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प्रभु श्री कृष्ण ने कहा कि मैं मंत्रों में गायत्री हूं। अतः बस अब कुछ कहने की जरूरत नहीं।

       जीवन में मृत्यु अनिवार्य है दुख सुख अनिवार्य है रोग अनिवार्य है वृद्धावस्था अनिवार्य है कर्म अनिवार्य है इत्यादि इत्यादि। यही नियति है एवं हमें इसे स्वीकार करना चाहिए इससे लड़ने की कोशिश नहीं करनी चाहिए। यह जीवन की संहिता है एवं इसके नियम अपरिवर्तनीय है। बहुत कुछ अनिवार्य है ठीक इसी प्रकार गायत्री साधना सभी के लिए अनिवार्य है इससे बचने की कोशिश मत करना। लोग नाना प्रकार के ग्रंथों को पढ़ रहे हैं हैं इन सब के बारे में तर्क, कुतर्क, अनुसंधान, चर्चा, अन्वेषण, भाषण, चिंतन, मनन, महिमामंडन प्रशंसा मीन-मेक इत्यादि कर रहे। यह पूरी तरह से ऊर्जा की बर्बादी है क्योंकि परिवर्तन इन सब में शुन्य हैं। तीर्थ यात्राओं पर जा रहे हैं उपवास रख रहे हैं सत्संग कर रहे हैं इत्यादि इत्यादि फिर भी जीवन के अंतिम क्षण तक परिवर्तन शून्य है इसलिए मैं कहता हूं साधना करो यही एकमात्र विधान है जिससे कि तुम्हारे अंदर संपूर्ण परिवर्तन अवश्यंभावी है। सतत साधना करो काल की प्रवाह मत करो सफलता असफलता के पीछे मत दौड़ो सिर्फ साधना के पथ पर डटे रहो बिना साधना के परिवर्तन असंभव है। अन्यथा जैसे जन्म लिया वैसे ही मर जाओगे कुछ नहीं होगा।

     गायत्री आदि गुरु मंत्र है। ब्राह्मणत्व इस सृष्टि का सबसे आलौकिक तत्व है, ब्राह्मणत्वन इस सृष्टि का प्रभावी ज्ञान है ब्राह्मणत्व इस सृष्टि का महा आनंद है।

      ब्रह्म तत्व की प्राप्ति जीवन का सोपान है। सिद्धि की प्राप्ति विद्या की प्राप्ति या अन्य भौतिक देवीय प्राप्तिओं से बढ़कर एक मात्र प्राप्ति है ब्रह्मत्व की प्राप्ति। ब्राह्मत्व इस सिद्धि में ठेकेदारी की प्रथा से सर्वथा मुक्त है। कोई भी ब्रह्मत्व की प्राप्ति कर सकता है इतिहास इसका गवाह है। ब्रह्मत्व के माध्यम से ही ब्रह्म विद्या का आगम होता है और सृष्टि आप पर फूलों की बरसात करती है। जिसके ऊपर फूलों की बरसात अस्तित्व करता है उसे ही ओशो कहा जाता है ओशो शब्द का यही तात्पर्य है।

       मैंने अपने जीवन में साधकों को धड़ धड़ शिखर के तरफ चढ़ते हुए देखा है बस कुछ कदम दूर ही मंजिल रह गई थी फिर धड़ धड़ की आवाज से उन्हें नीचे लुढ़कते देखा है। जब वह इतनी ऊंचाई से नीचे गिरते हैं तो फिर इतने टूट फूट जाते हैं कि फिर ऊपर शिखर तक वह चढ़ने के बारे में सोच भी नहीं सकते। बड़ी विडंबना है 90% साधकों का यही हाल है इसके लिए वे स्वयं जिम्मेदार हैं। अगर नीव मजबूत नहीं है पांव मजबूत नहीं है दमखम नहीं है तो फिर क्यों ना फिसलन हो। गायत्री मंत्र ब्रह्मत्व की प्राप्ति में लगे प्रत्येक साधक के लिए अत्यंत आवश्यक है एवं इसी पर आगे चढ़कर बुलंद इमारत का निर्माण होगा साधना करो साधना करो।

        स्वागत है आपका संसार के सबसे बदनाम मार्ग में अर्थात अध्यात्म के मार्ग में। यह मार्ग तो अनंत काल से देह व्यापार से भी ज्यादा बदनाम है। वैसे मेरी नजरों में देह व्यापार ना बदनाम है और ना ही नामवान है। जो है सो है यह निर्विकार चिंतन है। इस मार्ग को कुछ इस मार्ग में चलने वालो मे कुछ इससे डरने वालों में कुछ इससे घबराने वालों में कुछ अपना अस्तित्व बचाने वालों में इससे बदनाम किया इससे बदनाम करने की कोशिश होती है षड्यंत्र होते हैं इससे बदनाम रखने की मजबूरी है इत्यादि इत्यादि। अगर ऐसा ना होता तो ब्रह्मा नारद को श्राप ना देते दधीचि को अपने प्राण नाथ त्यागने पड़ते इंद्र की गद्दी बार-बार नहीं मिलती इंद्र तो इसे बदनाम करने का ही कार्य करते हैं कामदेव को शिव पर तीर नहीं चलाना पड़ता विश्वामित्र के जीवन में इंद्र को मेनका नहीं भेजनी पड़ती शंकराचार्य को जहर नहीं पीना पड़ता महावीर के पैरों में और कानों में कील नहीं ठोंकी गई होती। प्रभु हनुमान को रावण वानर नहीं कहता प्रभु श्री राम को रावण मनुष्य नहीं कहता कृष्ण को बार-बार ग्वाला कहकर अपमानित नहीं किया जाता कालिदास को श्रीलंका में शरण नहीं लेनी पड़ती ओशो को हथकड़ी बांधकर दुनियाभर में नहीं घुमाया गया होता अमेरिका में जे कृष्णमूर्ति को 12 साल के लिए नजरबंद नहीं किया होता इत्यादि इत्यादि और इन सबसे बढ़कर मीरा को जहर का प्याला नहीं पीना पड़ता। स्वागत है आपका दुनिया का सबसे बदनाम सबसे हेय दृष्टि से देखे जाने वाले सबसे ज्यादा हंसी का पात्र बनने वाले अध्यात्म के मार्ग में। है तुम में दमखम अब दो रास्ते बचते हैं या तो साधना करो या फिर दुनिया की सड़ी गली भीड़ में गुम हो जाओ तुम्हारी मर्जी।
                           
शिव शासनत:शिव शासनत:


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