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प्रतिदिन सम्पादित कर्मों को शुद्ध करने के लिए क्षमा प्रार्थना ।।

             मनुष्य रूपी देह में निवास करने वाली आत्मा के पूर्ण चेतनामय होने पर भी उसे प्रतिदिन अनेकों कर्म सम्पन्न करने पड़ते हैं। इन कर्मों में से कुछ कर्म अनचाहे में ही विपरीत फल देते हैं तो फिर कुछ कर्म बुद्धि और तर्क की उपस्थिति के कारण ही इस प्रकार सम्पन्न हो जाते हैं कि उनके लिए क्षमा याचना अत्यधिक आवश्यक हो जाती है। कर्मों की श्रृंखला में विरासत में भी प्राप्त होती है और इसके साथ जीवन में काल और परिस्थिति के अनुकूल शरीर को बनाये रखने के लिए अनेकों कर्म न चाहते हुए भी करने पड़ते हैं। मनुष्य देह के रूप में कर्मों से मुक्ति पाना लगभग असम्भव है विशेषकर गृहस्थ जीवन में तो अनेक अनचाहे कर्मों के बोझ से मनुष्य दबा रहता है। इसका तात्पर्य यह नहीं है कि वह गृहस्थ छोड़कर वन की तरफ भाग जाये। मातृ रूपी आदि शक्ति माँ भवानी के अनंत चेतनामय नेत्र अपने बालक रूपी भक्त को सदैव निहार रहे होते हैं और जिस प्रकार माँ अपने बालक की - सभी गल्तियों को क्षमा कर देती है ठीक इसी प्रकार मातृ शक्तिका उपासक चाहे उसे पूजा आती हो या न आती हो, मंत्रों का उच्चारण वह ठीक से नहीं कर सकता, न ही वह विसर्जन एवं अन्य क्रियाओं से परिचित है पर फिर भी अगर वह हृदय से माँ के समक्ष अपने अपराधों के लिये क्षमा प्रार्थना करता है तो भी उसे उतना ही फल प्राप्त होता है जितना कि एक कर्मकाण्डी साधक को ।

       यह एक सच्ची घटना है माँ दुर्गा के मंदिर में पुजारी प्रतिदिन नेवैद्य पूर्ण कर्मकाण्ड के साथ अर्पित करता था और माँ सूक्ष्म स्वरूप में उसे ग्रहण करती थी परंतु एक दिन किसी कारणवश पुजारी स्वयं माँ को नेवैद्य अर्पित करने मंदिर में नहीं जा पाया तब उसने अपने बालक से कहा कि आज तुम यह नैवेद्य ले जाकर माँ के चरणों के समक्ष अर्पित करो। अबोध बालक ने बिना कर्मकाण्डीय क्रिया को सम्पन्न किये नेवैद्य ले जाकर माँ के चरणों में अर्पित किया एवं पूर्ण हृदय से माँ का आह्वान करते हुए प्रसाद ग्रहण करने का अनुग्रह किया कुछ ही क्षणों में थाली में रखा सम्पूर्ण नेवैद्य खाली हो गया। यह बात जब बालक ने जाकर पुजारी सेबताई तो वह हतप्रभ हो गया एवं उसे एहसास हुआ कि बिना पूर्ण हृदय भाव से किया गया कर्मकाण्ड मात्र यंत्रवत प्रक्रिया है परंतु हृदय भाव से किया गया एक आह्वान सभी कर्मकाण्डों से उत्तम होता है।
              देवी का सानिध्य केवल भक्ति भाव के साधकों को ही मिलता है। भक्ति और श्रद्धा दुर्लभ तत्व है इन तत्वों के विकसित होने पर देवी साक्षात प्रकट हो जाती है और भक्त और इष्ट के बीच फर्क समाप्त हो जाता है। बुद्धिमान एवं तर्कवादी मनुष्य अध्यात्म का स्वाद जीवन पर्यन्त नहीं चख पाते। मातृ स्वरूप में जगदम्बा को प्राप्त करने के लिए साधक को बाल्य स्वरूप धारण करना पड़ता है यही आदि शक्ति माँ भवानी को प्राप्त करने का मूल तत्व है। बाल्य सुलभ साधक माता से कुछ भी नहीं छुपाता और माता भी उसकी बड़ी से बड़ी गलतियाँ उसके बाल्य स्वरूप के कारण माफ कर देती हैं।

            मातृ पूजन से ही आँखों में वह पवित्रता उत्पन्न होती है जिसके फलस्वरूप प्रत्येक स्त्री में साधक को मातृ दर्शन ही होते हैं। माँ काली के परम भक्त स्वामी रामकृष्ण परमहंस को काली इतनी सिद्ध थीं कि जब वे मूर्ति का श्रृंगार करते थे तो मूर्ति स्वयं शरीर धारण कर लेती थी और यहाँ तक कि विवाहित होने के पश्चात् भी वे अपनी पत्नी को 14 वर्ष की उम्र से माँ पुकारने लगे थे। परमहंस अवस्था में साधक माँ की प्रत्येक मूर्ति में उनके विशिष्ठ अंश का दर्शन करने में समर्थ होता है तो वहीं अगर एक वर्ष तक अखण्ड रूप में दुर्गा सप्तशती का पाठ किया जाय तो प्रत्येक स्त्री में भी चाहे वह किसी भी योनि की क्यों न हो मातृ स्वरूप के साक्षात दर्शन होने लगते हैं। दुष्ट से दुष्ट प्रवृत्ति की स्त्री साधक के सामने आते ही प्रेम और वात्सल्य की मूर्ति बन जाती है उसके अंदर भी प्रेम और वात्सल्य की धारा निर्मित होने लगती है।
 
           स्त्रियों का अनादर करने वाले, उनको ताड़ना देने वाले, उनका शोषण करने वाले, स्त्री के पैसों पर मौज करने वाले और स्त्री को सिर्फ भोग्या समझने वाले पुरुषों का सर्वनाश निश्चित होता है। नाना प्रकार के गुप्त रोग, त्वचा सम्बन्धित तकलीफें कठिन वृद्धावस्था एवं विधुर जीवन देवी के कोप का ही कारण है। पुरुषों में शिवत्व की कमी (नपुंसकता), श्रीहीनता, जीवन में स्त्री के द्वारा कष्ट, बदनामी, कलंक यह सब कहीं न कहीं उसके चाहे और अनचाहे कर्मों का प्रतिफल है जिसके द्वारा मातृ शक्ति का अनादर एवं अपमान हुआ हो।
क्रमशः

       वे पुरुष या परिवार जिसमें स्त्री भ्रूण की हत्या की जाती है, अकाल मृत्यु एवं शस्त्राघात या फिर यांत्रिक दुर्घटना के कारण मृत्यु को प्राप्त होते हैं। सभी ऋषियों, परमहंसों एवं वेदपुरुषों ने अगर ब्रह्मचर्य का पालन किया है तो सिर्फ उसका एकमात्र उद्देश्य समग्रता के साथ मातृ शक्ति को माँ स्वरूप में अपनाना ही है। मातृ शक्ति का पूजन मात्र मानसिक या कर्मकाण्डी नहीं होता है। आपकी समस्त इन्द्रियाँ मातृ शक्ति के आदर स्वरूप क्रियान्वित होनी चाहिए। साधक का व्यवहार एवं आचरण बाल्य स्वरूप होना चाहिए। बाल्य स्वरूप निष्काम पूजन का द्योतक है। बालक की जिद के सामने माँ पिघलती है और येन, केन, प्रकारेण उसकी इच्छा पूर्ति करती है। मातृ पूजन केवल पुरुषों का ही विषय नहीं है स्त्रियाँ भी मातृ पूजन के द्वारा सम्पूर्ण कलामय होती है। रूप, रंग, ऐश्वर्य, पुत्र, सफल गृहस्थ जीवन, मनचाहा पति, सदा सुहागिन जीवन मातृ पूजन के द्वारा ही सम्भव है। वक्ष स्थलों का विकास चेहरे पर लालिमा लिये हुए कांति, स्त्री कष्टों से निवारण मातृ पूजन के द्वारा ही सम्भव है।

       आज के युग में स्त्रियों का नाना प्रकार के रोगों से ग्रसित होना, गर्भपात, गर्भाशय का स्थान च्युत होना, वक्षस्थलों का अविकसित होना, उम्र से पहले वृद्धावस्था को प्राप्त करना इत्यादि समस्याओं के मूल में कहीं न कहीं मातृ शक्ति के प्रति अनादर भाव ही है। मातृ शक्ति पूजन ब्रह्माण्डीय प्रक्रिया है। आप उस परम शक्ति का पूजन कर रहे हैं जिसके द्वारा आकाश गंगा, तारे, नक्षत्र इत्यादि का निर्माण हुआ है। यह अद्वेत चेतनामयी शक्ति जो कि सदैव जन्म देने को तत्पर है तुच्छ मनुष्य को अपना तथाकथित अहम त्यागकर उसके प्रति सदैव श्रद्धावान होना चाहिए ।

            जीवन में ज्ञान, अनुभव, प्रेम एवं समस्त सृजन प्रक्रिया उसी का अंश है। इसी परम शक्ति के प्रति श्रद्धाभाव रखते हुए क्षमा प्रार्थना का पाठ कम से कम रात्रि को निवृत्त होने के पश्चात् अवश्य करें ।

                         क्षमा प्रार्थना
 
            अपराधसहस्त्राणि क्रियन्तेऽहर्निशं मया । 
            दासोऽयमिति माँ मत्वा क्षमस्व परमेश्वरि ।।
 
            आवाहनं न जानामि न जानामि विसर्जनम् । 
            पूजां चैव न जानामि क्षम्यतां परमेश्वरि ।।
 
            मन्त्रहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं सुरेश्वरि । 
            यत्पूजितं मया देवि परिपूर्ण तदस्तु मे ॥
 
           अपराधशतं कृत्वा जगदम्बेति चोच्चरेत् । 
           यां गतिं समवाप्नोति न तां ब्रह्मादयः सुराः ॥
 
           सापराधोऽस्मि शरणं प्राप्तस्त्वां जगदम्बिके ।                                             
           इदानीमनुकम्प्योऽहं यथेच्छसि तथा कुरु ॥

           अज्ञानाद्विस्मृतेर्भ्रान्त्या यन्नयूनमधिकं कृतम्।  
            तत्सर्वं क्षम्यतां देवि प्रसीद परमेश्वरि ।।
 
           कामेश्वरी जगन्मातः सच्चिदानन्दविग्रहे । 
           गृहाणार्चामिमां प्रीत्या प्रसीद परमेश्वरि ॥
 
           गुह्यातिगुह्यगोप्त्री त्वं गृहाणास्मत्कृतं जपम् । 
           सिद्धिर्भवतु मे देवि त्वत्प्रसादात्सुरेश्वरि ।।

परमेश्वरी ! मेरे द्वारा रात-दिन सहस्त्रों अपराध होते रहते हैं। यह मेरा दास है - यों समझकर मेरे उन अपराधों को तुम कृपापूर्वक क्षमा करो। परमेश्वरी ! मैं आवाहन नहीं जानता, विसर्जन करना नहीं जानता तथा पूजा करने का ढंग भी नहीं जानता। क्षमा करो। देवि ! सुरेश्वरी! मैने जो मंत्रहीन, क्रियाहीन और भक्तिहीन पूजन किया है, वह सब आपकी कृपा से पूर्ण हो । सैकड़ों अपराध करके भी जो तुम्हारी शरण में जा 'जगदम्ब’ कहकर पुकारता है, उसे वह गति प्राप्त होती है जो ब्रह्मादि देवताओं के लिये भी सुलभ नहीं है। जगदम्बिके! मैं अपराधी हूँ, किन्तु तुम्हारी शरण में आया हूँ। इस समय दया का पात्र हूँ। तुम जैसा चाहो, करो। परमेश्वरी! अज्ञान से, भूल से अथवा बुद्धि भ्रान्त होने के कारण मैने जो न्यूनता या अधिकता कर दी हो, वह सब क्षमा करो और प्रसन्न होओ। सच्चिदानन्द स्वरूपा परमेश्वरी ! जगन्माता कामेश्वरि ! तुम प्रेमपूर्वक मेरी यह पूजा स्वीकार करो और मुझ पर प्रसन्न रहो। देवि ! सुरेश्वरि ! तुम गोपनीय से गोपनीय वस्तु की रक्षा करने वाली हो। मेरे निवेदन किये हुए इस जप को ग्रहण करो। तुम्हारी कृपा से मुझे सिद्धि प्राप्त हो । 
                            शिव शासनत: शिव शासनत:

Forgiveness prayer to purify the deeds performed daily

              Even though the soul residing in the human body is fully conscious, it has to perform many actions every day. Some of these actions give the opposite result unintentionally, then some actions are completed due to the presence of intelligence and reason in such a way that it becomes very necessary for them to apologize. It is also inherited in a series of karmas and with this, many actions have to be done even without wanting to maintain the body according to the time and situation in life. In the form of a human body, it is almost impossible to get rid of karma, especially in the life of a householder, because of the burden of many unwanted karmas, a man remains suppressed. This does not mean that he should leave the householder and run towards the forest. The eternal conscious eyes of Mother Bhavani in the form of mother are always admiring the devotee in the form of her child and just as the mother forgives all the mistakes of her child, in the same way the worshiper of mother power whether she comes to worship or not. He cannot pronounce the mantras properly, nor is he familiar with immersion and other activities, but even if he prays for his sins from the heart before his mother, he still gets the same result as To a ritualistic seeker. 
         This is a true incident. In the temple of Maa Durga, the priest used to offer nevaidya daily with complete rituals and the mother used to receive it in a subtle form, but one day due to some reason the priest himself did not go to the temple to offer nevaidya to the mother. Then he told his child that today you take this naivedya and offer it before the feet of the mother. The innocent child, without completing the ritualistic rituals, took the nevaidya and offered it at the feet of the mother, and with all his heart, while invoking the mother, offered grace to accept the prasad, within a few moments the entire nevaidya kept in the plate became empty. When the child went and told this to the priest, he was bewildered and realized that a ritual performed without full heart is a mere mechanical process, but a call made with a heart is better than all rituals.
                The company of the Goddess is available only to the seekers of devotion. Devotion and reverence are rare elements, on the development of these elements, the Goddess manifests itself and the difference between the devotee and the Ishta ends. Intelligent and rational human beings cannot taste the taste of spirituality for life. To attain Jagadamba in mother's form, the seeker has to assume the child's form, this is the basic element of attaining Adi Shakti Maa Bhavani. Child accessible seeker does not hide anything from mother and mother also forgives his biggest mistakes because of his childish nature. Only by worshiping the mother, that purity arises in the eyes, as a result of which the seeker gets the mother vision in every woman. Kali was so perfect to Swami Ramakrishna Paramhansa, a devotee of Maa Kali, that when he used to adorn the idol, the idol himself assumed the body and even after getting married, he started calling his wife mother from the age of 14. Were. In the state of Paramahansa, the seeker is able to see the specific part of the mother in each idol, whereas if Durga Saptashati is recited in the monolithic form for one year, then every woman, irrespective of her vagina, is in the mother's form. Real visions begin to appear. As soon as a woman of wicked to wicked attitude comes in front of the seeker, she becomes an idol of love and affection. The destruction of men who enjoy money and consider women to be only indulgent is certain. Various types of secret diseases, skin related problems, difficult old age and widowed life are the reason for the wrath of the goddess. Lack of Shivatva in men (impotence), impotence, suffering by women in life, slander, stigma, all this is the result of her desired and unwanted actions, by which the mother power has been disrespected and humiliated.

Those men or families in which female fetus is killed, get death due to premature death and stroke or mechanical accident. If all the sages, paramahansa and Veda Purush have followed celibacy, then only its only aim is to adopt the mother power in the form of mother in totality. Worship of Mother Shakti is not just mental or ritualistic. All your senses should be functional in the form of respect for the mother power. The behavior and conduct of the seeker should be childlike. The child form is a sign of selfless worship. The mother melts in front of the child's insistence and yen, ken, kindly fulfills his wish. Mother worship is not only a matter of men, women are also fully artistic through mother worship. Form, colour, opulence, son, successful household life, desired husband, always married life are possible only through mother worship. The development of the chest places is possible only by worshiping the mother with a red glow on the face, relief from female sufferings.
        In today's era, women are suffering from various types of diseases, abortion, loss of uterus, underdevelopment of breasts, attaining old age before age, etc. At the root of the problems is disrespect towards mother power. . Worshiping Mother Shakti is a cosmic process. You are worshiping the supreme power by which the sky Ganga, stars, constellations etc. have been created. This non-dual consciousness, which is always ready to give birth, the insignificant man should always be devoted to him by sacrificing his so-called ego.
             Knowledge, experience, love and all the creation process in life are part of Him. Keeping reverence for this supreme power, one must recite the forgiveness prayer at least after retiring at night.
                        
                      क्षमा प्रार्थना
 
            अपराधसहस्त्राणि क्रियन्तेऽहर्निशं मया । 
            दासोऽयमिति माँ मत्वा क्षमस्व परमेश्वरि ।।
 
            आवाहनं न जानामि न जानामि विसर्जनम् । 
            पूजां चैव न जानामि क्षम्यतां परमेश्वरि ।।
 
            मन्त्रहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं सुरेश्वरि । 
            यत्पूजितं मया देवि परिपूर्ण तदस्तु मे ॥
 
           अपराधशतं कृत्वा जगदम्बेति चोच्चरेत् । 
           यां गतिं समवाप्नोति न तां ब्रह्मादयः सुराः ॥
 
           सापराधोऽस्मि शरणं प्राप्तस्त्वां जगदम्बिके । इ इदानीमनुकम्प्योऽहं यथेच्छसि तथा कुरु ॥

           अज्ञानाद्विस्मृतेर्भ्रान्त्या यन्नयूनमधिकं कृतम्।  
            तत्सर्वं क्षम्यतां देवि प्रसीद परमेश्वरि ।।
 
           कामेश्वरी जगन्मातः सच्चिदानन्दविग्रहे । 
           गृहाणार्चामिमां प्रीत्या प्रसीद परमेश्वरि ॥
 
           गुह्यातिगुह्यगोप्त्री त्वं गृहाणास्मत्कृतं जपम् । 
           सिद्धिर्भवतु मे देवि त्वत्प्रसादात्सुरेश्वरि ।।

God! Thousands of crimes are being committed by me day and night. This is my slave - understand that you kindly forgive those offences. God! I do not know the invocation, I do not know how to immersion and I do not know the method of worship. Excuse me Goddess! Sureshwari! The mantraless, actionless and devotional worship that I have performed, may all that be completed by your grace. Even after committing hundreds of crimes, the one who takes refuge in you and calls as 'Jagdamb', he attains that speed which is not accessible even to the gods of Brahma. Jagdambike! I am a criminal, but I have come under your shelter. I deserve mercy at this time. Do as you wish. God! Forgive all the deficiencies or excesses that I have done because of ignorance, by mistake or due to delusion of the intellect, and be happy. Satchidananda Swarupa Parameshwari! Jaganmata Kameshwari! You accept this worship of mine with love and be pleased with me. Goddess! Sureshwari! You are the one who protects the secret from the secret. Please accept this chant as requested by me. May I be blessed by your grace.

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