भद्रा भगवान सूर्यदेव की पुत्री और शनिदेव की बहन है।शनि की तरह ही इनका स्वभाव भी क्रूर बताया
गया है।
इस उग्र स्वभाव को नियंत्रित करनेके निए ही भगवान ब्रह्मा ने उसे कालगणना पंचाग के एक प्रमुख अंग जिसे करण कहते है उसमें स्थान दिया।
जहां उसका नाम विष्टि करण रखा गया।
कृष्णपक्ष की तृतिया, दशमी और शुक्लपक्ष की चतुर्थी, एकादशी के उत्तरार्ध में
एवं कृष्णपक्ष की सप्तमी, चतुर्दशी शुक्ल पक्ष की अष्टमी और पूर्णिमा के पूर्वार्ध में भद्रा रहती है।
• सोमवार व शुक्रवार की भद्रा कल्याणी कही जाती है।
• शनिवार की भद्रा अशुभ मानी जाती है।
• गुरुवार की भद्रा पुण्यवर्ती कही जाती है।
• रविवार, बुधवार व मंगलवार की भद्रा भद्रिका कही जाती है।
इसके अलावा भद्रा का वास अलग अलग लोको मे, राशि के फलस्वरूप बदलता है।
शनिवार को विष्टि करण में जन्मे जातको के लिए या फिर विष्टि करण में जन्मे जातको के लिए शनिदेव का कुंडली में शुभ ओर अशुभ होने से कई गुना प्रभाव बढ़कर प्राप्त होते है।।
शनिवार की भद्रा में गुलिक यदि कुंडली मे अशुभ स्थान में बैठ जाये तो यह योग बहुत अशुभ परिणाम देता है।
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