Follow us for Latest Update

गुरू गीता ।।

                  गुरू मंत्र कामधेनु के समान है, क्योकिं यह समस्त कामनाओं की पूर्ति करने में समर्थ हैं। यह कल्पवृक्ष के समान है, जो भी मन की इच्छा की जाए, वह गुरू मंत्र के प्रभाव से अपने आप पूर्ण हो ही जाती हैं। यह चिंतामणि के समान है, जिससे समस्त प्रकार की चिंताएं समाप्त होती ही हैं। इस प्रकार यह गुरु मन्त्र सर्व मंगलदायक हैं। जिसके जप मात्र से ही समस्त ताप, दुःख,भय, दैन्य, रोग, आदि अपने आप समाप्त हो जाते हैं। "59"

           यदि साधक मोक्ष की इच्छा करता है, तो उसकी मोक्ष की इच्छा पूर्ति होती हैं। यदि वह भोग की इच्छा करता है ,तो भोग प्राप्ति संभव होती है। यदि वह काम की इच्छा करता है, तो काम प्राप्ति होती है। साधक के जीवन की जो भी इच्छाएं होती हैं, उन समस्त इच्छाओं की पूर्ति केवल गुरू मंत्र जप करने से ही संभव होती हैं। इस तरह सुविज्ञ, साधक मन को भ्रम में डालने वाली अन्य साधनाओं को दृष्टि विगत करके गुरु मन्त्र का ही जप करता है। "60"।।गुरू गीता।। 
                  गुरू मंत्र कामधेनु के समान है, क्योकिं यह समस्त कामनाओं की पूर्ति करने में समर्थ हैं। यह कल्पवृक्ष के समान है, जो भी मन की इच्छा की जाए, वह गुरू मंत्र के प्रभाव से अपने आप पूर्ण हो ही जाती हैं। यह चिंतामणि के समान है, जिससे समस्त प्रकार की चिंताएं समाप्त होती ही हैं। इस प्रकार यह गुरु मन्त्र सर्व मंगलदायक हैं। जिसके जप मात्र से ही समस्त ताप, दुःख,भय, दैन्य, रोग, आदि अपने आप समाप्त हो जाते हैं। "59"

           यदि साधक मोक्ष की इच्छा करता है, तो उसकी मोक्ष की इच्छा पूर्ति होती हैं। यदि वह भोग की इच्छा करता है ,तो भोग प्राप्ति संभव होती है। यदि वह काम की इच्छा करता है, तो काम प्राप्ति होती है। साधक के जीवन की जो भी इच्छाएं होती हैं, उन समस्त इच्छाओं की पूर्ति केवल गुरू मंत्र जप करने से ही संभव होती हैं। इस तरह सुविज्ञ, साधक मन को भ्रम में डालने वाली अन्य साधनाओं को दृष्टि विगत करके गुरु मन्त्र का ही जप करता है। "60"


0 comments:

Post a Comment