उत्तर
साधना करते समय अपने मन, भाव और बुद्धि को सद्गुरु के चरणों में या इष्ट के चरणों में रखकर समर्पण भाव से भजन करना चाहिए। योगी कहते हैं कि साधक का सूक्ष्म मन जिस व्यक्ति का स्मरण करता है। उसका सूक्ष्म रूप वहां मौजूद होता है, लेकिन एक सक्षम गुरु होने के कारण साधक के मन को शुद्ध करके पुनः उसे गुरुचरण में लाकर रख देंते हैं।
मैं मन नहीं हूँ, मैं चित्त नहीं हूँ, मैं बुद्धि नहीं हूँ, मैं तो आत्मा हूँ। सोचना और संकल्प विकल्प करना मन और बुद्धि का काम है । इसकी सहायता से अन्य इन्द्रियाँ अपनी - अपनी क्रियाओं में लग जाती हैं, यदि साधक निरंतर यह सोचकर जप करता रहे कि, मेरा इससे कोई लेना - देना नहीं है, तो कुछ ही दिनों में मन, बुद्धि और इन्द्रियों का अशुद्ध व्यापार कम हो जाएगा, और एक अच्छी स्थिति प्राप्त हो जाएगी । कई साधक मन - बुद्धि के साथ - साथ इन्द्रियों से भी व्याकुल रहते हैं, और उचित मार्गदर्शक के अभाव में साधक साधना से विमुख हो जाता है।
सभी विरोधी तत्त्वों की उपस्थिति में और साथ ही आंदोलन में, यदि सच्चा साधक स्वयं को गुरुप्राप्त मंत्र, गुरुचरण में समर्पित करके चलता है, तो लक्ष्य प्राप्त किया जा सकता है। साधक साधना में या किसी भी समय जिस किसी को भी याद करता है। वह सूक्ष्म शरीर उसके पास होता है। आसन के ऊपर केवल उसका स्थूल शरीर दिखाई देता है। इसलिए सद्गुरु सूक्ष्म रूप से सदैव सदशिष्य के पीछे खड़े रहते हैं, और उसके चंचल मन को पकड़कर खींचते हैं और अपने चरणों में रख देते हैं। योग्य गुरु के अभाव में या गुरु के न होने पर साधक कितनी भी साधना कर ले फिर भी उसे लक्ष्य की प्राप्ति नहीं होती क्योंकि, गुरुकृपा के बिना मन और बुद्धि की एक्य की स्थिति प्राप्त नहीं की जा सकती है, और इस अवस्था को प्राप्त किये बिना लक्ष्य की प्राप्ति नहीं हो सकती। भटकते हुए मन को जहां साधना से विमुख कर दिया गया है, वहां गुरु के अतिरिक्त और कौन पहुंचा सकता है ? साधक बिना गुरु के कितनी ही साधना कर ले उसका फल नहीं मिलता, अगर मिलता है तो फल के अनेक रूप प्रकट होते हैं। क्योंकि साधना के दौरान जो भी विचार आए हैं उनका फल मिलता है। अर्थात् शांति, अशांति, सुख, दु:ख सभी की अनुभूति होती है। लेकिन एक योग्य गुरु होने के कारण वह सदशिष्य सकाम कर्म नहीं करता है,और उसका चंचल मन तृप्त नहीं होता।
कलियुग के बारे में महापुरुष कहते हैं कि, यदि मानसिक साधन, पूजा और सद्विचार किया जाए तो, उसका अनंतगुणा फल मिलता है, और यदि मन में कोई बुरा विचार आए और उन विचारों पर सीधे अमल न करे तो उसे कोई पाप या दोष नही लगता । तो अंत में मैंने इस प्रश्न का समाधान कर दिया कि, कोई भी मानसिक विचार विघ्न नहीं डाल सकता, समस्त संकल्प विकल्प जो बुद्धि से सोचते हो। उससे एक तरफ रखकर उपासना करो तो लक्ष्य सिद्धि हो जाएगी।
।। हरि ॐ तत्सत् जय सद् गुरुदेव।।
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