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अश्विनी-वज्रोली मुद्रा ।।

    हिन्दू सनातन धर्म मे वैदिक , तांत्रोक्त , यौगिक , भक्ति , सेवा आदि अनेक मार्ग है । मन को नियंत्रित कर उच्चतम सिद्धि प्राप्त करना , मंत्रानुष्ठान और तन को नियंत्रित कर शरीरस्थ ऊर्जाओं द्वारा प्रचंड शक्ति प्राप्त करना ।

 तांत्रोक्त मार्ग
 तंत्र मार्ग की अनेक क्रिया ऐसी भी है जो आम इन्सान को तन मन की शक्ति के साथ सुआरोग्य भी प्रदान करती है । योगमार्ग में भी ऐसी अनेक क्रियाएं है । 

   प्रत्येक व्यक्ति को पूजा-साधना, व्रत और उपवास के दौरान ब्रह्मचर्य का पालन करने के लिए कहा जाता है। लेकिन मनोविज्ञान में एक नियम है जिसमें बताया गया है कि व्यक्ति जिस वस्तु अथवा चीज से जितना भी बचने की कोशिश करेगा, वह वस्तु अथवा चीज उसे उतना ही अधिक परेशान करेगी। यानि आप जितना भी ब्रह्मचर्य का पालन करने की कोशिश करेंगे, उतना ही अधिक काम और गंदे विचार आपके मष्तिष्क में आते चले जाएंगे। और इन काम संबंधित विचारों का दवाब आपके मूलाधार चक्र पर होना शुरू हो जाता है। इससे मूलाधार चक्र पर सप्त धातु का दबाव पड़ना शुरू हो जाता है और आपका मन विचलित होने लगता है। इसलिए साधना-पूजा,व्रत तथा उपवास के दौरान ब्रह्मचर्य का पालन करना परेशानी का सबब बन जाता है। यहां अगर आप शरीर से अपने आपको बचा भी लें तब भी मानसिक रूप से आपका ब्रह्मचर्य व्रत खंडित हो जाता है। ऐसी अवस्था से बचने के लिए अश्वनी या वज्रोली मुद्रा लगाई जाती है। इस अश्वनी या वज्रोली मुद्रा के लगाने से सप्त धातु उर्ध्वगामी होकर यानि सप्तधातु को ऊपर की तरफ खींचने पर ओज बनने लगता है और आपके मूलाधार पर दवाब कम हो जाता है। ऐसा करने से मन नियंत्रण में आने लगता है। और साधक का ध्यान भटकता नहीं है।

 अश्वनी-वज्रोली मुद्रा के लाभ 

 1 . अश्वनी-वज्रोली मुद्रा से ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करने में साधक को मदद मिलती है।

 2 .अश्वनी-वज्रोली मुद्रा सप्तधातु को ओज में बदल देती है। जिससे मूलाधार पर दवाब कम हो जाता है और व्यक्ति के काम विचार कम हो जाते हैं।

 3 . अश्वनी-वज्रोली मुद्रा को खड़े रहकर नहीं किया जा सकता है। अश्वनी-वज्रोली मुद्रा को लेटकर भी नहीं कर सकते हैं। अश्वनी-वज्रोली मुद्रा को किसी भी आसन में बैठकर अथवा कुर्सी-सोफा आदि पर बैठकर किया जा सकता है।

 40 . अश्वनी-वज्रोली मुद्रा का उपयोग 14 वर्ष की आयु के पश्चात कोई भी महिला-पुरूष कर सकता है।

 5 .अश्वनी-वज्रोली मुद्रा को किसी भी प्रकार की साधना, व्रत, उपवास तथा किसी भी प्रकार के आध्यात्मिक अनुष्ठान आदि का अभ्यास समाप्त होने के बाद अपनाना चाहिए।

6 . अश्वनी-वज्रोली मुद्रा में 30 सेकेंड से लेकर एक मिनट तक का समय लगता है।

 7 .अश्वनी-वज्रोली मुद्रा से मूलाधार चक्र के आसपास का भाग चैतन्य होने लगता है। तथा वहां की नकारात्मक ऊर्जा नष्ट होने लगती है।

 8 . अश्वनी-वज्रोली मुद्रा का उपयोग मन पर नियंत्रण पाने के लिए किया जाता है।

 अश्वनी-वज्रोली मुद्रा की विधि 

अश्वनी-वज्रोली मुद्रा की विधि बहुत ही आसान है। जब भी आप योग, साधना आदि का अभ्यास कर रहे हों तो जब आपका अभ्यास समाप्त हो जाए तब आप किसी भी आसन में बैठकर या कुर्सी आदि पर बैठकर गुदा को तीस से पचास बार संकुचित करें । और फिर छोड़ें । इस अभ्यास को करने में तीस सेकेंड से एक मिनट का समय लगता है।

इस अभ्यास को जब स्त्रियां करती हैं तब इसे अश्वनी मुद्रा कहा जाता है । और इस अभ्यास को जब पुरूष करता है तब इसे वज्रोली मुद्रा कहा जाता है ।

 गुदा को संकुचित करने और छोड़ने की यही मुद्रा अश्वनी-वज्रोली मुद्रा कहलाती है। 

जब आप साधना के बाद इस मुद्रा का उपयोग करते हैं अथवा इस अश्वनी-वज्रोली मुद्रा को अपना लेते हैं तो आपने साधना के दौरान जो ऊर्जा अथवा शक्ति जमा की है वह ऊर्जा अथवा शक्ति उर्ध्वगामी होनी शुरू हो जाती है और इसका ओज बनना शुरू हो जाता है । इसके बाद आप जो भी व्रत,साधना,उपवास अथवा अनुष्ठान आदि करते हैं उसमें आपको सफलता मिलनी शुरू हो जाती है और इस तरह से आप कम दिनों और कम समय में साधना की ऊँचाईयों पर पहुंच सकते हैं । इसलिए हमेशा ध्यान रखें कि कोई भी साधना, व्रत और अनुष्ठान आदि करने के बाद आप अश्वनी-वज्रोली मुद्रा का उपयोग जरुर करें।

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