री यंत्र व कुबेर यंत्र स्थापित करें। धूप, अगरबत्ती आदि जला दें ताकि वातावरण शुद्ध रहे।
पवित्रीकरण
पंचपात्र में रखा हुआ जल बायें हाथ में लेकर दाहिने हाथ से अपने पर छिड़कें। निम्न मंत्र का उच्चारण करें
ॐ अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोऽपि वा ।
यः स्मरेत पुण्डरीकाक्षं स बाह्माभ्यन्तर शुचिः ।।
आचमन
आचमनी में जल लेकर क्रमश: निम्न मंत्रोच्चार करते हुये तीन बार जल पियें।
ॐ केशवाय नमः
ॐ माधवाय नमः
ॐ नारायणाय नमः
अब हाथ धो लें, फिर हाथ में जल लेकर निम्न संकल्प मंत्र का उच्चारण करें
संकल्प
ॐ विष्णुर्विष्णु र्विष्णुः श्रीमद् भगवतो महापुरुषस्य विष्णोराज्ञया प्रवर्तमानस्य अद्य श्री ब्राह्मणोऽन्हि द्वितीय परार्ट्रे कलियुगे कलि प्रथम चरणे जम्बू दीपे भरतखण्डे आर्यावर्तक देशे अमुक मासे, अमुक तिर्थो, अमुक वासरे, अमुक गोत्रोत्पन्न: अमुक शर्माऽहं (अमुक के स्थान पर क्रमशः माह, तिथि, दिन, गोत्र तथा अपना नाम बोलें) स्थिर लक्ष्मी प्राप्त्यर्थं श्री महालक्ष्मी प्राप्त्यर्थं सर्वारिष्ट निवृत्ति पूर्वक व्यापारे लाभार्थ च महालक्ष्मी पूजनं करिष्ये ।
(अब जल को भूमि पर छोड़ दें )
गणपति पूजन
सर्वप्रथम विघ्नहर्ता श्री गणेश का पूजन करें। शुद्ध घीका दीपक जलाकर अपने दाहिने तरफ स्थापित कर लें अगरबत्ती आदि जला लें तथा बायीं ओर तेल का अखंड दीपक जला लें। यह दीपक रात भर जलना चाहिये । किसी पात्र में गणपति को स्थापित कर पहले शुद्ध जल से फिर पंचामृत से और अंत में गंगाजल से स्नान करायें फिर उन्हें पोंछकर पुनः यथास्थान स्थापित कर दें। ध्यान रहे कि जिस थाली में गणपति को स्थापित करें उसमें कुंकुम से स्वास्तिक बना हुआ हो।
अब 'ॐ गणेशाय नमः' का उच्चारण करते हुये कुंकुम या केसर से गणपति को तिलक करें फिर अक्षत व पुष्प चढ़ायें तथा धूप, दीप, नैवेद्य आदि अर्पित करें फिर निम्न मंत्र का उच्चारण करते हुये हाथ जोड़कर प्रार्थना करें
गजाननं भूत गणाधिसेवितं कपित्य जम्बूफल चारु भक्षणं ।
उमासुतं शोक विनाशकारकम्, नमामि विघ्नेश्वर पाद पंकजम् ॥
गुरु पूजन
सामने गुरु चित्र स्थापित कर हाथ जोड़कर प्रार्थना करें
गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णु गुरुर्देवो महेश्वरः ।
गुरु: साक्षात परब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः ॥
तत्पश्चात् गुरु चित्र को स्नान कराकर उन्हें पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य, द्रव्य, दक्षिणा, आदि अर्पित करें।
अब निम्न मंत्र का उच्चारण करते हुये दोनों हाथों में पुष्प लेकर प्रार्थना करें -
त्वमेव माता च पिता त्वमेव, त्वमेव बन्युश्च सखा त्वमेव । त्वमेव विद्या द्रविणं त्वमेव, त्वमेव सर्वं मम देव देव ।।
कलश स्थापन
अब अपने दाहिनी ओर कुंकुम से स्वास्तिक बनाकर कलश को जल से भरकर स्वास्तिक के उपर स्थापित कर दें। फिर कलश में गंगाजल डालकर निम्न मंत्र का उच्चारण करते हुये सभी तीर्थों का आह्वान करें
गंगे च यमुने चैव गोदावरी सरस्वती ।
नर्मदे सिन्धु कावेर जलेऽस्मिन सन्निधिं कुरु ॥
उक्त मंत्रोच्चार के पश्चात् कलश में अक्षत्, कुंकुम तथा सुपारी डालें फिर 'ॐ वरुणाय नमः' का उच्चारण करते हुये कलश के उपर मौली बाँधें। अब क्रमशः निम्न मंत्रों का उच्चारण करते हुये कलश के चारों ओर एक-एक तिलक लगायें
पूर्वे ऋग्वेदाय नमः ।
दक्षिणे यजुर्वेदाय नमः ।
पश्चिमे सामवेदाय नमः।
उत्तरे अथर्व वेदाय नमः ॥
कलश के ऊपर पंचपल्लव (आम के पत्ते) डालकर उमर नारियल स्थापित कर दें। निम्न मंत्रोच्चार करें -
प्रसन्नोभव वरदोभव । अनेन पूजनेन । भगवान वरुण देवता प्रियतां न मम ॥
लक्ष्मी ध्यान
दोनों हाथ जोड़कर निम्न मंत्र का उच्चारण करते हुये महालक्ष्मी का ध्यान करें
वन्दे लक्ष्मी पर शिवमयीं शुद्ध जाम्बू नदाभां ।
तेजो रूपां कनकवसनां सर्वभूषोज्वलाङ्गी ॥
बीजापूरं कनक कलशं हेमपदमं दधानाः आद्या शक्तिं सकल जननीं विष्णुवामाङ्कसंस्थाम् ॥
अब यदि श्री यंत्र न हो तो महालक्ष्मी प्रतिमा को शुद्ध जल से स्नान करायें
निम्न मंत्र का उच्चारण करें -
गंगा सरस्वती रेवा पयोष्णि नर्मदा जलैः ।
स्नापितोऽसि मया देवि तथा शांतिं कुरुष्व मे।।
आसन
निम्न मंत्र का उच्चारण करते हुये महालक्ष्मी को आसन दें -
ॐ वर्मोऽमि समानानामुद्यतामिव सूर्यः ।
इमन्तमभितिष्ठामि यो मा कश्चाभिदासति ॥
(दिब्यमासनं समर्पयामि)
पाद्य
निम्न मंत्रोच्चार करते हुये पाद्य अर्पित करें
ॐ एतावानस्य महिमातोज्ज्यॉश्च्च पुरुषः ।
पादोस्य व्विश्श्वा भूतानि त्रिपादस्या मृतन्दिवि ॥
( पादयोः पाद्यं समर्पयामि )
अर्ध्य
अब निम्न मंत्र का उच्चारण करते हुये महालक्ष्मी को अर्ध्य देवें
ॐ धामन्ते व्विश्श्वम्भुवन मधि शिश्नतमन्तः समुद्रे हृद्यन्तरायुषि ।
अपामनी के समिथे यदआमृतस्त मध्यात्मः मधुमन्तन्तऽअम्मिम् ।। (अर्घ्यं समर्पयामि )
दुग्ध स्नान
निम्न मंत्र का उच्चारण करते हुये भगवती महालक्ष्मी को दूध से स्नान करायें -
कामधेनु समुत्पन्नं सर्वेषां जीवनं परम् । पावनं यज्ञहेतुश्च पयः स्नानार्थिमर्पितम् ।।
(दुग्धं स्नानं समर्पयामि)
दधि स्नान
निम्न मंत्र का उच्चारण करते हुये दहीं से स्नान करायें
पयसस्तु समुद्भूतं मधुराम्लं शशि प्रथम ।।
दध्यानीतं मया देवि स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम ।।**
( दधि स्नानं समर्पयामि )
घृत स्नान
निम्न मंत्र का उच्चारण करते हुये महालक्ष्मी को शुद्ध घी से स्नान करायें
नवनीत समुत्पन्नं सर्वसंतोष कारकम् ।
घृतं तुभ्यं प्रदास्यामि स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम ।।
(घृत स्नानं समर्पयामि)
मधु स्नान
अब निम्न मंत्र का उच्चरण करते हुये मधु (शहद ) से स्नान करायें
तरुपुष्प समुद्भूतं सुस्वाद मधुरं मधु ।
तेज: पुष्टिकरं दिव्यं स्नानार्थं प्रतिगृहताम ।।
शर्करा स्नान
निम्न मंत्र का उच्चारण करते हुये शर्करा से स्नान करायें - इक्षुसार समुदभूता शर्करा पुष्टिकारिका ।
मलापहारिका दिव्या स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम् ॥
(शर्करा स्नानं समर्पयामि )
पंचामृत स्नान
अब निम्न मंत्र का उच्चारण करते हुये महालक्ष्मी को पंचामृत से स्नान करायें
पयोदधि घृतं चैव मधु च शर्करायुतम् ।
पंचामृत मयानीतं स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम।।
(पंचामृत स्नानं समर्पयामि)
उपरोक्त विविध द्रव्यों से स्नान कराने के पश्चात् शुद्ध जल से स्नान करायें निम्न मंत्र का उच्चारण करें
मंदाकिन्यातु यद्वारि सर्वपाप हरं शुभम् ।
तदिदं कल्पितं देवि स्नानार्थं प्रतिगृह्णताम ।।
(शुद्धोदक स्नानं, समर्पयामि )
वस्त्र
महालक्ष्मी को वस्त्राभूषण अर्पित करें
सर्व भूषादिके सौम्ये लोकलज्जानिवारणे ।
मयापसादिते तुभ्यं वाससी प्रतिगृह्यताम् ।।
( वस्त्रं समर्पयामि)
चन्दन
अब महालक्ष्मी को गंध चन्दन आदि अर्पित करें निम्न मंत्र का उच्चारण करें
श्रीखण्ड चन्दनं दिव्यं गन्धाढ्यं सुमनोहरम् ।
विलेपनं सुरश्रेष्ट चन्दन प्रतिगृह्यताम् ।।
(गन्धं समर्पयामि )
अक्षत
निम्न मंत्र का उच्चारण करते महालक्ष्मी को अक्षत अर्पित करें -
अक्षतांश्च मया देवि कुंकुमाक्ता सुशोभिताः ।
मया निवेदिता भक्त्या गृहाण परमेश्वरि ॥
पुष्प
निम्न मंत्रोच्चार करते हुये महालक्ष्मी को विविधि पुष्पअर्पित करें -
माल्यादीनि सुगन्धीनि माल्यादीनि वै प्रभो ।
मयानीतानि पुष्पाणि गृहाण परमेश्वरि ॥
(पुष्पाणि समर्पयामि )
नैवेद्य
निम्न मंत्र का उच्चारण करते महालक्ष्मी को प्रसाद अर्पित करें
शर्कराघृत संयुक्तं मधुरं स्वादु चोत्तमम् ।
उपहार समायुक्तं नैवेद्यं प्रतिगृह्यताम् ।।
(नैवेद्यं निवेदयामि )
अब ताम्बूल पुंगीफल आदि अर्पित करें तथा अंत में दक्षिणा द्रव्य अर्पित करें निम्न मंत्र का उच्चारण करें।
न्यूनातिरिक्त पूजायां सम्पूर्ण फल हेतवे ।
दक्षिणां कांचनी देवि स्थापमामि तवाग्रतः ॥
क्षमा प्रार्थना
आवाहनं न जानामि न जानामि विसर्जनम् ।
पूजां चैव न जानामि क्षम्यतां परमेश्वरि ॥
मंत्रहीन क्रियाहीनं भक्तिहीनं सुरेश्वरि ।
यत्पूजितं मया देवि परिपूर्ण तदस्तु में ॥
मत्समः पातकी नास्ति पापघ्नी त्वत्समा न हि ।
एवं ज्ञात्वा महादेवि यथायोग्यं तथा कुरु ॥
शिव शासनत: शिव शासनत:
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