पंच अंग जिन्हें पंचांग भी कहा जाता है, पटल, पद्धति, कवच, सहस्रनाम एवं स्तोत्र हैं। ये पंचांग अभीष्ट देवता के शरीर के प्रमुख अंग माने गए हैं। कहा भी गया है :-
पटलं देवता-गात्रं पद्धतिर्देवताशिरः।
कवचं देवता-नेत्रे सहस्रनामं मुखं स्मृतम।
स्तोत्र देवीरसा प्रोक्ता पंचांगमिदमीरितम।।
अर्थात पटल देवता की देह, पद्धति सिर , कवच दोनों चक्षु, सहस्रनाम मुख और स्तोत्र जिह्वा हैं। पटल में पूजा विधान, मंत्र और बीजाक्षर के समस्त समूहों का भेद समाहित रहता है। तंत्र साधना से संबद्ध विधि-विधानों को समझने के लिए पटल का ज्ञान अत्यावश्यक है, इसलिए इसे देवता का शरीर माना गया है। पटल के बाद नंबर आता है पद्धति का। ""पद्धति को देवता का सिर माना गया है। वैसे इसका अर्थ है मार्ग । यह शब्द अपने आपमें बहुत से विषयों को समाए हुए है। इसमें तंत्र साधना के लिए शास्त्रीय विधि का मार्गदर्शन होता है जिसमें प्रातः स्नान से लेकर पूजा और जप समाप्ति तक के मंत्र तथा उनके विनियोगादि का वर्णन होता है। जिस प्रकार प्राचीन समय में योद्धा अपने अंग-प्रत्यंगों की सुरक्षा के लिए युद्ध में जाने से पहले कवच धारण करते थे, उसी प्रकार यह कवच साधक के शरीर की रक्षा करता है। दूसरे शब्दों में प्रत्येक देवता की साधना में उनके नामों द्वारा उनके अपने शरीर में निवास तथा रक्षा की प्रार्थना करते हुए जो न्यासादि किए जाते हैं, वही कवच के रूप में वर्णित होते हैं।
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