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नवरात्रि विशेष नवार्ण मंत्र साधना ।।

  

   साधना किसी भी शुक्रवार या नवरात्रि से शुरू करे। रोज एक समय पर ही साधना करे। साधना के दिनों मे ब्रम्हचर्य का पालन करे । अगर साधना के दिनों मे स्वप्न हो जाए तब भी साधना शुरू रखे। रोज संकल्प करे की आज मे इतनी माला जाप करूँगा और उसे पुरा करे। अगर स्वप्न मे कोई शक्ति आप को कोई भी मंत्र बताये तो उसका जाप आपको नही करना है वरना आपको जो भी नुकसान होगा उसके जिमेदार आप स्वयं होंगे। अपने साधना के अनुभव गलती से भी किसी को ना बताये। 

माला :- रुद्राक्ष 
दिशा :- उत्तर 
दीपक :- घी या तेल 
आसन , वस्त्र :- लाल 
दिन :- अपने सामर्थ्य अनुसार 9 दिन ,11 दिन , 21 दिन साधना करे। 

॥ विनियोगः ॥
श्रीगणपतिर्जयति। ॐ अस्य श्रीनवार्णमन्त्रस्य ब्रह्मविष्णुरुद्रा ऋषयः, गायत्र्युष्णिगनुष्टुभश्छन्दांसि, श्रीमहाकाली महालक्ष्मी महासरस्वत्यो देवताः, ऐं बीजम्, ह्रीं शक्तिः, क्लीं कीलकम्, श्रीमहाकालीमहालक्ष्मीमहासरस्वतीप्रीत्यर्थे जपे विनियोगः॥

विनियोग करके ऋष्यादिन्यास करे :

॥ ऋष्यादिन्यासः ॥
ब्रह्मविष्णुरुद्रऋषिभ्यो नमः, शिरसि॥ – सिर
गायत्र्युष्णिगनुष्टुप्छन्दोभ्यो नमः, मुखे॥ – मुख
महाकालीमहालक्ष्मीमहासरस्वतीदेवताभ्यो नमः, हृदि॥ – हृदय
ऐं बीजाय नमः, गुह्ये॥ – गुहा
ह्रीं शक्तये नमः, पादयोः॥ – दोनों पैर
क्लीं कीलकाय नमः, नाभौ॥ – नाभि
“ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे” – इति मूलेन करौ संशोध्य ॥ – दोनों हाथ धो ले

॥ करन्यास ॥
करन्यास में सभी उंगलियों और करतल एवं करपृष्ठ का न्यास किया जाता है। अन्य सभी न्यासों में तो दाहिने हाथ की उंगलियों से निर्दिष्ट अङ्ग का स्पर्श करके न्यास किया जाता है किन्तु करन्यास में विधि अलग हो जाती है, जिसका निर्देश दिया गया है :

ऐं अङ्गुष्ठाभ्यां नमः ॥ – दोनों हाथों के अंगूठे और तर्जनी को मिलायें।
ह्रीं तर्जनीभ्यां नमः ॥ – पुनः दोनों हाथों के अंगूठे और तर्जनी को मिलायें।
क्लीं मध्यमाभ्यां नमः ॥ – दोनों हाथों के अंगूठे और मध्यमा को मिलायें।
चामुण्डायै अनामिकाभ्यां नमः ॥ – दोनों हाथों के अंगूठे और अनामिका को मिलायें।
विच्चे कनिष्ठिकाभ्यां नमः ॥ – दोनों हाथों के अंगूठे और कनिष्ठा को मिलायें।
ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः ॥ – पहले दोनों करतल को मिलाये फिर दोनों करपृष्ठ को मिलाये।

॥ हृदयादिन्यास ॥
हृदयादिन्यास के लिये दाहिने हाथ की पाँचों उंगुलियों से हृदय आदि अंगों का स्पर्श किया जाता है, कुछ लोग करतल से भी करते हैं :

ऐं हृदयाय नमः ॥ – दाहिने हाथ के पांचों उंगलियों को मिलाकर हृदय स्पर्श करे।
ह्रीं शिरसे स्वाहा ॥ – शिर स्पर्श करे।
क्लीं शिखायै वषट् ॥ – शिखा स्पर्श करे।
चामुण्डायै कवचाय हुम् ॥ – दोनों हाथों परस्पर दाहिने और बायीं बांहों का स्पर्श करे।
विच्चे नेत्रत्रयाय वौषट् ॥ – दाहिने हाथ की तर्जनी से दाहिना नेत्र, अनामिका से बांया नेत्र और मध्यमा से तृतीय नेत्र कल्पित करके मध्य मस्तक का स्पर्श करे।
ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे अस्त्राय फट् ॥ – दाहिने हाथ को शिर के ऊपर से घुमाकर ताली बजाये। कुछ लोग तर्जनी और मध्यमा दो उंगलियों से ही निर्देश करते हैं तो कुछ लोग अप्रदक्षिण क्रम का भी निर्देश करते हैं।

॥ अंगन्यास ॥
अग्रांकित मंत्रों से क्रमशः शिखा आदि का स्पर्श करें :

नमः, शिखायाम् ॥ – शिखा
ह्रीं नमः, दक्षिणनेत्रे ॥ – दाहिना नेत्र
क्लीं नमः, वामनेत्रे ॥ – बायां नेत्र
चां नमः, दक्षिणकर्णे ॥ – दाहिना कान
मुं नमः, वामकर्णे ॥ – बायां कान
डां नमः, दक्षिणनासापुटे ॥ – दाहिना नासिकापुट
यैं नमः, वामनासापुटे ॥ – बायां नासिकापुट
विं नमः, मुखे ॥ – मुख
च्चें नमः, गुह्ये ॥ – गुहा

॥ दिङ्न्यास ॥

दशों दिशाओं में चुटकी बजाये :

ऐं प्राच्यै नमः ॥ – पूर्व
ऐं आग्नेय्यै नमः ॥ – अग्निकोण
ह्रीं दक्षिणायै नमः ॥ – दक्षिण
ह्रीं नैर्ऋत्यै नमः ॥ – नैर्ऋत्यकोण
क्लीं प्रतीच्यै नमः ॥ – पश्चिम
क्लीं वायव्यै नमः ॥ – वायव्यकोण
चामुण्डायै उदीच्यै नमः ॥ – उत्तर
चामुण्डायै ऐशान्यै नमः ॥ – ईशानकोण
ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ऊर्ध्वायै नमः ॥ – ऊपर
ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे भूम्यै नमः ॥ – नीचे

॥ ध्यानम् ॥
फिर पुष्पादि लेकर देवी का ध्यान करे :

खड्‌गं चक्रगदेषुचापपरिघाञ्छूलं भुशुण्डीं शिरः
शङ्खं संदधतीं करैस्त्रिनयनां सर्वाङ्गभूषावृताम्।
नीलाश्मद्युतिमास्यपाददशकां सेवे महाकालिकां
यामस्तौत्स्वपिते हरौ कमलजो हन्‍तुं मधुं कैटभम्॥१॥

ॐ अक्षस्रक्परशुं गदेषुकुलिशं पद्मं धनुष्कुण्डिकां
दण्डं शक्तिमसिं च चर्म जलजं घण्टां सुराभाजनम्।
शूलं पाशसुदर्शने च दधतीं हस्तैः प्रसन्नाननां
सेवे सैरिभमर्दिनीमिह महालक्ष्मीं सरोजस्थिताम्॥२॥

ॐ घण्टाशूलहलानि शङ्‌खमुसले चक्रं धनुः सायकं
हस्ताब्जैर्दधतीं घनान्तविलसच्छीतांशुतुल्यप्रभाम्।
गौरीदेहसमुद्भवां त्रिजगतामाधारभूतां महा
पूर्वामत्र सरस्वतीमनुभजे शुम्भादिदैत्यार्दिनीम्॥३॥

फिर “ऐं ह्रीं अक्षमालिकायै नमः” इस मन्त्र से माला की पूजा करके प्रार्थना करें –

ॐ मां माले महामाये सर्वशक्तिस्वरूपिणि।
चतुर्वर्गस्त्वयि न्यस्तस्तस्मान्मे सिद्धिदा भव ॥

इस मंत्र से माला को दाहिने हाथ में ग्रहण करे :

ॐ अविघ्नं कुरु माले त्वं गृह्णामि दक्षिणेकरे।
जपकाले च सिद्ध्यर्थं प्रसीद मम सिद्धये ॥

ॐ अक्षमालाधिपतये सुसिद्धिं देहि देहि सर्वमन्त्रार्थसाधिनि
साधय साधय सर्वसिद्धिं परिकल्पय परिकल्पय मे स्वाहा ॥

मूल मंत्र :- 

“ओम ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे”
Om Aing Hreeng Kling Chamundaye Vicche .

जाप पुरा होने के बाद इस श्‍लोक को पढ़े और भगवती को प्रणाम करे। 

ॐ गुह्यातिगुह्यगोप्त्री त्वं गृहाणास्मत्कृतं जपम्।
सिद्धिर्भवतु मे देवि त्वत्प्रसादान्महेश्‍वरि ॥

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