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शिवोपासना और ज्योतिष ।।

        वैसे तो ज्योतिष का क्षेत्र अत्यन्त व्यापक है जिसके माध्यम से किसी भी व्यक्ति का वर्तमान भूत व भविष्य तक देखा जा सकता है और ग्रहों की गणना, उनकी अन्तर्दशा महादशा देखकर यह भी बताया जा सकता है। कि व्यक्ति के जीवन के किस पड़ाव पर उन्नति का योग है तथा कब वह मृत्युतुल्य कष्ट भोगेगा किन्तु शिव के बिना ब्रह्माण्ड की कोई भी विद्या या ज्ञान पूर्ण नहीं है। क्योंकि सम्पूर्ण सृष्टि शिवमय है। शिव ही सबकी उत्पत्ति स्थिति और विनाश के कारण हैं अतः शिव उपासना के बिना जीवन निरर्थक है।

               कुछ लोगों का मानना है कि मनुष्य इस जन्म के कर्मों का फल अगले जन्म में भोगता है किन्तु यथार्थ यह है कि अपने दुष्कर्मों का फल उसे इसी जन्म में रोग, शोक, निर्धनता, लाचारी व परेशानियों के रूप में भोगना पड़ता है। जाने अनजाने मनुष्य कई गुप्त पाप करता है जिन्हें वह प्रकट नहीं करता किन्तु शिव तो कण-कण में व्याप्त हैं उनकी मर्जी के बिना एक पत्ता भी नहीं हिलता अतः निश्चित है कि हमारे ज्ञात और अज्ञात हर कर्मों का हिसाब किताब उनके पास रहता है। इसलिए जीवन को सार्थक, सुखी व समृद्धिशाली बनाने के लिए शिवोपासना अपरिहार्य है
              ज्योतिष शास्त्र में स्वप्न, शकुन, प्रश्न, दशा, महादशा आदि के माध्यम से समय का परिज्ञान किया जाता है। की कुण्डली के अनुसार मिलने वाले सुख-दुखों की फलप्राप्ति काल निर्णय का बहुत महत्व है जिन्हें गृहों की दशा अन्तर्दशाओं तथा गोचर आदि के माध्यम से जाना जाता है। यहाँ हम ज्योतिष शास्त्र की बारीकियों में न जाकर शिव भक्तों के लिए कुछ ऐसी दुर्लभ जानकारी प्रस्तुत कर रहे हैं जिनके द्वारा विभिन्न ग्रहों की महादशा व अर्न्तदशा के कारण आने वाली परेशानियों से छुटकारा मिलता है। जैसा कि पूर्व में कहा जा चुका है कि शिव उपासना ही समस्त विपत्तियों का नाश करने वाली है अतः साधकों को चाहिए कि वे विभिन्न ग्रहों की शांति के लिए। बताए नीचे अनुसार भगवान सदाशिव के दुर्लभ मंत्रों का. जाप व अनुष्ठान करें क्योंकि भगवान भोलेनाथ की कृपा प्राप्त कर लेने पर सभी ग्रहजन्य बाधाएं दूर हो जाती हैं, साधक की कभी अकाल मृत्यु नहीं होती तथा सभी दिव्य सुखभोग प्राप्त कर लेते हैं और भगवान के श्री चरणों में अखण्ड प्रीति भी प्राप्त हो जाती है।
     
               ज्योतिष शास्त्र में नौ ग्रह बताए गये हैं जो विभिन्न राशियों पर विचरण करते रहते हैं इसी तरह प्रत्येक राशि का एक स्वामी होता है तथा किसी एक ग्रह की महादशा के साथ यदि अन्य ग्रहों की अन्तर्दशा ठीक नहीं रहती तो साधक को तरह-तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता है। सूर्य की महादशा में सूर्य की अनिष्टकारक अन्तर्दशा हो तो उस दोष की निवृत्ति के लिये मृत्युंजय मंत्र का जप करना चाहिए। इससे समस्त दोषों की निवृत्ति हो जाती है और भगवान शिव एवं ग्रहराज सूर्यदेव का अनुग्रह प्राप्त होता है।

         तदोषपरिहारार्थं मृत्युंजयजपं चरेत् । सूर्यप्रीतिकरीं शान्तिं कुर्यादारोग्यमादिशेत् ॥

         इसी प्रकार सूर्य की महादशा में शनि एवं केतु की अन्तर्दशा होने पर मृत्युंजय मंत्र का अनुष्ठान करने से अपमृत्यु का निवारण होता है- मृत्युंजयजपं चरेत् । चन्द्रमा की महादशा में गुरु की अन्तर्दशा होने पर यदि अनिष्टकारक योग हो तो अपमृत्यु होती है, इसलिए इस दोष की निवृत्ति के लिए शिवसहस्त्रनाम का जप करना चाहिए। तद्दोषपरिहारार्थं शिवसाहस्त्रकं जपेत्। शनि की अन्तर्दशा होने पर शरीर में कष्ट होता है, अतः मृत्युंजय मंत्र का जप करना चाहिए। चन्द्रमा में केतु की अन्तर्दशा में भय होता है तथा शरीर में रोग उत्पन्न होते हैं, इसलिए मृत्युंजय मंत्र का जप करना चाहिए। मृत्युंजयं प्रकुर्वीत सर्वसम्पत्प्रदायकम् । इसी प्रकार चन्द्र में शुक्र की अन्तर्दशा में तथा सूर्य की अन्तर्दशा में क्रमशः रुद्र जाप तथा शिवपूजन करना चाहिए। तद्दोषविनिवृत्त्यर्थं रुद्रजापं च कारयेत्, तद्दोषपरिहारार्थं शिवपूजां च कारयेत् । मंगल की महादशा में मंगल की अन्तर्दशा में रुद्र- जप तथा वृषभदान करना चाहिए। राहु की अन्तर्दशा होने पर नाग का दान, ब्राह्मण भोजन तथा मृत्युंजय मंत्र के जप कराने से आयु एवं आरोग्य की प्राप्ति होती है-
नागदानं प्रकुर्वीत देवब्राह्मणभोजनम् । मृत्युंजयजपं कुर्यादायुरारोग्यमादिशेत् ॥

     मंगल में बृहस्पति की खराब अन्तर्दशा होने पर शिवसहस्त्रनामावली का जप करना चाहिए तद्दोषपरिहारार्थं शिवसाहस्त्रकं जपेत् । इसी प्रकार शनि की दोषयुक्त अन्तर्दशा में मृत्युंजय मंत्र के जप का विधान है। राहु की महादशा में बृहस्पति की अन्तर्दशा दोषकारक होने पर अपमृत्यु की सम्भावना रहती है, इसलिए स्वर्णप्रतिमा का दान तथा शिवपूजन करना चाहिए - स्वर्णस्य प्रतिमादानं शिवपूजां च कारयेत् ।

          बृहस्पति की महादशा में अनिष्टकारक बृहस्पति के योग होने पर शिवसहस्त्रनाम का जप, रुद्र जप तथा गोदान करने से सुख शांति की प्राप्ति होती है तद्दोषपरिहारार्थं शिवसाहस्त्रकं जपेत् । रुद्रजाप्यं च गोदानं कुर्यादिष्टं समाप्नुयात् ॥ इसी प्रकार राहु की अन्तर्दशा होने पर मृत्युंजय मंत्र के जप का विधान है।
             
          शनि की महादशा में शनि तथा राहु की खराब अन्तर्दशा होने पर मृत्युंजय मंत्र का जप करना चाहिए। इसी प्रकार बृहस्पति की अनिष्टकारक अन्तर्दशा होने पर शिवसहस्त्रनाम का जप तथा स्वर्ण दान करना चाहिए इससे आरोग्य प्राप्त होता है और सभी बाधाएं दूर हो जाती हैं। 

       तदोषपरिहारार्थं शिवसाहस्त्रकं जपेत् ।  
           स्वर्णदानं प्रकुर्वीत ह्यारोग्यं भवति ध्रुवम् ॥

बुध की महादशा में मंगल, बृहस्पति एवं शनि की अन्तर्दशा यदि ठीक न हो तो वृषभ दान और मृत्युंजय मंत्र तथा शिवसहस्त्रनाम के जप करने से अपमृत्यु का निवारण होता है तथा सर्वसौख्य प्राप्त होता है।

     अनड्वाहं प्रकुर्वीत मृत्युंजयजपं चरेत्।
      तद्दोषपरिहारार्थं शिवसाहस्त्रकं जपेत् ।

केतु की महादशा सात वर्ष तक रहती है। इस सात वर्ष में निश्चित क्रम से सभी ग्रह अपना समय अन्तर्भुक्त करते हैं। केतु में केतु तथा बृहस्पति ग्रह की दोषकर अन्तर्दशा रहने पर स्वास्थ्य हानि तथा आत्मबन्धु से वियोग और अपमृत्यु होती है, ऐसी स्थिति में मृत्युंजय जप तथा शिव सहस्त्रनाम का पाठ करने से सभी दुर्योग दूर हो जाते हैं।

           तदोषपरिहारार्थं शिवसाहस्त्रकं जपेत् ।
           महामृत्युंजयं जाप्यं सर्वोपद्रवनाशनम् ॥

शुक्र ग्रह की महादशा में दोषयुक्त राहु, बृहस्पति तथा केतु की अन्तर्दशा में मृत्युंजय मंत्र के जप करने से अपमृत्यु दूर होती है और सौख्य प्राप्त होता है तथा भगवान् शंकर की प्रसन्नता प्राप्त होती है
                           शिव शासनत: शिव शासनत:

Shivopasana and Astrology
         
         By the way, the field of astrology is very wide, through which the present past and future of any person can be seen and it can also be told by looking at the calculation of planets, their Antardasha Mahadasha. That at which stage of a person's life is the sum of progress and when he will suffer death-like suffering, but without Shiva no knowledge or knowledge of the universe is complete. Because the whole creation is Shiva. Shiva is the cause of all creation and destruction, so life is meaningless without worshiping Shiva.

                Some people believe that a person suffers the fruits of the actions of this birth in the next life, but the reality is that he has to suffer the consequences of his misdeeds in this birth in the form of disease, grief, poverty, helplessness and troubles. Knowingly and unknowingly man commits many secret sins which he does not reveal, but Shiva is pervasive in every particle, not even a leaf moves without his will, so it is certain that the account of all our actions, known and unknown, remains with him. Therefore, to make life meaningful, happy and prosperous, worshiping Shiv is indispensable.

          In astrology, the understanding of time is done through dreams, omens, questions, dasha, mahadasha etc. According to the horoscope, there is a lot of importance of the decision of the time to get the results of happiness and sorrows, which are known through the condition of the houses, antardashas and transits etc. Here we are presenting some such rare information for Shiva devotees without going into the nuances of astrology, by which one gets rid of the troubles caused by the Mahadasha and Antardasha of various planets. As it has been said earlier that worship of Shiva is the destroyer of all calamities, so seekers should pray for the peace of various planets. As mentioned below, of the rare mantras of Lord Sadashiv. Do chants and rituals because by getting the blessings of Lord Bholenath, all the planetary obstacles are removed, the seeker never dies prematurely and gets all the divine pleasures and unbroken love is also attained at the feet of the Lord.
     
          Nine planets have been
mentioned in astrology, which keep on moving in different zodiac signs, similarly each zodiac has a lord and with the Mahadasha of any one planet, if the antardasha of other planets is not good, then sadhak will face various kinds of problems. have to face. In the Mahadasha of the Sun, if there is a malefic Antardasha of the Sun, then the Mrityunjay Mantra should be chanted to get rid of that defect. With this, all the faults are removed and the grace of Lord Shiva and the planet Sun God is obtained.
      
         Similarly, in the Mahadasha of the Sun, when Shani and Ketu are in the antardasha, by performing the ritual of Mrityunjaya Mantra, the apologetics are prevented - Mrityunjayjapam Charet. If there is a malefic yoga in the mahadasha of the moon, if there is a malefic yoga, then Apamritya occurs, so to get rid of this defect, one should chant Shiva Sahasranama. Due to the antardasha of Shani, there is pain in the body, hence Mrityunjaya mantra should be chanted. There is fear in the antardasha of Ketu in the moon and diseases arise in the body, therefore Mrityunjaya mantra should be chanted. Similarly, in the antardasha of Venus in the moon and in the antardasha of the sun, Rudra Jaap and Shiva worship should be done respectively. Taddoshavinivrityatham Rudrajapancha kareet, Taddoshapariharartham Shiva worship cha karayet. In the Mahadasha of Mars, Rudra-japa and Vrishabhadaan should be done in the Antardasha of Mars. Donation of snake, Brahmin food and chanting of Mrityunjaya Mantra gives life and health when Rahu is in antardasha-

         If there is a bad Antardasha of Jupiter in Mars, one should chant the "Shiv Sahasranamavali" and chant Shivasahastrakam. Similarly, there is a law for chanting of Mrityunjaya mantra in the defective antardasha of Shani. In the Mahadasha of Rahu, if the antardasha of Jupiter is defective, there is a possibility of death, so donating the golden statue and worshiping Shiva should be done.

           In the Mahadasha of Jupiter, when there is a conjunction of malefic Jupiter, by chanting Shiva Sahasranama, chanting Rudra and donating God, one can attain happiness and peace. Similarly, there is a law to chant the Mrityunjaya mantra when Rahu is in the antardasha.
             
           In the Mahadasha of Shani, in case of bad Antardasha of Saturn and Rahu, one should chant Mrityunjay Mantra. Similarly, in case of malefic antardasha of Jupiter, chanting of Shiva Sahasranama and donating gold should bring health and remove all obstacles.
      
 In the Mahadasha of Mercury, if the antardasha of Mars, Jupiter and Saturn is not good, then by doing Vrishabha donation and by chanting Mrityunjaya Mantra and Shiva Sahasranama, one can get rid of the apocalyptic death and attain universal happiness.
    
        The Mahadasha of Ketu lasts for seven years. In this seven years, all the planets spend their time in a definite order. If Ketu and Jupiter remain in the dosha and antardasha of the planet Ketu, there is loss of health and separation from self-bonding and apamriti, in such a situation, by chanting Mrityunjaya and reciting Shiva Sahasranama, all the ill-yogis are removed.
           
      Chanting of Mrutyunjay Mantra in the mahadasha of Venus, Rahu, Jupiter and Ketu in the antardasha of the planet Venus, removes the death of death and attains goodness and happiness of Lord Shankar.

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