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होली पर्व ।।

होली वर्ण का त्योहार है
रंग फारसी (ईरानी) भाषा का शब्द है और विदेशी शब्द की श्रेणी में आता है। इस्लामी आक्रांता अपने साथ अरबी, फारसी, उर्दू आदि भाषाओं को अखंड भारत में लेकर आए, इन आक्रांताओं द्वारा अखंड भारत की संस्कृति, भाषा आदि को नष्ट-भष्ट किया गया। इस्लामी आक्रांताओं के आने से पहले भारत में फारसी शब्द रंग के स्थान पर संस्कृत शब्द वर्ण का उपयोग होता था।

नवात्रैष्टि यज्ञ / मन्वादि तिथि
प्राचीनकाल में होली पर्व को नवात्रैष्टि यज्ञ कहा जाता था। उस समय खेत के अधूरे पके अन्न को यज्ञ में अर्पित करके उसे प्रसाद के रूप में वितरित किया जाता था। अन्न को होला कहते है, इसी से इसका नाम होलिकाेत्सव पड़ा। इसी दिन वर्तमान मनवंतर के प्रथम पुरुष मनु वैैवस्वत ब्रह्मा से उत्पन्न हुए थे, इसलिए इसे मन्वादि तिथि कहते है। इसी दिन ब्रह्मा से सप्तऋषि, इंद्र, कई देवता आदि भी उत्पन्न हुए थे।

देवी लक्ष्मी जयंती
पुराणों के अनुसार देवताओं और असुरो द्वारा किए गए समुद्र मंथन के समय इसी दिन देवी लक्ष्मी समुद्र से अवतरित हुई थी। इसलिए होली पर्व पर देवी लक्ष्मी की पूजा की जाती हैं।

पंचांग के अनुसार होली पर्व फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता हैं। इस पर्व के पश्चात चैत्र मास आरंभ हो जाता हैं, भारतीय ज्योतिषी चैत्र मास से नया वर्ष आरंभ मानते है। होली पर्व पारंपरिक रूप से संध्या से अगले दिन संध्या तक मनाया जाता हैं। पहले दिन की संध्या को छोटी होली या होलिका दहन और दूसरे दिन इसे वर्ण होली, धुलंडी, धुरड्डी, धुरखेल या धूलिवंदन आदि नामो से जाना जाता हैं। होली वसंत का त्योहार, वर्ण का त्योहार, प्रेम का त्योहार और यह बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक हैं।

होलिका दहन / छोटी होली
किसी सार्वजनिक या रिक्त स्थान में लकड़ी व गाय गोबर के उपले से होली तत्पर (तैयार) की जाती हैं। उपलो के मध्य में छेद करके पतली रस्सी डालकर उपलो की माला बनाई जाती हैं। मुहूर्त के अनुसार होली में अग्नि लगाई जाती हैं। सभी उपस्थित जन इस अग्नि की परिक्रमा लगाते हुए ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि होलिका दहन के साथ ही उनकी आंतरिक बुराई भी नष्ट हो जाए। होलिका अग्नि में लोग गेहूँ, जौ की बालियां, चने के होले को भूनकर अपने अपने घर ले जाते हैं, ऐसा माना जाता हैं होलिका दहन की अग्नि में अन्न को भूनकर घर पर लाना शुभ होता है। यह परंपरा प्राचीन नवात्रैष्टि यज्ञ जैसी है।

वर्ण होली / धूलंडी
इस दिन लोग एक दूसरे पर वर्ण, गुलाल आदि लगाते हैं। प्रभात होते ही सब अपने मित्रों और संबंधियों से मिलने निकल पड़ते हैं। होली के गीत गाए बजाए जाते हैं, स्थान स्थान पर जनता टोलिया बनाकर नृत्य करते हैं, यात्रा निकालते हैं। बालक बालिकाएं वर्ण से भरी हुई पानी की पिचकारियों के साथ खेलते, मनोरंजन करते हैं। धूलंडी कार्यक्रम के पश्चात स्नान एवं विश्राम करके नए वस्त्र पहन कर एक दूसरे के घर मिलने जाते हैं, होली पर्व की बधाई देते हैं, ईश्वर का स्मरण करते हैं, मिष्ठान का सेवन करते हैं आदि। वर्तमान समय में प्राकृतिक वर्ण के साथ रासायनिक वर्ण का उपयोग बढ़ रहा है जिससे त्वचा रोग व स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ रहा है।

पारंपरिक होली फूलों, पत्तों से खेली जाती थीं। हल्दी, चंदन, कुमकुम, ढाक आदि का उपयोग किया जाता था। होली टूटे हुए संबंधों को जोड़ने, संघर्षों को समाप्त करने और भावनात्मक अशुद्धियों से स्वयं को दूर करने का एक अवसर माना जाता था। आज भी अनेक स्थानों पर पारंपरिक रूप से होली पर्व मनाया जाता हैं।

होली पर प्रतिबंध
अनेक इस्लामिक आक्रांताओं व शासकों द्वारा होली व अन्य गैर इस्लामी त्योहार को इस्लाम विरुद्ध घोषित करके त्योहार मनाने पर रोक और मनाने पर दंड दिया जाता था। औरंगजेब ने होली व अन्य गैर इस्लामी त्योहार मनाने पर मृत्यु दंड का विधान बनाया था।

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