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समस्त कामनाओं की पूर्ति का अमोघ साधन ।।



                       गणेशाष्टक
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        भगवान गणपति की कृपा प्राप्त करने का यह सबसे उत्तम साधन है। गणेशाष्टक का मात्र तीन दिनों तक निरंतर तीनों संध्याओं के समय पूर्ण श्रद्धा व मनोयोग से फर लेने पर साधक के समस्त कार्य सिद्ध हो जायेंगे इतना ही नहीं यदि साधक आठ दिनों तक इन आठों श्लोकों का एक बार पाठ कर लेता है और चतुर्थी तिथि को आठ बार पाठ करता है तो वह आठों सिद्धियों को अनुभूत करने की स्थिति में आ जाता है।

                जो एक माह तक प्रतिदिन 10-10 बार इस स्तोत्र का पाठ करता है वह कारागृह में निरुद्ध तथा राजा के द्वारा वध दण्ड पाने वाले कैदी को भी छुड़ा सकता है। इसमें संशय नहीं है जो भी साधक पूर्ण भक्तिभाव से गजानन की आराधना करता है और गजानन के इस स्तोत्र का पाठ करता है उसे गणपति की परम भक्ति प्राप्त होती है। इस स्तोत्र के पाठ से विद्यार्थी को विद्या, पुत्र की इच्छा रखने वाले को पुत्र तथा निर्धन को धन प्राप्त होता है साथ ही जिसकी जो भी मनोकामना हो शीघ्र ही पूर्ण हो जाती है।

विधि: साधक प्रातः काल उठकर नित्यकर्म से निवृत्त हो जायें और स्नान कर शुद्ध वस्त्र धारण कर लें, तत्पश्चात् पूर्व या उत्तर की तरफ मुख कर लें और गणपति विग्रह या यंत्र (यंत्र के अभाव में सुपारी पर मौली बाँधकर रख लें) की पूजा सिन्दूर, दूर्वा, धूप व दीप से कर के उपरोक्त स्तोत्र का पाठ करें।

सर्वे ऊचुः

यतोऽनन्तशक्तेरनन्ताश्च जीवा यतो निगुर्णादप्रमेया गुणास्ते । 
यतो भाति सर्वं त्रिधा भेदभिन्नं सदा तं गणेशं नमामो भजामः ॥

 यतश्चविरासीज्जगत्सर्वमेतत्तथाब्जासनो विश्वगो विश्वगोप्ता । 
तथेन्द्रादयो देवसङ्घा मनुष्याः सदा तं गणेशं नमामो भजामः ॥

 यतो वह्निभानूद्भवो भूर्जलं च यतः सागराश्चन्द्रमा व्योम वायुः ।
यतः स्थावरा जङ्गमावृक्षसङ्घाः सदा तं गणेशं नमामो भजामः ॥

यतो दानवाः किंनरा यक्षसङ्घा यतश्चारणा वारणाः श्वपदाश्च । 
यतः पक्षिकीटा यतो वीरुधश्च सदा तं गणेशं नमामो भजामः ॥

 तो बुद्धिरज्ञाननाशो मुमुक्षोर्यतः सम्पदो भक्तसंतोषिकाः स्युः । 
यतो विघ्ननाशो यतः कार्य सिद्धिः सदा तं गणेशं नमामो भजामः ॥ 

यतः पुत्रसम्पद्यतो वांछितार्थो यतोऽभक्तविघ्नास्तथानेकरूपाः । 
यतः शोकमोहौ यतः काम एव सदा तं गणेशं नमामो भजामः ॥

 यतोऽनन्तशक्तिः स शेषो बभूव धराधारणेऽनेकरूपे च शक्तः । 
यतोऽनेकधा स्वर्गलोका हि नाना सदा तं गणेशं नमामो भजामः ॥ 

यतो वेदवाचो विकुण्ठा मनोभिः सदा नेति नेतीति यन्ता गृणन्ति । 
परब्रह्मरूपं चिदानन्दभूतं सदा तं गणेशं नमामो भजामः ॥

श्रीगणेश उवाच

पुनरुचं गणाधीशः स्तोत्रमेतत्पठेन्नरः । 
त्रिसंध्यं त्रिदिनं तस्य सर्वं कार्यं भविष्यति ॥ 

यो जपेदष्टदिवसं श्लोकाष्टकमिदं शुभम् । 
अष्टवारं चतुर्थ्यां तु सोऽष्टसिद्धीरवाप्नुयात् ॥ 

यः पठेन्मासमात्रं तु दशवारं दिने दिने । 
स मोचयेद्बन्धगतं राजवध्यं न संशयः ॥ 

विद्याकामो लभेद्विद्यां पुत्रार्थी पुत्रमाप्नुयात् । 
वांछिताँल्लभते सर्वानेकविंशतिवारतः ॥ 

यो जपेत् परया भक्त्या गजाननपरो नरः । 
एवमुक्त्वा ततो देवश्चन्तर्धानं गतः प्रभुः ॥

     ॥ इति श्री गणेशपुराणे श्री गणेशाष्टकं सम्पूर्णम् ॥

         साधक प्रात:काल उठकर नित्यकर्म से निवृत्त हो जाऐ और स्नान कर शुद्ध वस्त्र धारण कर ले, तत्पश्चात् पूर्व या उत्तर की तरफ मुख कर लें और गणपति विग्रह या यंत्र (यंत्र के अभाव में सुपारी पर मौली बाँध कर रख लें) की पूजा सिन्दूर, दूर्वा, धूप व दीप से कर के उपरोक्त स्तोत्र का पाठ करें।

                          शिव शासनत: शिव शासनत:

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