अश्वत्थमेकम् पिचुमन्दमेकम्
न्यग्रोधमेकम् दश चिञ्चिणीकान् ।
कपित्थबिल्वाऽऽमलकत्रयञ्च. पञ्चाऽऽम्रमुप्त्वा नरकन्न पश्येत्।।
अश्वत्थः = पिपल
पिचुमन्दः = नीम
न्यग्रोधः = वट वृक्ष
चिञ्चिणी = इमली
कपित्थः = कविट
बिल्वः = बेल
आमलकः = आवला
आम्रः = आम
(उप्ति = पौधा लगाना)
अर्थात- जो कोई इन वृक्षों के पौधो का रोपण करेगा, उनकी देखभाल करेगा उसे नरक के दर्शन नही करना पड़ेंगे।
इस सीख का अनुसरण न करने के कारण हमें आज इस परिस्थिति के स्वरूप में नरक के दर्शन हो रहे हैं।
अभी भी कुछ बिगड़ा नही है, हम अभी भी अपनी गलती सुधार सकते हैं।
गुलमोहर, निलगिरी, जैसे वृक्ष अपने देश के पर्यावरण के लिए घातक हैं।
पश्चिमी देशों का अंधानुकरण कर हम ने अपना बड़ा नुकसान कर लिया है।
पिपल, बड और नीम जैसे वृक्ष रोपना बंद होने से सूखे की समस्या बढ़ रही है। ये।पढ़ कर हमें आश्चर्य होगा लेकिन ये सत्य है।.
पिपल १००% कार्बन डाय ऑक्साइड शोषित करता है, बड ८०% और नीम ७५% शोषित करता है। ये सारे वृक्ष वातावरण में ऑक्सीजन की मात्रा बढ़ाते है साथ ही धरती के तापनाम को भी कम करते है। .
हमने इन वृक्षों के पुजन की।परंपरा को अंधविश्वास मानकर तथा तथाकथित साम्प्रदायिकता के चलते किसी वर्गविशेष की भावनाओं का ध्यान रखने के लिए इन वृक्षो से दूरी बनाकर यूकेलिप्टस (नीलगिरी) के वृक्ष सड़क के दोनों ओर लगाने की शुरूआत की। यूकेलिप्टस झट से बढ़ते है लेकिन ये वृक्ष दलदली जमीन को सुखाने के लिए लगाए जाते हैं। इन वृक्षों से धरती का जलस्तर घट जाता है। विगत 40 वर्षों में नीलगिरी के वृक्षों को बहुतायात में लगा कर पर्यावरण की हानि की गई है।
पिपल को वृक्षों का राजा कहा जाता है। इस संबंध में शास्त्रों में एक श्लोक है -
मूले ब्रह्मा त्वचा विष्णु शाखा शंकरमेवच!!
पत्रे पत्रे सर्वदेवायाम् वृक्ष राज्ञो नमोस्तुते!!
इसका अर्थ समझना चाहिए।
आगामी वर्षों में प्रत्येक ५०० मीटर के अंतर पर यदि एक एक पिपल, बड़ , नीम आदि का वृक्षारोपण किया जाएगा तभी अपना भारत देश प्रदूषणमुक्त होगा। घरों में तुलसी के पौधे लगाना होंगे।
हम अपने संगठित प्रयासों से ही अपने "भारत " को नैसर्गिक आपदा से बचा सकते है।
भविष्य में भरपूर मात्रा में नैसर्गिक ऑक्सीजन मिले इसके लिए आज से ही अभियान आरंभ करने की आवश्यकता है।
आइए हम बड़, पिपल,आम,इमली, आदी वृक्षों को लगाकर आने वाली पीढ़ी को निरोगी एवं सुजलां सुफलां पर्यावरण देने का प्रयत्न करें।
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