प्रत्येक के जीवन में ऐसी क्रांति घटित नहीं होती ,यह कोई आवश्यक नहीं हैं कि "सदगुरु " मिल ही जाए ,जो ठोकर मार कर जगा दे ,सत्य की प्रतीति करवा दे ऐसा क्षण तो हजारो वर्षो के बाद ही आता हैं ,जब "सदगुरु " स्वयं आ कर साकार रूप में उपस्थित हो शिष्य को पुकारता हैं झकझोरता हैं,और उसके जीवन के सवारने का प्रयास करता हैं I जो जीवन में बेसुध ही रहेंगे ,पूरी जिंदगी उनके हाथ से निकल जाएगी और एक बार पुनः सभी पूर्णता से वंचित रह जायेंगे I
-वही क्षण जीवन का सौभाग्य क्षण होता हैं ,सर्वश्रेष्ठ क्षण होता हैं ,जब हमारे मृत प्रायः जीवन में ऐसे व्यक्तित्व का पदार्पण होता हैं ,जिसका हमारे ऊपर पूर्ण अधिकार हो ,जो हमें अपने प्राणों का अंश मानता हो जो हमारे मिथ्या भ्र्मजाल को तोड़ने की सामर्थ्य रखता हो ,इस मृग तृष्णा से निकाल कर ,उस परम सत्य ,परम तत्व से सक्षात्कार करने की हिम्मत रखता हो I
-और यह नींद से जागना ही ज्ञान को प्राप्त करना हैं अपने आप में चेतना को अनुभव करना हैं I
-और यह जागना ही ,परम सत्य से परिचित होना हैं I
-परन्तु यह अमूल रूपांतरण उस व्यक्ति के बिना संभव नहीं जिसे "सदगुरु " कहा गया हैं ,जिसकी प्रसंशा संसार के सभी ग्रंथों ने एक स्वर से कहीं हैं I
प्रकृति रुपी गुरु
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-जन्म लेते ही बालक से गुरु का सम्बन्ध हो जाता हैं ,प्रकृति को गुरु ही माना गया हैं ! पशु-पक्षियों के बच्चे प्रकृति में ही जन्म लेते हैं ,प्रकृति रुपी गुरु उनका सीधा सम्बन्ध जुड़ जाता हैं ......और वह कुछ समय में ही अपने पावों में खड़ा हो जाता हैं ,विचरण करने लग जाता हैं ,पक्षी पंख फैला कर उड़ने की क्षमता प्राप्त कर लेता हैं I
-पर मनुष्य को कई वर्ष लग जाते हैं ,इस क्षमता को प्राप्त करने में क्योकि वह प्रकृति से कटा हुआ हैं ,शुद्ध प्रकृति से सम्बन्ध नहीं जुड़ पाता ,प्रकृति रुपी गुरु की थपथपाहट उसे अनुभव नहीं होती !अतः जीवन के क्रिया कलाप सीखने में ही उसे कई वर्ष लग जाते हैं ,यह मानव जीवन की विडम्बना या न्यूनता ही कही जाएगी I
-इसलिए यह भी स्वीकारा गया हैं ,कि जिसने प्रकृति को समझ लिया आत्मसात कर लिया ,वह सदगुरु को भी समझ सकता हैं ,क्योकि सदगुरु महाप्रकृति से सम्बन्ध जोड़ देते हैं ,संपर्क सूत्र स्थापित कर देते हैं I
कैसे हो यह मिलन
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-जो वास्तव में जाग्रत हैं ,प्राण ऊर्जा से आपूरित हैं ,अदृश्य जिन्हे आकर्षित करता हैं ,जो अज्ञात की खोज में निकल पड़ते हैं -इतने साहस से कि चाहे रात्रि की गहन कालिमा हो ,चाहे तूफ़ान का झंझावात उठ रहा हो ,चाहे मर-मिटने का डर हो ,पर रुका नहीं जा सकता ,उन्हें गंतव्य मिल ही जाता हैं I
-कहावत भी हैं ,जब शिष्य तैयार हो जाता हैं -सद्गुरु स्वयं प्रत्यक्ष हो जाते हैं I
-पर यह मिलन किस रहस्य पूर्ण ढंग से होगा ,किस क्षण होगा ,कहाँ तार मिल जायेंगे ,किसी को ज्ञात नहीं I
-प्रकृति की बड़ी अद्भुद लीला हैं यह ....सदगुरु के नजरे मिलते ही एक चिंगारी सी प्रज्वलित होती हैं ,जिससे शिष्य का सारा अहंकार ,लोभ ,मोह ,तृष्णाएं ,जल कर खाक हो जाती हैं ,उसकी अंतरात्मा ही मानो बदल जाती हैं I गुरु रुपी पारस का स्पर्श होते ही ,अमूल्य कुंदन बन जाता हैं वह .....और यह सब कुछ घटित होता हैं ,क्षण भर में ही ,युगो की आवश्यकता नहीं हैं I
-ऐसा ही सदगुरु ,शिष्य की अन्तर शक्ति को जगा कर उसे आत्म आनंद में रमण कराता हैं ,शक्तिपात द्वारा देह को पाप -ताप से रहित कर दिव्य कुंडलिनी जगाता हैं ,ज्ञान की मस्ती देता हैं ,भक्ति का प्रमाण देता हैं ,कर्म में निष्कामता सीखा देता हैं I
-ऐसे ही सदगुरु के प्रसाद से शिष्य रुपी "नर "भी "नारायण "स्वरूप बनकर आनंद मग्न हो जाता हैं I
-जब तुम्हे जीवन के किसी मोड़ पर कोई चेतना पुंज ,कोई जाग्रत व्यक्तित्व मिल जाए तो अपनी इस जिंगदी में दौड़ कर उससे मिल लेना डूब जाना उसके ह्रदय में ,समां जाना उसके व्यक्तित्व में -क्योकि जीवन में ऐसे क्षण तो कभी-कभी ही आते हैं I
-और वे क्षण यदि चूक गए ,तो फिर तुम्हारे पास पछताने के अलावा कुछ भी नहीं बचेगा I
-और इसलिए तो कहता हूँ -"जब जाग्रत ,चैतन्य सदगुरु मिल जाय तो अपने आप को समर्पित कर देना "I
-और इस समर्पण से तुम्हे सब कुछ मिल जायेगा I
-जिसे सत्यम-शिवम् -सुंदरम और ब्रम्हानंद कहा गया हैं ।
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