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गुरु वाणी ।।

     अनंत काल से हमारे देश में गुरु शिष्य परंपरा रही है चाहे राम हो, चाहे कृष्ण, चाहे कबीर, चाहे मीरा, चाहे शंकराचार्य जी, चाहे गुरुनानक इत्यादि सब की सब महाविभूतियां श्री गुरु चरणों में बैठकर ही पल्लवित हुई है राह से भटके हुए मानव समूह पतन की तरफ जा रहे मानव समूह का पग पग पुनरुद्धार दिव्या गुरुओं के सानिध्य में ही हुआ है। गुरु परंपरा ने धूल को फूल बनाया है। हमारे देश पर जब जब संकट आया, आध्यात्मिक आक्रमण हुए गुरुओं ने अपने गुरुत्व के माध्यम से हमारी देव संस्कृति को जीवित रखा। अध्यात्म के क्षेत्र में गुरु प्रवेश द्वार है इसी द्वार के खुलने पर जातक अध्यात्म के क्षेत्र में प्रविष्टि पाता है। आध्यात्मिक ऊर्जा केवल गुरु के माध्यम से ही प्राप्त होती है। भगवती त्रिपुर सुंदरी परम सत्य है एवं गुरु इनका अनुसंधान कर अपने अंदर परम तत्व एवं श्री तत्व के रूप में इन्हें संचित करता है और कालांतर शक्तिपात के माध्यम से वह अपने शिष्यों को परम तत्व प्रदान करता है।

 सद्गुरु के परम आलौकिक वर्णन ना की जाने वाली रहस्यमई चमत्कारी शक्तियां होती है जिसे की ज्ञान विज्ञान के माध्यम से नहीं समझा जा सकता अपितु अनुभव किया जा सकता है सद्गुरुओ की कुंडलिनी जागृत होती है वह शरीरी ही होते हुए भी असरीरी होते हैं उनका गुरुमय शरीर समस्त ब्रह्मांड में निरंतर भ्रमण करता रहता है। वे अपने शिष्य को स्वप्न में भी उपदेश देते हैं दीक्षा देते हैं। शरीर त्यागने के पश्चात भी वे पूर्ण चेतन एवं क्रियाशील होते हैं और समय-समय पर अपने शिष्यों का ध्यानस्थ अवस्था में मार्ग निर्देशन करते रहते हैं उन्हें संकट से भी उबारते रहते हैं। शिष्य के विशेषाधिकार होते हैं शिष्य अपने स्व गुरु से प्रश्न करता है शंका का समाधान कर सकता है समस्या के निवारण हेतु प्रार्थना कर सकता है। यह उसका जन्मसिद्ध अधिकार है, दीक्षा प्राप्त करते ही शिष्य को गुरु के ज्ञान का सर्वभोमिक अधिकार स्वत: ही प्राप्त हो जाता है और इस प्रकार वह एक तरह से गुरुचेतना का अधिकारी हो जाता है। यही अधिकार जब शिष्य समझ पाता है तब जाकर वह वास्तविक अध्यात्म का जिज्ञासु कहलाता है। 

गुरु शिष्य को स्वावलंबी बनाता है खुद कमाओ खूद खाओ, दूसरों को भी खिलाओ इसलिए गुरु शिष्य को मंत्र विशेष, देवता विशेष की दीक्षा प्रदान करता है उससे जप तप करवाता है, उसे पूजन पद्धति सिखा अनुष्ठान करवाता है ताकि शिष्य को स्वावलंबी बना सके स्वयं विकसित हो सके एवं वक्त आने पर गुरु शिष्य की योग्यता देख उसे अधिकार भी देता है, उसे दिव्य एवं अलौकिक सिद्धियों और शक्तियों का हस्तांतरण भी करता है, उसकी कुंडलिनी भी जागृत करता है सतगुरु स्वयं अपने योग शिष्यों को ढूंढता है एवं जब उसे समझ में आ जाता है कि उसका कार्यकाल समाप्त हुआ तब वह अपने संध्याकाल में केवल अपने योग्य उत्तराधिकारी को तरासता है कालांतर शिष्य विशेष के दायित्व का निर्वाह करता है। 

सभी गुरु है सभी ने अपने जीवन में एक ना एक बार स्वयं गुरु बनकर गुरु के मर्म को जाना है। भगवान शिव, भगवती उमा, गणेश जी, कार्तिकेय जी, नारद जी, वेदव्यास जी, सनक, सुनंदन, इंद्र, कुबेर, सूर्य, चंद्र,शनि इत्यादि इत्यादि सभी किसी ना किसी के गुरु हैं। हनुमान जी के गुरु सूर्य भगवान बने। यमराज जैसे क्रूर देवता भी नचिकेता के गुरु बन गए और नचिकेता के सामने यमराज को पिघलना पड़ा उनका हृदय भी अपने शिष्य के लिए द्रवित हो गया। विष्णु जी भी गुरु है, ब्रह्मा जी भी गुरु है अर्थात इस सृष्टि के सभी प्रमुख देवी देवता अपने संघ, अपने गणों, अपने शिष्यों के साथ गमन करते हैं। सभी अपने शिष्यों के कल्याण के लिए अथक प्रयत्न करते हैं शुक्राचार्य जी ने काबा में तपस्या की और इस प्रकार इस्लाम का उदय काबा से ही हुआ, काबा गुरु शुक्राचार्य की तपोस्थली है। सभी ऊपर वर्णित गुरु तत्व के मुख पर शिष्यों को देख प्रसन्नता के भाव ही उत्पन्न होते हैं। गुरु शिष्य संबंध अंतर्मन के संबंध हैं, अंदर का आयाम है। गुरु और शिष्य के हृदय एक साथ धड़कते हैं, वह हृदय की धड़कनों से आपस में जुड़े हुए हैं। गुरु शिष्य को प्रेम करता है और गुरु शिष्य से ही हारता है। अपना सर्वस्व शिष्य के कल्याण हेतु समर्पित कर देता है।


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