इटली के तानाशाह मुसोलिनी के जीवन प्रसंग में एक ऐसी घटना है जिसे जानकर आप हिंदुत्व पर गर्व करेंगे
इटली में बसे हिंदुओं ने भारत के महान संगीतकार पंडित ओमकारनाथ ठाकुर को इटली में आमंत्रित किया था और उस वक्त इटली के तानाशाह मुसोलिनी ने पंडित ओमकारनाथ ठाकुर के सम्मान में डिनर का आयोजन किया था।
मुसोलिनी की कई प्रेमिकाओं में एक प्रेमिका बंगाली थी. जिसे संगीत का बहुत अच्छा ज्ञान था. उसने कई बार मुसोलिनी से कहा कि उसकी अनिद्रा का इलाज संगीत में है तो वो इसे मजाक मानता
डिनर टेबल पर ही मुसोलिनी ने हिंदू धर्म का मजाक बनाते हुए कहा ओमकारनाथ ठाकुर जी मैंने सुना है कि आप के देवता भगवान श्री कृष्ण जब बांसुरी बजाते थे तब तमाम गाय उनके पास दौड़कर चली जाती थी यह कैसे सच हो सकता है आपके हिंदू धर्म में कितना गप्प लिखा गया है ?
क्योंकि मुसोलिनी बहुत क्रूर तानाशाह था इसीलिए वहां 2 मिनट के लिए सन्नाटा पसर गया
उसके बाद पंडित ओमकारनाथ ठाकुर ने बेहद शांति से कहा यहां ना बासुरी है ना गाये हैं लेकिन मैं आपको हिंदू धर्म और हिंदू धर्म के संगीत की थोड़ी झलक दिखाता हूं
पंडित ओमकारनाथ ठाकुर जी ने डाइनिंग टेबल पर ही तमाम कप और गिलास में पानी भरकर एक जलतरंग जैसा उपकरण बनाया और राग पूरिया बजाना शुरू किया वातावरण में संगीत की ऐसी मीठी धुन पसरी की मुसोलिनी गहरी निद्रा में चला गया और 10 मिनट तक वह गहरी नींद में सोता रहा वहां उपस्थित हर सज्जन मदहोशी की अवस्था में चले गए थे
फिर जैसे ही पंडित ओमकारनाथ ठाकुर ने राग पुरिया बजाना बंद किया मुसोलिनी नींद से जगा और पंडित जी के पैरों को पकड़कर माफी मांगी और कहा सच में आपके हिंदू धर्म में जो लिखा गया है वह सच है।
उसके बाद मुसोलिनी ने पंडित ओमकारनाथ ठाकुर को इटली नहीं छोड़ने की अपील किया उन्हें रोम में ही बसने की अपील किया और उन्हें बड़ा पद के साथ-साथ काफी बड़ी जागीर देने की पेशकश थी लेकिन पंडित ओमकारनाथ ठाकुर ने मना कर दिया
मित्रों यह है हमारे हिंदुत्व की ताकत यह हमारे धर्म की ताकत। मुसोलिनी जैसे तानाशाह के सामने पंडित ओमकारनाथ ठाकुर ने एक ऐसा हिंदुत्व का राग बजाया जिसे मुसोलिनी भी हिंदू धर्म का लोहा मान गया
संगीत केवल मनोरंजन के लिए नहीं ये कई बीमारियों के इलाज के लिए भी प्रयोग में लाया जाता था।
अपनी इस हीन प्रवृत्ति के कारण ही मनुष्य प्रायः अशुभ विचारों और अप्रिय अवस्थाओं का चिन्तन करते रहते हैं। इसी कारण उनके मस्तिष्क में निरन्तर द्वंद्व छिड़ा रहता है। कामुकतापूर्ण विचारों वाला व्यक्ति सदैव वैसे ही विचारों से घिरा रहता है, थोड़े से विचार आत्म-कल्याण के बनाता भी है तो अनिश्चयात्मक बुद्धि के कारण तरह-तरह के संशय उठते रहते हैं। जब तक एक तरह के विचार परिपक्व नहीं होते, तब तक उस दिशा में अपेक्षित प्रयास भी नहीं बन पाते। यही कारण है कि मनुष्य किसी भी क्षेत्र में प्रगति नहीं कर पाता।
सद्विचार जब जागृत होते हैं तो मनुष्य का जीवन स्वस्थ, सुन्दर और सन्तोषयुक्त बनता है। अपना संकल्प जितना बलवान् बनेगा उतना ही मन की चंचलता दूर रहेगी और संयम बना रहेगा। इससे शक्ति जो मनुष्य को उत्कृष्ट बनाती है विश्रृंखलित न होगी और मनुष्य दृढ़तापूर्वक अपने निश्चय पथ पर बढ़ता चला चलेगा।
आप सदैव ऐसे ही काम करें जिससे आपकी आत्मा की अभिव्यक्ति हो। जिन कार्यों में आपको सन्तोष न होता हो उन्हें अपने जीवन का अंग न बनाइये। जब तक मनुष्य अपने कार्यों में मानवोचित स्वतन्त्रता की भावना का विकास नहीं करता तब तक उसकी आत्मा व्यक्त नहीं होती। दूसरों के लिये सही मार्ग-दर्शन वही दे सकता है जिसमें स्वतन्त्र रूप से विचार करने की शक्ति हो। इस शक्ति का उद्रेक मनुष्य के नैतिक साहस और उसके प्रबुद्ध मनोबल से ही होता है। बलवान् मन जब किसी शुभकर्म में संलग्न होता है तो मनुष्य का जीवन सुख और सम्पदाओं से ओत-प्रोत कर देता है। उसकी भावनायें संकीर्णताओं के बन्धन तोड़कर अनन्त तक अपने सम्बन्धों का विस्तार करती हैं। वह लघु न रहकर महान बन जाता है। अपनी इस महानता का लाभ अनेक दूसरों को दे पाने का यश-लाभ प्राप्त करता है।
इसलिये जीवन साधना का प्रमुख कर्तव्य यही होना चाहिये कि हमारी मानसिक चेष्टायें पतनोन्मुख न हों। मन जितना उदात्त बनेगा, जीवन उतना ही विशाल बनेगा। सुख और शान्ति मनुष्य जीवन की इसके विशालता में ही सन्निहित हैं दुःख तो मनुष्य स्वार्थपूर्ण प्रवृत्तियों के कारण पाता है।
अतः अपने आपको सुधारने का प्रयत्न कीजिए। वश में किया हुआ मन ही मनुष्य का सहायक है और उससे बढ़कर अपना उद्धारकर्त्ता संसार में शायद ही कोई हो। इस परम हितैषी मन पर अनुकूल न होने का दोषारोपण लगाना उचित नहीं लगता। जिस मन पर ही मनुष्य की उन्नति या अवनति आधारित है उसे सुसंस्कारित बनाने का प्रयत्न सावधानी से करते रहना चाहिये। मन को विवेकपूर्वक समझायें तो वह माना जाता है और कल्याणकारी विषयों में रुचि लेने लगता है। यह प्रक्रिया अपने जीवन में प्रारम्भ हो तो हम जीवन लक्ष्य प्राप्ति के सही मार्ग पर चल रहे हैं, यही मानना चाहिये।
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