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जितनी महिमा "नाम जप" की शास्त्र में कही गयी है, उतनी वास्तव में क्यों नहीं दिखती?

तुम बड़ी बहकी बात करते हो। खीर में मीठा नही डाला और कह रहे हो कि खीर में स्वाद नही है। ये बहकी बात ही तो है। तुम भी वही कर रहे हो। तुम ही नही, मैं भी यही करता था। सब यही कर रहे है। लेकिन कोई मीठा डालता ही कहा है खीर में।

देखो, नाम जप में उतनी तो महिमा है ही जितनी शास्त्रों में कही गयी है, बल्कि उससे भी अधिक है। परन्तु आज जो ये महिमा देखने मे नही आती वो सिर्फ और सिर्फ इसीलिए क्योंकि तुम नाम जप सही नही कर रहे हो। उस तरह से नही कर रहे हो जैसे शास्त्र में कहा गया है। जैसा सिद्धान्त कहता है वैसा नही कर रहे हो। तुम अपनी बुद्धि दौडाकर कर रहे हो। विवेकशून्य होकर कर रहे हो। फिर कहते हो कि लाभ नही होता। अनुभव नही होता। अनुभव कोई बड़ी बात नही। आज और इसी क्षण अनुभव हो जाये। इसी क्षण मुक्ति हो जाये। इसी क्षण कल्याण हो जाये। लेकिन तुम सिद्धान्त और शास्त्र की सुनते ही कहा हो।

देखो, यदि एक नाम भी भगवान का अच्छे से ले लिया जाए तो फिर कहना ही क्या? लेकिन तुम कहोगे की हम तो दिन में सेकड़ो नाम लेते है। हजारो नाम लेते है। फिर अनुभव क्यों नही होता?

तुम्हे अनुभव होगा भी नही। हो ही नही सकता। कोई करा भी नही सकता। अब अनुभव की बात करते हो तो मैं तुम्हे एक तरीका बता सकता हूँ।

नाम जप का प्रभाव तुरन्त देखने को मिलेगा। अनुभव भी होगा। रस भी आएगा। लेकिन सब तुम पर निर्भर है।

देखो, तुम जब तक सांसारिक होकर नाम जप करोगे तो जल्दी अनुभव नही होगा। बहुत देर हो जाएगी। यदि तुम पारमार्थिक होकर एक नाम भी पुकार लो तो उन भगवान की इतनी हिम्मत नही की वो तुम्हारे पास आने से मना कर दे। पर समस्या यही है। तुम सांसारिक होकर नाम जपते हो। संसार से सम्बंध मानकर जप करते हो। शरीर से सम्बंध मानकर जप करते हो। फिर ऊपर से दोष देते हो कि अनुभव नही होता।

अब जरा काम की बात करते है। सिद्धान्त और शास्त्र की बात करते है। अनुभव की बात करते है। देखो, तुम सांसारिक होकर जप कर रहे हो लेकिन रस नही आ रहा। अब पारमार्थिक हो जाओ, परमात्मा के होकर जप करो। फिर देखो, रस की धार शुरू होगी। अनन्त रस आना शुरू होगा। अनुभव भी होगा।

अब प्रश्न आता है कि पारमार्थिक कैसे बने?

देखो, इसमे बनने जैसा कुछ है ही नही। करने जैसा कुछ है ही नही। बनता तो वो है जो पहले से नही है। तुम तो पहले से ही परमात्मा के हो तो फिर इसमे बनना कैसा। बस तुम्हे मान्यता बदल लेनी है। मान्यता बदलते ही सब बदल जायेगा। अनुभव हो जाएगा।

जैसे पहले तुम संसार और शरीर से सम्बंध मानकर जप कर रहे थे वैसे अब खुद को परमात्मा का मान कर जप करो तो इसी क्षण लाभ होगा।

मीरा कहती है कि-

मेरो तो गिरधर गोपाल, दूजा न कोई।

देखो, मीरा ने कितनी सुंदर बात कही है। उसने संकेत कर दिया कि अनुभव कैसे हो। एक ही पंक्ति में मीरा सब बता गयी।

अब इस पंक्ति को देखो-

"मेरो तो गिरधर गोपाल"

ये बात तो तुम भी मानते हो। मैं भी मानता हूं। सब मानते है। सब कहते है कि मेरा तो भगवान है। लेकिन अब अगली पंक्ति में मीरा ने जो बात कही है वो तुम मानते ही नही। तुम स्वीकार ही नही करते। मीरा कहती है कि गिरधर के अलावा मेरा दूसरा कोई नही है। कोई नही है। कोई नही है।

अब तुम्हारी बात करे तो दूसरे के नाम तुम्हारे माता पिता, पुत्र, स्त्री, भाई, बहन, धन, दौलत और पता नही क्या क्या मान रखा है। यही समस्या है कि अनुभव नही होता। यदि दूजे के नाम पर जिस कोई न रहकर भगवान को अपना लो तो इसी क्षण कल्याण सम्भव है। लेकिन तुमने संसार से तो सम्बन्ध बांध रखा है और पुकार भगवान को रहे हो।

जैसे कोई बच्चा रोता है और माँ माँ चिल्लाता है तो आस पास बैठी दूसरे बच्चो की माँ उसे लेने नही आती। बल्कि उसकी माँ ही उसे संभालती है ।

क्योंकि दूसरे बच्चो की माँ को पता है कि वो अपना नही है। और जो अपना है उसे वो रोने नही देती।

यही बात तुम्हारे साथ है। परमात्मा ही हमारा है। संसार हमारा नही है। न ही शरीर हमारा है। सिर्फ ईश्वर ही हमारा है। उसके अलावा कुछ भी हमारा नही है। जिस दिन इस बात को बुद्धि में बिठा लिया उस दिन नाम जप का तुरन्त मज़ा आ जायेगा।

अब तुम कहोगे की ऐसी मान्यता एक ही बार में बिठाना बड़ा मुश्किल है। सालो पुराना रिश्ता जो संसार से मान रखा है वो अचानक कैसे बदल जाये?

देखो, जैसे किसी लड़की का विवाह होता है तो वह ससुराल की बहू बन जाती है। कोई कहे कि बहु इधर आना, तो वो तुरन्त समझ जाती है कि उसे ही कहा जा रहा है। कोई रात को भी कहे कि बहु जरा ये काम देख लेना तो वो तुरन्त उठकर काम देखती है। अभी दो दिन शादी को हुए है।

और उस लड़की की मान्यता बदल गयी। मान्यता बदल गयी। दो ही दिन में वो खुद को बहु मानने लगी है। उसे सोचना नही पड़ता कि वो बहु है या नही? बस, जैसे ही बहु कहा तो तुरंत सक्रिय हो गयी।

दो ही दिन में इतनी मान्यता बदल गयी तो फिर तुम तो ईश्वर के हो। तुम्हे तो अपने घर की तरफ जाना है। आज और इसी क्षण मान लो कि भगवान ही हमारा है, हम सिर्फ भगवान के है। भगवान के अलावा हमारा कोई नही है। फिर एक बार नाम जप करके देखो।

बस, तत्काल लाभ होगा। अनुभव होगा। बरसो से जो साधना अटकी पड़ी थी वो इसी क्षण सिद्ध हो जाएगी। बस तुम एक बार भगवान के होकर भगवान को पुकारो, सब काम हो जाएगा।

बाकी ऐसी बाते पढ़ने जरूर अच्छी लगती है। लगनी भी चाहिए। लेकिन यदि समय पर अनुसरण नही किया इन बातों का, तो यह जन्म भी जा रहा है। यह जन्म भी जा रहा है। यह जन्म भी जा रहा है। जा रहा है। जा रहा है। जा रहा है। अब पता नही कौनसी जीव योनि में जाओगे?

बैठे मत रहो। शुरू करो।

हे नाथ! मैं आपको भूलूँ नही।🙏🙏🙏


नोट- कुछ लोग मुझसे मार्गदर्शन के लिए पूछते है उनसे मैं दो पुस्तको का नाम बताना चाहूँगा-

साधन सुधा सिंधु - स्वामी रामसुखदास जी महाराज

साधक संजीवनी - स्वामी रामसुख दास जी महाराज।

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