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महाकुम्भ क्या है?

 कुम्भ परिपूरित करने को कहते हैं।इसका अर्थ हुआ जो अपने प्रभाव से पृथ्वी को
तेज और दिव्यता से भर दे वह कुम्भ है।

-- भारतवर्ष में चार स्थानों पर महाकुम्भ लगते हैं।ये चार स्थान हैं --१. हरिद्वार (माया) २. प्रयाग ३- उज्जयिनी
और ४. नासिक ।

-- महाकुम्भ सूर्य,चंद्र और बृहस्पति के योग से लगते हैं।अतःप्रत्येक स्थान में महाकुम्भ बारह वर्षों के अन्तर पर पड़ता है।कभी कभी यह बारह वर्ष की जगह ग्यारह वर्ष या तेरह वर्ष पर भी पड़ता है पर यह स्थिति बृहस्पति की गति के कारण आती है।
हम यहाँ एक सारिणी दे रहे हैं जिसमें महाकुम्भ की ग्रह स्थिति को देखा जा सकता है।
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स्थान सूर्य चन्द्र बृहस्पति नदी
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१.हरिद्वार--- मेष मेष कुम्भ गंगा

२. प्रयाग--- मकर मकर वृष गंगा(त्रिवेणी)

३. उज्जयिनी--मेष मेष सिंह शिप्रा

४. नासिक--- सिंह सिंह सिंह गोदावरी
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-- बृहस्पति प्रायः बारह वर्षों बाद घूम कर पुनः उसी राशि पर आता है।इसी कारण महाकुम्भ बारह वर्षों पर पड़ता है। ८४ वर्षों में यह ११ वर्षों पर ही पुनः उसी राशि पर आता है।यह अपवाद होता है।

-- ध्यानरहे महाकुम्भ में सूर्य और चंद्रमा एक ही राशि पर रहते हैं। यह स्थिति अमावस्या के दिन आती है। सूर्य और चन्द्र की युति ( योग ) ही अमावास्या है।अतःमहा कुम्भ में सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण स्नान अमावस्या के दिन होता है। इसके बाद सूर्य संक्रान्ति के दिन का स्नान होता है।तीसरा स्नान पूर्णिमा का होता है। शेष दो स्नान अन्य दो महत्त्वपूर्ण तिथियों में होते हैं।इस प्रकार महा कुम्भ में पांच महत्त्वपूर्ण स्नान होते हैं।

-- चार महाकुम्भ चार नदियों के तट पर लगते हैं। हरिद्वार का महाकुम्भ भगवतीं गंगा के तट पर लगता है और प्रयाग का महाकुम्भ गंगा-यमुना-सरस्वती के संगम स्थल तीर्थराज में लगता है।उज्जयिनी का महाकुम्भ शिप्रा नदी के तट पर लगता है।यहनदी अपेक्षाकृत छोटीहै अन्य की अपेक्षा।नासिकका महाकुम्भ गोदावरीके तटपरलगता है।गोदावरीको गंगाकी तरह पवित्र और तारक मानाजाता है।

--उज्जयिनी और नासिक में ज्योतिर्लिंग हैं।महाकाल के कारण उज्जयिनी और त्रयम्बकेश्वर के कारण नासिक के महाकुम्भ का महत्त्व बढ़ जाता है। तीर्थराज प्रयाग भगवान ब्रह्मा की यज्ञभूमि है और हरिद्वार स्वर्गद्वार है।
अंग्रेजों ने १७५० में गंगा को बांधने की योजना बनाई।न रहेगी गंगा न लगेंगे हरिद्वार और प्रयाग के दो महाकुम्भ।
सन २००० के महाकुम्भ के बाद टेहरी बांध में गंगा पूरी तरह रोक दी गयी। फिर भी महाकुम्भ का फैलाव और चकाचौंध बढ़ता ही जा रहा है।

--महाकुम्भ द्वि चान्द्रमास स्पर्शी होता है।अतः यह अधिक से अधिक दो माह के लिए ही लगता है।जो इसे व्यावसायिक बना कर चार माह का लगाते हैं वे गलत करते हैं और प्रकृति द्वारा दंडित भी होते है। मध्यप्रदेश सरकार ने पिछला महाकुम्भ चार मास तक चलाया था।परिणाम अशुभ ही रहा।

-- महाकुम्भ धार्मिक पर्व है।इसे पर्यटन या उत्सवधर्मी प्रधान नहीं बननेदेना चाहिए।सम्पूर्ण भारतकी धर्मपरम्परा
इस मेलेमें एकसाथ देखनेको मिलतीहै।उत्सव औरपर्यटन के अतिरिक्त इसमें भारत और नेपाल के गुमनाम संत भी देखने को मिलते हैं। सरस्वती अन्तःसलिला भले हो पर महाकुम्भ में संस्कृति सलिला नदीतो प्रत्यक्ष दिखलाईदेती है।

-- हरिद्वार,प्रयागऔर उज्जयिनीके महाकुम्भ पूर्णिमा से आरम्भ होते हैं। नासिक का महाकुम्भ अमावस्या से आरम्भ होता है।गोदावरी का प्राचीन नाम गौतमी भी है।
हरिद्वार और उज्जयिनी के कुम्भ अप्रैल मास में लगते हैं।
प्रयाग का महाकुम्भ जनवरी में और नासिक का कुम्भ अगस्त मास में सम्पन्न होते हैं।
      कुम्भके चारों स्थानोंके अनेक दर्शनीय स्थलोंका दर्शन श्रद्धालु गण करते हैं। महाकुम्भ स्नान का फल अश्वमेध और वाजपेय यज्ञके तुल्य कहा गयाहै।आंखों कीसफलता महाकुम्भ को देखने मेंहै जहाँ सहस्रनयन होनेकासुख इन्द्र को शुभ महसूस होता है।

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