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योग का विषय परिचय:

बिन्दुकी यह ऊर्ध्व-गति प्रबुद्ध कुण्डलिनी के सहस्त्रार के आकर्षण से ऊध्व प्रवाह का नामान्तर है।

 बिन्दु क्रमशः स्थूल-भाव छोड़कर सूक्ष्म, 
सूक्ष्मतर और सूक्ष्मतम अवस्था को प्राप्त होता है और अन्त में सहस्रदल-कमल की कर्णिका में स्थित महाबिन्दु के साथ मिल जाता है।

 यही चित्-चन्द्रमा का षोडशी कलारूप अमृत-बिन्दु है। 

 नाभी ग्रंथि का भेद करके बिन्दुको ऊर्ध्वस्रोत में समाहित कर देना ही उपनयन या दीक्षा का यथार्थ रहस्य है। 

नाभि चक्र से ऊपर उठे बिना बिन्दु मध्याकर्षण के चक्र के अन्दर रहना संसार का ही दूसरा नाम है।

 ओजस की ऊर्ध्व साधना के द्वारा बिन्दु को विषय-जगत् से पृथक् करके,
 उसे पवित्र बनाकर, ब्रह्ममार्ग में लगाना ही संसार से मुक्ति प्राप्त करने का एकमात्र उपाय है।

- महामहोपाध्याय श्री गोपीनाथ कविराज

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