राम उवाच-
एकं मन्त्रं समाचक्ष्व देव लक्ष्मी विवर्धनम् ।
प्रतिवेदं जगन्नाथ यादोगणनृपात्मज ॥ १
अर्थ - परशुराम जी कहते हैं हे वरुण पुत्र कृपया करके वह सारे मंत्र जो प्रत्येक वेद में वर्णित है जिनसे समृद्धि प्राप्त की जाती है उनका मुझे वर्णन करें।
पुष्कर उवाच-
श्रीसूक्तं प्रतिवेदञ्च ज्ञेयं लक्ष्मीविवर्धनम् ।
अस्मिँल्लोके परे वापि यथाकामं द्विजस्य तु ॥ २॥
अर्थ - पुष्कर जी कहते हैं श्री सूक्त जो कि प्रत्येक वेद में अवस्थित है वह सभी प्रकार की सुख समृद्धि एवं वैभव आदि देने में समर्थ है उन सभी के लिए, चाहे वे किसी भी जगत में रहते हो।
राम उवाच-
प्रतिवेदं समाचक्ष्व श्रीसूक्तं पुष्टिवर्धनम् ।
श्रीसूक्तस्य तथा कर्म सर्वधर्मभृतां वर ॥ ३॥
अर्थ - परशुराम जी कहते हैं हे भगवान आप समस्त धर्मों के गूढ़ मर्म को जानने वाले हैं कृपया करके मुझे श्रीसूक्त के विषय में,जो कि वेदों में दृष्ट है और उनसे संबंधित विधियों का भी निरूपण करें जिनसे उन श्लोकों को पहचाना जा सके ।
पुष्कर उवाच-
हिरण्यवर्णां हरिणीं ॠचः पञ्चदश द्विज ।
श्रीसूक्तं कथितं पुण्यं ॠग्वेदे पुष्टिवर्धनम् ॥ ४॥
अर्थ - पुष्कर जी कहते हैं की ऋग्वेद में वर्णित 15 श्लोकों से युक्त हिरण्यवर्णां इत्यादि ऋचाओं को देखना चाहिए। यह अत्यंत पवित्र है एवं समस्त प्रकार की सुख समृद्धि ऐश्वर्य देने में समर्थ है।
रथे अक्षेषु वाजेति चतस्रस्तु तथा ॠचः ।
श्रीसूक्तं तु यजुर्वेदे कथितं पुष्टिवर्धनम् ॥ ५॥
अर्थ - इसी प्रकार यजुर्वेद में वर्णित चार श्लोक जोकि " रथे अक्षेषु वाजे " इत्यादि सेआरंभ होते हैं और इनसे संयोजित श्री सूक्त अत्यंत लाभदायक हैं।
श्रायन्तीयं तथा साम सामवेदे प्रकीर्तितम् ।
श्रियं दातुर्मयिदेहि प्रोक्तमाथर्वणे तथा ॥ ६॥
अर्थ - इसी प्रकार सामवेद में वर्णित सूक्त जोकि " श्रायन्तीयम् " शब्द से आरंभ होते हैं तथा अथर्ववेद के सूक्त जो " श्रियम दातुर्मयिदेहि " से आरंभ होते हैं इनके साथ भी श्रीसूक्त का संयोजन करना वास्तव में अत्यंत ही श्रेष्ठ लाभकारी है।**
श्रीसूक्तं यो जपेद्भक्त्या तस्यालक्ष्मीर्विनश्यति । जुहुयाद्यश्च धर्मज्ञ हविष्येण विशेषतः ॥ ७॥
अर्थ - जो जातक पूर्ण श्रद्धा भक्ति भाव से श्री सूक्त का यजन करते हैं उनकी समस्त दरिद्रता का नाश हो जाता है एवं जो विशेष हविष्य आदि से श्री सूक्त का हवन करते हैं वे भी इसी प्रकार के सुंदर उत्तमोत्तम परिणामों की प्राप्ति करते हैं।
श्रीसूक्तेन तु पद्मानां घृताक्तानां भृगूत्तम ।
अयुतं होमयेद्यस्तु वह्नौ भक्तियुतो नरः ॥ ८॥
अर्थ - जो व्यक्ति भक्ति युक्त होकर श्री सूक्त के द्वारा घी में डूबे हुए कमलों का दसहजार हवन करता है।
पद्महस्ता च सा देवी तं नरं तूपतिष्टति ।
दशायुतं तु पद्मानां जुहुयाद्यस्तथा जले ॥ ९॥
अर्थ - वह पद्मधारिणी महादेवी लक्ष्मी से अभीष्ट वर की प्राप्ति करता है । इसी प्रकार यदि कोई व्यक्ति एक लाख कमलों से जल में हवन करता है।
नापैति तत्कुलाल्लक्ष्मीः विष्णोर्वक्षगता यथा । घृताक्तानान्तु बिल्वानां हुत्वा रामायुतं तथा ॥ १०॥
अर्थ - उसके घर में महालक्ष्मी उसी प्रकार निवास करती है जिस प्रकार की वे श्री हरि विष्णु के हृदय कमल में निवास करती हैं।
और भी आगे सुने यदि कोई भक्त दस हजार बिल्व पत्रों को घी में डूबा कर उनका हवन करता है।
बहुवित्तमवाप्नोति स यावन्मनसेच्छति ।
बिल्वानां लक्षहोमेन कुले लक्ष्मीमुपाश्नुते ॥ ११॥
अर्थ - वह अपनी इच्छा अनुसार महा धन की प्राप्ति करता है। यदि कोई घी में डूबे हुए बिल्व पत्रों से एक लाख हवन करता है तो माता महालक्ष्मी उसके घर में स्थाई रूप से निवास करती हैं।
पद्मानामथ बिल्वानां कोटिहोमं समाचरेत् ।
श्रद्दधानः समाप्नोति देवेन्द्रत्वमपि ध्रुवम् ॥ १२॥
अर्थ - यदि कोई एक करोड़ कमलों से अथवा बेल पत्रों से हवन करता है तो वह निश्चित रूप से देवेंद्र के पद को प्राप्त कर लेता है।
संपूज्य देवीं वरदां यथावत् पद्मैस्सितैर्वा कुसुमैस्तथान्यैः ।
क्षीरेण धूपैः परमान्नभक्ष्यैः लक्ष्मीमवाप्नोति विधानतश्च ॥ १३॥
अर्थ - इसी प्रकार जो व्यक्ति उन महादेवी महालक्ष्मी की पूजा आराधना कमलों, श्वेत पुष्पों, दूध, सुगंधित धूप एवं उत्तमोत्तम नैवेद्य आदि से करता है। वह महा महा धन की निश्चित रूप से प्राप्ति करता है।
इति श्री विष्णुधर्मोत्तरे द्वितीयखण्डे मार्कण्डेयवज्रसंवादे रामं प्रति पुष्करोपाख्याने श्रीसूक्तमहात्म्यकथनं नाम अष्टाविंशत्युत्तर शततमोऽध्यायः ॥
@Sanatan
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