यूं तो भगवान शिव के लिङ्गों की कोई संख्या नहीं है और लिंङ्ग से भिन्न अन्य कोई वस्तु नहीं है। भगवान शिव ने आकाश, पाताल या पृथ्वी पर जहाँ भी किसी देवता, मनुष्य अथवा दैत्यों को दर्शन दिये हैं वहीं वे लिंङ्ग रूप होकर स्थित हो गये हैं। इस पृथ्वी पर भी असंख्य शिवलिंङ्ग स्थापित हैं किन्तु उनमें से 12 लिंङ्गों को ज्योतिर्लिंङ्ग कहा जाता है।
शास्त्रों की मान्यता है कि इन ज्योतिर्लिंङ्गों में भगवान शिव पूर्णाश से विराजमान रहते हैं। भगवान शिव के द्वादश ज्योतिर्लिंङ्गों का वृतान्त इस प्रकार है- पहले सोमनाथ जो सौराष्ट्र में गिरिजा सहित विराजमान है दूसरे 'मल्लिकार्जुन' श्री शैल पर स्थित हैं, तीसरे 'महाकाल' उज्जयिती में शुसोभित है, चौथे अमरनाथ हिमालय पर स्थित हैं, पाँचवे केदारेश्वर केदार में सुशोभित हैं, छठे 'भीमशंकर' डाकिनी तीर्थस्थल पर स्थित हैं, सातवें 'विश्वनाथ' काशी में विराजमान हैं, आठवें त्र्यम्बक गौतमी नदी के तट पर स्थित हैं, नवे वैद्यनाथ चिताभूमि में निवास करते हैं, दसवे नागेश दारुक वन में सुशोभित हैं, ग्यारहवे 'रामेश्वर' सेतु के अर निवास करते हैं तथा बारहवें 'द्युतिमान' शिवगृह में विराजमान हैं।
शास्त्रों के अनुसार जो व्यक्ति प्रातः काल स्नानादि से निवृत्त होकर इन बारह ज्योतिर्लिंङ्गों का स्मरण करता है उसके सम्पूर्ण मनोरथ पूर्ण हो जाते हैं। इन ज्योतिर्लिंगों की महिमा अपार है। ज्योतिर्लिङ्गों के दर्शन करने से नपुंसक तथा पापी मनुष्य भी ब्राह्मण का जन्म पाकर मुक्त हो जाते हैं। भगवान शिव के द्वादस ज्योतिर्लिंगों की स्थापना के अलग-अलग प्रयोजन है। दक्ष प्रजापति के शाप के कारण जब चन्द्रमा का प्रकाश क्षीण हो गया तब उन्होंने भगवान शिव की आराधना हेतु 'सोमनाथ' की स्थापना की। शास्त्रों के अनुसार इस शिवलिंङ्ग के स्मरण, ध्यान एवं पूजन सेसभी प्रकार के दुःख तथा शोक नष्ट हो जाते हैं इस ज्योतिर्लिंङ्ग के निकट ही चन्द्रकुण्ड नामक एक कुण्ड है। जिसमें स्नान करने से सभी पाप नष्ट हो जाते हैं। श्री शैल ( श्रीनगर) में 'मल्लिकार्जुन' की स्थापना समय हुयी जब शिव जी अपने पुत्र स्कन्द को लेने के लिये वहाँ पहुँचे थे और वहीं ज्योतिर्लिंङ्ग के रूप में स्थित हो हो गये थे । इस ज्योतिर्लिङ्ग के दर्शन तथा पूजन से अनेक प्रकार के सुख प्राप्त होते हैं। 'महाकाल' के रूप में भगवान शिव ने अपने भक्तों की रक्षा के लिये दूषण नामक दैत्य को भस्म किया था और उसी स्थान पर ज्योतिर्लिंङ्ग बनकर प्रतिष्ठित हो गये। उनका दर्शन व पूजन भी दोनों लोकों में आनन्द प्रदान करने वाला है। इसी तरह भगवान शिव ने अलग-अलग प्रयोजनों तथा लोक कल्याण के लिये अलग-अलग 12 स्थानों पर स्वयं को ज्योतिर्लिंग के रूप में स्थापित किया। इन ज्योतिर्लिंङ्गों का स्मरण इस प्रकार करना चाहिए -
सौराष्टे सोमनाथं च श्रीशैले मल्लिकार्जुनम् । उज्जयिन्यां महाकालमोङ्कारममलेश्वरम ॥
परल्यां वैद्यनाथं च डाकिन्यां भीमशक रम् । वाराणस्याम् च विश्वेशम् त्र्यंबंकम् गौतमीतटे।।
सेतुबन्धे तु रामेशं नागेशं दारुकावने ।
हिमालये तु केदारं घुसृणेशं शिवालये ॥
इन ज्योतिर्लिंङ्गों की महिमा का वर्णन शास्त्रों में कुछ इस प्रकार मिलता है।
ऐतानि ज्योतिर्लिंङ्गानि सायं प्रातः पठेन्नरः । सप्तजन्मकृतं पापं स्मरणेन विनश्यति ॥
अर्थात जो मनुष्य सुबह शाम उपरोक्त ज्योतिर्लिङ्गों का स्मरण करता है उसके सात जन्मों के पाप नष्ट हो जाते हैं।
शिव शासनत: शिव शासनत:
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