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ॐ नमः शिवाय ।।

               सृष्टि शिथिल ना पड़े इसलिए शिव तांडव नृत्य करते हैं जो शिव करते हैं वही सब को करना पड़ता है शिव तांडव करते हैं तो योग माया पार्वती लास नृत्य करती है। तांडव उग्र है एवं लास सौम्य। उग्रता और सौम्यता के मिश्रण से ही सृजन होता है। गणपति ढोल बजाते हैं तो कार्तिकेय पांव में बंधे घुंगरूओं को छमछमाते हैं कार्तिकेय के एक पांव में घुंघरू बांधे हुए हैं। शिव के तांडव पर ब्रह्मा थाप देते हैं नारद वीणा बजाते हैं विष्णु मृदंग संभालते हैं सरस्वती विचित्र वीणा से स्पंदन करती है इंद्र बांसुरी बजाते हैं लक्ष्मी गान प्रारंभ कर देती है कृष्ण शंख से नाद करने लगते हैं राम और अर्जुन धनुष की झंकार करते हैं ग्रह मंडल एवं नक्षत्र प्रकाश उछालने लगते हैं मनुष्य कर्म के लिए हाथों से क्रिया करने लगता है वृक्ष हिलने डुलने लगते हैं सागर लहराने लगते हैं हिम पिघलने लगती है। कहने का तात्पर्य यह है कि शिव के तांडव में ही जीवन का स्पंदन छिपा हुआ है शिव से ही सब सीखते हैं।

               पाणिनी, व्याकरण प्रतियोगिता में हार गया तुरंत शिवशरण हुआ। शिवोपासना संपूर्ण होने पर शिव ने 14 बार डमरू बजाया और व्याकरण के 14 हिस्से प्रादुर्भाव में आ गए। पाणिनी ने इन्हीं 14 हिस्सों से एक-एक कर अद्भुत व्याकरण कोष की रचना की और इस प्रकार मनुष्य को व्याकरण की प्राप्ति हुई। कुछ नया प्राप्त करने के लिए कुछ नया अनुभूत करने के लिए कुछ नया अविष्कृत करने के लिए शिव मनुष्य को माध्यम बना देते हैं। आइंस्टीन ने कहा इस पृथ्वी पर मनुष्य केवल परोपकार के लिए ही भेजा गया है उसने भी कुछ खोजा शिव के माध्यम से शाश्वत बात कही। अध्यात्मिक साधकों को अपने मुख से शाश्वत शैविक शिव शक्ति संपन्न परम सत्य ही उदगारीत करनी चाहिए। निरंतर शिव ध्यान में अपने आप को एकाग्र रखना चाहिए एवं तत्कालिक सामाजिक स्थितियों पर अपनी ऊर्जा नष्ट नहीं करनी चाहिए। मार्गदर्शन देने वाले पर भीषण जिम्मेदारी होती है क्योंकि लोग उसका अनुसरण करेंगे अतः सोच का शाश्वत होना अत्यधिक आवश्यक है। शिव पूजन से अंतःकरण की शुद्धि होती रहती है। शिव विषों का दमन कर जीव को नित्य शुद्ध और बुध बनाए रखते हैं। महत्व भूमिका है भूमि ही शक्ति है।

              जरा सोचिए कि मिट्टी का अविष्कार कितना विहंगम है वास्तव में अब तक जो भी अविष्कार हम देख रहे हैं उनमें सबसे चमत्कारिक और आश्चर्यजनक अविष्कार मिट्टी का है। एक मिट्टी में से अनार निकलता है तो वही मिट्टी आम भी देती है वही मिट्टी पुनः गेहूं दे देगी वही मिट्टी जो चाहो वह दे देती है और पुनः ऊर्जावान बनी रहती है। मिट्टी का कभी छय नहीं होता कितने अनंत वर्ष बीत गए पर मिट्टी आज भी उगल रही है जीव जो चाहते हैं वह मिट्टी उगल देती है मिट्टी कभी नष्ट नहीं होती है। किसने बनाई मिट्टी? शिव ने बनाई मिट्टी, मिट्टी बना दी वह जीवन को संभाल देगी वह जीवन को पल्लवित कर दे दी वह सब कुछ अपने अंदर लील जाएगी और किसी को कुछ पता नहीं चलेगा। पहले वैज्ञानिक बोलते थे कि पृथ्वी कुछ करोड़ वर्ष पुरानी है अब बोलने लगे हैं कुछ अरब वर्ष पुरानी है वर्तमान में कहते हैं कुछ खरब वर्ष पुरानी है 10 वर्ष बाद कहेंगे कुछ नील वर्ष पुरानी है। पहली बात पृथ्वी पुरानी है ही नहीं पूरातन का मिट्टी से क्या लेना देना? क्योंकि वह तो कालजई है। ना जाने कितनी विकसित सभ्यताएं आई और गई कितने प्रकार के जीव आए और गए कि उन्होंने स्वास ली और गए परंतु मिट्टी जस की तस है शाश्वत है तब भी उगल रही थी आज भी उगल रही है और आगे भी उगलती रहेगी। यही इस विश्व का सबसे बड़ा चमत्कार एवं दर्शनीय पक्ष है। मानव निर्मित नहीं है वह शिव निर्मित है शिवोऽम शिवोऽम मिट्टी के शिवलिंग बनाइए और पार्थिव शिवलिंग पूजन संपन्न कीजिए।

                 लिंग के मूल में ब्रह्मा मध्य में विष्णु ऊपर प्रणवात्मक शंकर हैं। लिंग महेश्वर अर्घा महादेवी है
"मूले ब्रह्मा तथा मध्य विष्णुस्त्रिभुवनेश्वर:।
रुद्रोपरि महादेव: प्रणवाख्य: सदाशिव:।।
लिङ्गवेदी महादेवी लिङ्ग साक्षान्महेश्वर:।
तयो: सम्पूजनान्नि देवी देवच्क्ष पूजीतौ।।"
चेतनरूप लिङ्ग सत्ता और प्रकृति से ही ब्रह्मांड की रचना हुई और उन्हीं के द्वारा वह प्रलय को भी प्राप्त होगा। शुद्ध मोक्ष के लिए भी उसी की आराधना करनी होगी।

      यव्दा प्रणव में आकार शिवलिङ्ग है उकार जल हरि है, मकार शिव शक्ति का सम्मिलित रूप समझ लिया जाता है। शिव ब्रह्मा का स्थुल आकार विराट ब्रह्मांड है ब्रह्मांड के आकार का ही शिवलिंग होता है। निर्गुण ब्रह्म का बोधक होने से यही ब्रह्मांड लिङ्ग है अथवा उकार से पिण्डी और मकार से त्रिगुणात्मक त्रिपुण्ड कहा गया है अथवा निराकार के आकाश रूप आकार ज्योति: स्तंम्भाकार तथा ब्रह्मांडाकार अभी सभी स्वरूपों में शक्ति सहित शिव तत्व का ही निवेश है।
                        
   शिव शासनत: शिव शासनत:

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