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पितृदोष निवारण प्रयोग ।।

      जीवन में पितृ ऋण के कारण बाधाऐं उत्पन्न होती ही हैं यथासम्भव पितृ ऋण की पूर्ति आध्यात्मिक कर्मों के माध्यम से कर देनी चाहिए। हम जो भी आध्यात्मिक कर्म करते हैं उसका एक भाग पितरो को समर्पित रहता है। जिसके परिणाम स्वरूप पितृ लोक में उन्हें सुदर्शनता व श्रेष्ठता प्राप्त होती है। भारतीय सनातन परम्परा में सभी देवी देवताओं के साथ पूर्वजों के प्रति भी श्रद्धाभाव अर्पित करने का प्रावधान है। निश्चय ही पितरों के प्रति किए जाने वाले श्राद्ध से जहाँ हम उनकी मुक्ति के लिए प्रयत्न करते हैं वहीं इस क्रिया के परिणाम स्वरूप साधक अपने पूर्वजों के आशीर्वाद को भी प्राप्त कर लेता है। 
           आत्माएं सूक्ष्मता व त्रिवर्गात्मकता से युक्त होने के कारण बाधाओं को कम करने में सक्षम भी होती हैं और आत्म बल से वंशज को अतिरिक्त बल भी प्रदान करती हैं। इसी कारण आश्विन कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा से अमावस्या तक के दिवस इसी कार्य के लिए निर्धारित किए गए हैं। यथासम्भव पितृ दोष से मुक्ति के लिए निम्र प्रक्रियाओं को नवमी व अमावस्या को करना श्रेष्ठ है। वैसे श्राद्ध कृष्ण पक्ष (आश्विन मास) के दिवसों के अतिरिक्त आश्विन पूर्णिमा को भी किया जा सकता है। 

       प्रातः काल स्नान कर लें और भोजन बना लें। भोजन को सामने रखकर व ब्राह्मण को सम्मान पूर्वक बैठाकर जल से संकल्प करें।

ॐ विष्णुर्विष्णुर्विष्णुः श्रीमद् भगवतो महापुरुषस्य विष्णोराज्ञया प्रवर्तमानस्य अद्य ब्रह्मणः द्वितीये परार्धे श्वेतावाराह कल्पे वैवस्वतमन्वन्तरे अष्टाविंशतित मे कलियुगे कलिप्रथम चरणे भारत वर्षे जम्बूद्वीपे आर्यावर्तान्तर्गत ब्रह्मावर्तेक देशे श्रीमन्न पविक्रमशः यातीतसंवत्सरे संवत द्विसहस्त्राधिक तमे वर्षे अमुक नामसंवत्सरे अमुक ऋतौ अमुक मासे अमुक पक्षे अमुक वासरे अमुक तिथौ एव ग्रह गुण विशेषण विशिष्टायां शुभपुण्य तिथौ ममाऽमनः श्रुति स्मृतिपुराणोक्त फल प्राप्य ( दक्षिण की ओर मुख करके) अमुक गोत्राणां अमुकानां तथा च अमुक गोत्राणामस्मन्मातामह प्रमातामहवृद्धप्रमातामहानां सपत्नीकानां वसुरूद्रादित्य स्वरूपाणां, जन्मजन्मान्तरे क्षुधातृषादिदोष परिहारार्थं पितृलोके अक्षयसुख स्वलोके सद्गति प्राप्त्यर्थे तदिद निमित यथान्संख्यं ब्राह्मणान् श्राद्ध भोजने नाहं तर्पयिष्ये ।

‌ इसके बाद भगवान विष्णु की थाली बनावे और उसमें कुछ भी भोजन पकाया हो वह रखें तथा तुलसी जल चढ़ावें तत्पश्चात धेनु मुद्रा प्रदर्शित करते हुए निम्न मंत्र से भगवान विष्णु को भोग लगायें

ॐ नाभ्याऽअसीदन्तरिक्ष: (गूँ) शीर्ष्णेद्यो: सपवर्तते पदभ्याम्भूमिर्दिदशः श्रीत्रोत्थालोकां अकल्पयन |

श्राद्ध में यह नियम है कि पाँच स्थानों पर थोड़ा-थोड़ा भोजन रखें जिसे पंच ग्रास कहा जाता है और निम्न मंत्र बोलते हुए प्रत्येक पर जल चढ़ायें।
                   गौ ग्रास समर्पयामि। 
                   श्वान ग्रास समर्पयामि।
                   कागग्रास समर्पयामि।
                   कीटग्रास समर्पयामि।
                   अतिथिग्रास समर्पयामि।
इसके बाद थोड़ा सा भोजन ब्राह्मण के बायीं और रख कर सर्प ग्रास मित्र मंत्र से दे दें। 
                  नागवली सर्पेभ्यो नमः
        ॐ नमोऽस्तु सर्पेस्यो ये के च पृथिवीमनु ।
        ये अन्तरिक्षे ये दिवि तेभ्य: सर्पेभ्यो नमः ॥

इसके बाद अग्नि को पकी हुई सामग्री और घृत का भोग निम्म्र मंत्र से दें।

ॐ चत्वारिश्रङ्गगत्रयो अस्य पादाद्वे शीर्षे सप्त हस्तासो अस्य त्रिधा बद्धो वृषभो शेखीति महोदेवो मर्त्या आविवेश ।

          इसके बाद हाथ में जल लेकर संकल्प भर निम्न मंत्र को पढ़ते हुए छोड़े यहाँ पर अमुक शब्द के स्थान पर अपने उस पूर्वज का नाम लें जिसके प्रति श्राद्ध व्यक्त किया गया है।

इहाद्य संकल्पिततिथौ (पंचांग में देखकर तिथि ज्ञात कर लें और उच्चारण करें) मम् अमूकशर्मन पितॄणां तप्त्यर्थं ब्राह्मणाः । अद्य कृतसंकल्पसिद्धिरस्तु ( जल छोड़ें)
इसके बाद ब्राह्मार्पण कार्य सम्पन्न करें अर्थात हाथ में जल लेकर मंत्र पढ़ता हुआ 'ब्राह्मर्पण'कहे।


ॐ ब्रह्मार्पणं ब्रह्महविर्ब्रह्मग्नौ ब्रह्माणा हुतम् ब्रह्मैव तेन गन्तध्यं ब्रह्मकमसर्माधिना । 
ॐ तत् ब्रह्मर्पणमस्तु, जल छोड़े और नमस्कार करके कहें ब्रह्मणों आरोगो ।

      शास्त्रों की मर्यादा के अनुसार यह कार्य सम्पन्न होने के बाद ब्राह्मणों को चाहिए कि वे निम्र क्रिया सम्पन्न करें अर्थात ब्राह्मण भोजन प्रारम्भ करने से पूर्व निम्न मंत्र से चोटी की गांठ खोल दें (श्राद्ध भोजन करते समय चोटी खोल देनी चाहिए या फिर शिखा पर स्पर्श करें । )

ब्रह्मापशस्ह स्त्राणि रुद्रशूलशतानि च । 
विष्णु चक्रसहस्त्राणि शिखामुक्ति करोभ्यहम् ।
फिर तीन ग्रास भूमि पर रखें और निम्न मंत्र का उच्चारण करे 
                 ॐ भूपतये नमः स्वाहा । 
                 ॐ भूवनपतये नमः स्वाहा । 
                 ॐ भूतानांपतये नमः स्वाहा ।
तत्पश्चात हाथ में जल लेकर भोजन की थाली के चारों और निम्न मंत्र पढ़ते हुए जल प्रदक्षिणा करें।

अन्नं ब्रह्म रसो विष्णुर्भोक्ता देवो महेश्वरः एवं ध्यात्वा द्विजो भुक्ते खाँडन्नदोषैर्ने लिप्यते अन्तभरति भूतेषु गुहायां विश्वतों   
मुखः त्वं ब्रह्म त्वं यज्ञस्त्वं वषट कारस्त्वमोडकारस्त्वं विष्णौः परम पदम् ।।

तत्पश्चात निम्न प्रत्येक मंत्र के साथ पाँच छोटे-छोटे ग्रास अपने मुँह में डाले।
                   ॐ प्राणाय स्वाहा ।
                   ॐ अपानाय स्वाहा । 
                   ॐ व्यानाय स्वाहा ।  
                   ॐ समानाय स्वाहा । 
                   ॐ उदानाय स्वाहा ।

        फिर बायें हाथ से आँखों में जल स्पर्श करें। इस सम्पूर्ण प्रक्रिया के बाद पूर्ण रूप से लाभ प्राप्त और दोष निवारण के लिए निम्र मंत्र की तीन माला जप करें जिससे सम्पूर्ण वर्ष भर आप तरोताजा और दोषमुक्त रहकर प्रत्येक 
कार्य में सफलता प्राप्त करें।

ॐ तत्सवितुर्वरेण्यं सर्व दोष पापान् निवृत्तय धियो योनः प्रचोदयात् ।

       इसके पश्चात् आप भोजन करें और मृतक व्यक्ति को श्रद्धांजलि व्यक्त करें कि उसकी आत्मा को शांति प्राप्त हो और उसकी मुक्ति हो और वह आपको जीवन में सफलता प्राप्त करने के लिए आशीर्वाद प्रदान करे और श्रेष्ठ कार्यों में आपकी सहायता करें। इस प्रकार श्राद्ध कार्य सम्पन्न होता है यद्यपि धीरे-धीरे हम यह सारी विधियाँ भूलते जा रहे हैं परन्तु शास्त्र मर्यादा को खो देना उचित नहीं है शास्त्र मर्यादा का पालन करना प्रत्येक भारतीय का कर्तव्य है।
 
        आप इस सम्पूर्ण प्रक्रिया को सम्पन्न अवश्य करें और पूर्वजों के प्रति श्रद्धा अर्पित कर उनका आशीर्वाद प्राप्त करें ताकि कार्यों में आ रही बाधा समाप्त हो सके।

।। अथ पितृस्तोत्र ।।

अर्चितानाममूर्तानां पितृणां दीप्ततेजसाम् ।
नमस्यामि सदा तेषां ध्यानिनां दिव्यचक्षुषाम् ।।१।।

हिन्दी अर्थ:-

जो सबके द्वारा पूजित, अमूर्त, अत्यन्त तेजस्वी, ध्यानी तथा दिव्यदृष्टि सम्पन्न हैं, उन पितरों को मैं सदा नमस्कार करता हूँ ।

इन्द्रादीनां च नेतारो दक्षमारीचयोस्तथा ।
सप्तर्षीणां तथान्येषां तान् नमस्यामि कामदान् ।।२।।

हिन्दी अर्थ:-

जो इन्द्र आदि देवताओं, दक्ष, मारीच, सप्तर्षियों तथा दूसरों के भी नेता हैं, कामना की पूर्ति करने वाले उन पितरो को मैं प्रणाम करता हूँ ।

मन्वादीनां च नेतार: सूर्याचन्दमसोस्तथा ।
तान् नमस्यामहं सर्वान् पितृनप्युदधावपि ।।३।।

हिन्दी अर्थ:-

जो मनु आदि राजर्षियों, मुनिश्वरों तथा सूर्य और चन्द्रमा के भी नायक हैं, उन समस्त पितरों को मैं जल और समुद्र में भी नमस्कार करता हूँ ।

नक्षत्राणां ग्रहाणां च वाय्वग्न्योर्नभसस्तथा ।
द्यावापृथिवोव्योश्च तथा नमस्यामि कृताञ्जलि: ।।४।।

हिन्दी अर्थ:-

नक्षत्रों, ग्रहों, वायु, अग्नि, आकाश और द्युलोक तथा पृथ्वी के भी जो नेता हैं, उन पितरों को मैं हाथ जोड़कर प्रणाम करता हूँ ।

देवर्षीणां जनितृंश्च सर्वलोकनमस्कृतान् ।
अक्षय्यस्य सदा दातृन् नमस्येहं कृताञ्जलि: ।।५।।

हिन्दी अर्थ:-

जो देवर्षियों के जन्मदाता, समस्त लोकों द्वारा वन्दित तथा सदा अक्षय फल के दाता हैं, उन पितरों को मैं हाथ जोड़कर प्रणाम करता हूँ ।

प्रजापते: कश्पाय सोमाय वरुणाय च ।
योगेश्वरेभ्यश्च सदा नमस्यामि कृताञ्जलि: ।।६।।

हिन्दी अर्थ:-

प्रजापति, कश्यप, सोम, वरूण तथा योगेश्वरों के रूप में स्थित पितरों को सदा हाथ जोड़कर प्रणाम करता हूँ ।

नमो गणेभ्य: सप्तभ्यस्तथा लोकेषु सप्तसु ।
स्वयम्भुवे नमस्यामि ब्रह्मणे योगचक्षुषे ।।७।।

हिन्दी अर्थ:-

सातों लोकों में स्थित सात पितृगणों को नमस्कार है। मैं योगदृष्टिसम्पन स्वयम्भू ब्रह्माजी को प्रणाम करता हूँ ।

सोमाधारान् पितृगणान् योगमूर्तिधरांस्तथा ।
नमस्यामि तथा सोमं पितरं जगतामहम् ।।८।।

हिन्दी अर्थ:-

चन्द्रमा के आधार पर प्रतिष्ठित तथा योगमूर्तिधारी पितृगणों को मैं प्रणाम करता हूँ। साथ ही सम्पूर्ण जगत् के पिता सोम को नमस्कार करता हूँ ।

अग्रिरूपांस्तथैवान्यान् नमस्यामि पितृनहम् ।
अग्रीषोममयं विश्वं यत एतदशेषत: ।।९।।

हिन्दी अर्थ:-

अग्निस्वरूप अन्य पितरों को मैं प्रणाम करता हूँ, क्योंकि यह सम्पूर्ण जगत् अग्नि और सोममय है ।

ये तु तेजसि ये चैते सोमसूर्याग्रिमूर्तय: ।
जगत्स्वरूपिणश्चैव तथा ब्रह्मस्वरूपिण: ।।
तेभ्योखिलेभ्यो योगिभ्य: पितृभ्यो यतामनस: ।
नमो नमो नमस्तेस्तु प्रसीदन्तु स्वधाभुज ।।१०।।

हिन्दी अर्थ:-

जो पितर तेज में स्थित हैं, जो ये चन्द्रमा, सूर्य और अग्नि के रूप में दृष्टिगोचर होते हैं तथा जो जगत्स्वरूप एवं ब्रह्मस्वरूप हैं, उन सम्पूर्ण योगी पितरो को मैं एकाग्रचित्त होकर प्रणाम करता हूँ । उन्हें बारम्बार नमस्कार है। वे स्वधाभोजी पितर मुझपर प्रसन्न हों ।

           ।। इति पितृ स्त्रोत समाप्त ।।

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