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Energy Centres and the Subtle System

जिस प्रकार भूमण्डल का आधार मेरु पर्वत वर्णित है उसी प्रकार इस मनुष्य शरीर का आधार मेरुदण्ड अथवा रीढ़ की हड्डी है। मेरुदण्ड तैंतीस अस्थि-खण्डों के जुड़ने से बना हुआ है (सम्भव है, इस तैंतीस की संख्या का सम्बन्ध तैंतीस कोटि देवताओं अथवा प्रजापति, इन्द्र, अष्ट यसु, द्वादश आदित्य और एकादश रुद्र से हो )। भीतर से यह खोखला है। इसका नीचे का भाग नुकीला और छोटा होता है। इस नुकीले स्थान के आसपास का भाग कन्द कहा जाता है और इसी कन्द में जगदाधार महाशक्ति की प्रतिमूर्ति कुण्डलिनी का निवास माना गया है।

            इस शरीर में बहत्तर हजार नाड़ियों की स्थिति कही गयी है, इनमें से मुख्य नाड़ियाँ संख्या में चौदह हैं। इनमें से भी प्रधान नाड़ियाँ तीन हैं। इनके नाम इडा पिंगला तथा सुषुम्ना हैं। इडा नाड़ी मेरुदण्ड के बाहर बायीं ओर से और पिंगला दाहिनी ओर से लिपटी हुई हैं। सुषुम्ना नाड़ी मेरुदण्ड के भीतर कन्दभाग से प्रारम्भ होकर कपाल में स्थित सहस्रदलकमल तक जाती हैं जिस प्रकार कदलीस्तम्भ में एक के बाद दूसरी परत होती है उसी प्रकार इस सुषुम्ना नाड़ी के भीतर क्रमशः वज्रा, चित्रिणी तथा ब्रह्मनाड़ी हैं। योगक्रियाओं द्वारा जागृत कुण्डलिनी शक्ति इसी ब्रह्मनाड़ी के द्वारा कपाल में स्थित ब्रह्मरन्ध्र तक (जिस स्थान पर खोपड़ी की विभिन्न हड्डियाँ एक स्थान पर मिलती हैं और जिसके ऊपर शिखा रक्खी जाती है) जाकर पुनः लौट आती है। मेरुदण्ड के भीतर ब्रह्मनाड़ी में पिरोये हुए छः कमलों की कल्पना की जाती है। यही कमल षट्चक्र हैं। प्रत्येक कमल के भिन्न संख्या में दल हैं और प्रत्येक का रंग भी भिन्न है। ये छः चक्र शरीर के जिन अवयवों के सामने मेरुदण्ड के भीतर स्थित हैं उन्हीं अवयवों के नाम से पुकारे जाते हैं।.


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