Follow us for Latest Update

ॐ ऐं ह्रीं श्रीं गुरुतत्व व्यापिनी श्रीत्रिपुर सौंदर्ये नमः ।।

             महाविद्याश्रम के मध्य में दिव्य कैलाश मंडल स्थित है एवं इस दिव्य कैलाश मंडल के ऊध्व भाग में महा कैलाश पर्वत विराट ऊंचाई लिए हुए स्थापित है। इसी कैलाश पर्वत की सबसे ऊंची चोटी पर शिव की पवित्र व्यास गुफा है जिसमें शिव एवं आद्य के अलावा सभी का प्रवेश वर्जित है। इस दिव्य आदि व्यास गुफा में शिव कुंडलिनी अनुसंधान करते हैं संपूर्ण तत्वों से स्वयं को काटकर भगवती त्रिपुरसुंदरी रूपी कुंडलिनी शक्ति के साथ एकांत में विहार करते हैं। यह सृष्टि 36 तत्वों से बनी हुई है अर्थात पृथ्वी से शिव पर्यन्त तक 36 तत्व हैं। इसके पश्चात शिव एवं परम तत्व भगवती त्रिपुरसुंदरी का प्रादुर्भाव होता है 36 तत्व कि इस सृष्टि में भगवती विभिन्न रूपों में विहार करती है। परंतु अन्त में उनका मिलन शिव तत्व से ही होता है। भगवती त्रिपुर सुंदरी के 36 तत्वों में विहार से ही प्रपंच रुपी सृष्टि का निर्माण होता है। शिव का सद्गुरु के रूप में प्रादुर्भाव तभी होता है जब वह आदि व्यास गुफा में स्वयं के मूलाधार से कुंडलिनी शक्ति को जागृत कर अपने सहस्त्रार में स्थापित करते हैं। यह आंतरिक क्रिया है, आंतरिक आनंद का विषय है एवं यही क्रिया शिव को परम योगी योगेश्वर के रूप में प्रतिष्ठित करती है।

         उन्हें ध्यान अवस्था प्रदान करती है उन्हें समय काल गति एवं संसार में उपस्थित नाना प्रकार के गुरुत्व बल से मुक्त कर परम गुरु के रूप में प्रतिष्ठित करती है। जब कुंडलिनी शक्ति रूपा भगवती त्रिपुर सुंदरी एवं शिव का सहस्त्रार मंडल में एक्य हो जाता है तभी महायोगी समस्त ब्रह्मांड में सूक्ष्माती रूप में भ्रमण करने में सक्षम होते हैं। यह शिवा शिवा अनुष्ठान की क्रिया है एवं यही से अध्यात्म के वास्तविक द्वार खुलते हैं भगवती त्रिपुर सुंदरी के लोक का पर्दा इसी क्रिया से हटता है। और शिवम महाकामेश्वर बन भगवती त्रिपुर सुंदरी के मणिद्वीप में प्रविष्ट हो जाते हैं। कुंडली का अनुसंधान तभी संभव है जब 36 तत्वों से निर्मित इस सृष्टि के सभी 36 तत्वों पर जातक संपूर्ण विजय प्राप्त कर लेता है। भगवती त्रिपुर सुंदरी परम निर्णय है उनकी निर्णयत्मकशक्ति ही वास्तव में विशुद्ध सत्य है। एवं अन्य सब निर्णय मिथ्या,असत्य एवं कृत्रिम है। और वे काल के साथ मृत्यु को प्राप्त होते हैं।सर्वप्रथम हम यह समझ ले कि भगवती त्रिपुर सुंदरी ही वास्तव में गुरु स्वरूपिणी है एवं इसके अनुसंधान के कारण इसके सानिध्य के कारण शिव जगत में जगत गुरु के नाम से शुप्रतिष्ठित होते हैं जो भी गुरु शब्द से संबोधित किया जाता है। उसे शिव के अनुरूप ही कुंडलिनी शक्ति का अनुसंधान करना होता है स्वयं के शरीर से अलग हो अपने प्रकाश में कुंडलिनी युक्त शरीर को विकसित करना होता है तभी वह सद्गुरु कहलाता है। 
         
          तभी वह ब्रह्मांडीय व्यक्तित्व कहलाता है तभी उसे शब्द सिद्धि होती है। अर्थात उसके मुख से निकला प्रत्येक शब्द अनंत काल तक चैतन्य आवृत्ति के रूप में क्रियाशील होता है उसकी प्रत्येक क्रिया अथाह जनमानस को कई युगों तक प्रेरित करने की शक्ति से युक्त होती है। उसका प्रत्येक शब्द ब्रह्म वाक्य होता है और अकाट्य होता है। वह अकाश मंडल पर ब्रह्म सत्य रूपी सूर्य के समान प्रकाशित होता रहता है।ऐसे ही सद्गुरु का स्थूल शरीर ध्यान के योग्य होता है और उसे ही जातक अपने सहस्त्रार में स्थापित करता है प्रतिक्षण ऐसे ही कुंडली जागृत सद्गुरु शिष्य के सहस्त्रार में स्थापित हो सास्वत आदेश प्रदान करते रहते हैं शाश्वत निर्णय प्रदान करते रहते हैं शाश्वत भाव में शिष्य के स्थूल शरीर को संचालित करते हुए क्रियाशील बनाए रखते हैं कुंडलिनी शक्ति तो कई प्रकार की है सूर्य कुंडलिनी है,चंद्र कुंडलिनी भी है ब्रह्म कुंडलिनी भी है इत्यादि इत्यादि देव कुंडलिनी भी है कृष्ण कुंडलिनी भी है। जब जातक की कुंडली जागृत हो जाती है तब उसके जन्मा अनुसार निर्मित उसकी स्थूल जन्म कुंडली निष्क्रिय हो जाती है कुंडलिनी शक्ति से युक्त जातक परम जागृत अवस्था में पहुंच शनी कुंडलिनी सूर्य कुंडलिनी बुध कुंडलिनी चंद्र कुंडलिनी इत्यादि इत्यादि से साक्षात्कार करता है। उसे संप्रेषण करता है वह स्थूल से परे हो जाता है गुरुत्वाकर्षण पर विजय प्राप्त कर लेता है। अतः ब्रह्मांड में ब्रह्मांडीय पुरुष बन सब जगह स्वच्छंद भाव से विचारता रहता है। कुंडलिनी जागृत पुरुष ही दिव्य पुरुष है वही शुद्ध प्रकाशय शरीर का अधिकारी है। 
 क्रमशः

          अतः ब्रह्मांड के समस्त रोग शोक ताप दाब इत्यादि उस पर निष्क्रिय हो जाते हैं। क्या कुंडलिनी मंत्र यंत्र तंत्र शक्ति भोग इत्यादि के माध्यम से जागृत हो सकती है? क्या कुंडलिनी शक्ति बनाने का कोई कारखाना है? कोई विधि है? कोई दुकान है? जहां यह बिकती हो कोई वैज्ञानिक प्रक्रिया है? जहां से यह प्राप्त हो सकती हो नहीं कदापि नहीं योग ध्यान मुद्रा शक्ति ज्ञान विज्ञान मंत्र तंत्र यंत्रसाधना इत्यादि शुद्धत्व प्रदान करेगी, सिखाएगी यह सब अति आवश्यक है परंतु कुंडलिनी शक्ति विशुद्ध रूप से भगवती त्रिपुर सुंदरी का विषय है। एवं उनकी कृपा से ही कुंडलिनी शक्ति जागृत होती है वही एकमात्र अधिकारी ने है। जातक को कुंडलिनी शक्ति प्रदान करने की अन्य ऊपर वर्णित तरीकों से कुछ एक चक्रों तक ज्यादा से ज्यादा आज्ञा चक्र तक आप कुंडलिनी शक्ति को उठा सकते हैं। परंतु सहस्त्रार में कुंडलिनी शक्ति केवल भगवती त्रिपुर सुंदरी की कृपा से ही स्थापित होती है।
       
            बड़े भाग्य होते हैं तब जातक अध्यात्मिक की तरफ आकर्षित होता है उसके महाभागे होते हैं जब उसे शिव स्वरूप सद्गुरु की प्राप्ति होती है और परम भाग्य होते हैं तब जातक को सद्गुरु भगवती त्रिपुर सुंदरी का बोध कराते हैं।अगर गुरु कृपा करके शिष्य को भगवती त्रिपुर सुंदरी का बोध कराती देते हैं तब भी जातक उन्हें एक समान्य देवी देवता समझ उपासना करता है तब यह समझना कि अभी बहुत सारे कर्म बाकी है बहुत शिवा सुनाएं अतिरिक्त हैं अभी कई जन्मों तक संसार चक्र में फंसे रहना है इसलिए जातक भगवती त्रिपुर सुंदरी के विराट स्वरूप को भी नहीं पहचान पा रहा है अभी उसकी अंग प्रत्यंग दोनों है एवं युवा शक्ति को अपने अंगों के द्वारा छह कर रहा है उसने अभी ऊपर उठने की क्रिया नहीं सीखी है वह तो बस फैलने फैलाने के एवं करने में लगा हुआ है। आप रोज सुबह अखबार पढ़िए क्या है उसमें?केवल 36 अक्षरों वमाते गांव को विभिन्न तरीकों से मिलाकर कुछ शब्द चुनिए गए हैं कुछ कहानी रची गई है कुछ दृश्य उपलब्ध करा दिए गए हैं यह सब उसको जगत में होता है 36 तत्व रूपी 36 अक्षर मातृकाओ सहित उपलब्ध है पर उनका संयोजन सिर्फ गंदगी आलोचना वाद विवाद कलेस विषाद दुख पीड़ा गुप्ता लालच मानअपमान इत्यादि की ही रचना कर रहा है पर दिव्य तक कुछ भी नहीं बचा जा रहा है परंतु जब जातक कुंडली जागृत सद्गुरु की शरण में आ जाता है तब सद्गुरु इन्हीं 36 अक्षरों का मातृकाओं के संयोजन करा दिव्यातम वाणी, दिव्यतम तत्व की रचना करते हैं और जातक पुनः हर तल पर स्वस्थ हो जाता है कृष्ण ने अर्जुन को गीतोपदेश दिया गीता का उपदेश समस्त जीवो को कृष्ण के श्री मुख से प्राप्त हुआ। गीतोपदेश 36 अक्षरों एवं मात्रीकाओ के संयोजन से ही रचा गया है परंतु कई साल बीत गए पर आज भी सदगुरु की वाणी जीव जगत को स्वस्थ कर रही है। कुंडलिनी जागृत केवल कुंडलिनी जागृत सद्गुरु के सानिध्य में ही होता है एवं यही कुंडलिनी के जागृत होने की पहचान है।वहीं जातक भगवती त्रिपुर सुंदरी के लोक में प्रविष्ट हो जा सकता है।जिसकी कुंडलिनी जागृत हो वही तीनों त्रिपुरा में स्वच्छंद भाव से घूम सकता है कुंडलिनी जागरण की प्रक्रियामस्तिष्क की गुरुत्वाकर्षण रूपी भाव से मुक्त कर देती है।मस्तिष्क में तो नाना प्रकार के गुरुत्व तो भाव है। गुरुत्व तो किसमें नहीं है? दिव्य तीर्थ स्थानों में परम तत्व स्थापित है तभी तो असंख्य लोग वहां खींचे चले जाते हैं अभिनेताओं में भी गुरुत्व होता है और लोग उसके दीवाने हो जाते हैं शब्दों में भी गुरुत्व होता है लोग पढ़ते ही रह जाते हैं देश समय पिंड संबंध रूप ज्ञान विज्ञान मान सम्मान इत्यादि सभी में गुरुत्व है इसलिए लोग इनकी तरफ आकर्षित होते हैं खींचे चले आते हैं उनके इर्द-गिर्द घूमते हैं। गुरुत्व की तलाश में तो आदि काल से ही जीव को है। जिसने जितना गुरुत्व बल का अनुसंधान कर लिया उसने अपने अंदर उतना चुंबकत्व विकसित कर लिया। यह जरूरी नहीं है कि सभी की कुंडलिनी शक्ति संपूर्ण रूप से जागृत हो कवियों की लेखकों की कुंडलिनी शक्ति हृदय पक्ष तक जागृत होती है। रूपसी स्त्रियों मैं कुंडलिनी शक्ति नाभि पर आकर रुक जाती है अर्थात जल व तत्व में सक्रिय हो जाती है और इस प्रकार अप्सरा का उदय होता है। अप का तात्पर्य है जल अर्थात अप्सरा का अर्थ हुआ जल कुंडलिनी। वित्त का गुरुत्व विकसित करना है तो केवल नाभि पर ध्यान केंद्रित करो गजब का आकर्षण विकसित हो जाएगा। मूलाधार स्वाधिष्ठान एवं मणिपुर इन तीनों चक्र में रूपसी स्त्रियों को पारंगता हासिल होती है और इसी के बल पर दुनिया उनके पीछे बोलती फिरती है।जो गायन में निपुण होते हैं उनका विशुद्धि चक्र विकसित होता है एवं उनकी कुंडलिनी शक्ति केवल विशुद्धि चक्र अर्थात कंठ तक ही विहार करती है।
क्रमशः

         कई लोग आज्ञा चक्र तक पहुंच जाते हैं ऐसे लोग बड़े उच्च कोटि के प्रशासक उच्च कोटि के राजनेता जनता के नायक मायावी अपनी बात मनवा लेने वाले अच्छे वक्ता इत्यादि बन जाते हैं कभी-कभी सहस्त्रार में पहुंचने से पहले कुंडली शक्ति बुद्धि पक्ष को पक्ष में जाकर विहार करने लगती है और जातक परम बुद्धिमान बन जाता है जीनियस हो जाता है ज्योतिष में निपुण हो जाता है उसका तर्क पक्षा काटते हो जाता है वह ग्रंथ निर्माणता भी बन सकता है। जिनकी जो प्रवृत्ति होती है वह कुंडलिनी शक्ति के जागृत होने के कारण होती है। पहले कहा 36 तत्वों से निर्मित लोक में भगवती त्रिपुर सुंदरी स्वच्छंद विचरण करती है एवं जहां जहां वह विचरण करती है बस वही विकास हो जाता है। वही क्रिया होने लगती है वहीं से विभिन्न ऊर्जाओं का उत्सर्जन होने लगता है। सद्गुरु का ध्यान कहां करना चाहिए? सद्गुरु का ध्यान सहस्त्रार में करना चाहिए सहस्त्र दल युक्त मंडप के बीच ही सद्गुरु को स्थापित करना चाहिए। प्रातः काल उठकर गुरु मंत्र का जप सहस्त्रार में ही करना चाहिए क्योंकि सहस्त्रार में जब गुरु स्थापित हो जाते हैं तो जीवन अद्भुत हो जाता है समस्या विहीन हो जाता है जीवन तीनों तापों से मुक्त हो जाता है। आदेश कहां से आते हैं? यह सब महत्वपूर्ण सिद्धांत है। निर्णय लेने की क्षमता क्या मनुष्य में है?क्या कोई मनुष्य हृदय पर हाथ रख कर कह सकता है कि उसने जो निर्णय लिए आज से 20 वर्ष 25 वर्ष 30 वर्ष पूर्व वह सहित हैं वह उनसे संतुष्ट है कोई नहीं कह सकता।एक राष्ट्र भी यह नहीं कह सकता एक समूह भी यह नहीं कह सकता संपूर्ण विश्व भी यह नहीं कह सकता कि पूर्व में लिए गए निर्णय सही थे निर्णय कई तरीकों से लिए जाते हैं मन से निर्णय लेना हृदय से निर्णय लेना आत्मा की आवाज पर निर्णय लेना भावनाओं में बहकर निर्णय लेना सोच समझकर निर्णय लेना जांच परख कर निर्णय लेना ज्ञान के माध्यम से निर्णय लेना विज्ञान के माध्यम से निर्णय लेना सामूहिक रूप से निर्णय लेना सबसे सलाह मशवरा करके निर्णय लेना। 

            परिचर्चा संवाद गोष्टी शोध विचार एकांत चिंतन अध्ययन इत्यादि अनंत काल से जीव सिर्फ इसलिए करता आ रहा है कि उसके निर्णय सही हो।जिव सजग है अपने निर्णयों के प्रति यू चैतन्य है अपने निर्णयों के प्रति पर कालांतर सभी निर्णय गलत साबित हुए। आज जर्मनी जापान अमेरिका रूस हाथ धोकर गिड़गिड़ा कर माफी मांगते हैं अपने निर्णय के प्रति जो उन्होंने युद्ध में लिए थे। पृथ्वी को विषाद करने के लिए मानवता के विनाश के लिए। क्यों वे मुआवजा देते हैं? क्यों बे क्षमा मांगते हैं? क्यों वेब पर्यावरण की बात करते हैं क्योंकि सारे निर्णय गलत साबित हुई। महाभारत युद्ध का सामूहिक निर्णय तो भीष्म करण दुर्योधन कृपाचार्य द्रोणाचार्य धृतराष्ट्र इत्यादि ने सोच विचार कर लिया था। सब गुरु थे परंतु सब के निर्णय गलत साबित हुए। आज जहां देखो वहां सामूहिक निर्णय रूपी तथाकथित संविधान ओ सिद्धांतों विचारधाराओं को परिवर्तित किया जा रहा है क्यों?क्योंकि किसी के भी सहस्त्रार में मां भगवती त्रिपुर सुंदरी सद्गुरु के रूप में स्थापित नहीं रही है इसलिए इन सिद्धांतों और विचारधाराओं में परिवर्तन लिए जा रहे हैं। कल तक जो साम्यवादी थे वे स्वयं अपने हाथों से अपने सिद्धांतों की शक्तियां हटा रहे हैं। चीन व्यापार की बात कर रहा है कहां गया उसका माओवाद? रूस तो पहले ही लेलिन को दफना चुका है। खोखला समाजवाद सभी देशों ने कचरे के डिब्बे में फेंक दिया है बेसिर पैर की मानवादीता की कीमत पृथ्वी ने बहुत बड़ी चुकाई है अध्यात्म वाद तो चिथड़े चिथड़े हैं। धर्म के नाम पर शासन व्यवस्था के परखच्चे भगवती त्रिपुर सुंदरी ने स्वयं करके रख दी है। क्या बुद्ध का निर्णय सही था? बुद्ध धर्म की स्थापना से क्या मिला मानव जाति को? कितना आध्यात्मिक विकसित कर पाएं बुध के नाम पर स्थापित पैगंबर के नाम पर स्थापित ईशा के नाम पर स्थापित धर्म। इन धर्मों में कितनो कि कुंडलिनी जागृत हुई? कितने ऊपर उठ पाए? यह सोचने का विषय है। कृत्रिमता कृत्रिमता है, शाश्वता शाश्वता है।

0 comments:

Post a Comment