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रविवार को पीपल की पूजाः क्यों नहीं करनी चाहिए और दरिद्रता किन किन कारणों से घर में आती है?

       जब देवताओं के पास से लक्ष्मी विलुप्त हो गईं तो उन्हें पुनः प्राप्त करने के लिए समुद्र मंथन करना पड़ा. पर मंथन में लक्ष्मीजी से पहले दारिद्रा निकलीं थी. उन्हें माता लक्ष्मी की बड़ी बहन माना गया और ज्येष्ठा कहलाईं.

दोनों ने रहने के लिए कोई आवास मांगा तो भगवान विष्णु ने ही उन्हें पीपल के पेड़ में निवास के लिए कहा क्योंकि पीपल के पेड़ को भगवान विष्णु का आशीर्वाद प्राप्त है.

लक्ष्मीजी ने श्रीविष्णु के रूप में अपना चुन लिया. अब मुश्किल यह आई कि बड़ी बहन के रहते छोटी की शादी कैसे हो? दारिद्रा भी कम सुंदर न थीं, पर उनके लिए वर नहीं मिल रहा था.

लक्ष्मीजी को दारिद्रा के वर की भी चिंता हुई. एक दिन विष्णुजी ने दारिद्रा से पूछा कि वह अपनी पसंद बताएं तो उनके लिए वर ढूंढा जाए. दारिद्रा ने अपनी पसंद- नापसंद बतानी शुरू की.

दरिद्रा बोलीं- मुझे किसी तरह का धार्मिक कार्य पसंद नहीं. वेद मंत्र शोर लगते हैं और कथाएं व्यर्थ. मुझे ऐसा घर चाहिए जहां यह सब न होता हो. मेरा पति धार्मिक होते हुये भी यह सब कार्य न करे. इनसे मुझे दूर रखे.

दारिद्रा की शादी दु:सह नामक एक ब्राह्मण से कर दी गयी. दु:सह थे तो मुनि पर दारिद्री से शादी के बाद इनका ध्यान धर्म से उचट गया. शादी के बाद दोनो पतिपत्नी यहां वहां भटकने लगे.

उस समय हर घर में तीनो प्रहर पूजा-पाठ होता था. कथा, प्रवचन, हवन, यज्ञ और भजन कीर्तन तो सदा ही चलते रहते थे. दारिद्रा हर जगह से कानों पर हाथ रखकर भागती. उसे यह सब सहन न होता. भागते भागते वह बुरी तरह थक गयी.

दारिद्रा के साथ दु:सह भी भाग रहे थे. दोनों थक गए. रास्ते में मार्कंडेय मुनि दिखे तो पूछा कि भगवन हम दोनों कहां जायें कहां रहें? आप ज्ञानी हैं कृपया हमें उचित राह दिखायें.

मार्कंडेयजी बोले- जिस घर में गाएं हों, भगवन की मूर्ति हो, लोग रोज पूजा करते हों, भस्म लगाए शिवभक्त या नारायण का कीर्तन करने वाले रहते हों, ऐसे घरों में भूलकर भी मत जाना.

दु:सह ने पूछा- कहां नहीं जाना है यह तो समझ गए, किस घर में वास करें जहां हमारा ही एकछत्र प्रभाव चले. मार्कंडेयजी बोले- जिस घर में पूजा न हो, पति-पत्नी रोज लड़ें, बच्चों से पहले खुद खाएं, भगवान की निंदा करें, मैले रहें. उनमें आराम से वास करो.

जिस घर में लोग शाम को सोते हों, अवैध संबंध रखते हों, जुआ खेलते हों या जिस घर में नीम, पलाश, खैर, ताड़, कदंब, इमली के या कांटेदार, दूध वाले पेड़, अपराजित, दोपहरिया, तगर के फूल लगे हों, इन सब में जा कर रह सकते हो. वहां निर्विघ्न वास करो.

मार्कण्डेयजी द्वारा निवास स्थान का पता मिलने के बाद दु:सह बोले- दारिद्री, पीपल के पेड़ के नीचे बैठो मैं उचित घर ढूँढ कर आता हूं. मुझे लगता है कि धरती पर अभी धर्म का प्रभाव है इसलिए शायद ही ऐसा कोई घर मिले. मैं रसातल में देखकर आता हूं.

दु:सह को गए बहुत देर हो गयी तो दरिद्री वही पीपल तले बैठकर रोने लगीं. तभी अचानक विष्णुजी और लक्ष्मीजी पीपल के नीचे आ गए और रोने का कारण पूछा. दारिद्री बोली- दु:सह मुझे छोड़ रसातल को गये मैं अनाथ कहां रहूं?

पति न आये तो क्या होगा, आ भी गये तो हमारी आजीविका का क्या होगा, हमें घर मिल भी जाये तो पेट कैसे पालेंगे. यह सुनकर भगवान विष्णु ने कहा- दरिद्रे, यह तो कोई समस्या ही नहीं है. मैं इसका हल बताता हूं.

पृथ्वी पर लोगों में खूब भक्तिभाव है. पर उनमें भेद भी है. जो लोग शिवजी और मेरी निंदा करते हैं उनका सारा धन तुम्हारा हुआ. लोग मेरी पूजा करते हैं पर शिवजी की निंदा उन अभागे भक्तों के सारे धन पर तुम्हारा ही अधिकार है.

इस तरह तुम्हारे पास पर्याप्त धन बिना होगा. फिलहाल हर रविवार को इस पीपल को ही अपना वास बनाओ. रविवार को जो लोग पीपल की पूजा करेंगे उन्हें लक्ष्मी के स्थान पर दरिद्रा की कृपा प्राप्त होगी.

उस दिन से दारिद्री मार्कंडेय के बताए स्थानों में वास करती हैं. जिन घरों में कलह-कलेश, मैल, अधर्म का वास होता है उनका सर्वसमर्थ होने पर अचानक एक दिन भाग्य फूट जाता है और दरिद्रता अपना स्थान जमा लेती है.

हर रविवार दारिद्री पीपल में ही निवास करती हैं. इस दिन जो व्यक्ति पीपल की पूजा करता है, उसे दरिद्रता प्राप्त होती है. पीपल को काटने के लिए रविवार का दिन ही नियत है.

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