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वैदिक मंत्र क्या है ?

            सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड कम्पायमान है। एक कम्पन से अनेक कम्पन और अनेक स्पंदन से पुन: एक समान कम्पन की निरंतर चलने वाली वृत्ताकार श्रृंखला का निर्माण होता है जब भी श्रृंखला का निर्माण होता है, जब भी श्रृंखला की बात की जाती है वृत्ताकार आवृत्ति ही गोचर होती है आकाश गंगा में तारों ग्रहों और नक्षत्रों का जन्म भी कम्पन के द्वारा ही होता है और यही कम्पन उनकी मृत्यु का कारण भी बनता है, यह बात और है कि हम उस कम्पन को श्रवण इन्द्रियों के द्वारा महसूस नहीं कर पाते हैं। हमारी श्रवण इन्द्रियाँ सीमितता लिए हुए है। प्रचण्ड कम्पन का श्रवण हमारे लिए प्रलयकारी सिद्ध होता है तो वहीं सूक्ष्म कम्पन हम अन्तरइन्द्रियों की अति संवेदनशीलता के कारण ही ग्रहण कर सकते हैं। मस्तिष्क में उपस्थित प्रत्येक कोशिका का आंतरिक भाग वृत्ताकार आकृति ही लिए हुए है लिंङ्गाकार आकृति तो प्रत्येक कोशिका का मूल भाग है।

              बीज हमेशा वृत्ताकार ही होते हैं ब्रह्माण्ड में उपस्थित दिव्य शक्ति बुद्धि और तर्क की भाषा से प्राप्त नहीं हो सकती है उन्हें प्राप्त करने के लिए या उनसे संवाद करने के लिए या फिर हमारी भावनाऐं उन तक बीज रूप में उन तक पहुँचाने के लिए हमें मंत्रों की आवृत्तियों का ही सहारा लेना पड़ेगा। यह आवृत्तियाँ उच्चारित होने से ही सूक्ष्म जगत में विराजमान देव और आदि शक्तियों तक बीज रूपी भावनाओं को सम्प्रेक्षित कर देती है।

              आदि शक्तियां इतनी बीज रूपी भावनाओं की तीव्रता एवं पवित्रतता के अनुसार ज्ञातत्व विशेष को फल प्रदान करती है। देवता तो देने के लिए सदैव तत्पर होते हैं परंतु यह तो साधक के विश्वास, तप और पवित्रता पर निर्भर है कि वह कितना ग्रहण कर सकता है, देवता मंत्रों के द्वारा ही आबद्ध होते हैं। वैदिक रीति में मंत्रोच्चार को ही मूल रूप से अत्यधिक महत्व दिया गया है एवं वैदिक मंत्रों में उच्चारण शुद्धता के साथ-साथ आठ प्रमुख बातें पाई जाती हैं जो कि अन्य मंत्रों में नहीं होती है । 

             ऋषि -- ऋषि शब्द का तात्पर्य उन दिव्य पुरुषों से है जिन्होंने अपने तप, योग और ध्यान के द्वारा विशेष दिव्य शक्ति से आत्म साक्षात्कार किया हो एवं उसके परम तेज को मंत्र के रूप में जन-मानस तक वितरित करके लोक कल्याण की परम्परा का निर्वाह किया तो उदाहरण के लिए विश्वामित्र ने गायत्री से आत्म साक्षात करके उनके दिव्य तेज को गायत्री मंत्र के द्वारा पृथ्वी लोक के कल्याण के लिए वितरित किया । 
               वैदिक मंत्र ईश्वर रचित हैं और ईश्वर रचित स्पंदन काल बंधनों में बंधा हुआ नहीं होता वह आदि स्वरूप का प्रतीक है। इनकी तीव्रता सदैव बनी रहती है । 
          छन्द : प्रत्येक वैदिक मंत्र में एक छन्द होता है । देवता : प्रत्येक वैदिक मंत्र आराध्य देवता के लक्ष्य पर आधारित रहता है । 

        बीज : प्रत्येक वैदिक मंत्र के अंदर बीज तत्व विद्यमान होता है जो कि मूल तत्व के रूप में सम्पूर्ण मंत्र को शक्ति प्रदान करता रहता है। उदाहरण के लिए 'ॐ' प्रणव एवं तेज का बीज है। 'ॐ' शिव और शासक बीज है। 'ह्रीं ' माया बीज है, 'फट' विसर्जन और चलन बीज है, 'स्वाहा' होम अथवा शांति बीज है, 'श्री' लक्ष्मी बीज है । 

         शक्ति: प्रत्येक मंत्र में उपस्थित बीज विभिन्न प्रकार की तीव्रता रूपी शक्ति मंत्र के समान स्वरूप को संचालित करने के लिए प्रदान करता रहता है । 

          कीलन : कीलन अर्थात बंधा हुआ होना। कीलन शब्द का तात्पर्य अन्य कोई शब्द से कर सकते हैं मंत्र का दुरुपयोग न हो मंत्र गलत प्रकृति के लोगों के हाथ में न पड़ जाए इसलिए सुरक्षात्मक उपाय के लिए मंत्र दृष्टाओं ने प्रत्येक मंत्र को कीलित कर रखा है। 

         अनेकों मंत्र मनुष्यों की दुष्ट बुद्धि के कारण मंत्र दृष्टाओं द्वारा हमेशा के लिए कीलित कर दिए गये हैं। कल्पना कीजिए अगर रावण जैसे दम्भी व्यक्ति को कोई अति तीव्र मंत्र सिद्ध हो जाए तो इससे जन कल्याण की अपेक्षा पृथ्वी पर हाहाकार ही उत्पन्न होगा।

           विनियोग : विनियोग का तात्पर्य साधक विशेष द्वारा मंत्र जप का उद्देश्य क्या है ? अर्थात वह किस संकल्प को ध्यान में रखकर दिव्य शक्ति की स्तुति कर रहा है।

         न्यास: न्यास के द्वारा मंत्र का पद छेद किया जाता है तथा मंत्र को शरीर के सम्पूर्ण अंगों में प्रतिष्ठित किया जाता है । 

             एक प्रकार से यह महा पूजा है और महापूजा के द्वारा साधक और मंत्र शक्ति के बीज दूरी समाप्त हो जाती है, न्यास के कारण ही मंत्र मुख से उच्चारित होने वाला स्पंदन न होकर एक समग्र शक्ति स्वरूप में साधक के रक्त की प्रत्येक बूंद में समाहित हो जाता है एवं साधक की समग्रता मंत्रमय हो जाती है ।

         प्रत्येक व्यक्ति को मंत्र जाप से समान सफलता नहीं मिलती है इसके कई कारण होते हैं। उदाहरण के लिए भोजन का सम्पूर्ण आनंद तभी प्राप्त होगा जब आप भूखे होंगे, भोजन उच्च कोटि का होगा, उसमें सभी रस विद्यमान होंगे । भोजन का निर्माण पवित्रता से किया गया होगा । आदरपूर्वक आपको परोसा गया होगा, उसकी गंध अनुकूल होगी, भोजन ताजा होगा एवं आपने भी उसे पूर्ण पवित्रता और शांत भाव के साथ ग्रहण किया होगा इसके साथ ही आपका पाचन संस्थान भी निरोगी होना चाहिए तब कहीं जाकर आप भोजन का सम्पूर्ण आनंद ग्रहण करने में सक्षम होंगे। इसके विपरीत अगर आपने नित्य क्रिया के अनुसार भोजन किया होगा एवं पेट ठीक न होने की स्थिति में भी आप उसे ग्रहण कर रहे होंगे। साथ ही भोजन का निर्माण भी आधा अधूरा हो तो फिर अमृतमय भोजन भी शरीर में जाकर विष का काम करेगा। 

           वैदिक मंत्र समग्रता का दृष्टिकोण रखते हैं। इसलिए भारत भूमि धर्म क्षेत्र के रूप में सदैव प्रतिष्ठित रही है। प्रत्येक कालखण्ड में इन्हीं वैदिक ऋषियों ने भारत की धर्म भूमि को मंत्र दृष्टाओं, स्वप्न दृष्टाओं एवं ऋषि-मुनियों की उत्पत्ति कराकर विश्व में धर्म की स्थापना की है।
               
                          शिव शासनत: शिव शासनत:

What is Vedic Mantra ?
              The whole universe is vibrating. From one vibration to many vibrations and from many vibrations again, a continuous circular chain of uniform vibrations is formed, whenever the chain is formed, whenever the series is talked about, only the circular frequency is transmitted to the stars in the galaxy. Planets and constellations are also born through vibrations and this vibration also causes their death, it is another matter that we are not able to feel that vibration through the senses of hearing. Our hearing senses are limited. Hearing of strong vibrations proves to be catastrophic for us, whereas subtle vibrations can be received by us only because of the extreme sensitivity of the inner senses. The inner part of every cell present in the brain has a circular shape, the lingual shape is the basic part of each cell.

               Seeds are always circular, the divine power present in the universe cannot be received through the language of reason and reason, to receive them or to communicate with them, or to convey our feelings to them in the form of seeds, we need mantras. Frequencies have to be used only. When these frequencies are uttered, they communicate the feelings of the seed to the deity and the primal powers sitting in the subtle world.

               According to the intensity and purity of such seed-like feelings, the Adi Shaktis give fruit to a particular being. The deities are always ready to give, but it is dependent on the faith, tenacity and purity of the seeker that how much he can receive, the deities are bound by mantras only. In the Vedic system, chanting has been given utmost importance basically and along with the correctness of pronunciation in Vedic mantras, eight main things are found which are not there in other mantras.

              Rishi - The word rishi refers to those divine men who have realized themselves with a special divine power through their austerity, yoga and meditation, and by distributing its supreme brilliance to the public in the form of a mantra, they carry out the tradition of public welfare. For example, Vishwamitra self-realized Gayatri and distributed his divine radiance through Gayatri Mantra for the welfare of the earth.

                The Vedic Mantras are God's creation and the vibrations of God's creation are not bound by Kaal, it is a symbol of the original form. Their intensity remains constant.

           Chhand: Every Vedic mantra has a chhand. Deity: Every Vedic mantra is based on the goal of the deity.

         Beej: There is a seed element present inside every Vedic mantra, which continues to give power to the entire mantra as a basic element. For example, 'Om' is the seed of Pranava and Tej. 'Om' is Shiva and the ruling seed. 'Hreem' is the Maya seed, 'Phat' is the immersion and movement seed, 'Swaha' is the home or peace seed, 'Shri' is the Lakshmi seed.

          Power: The seed present in each mantra provides different types of intensity of power to operate the same form of mantra.

           Keelan: Keelan means to be tied. The meaning of the word Keelan can be done with any other word, the mantra should not be misused, the mantra should not fall in the hands of people of the wrong nature, so for a protective measure, the seers of the mantra have kept each mantra keeled.

          Due to the evil intellect of human beings, many mantras have been tarnished forever by the seers of the mantras. Imagine if a person who is arrogant like Ravana is proved to have a very intense mantra, then it will only create an outcry on the earth rather than the welfare of the people.

            Viniyog : Meaning of viniyog What is the purpose of chanting the mantra by a particular seeker? That is, keeping in mind what resolution he is praising the divine power.

          Nyas: The mantra is pierced by the trust and the mantra is established in all the parts of the body.
              In a way, this is a great worship and through Mahapuja, the distance between the seeker and the mantra power is removed, it is because of trust that the mantra should not be uttered from the mouth, but in the form of a holistic power that is contained in every drop of blood of the seeker. And the totality of the seeker becomes mantra.
               There are many reasons why every person does not get equal success by chanting mantras. For example, complete enjoyment of food will be attained only when you are hungry, the food will be of high quality, all the juices will be present in it. The food must have been prepared with purity. You must have been served respectfully, its smell will be favourable, the food will be fresh and you must have taken it with complete purity and calmness, along with this your digestive system should also be healthy, then you will be able to enjoy the full enjoyment of food somewhere. Will be On the contrary, if you would have taken food according to daily routine and you would be consuming it even in case of stomach upset. At the same time, if the preparation of food is also half incomplete, then the nectar of food will also go into the body and act as poison.
            Vedic mantras take a holistic approach. That is why the land of India has always been revered as a religious field. In every period, these Vedic sages have established religion in the world by making the land of religion of India the origin of mantras, dream seers and sages.


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