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प्रारब्ध सिद्ध महापुरुष को भी भोगना पड़ता है ।।

प्रारब्ध सिद्ध महापुरुष को भी भोगना पड़ता है। उसको दुःख की फीलिंग न होगी सिद्ध महापुरुष को, ये बात अलग है। बाप उसका भी मरेगा, बेटा उसका भी मरेगा। मृत्युंजय का जाप कराने से किसी का बेटा बच जाय, इम्पॉसिबिल। जिसके बाप अर्जुन महापुरुष और मामा भगवान् श्रीकृष्ण और ब्याह कराने वाले वेदव्यास तीनों महान् पर्सनैलिटी और अभिमन्यु मारा गया और उत्तरा विधवा हो गई सोलह वर्ष की उमर में। ये क्या बचायेंगे, भीख माँगने वाले पण्डित लोग। ये तो बेवकूफ बनाते हैं तुम लोगों को। हमसे जाप करा लो, हमसे यज्ञ करा लो, हमसे ये करवा लो, कष्ट दूर हो जायेगा। अब उन्होंने पच्चीस आदमियों से कहा तो नैचुरल प्रारब्ध खत्म होने पर एक आदमी उसमें अच्छा हो गया, एक आदमी की नौकरी लग गई, एक की कामना पूरी हो गई तो उसने कहा, पण्डित जी ने कहा हमने किया तो हो गया हमारा काम पूरा। वो बेचारा भोला-भाला श्रद्धा कर लेता है। कुछ नहीं है। भगवान् की भक्ति जितनी बढ़ाएगा, उतनी ही दुःखों की फीलिंग कम होगी। इस प्वॉइन्ट को नोट करो सब लोग। प्रारब्ध काटा नहीं जा सकता। बेटे को मरना है, बाप को मरना है, पति को मरना है वो मरेगा अपने टाइम पर। तुम भगवान् की भक्ति बढ़ाओ तो उसके मरने के दुःख की फीलिंग उतनी ही लिमिट में कम होगी। बस, ये तुम्हारी ड्यूटी है तुम इतना कर सकते हो। तुम उसको बचा नहीं सकते हो। जो मरेगा, मरेगा। धन समाप्त होना है, दिवालिया बनना है, बनेगा। बड़ा काबिल हो, उससे कुछ काम नहीं बनेगा । इसमे कुछ काबिलियत काम नही देगी। प्रारब्ध का फल तो सबको भोगना ही पड़ेगा।


'ज्ञानी भुगते ज्ञान से, मूरख भुगते रोय।'

बस ये फरक है। जितनी पॉवर होगी आपकी सहन करने की शक्ति होगी, उतनी फीलिंग न होगी। और जितना ही संसार से अटैचमेंट होगा, उतनी ही अधिक फीलिंग होगी।

देखो! एक स्त्री का पति मरता है। सबसे अधिक फिलिंग स्त्री को होती है। उससे कम फीलिंग बाल-बच्चों को होती है, उससे कम फीलिंग दोस्तों को होती है, उससे कम नौकर को होती है। ये अंतर क्यों है? इसलिए है कि जिसका जितना अधिक स्वार्थ जिससे हम होता है, वो स्वार्थ हानि में उतना ही दुखी होता है। तो जितना भगवान् की ओर वो चलेगा उतनी ही पॉवर होगी उसके पास और उस पॉवर से मुकाबला करेगा दुःख का। बाकी दुःख प्रारब्ध का आयेगा लेकिन वो हमेशा नहीं रहता। आया, भोगा, गया। हमेशा कोई चीज़ नहीं रहती। कुछ दिन के लिये आता है। जैसे- आप साइकिल चलाते हैं तो कहीं पुलिया आ गई, थोड़ी ऊँचाई आ गई और थोड़ा मेहनत कर लिया फिर ढाल आ गया, फिर प्लेन आ गया। ऐसे ही प्रारब्ध का चक्कर है। आता है, जाता है, हमेशा रहता नहीं।
तो जब आ जाय और हमारी भावनाएँ गड़बड़ होने लगें, तो और सत्संग करें, और गुरु के पास जायें, और भगवद् विषय सुनें तो वो दब जाता है। जैसे संसारी बीमारी होती है तो हम दवा खाते हैं तो वह बीमारी दब जाती है, वो कष्ट कम हो जाता है, ऐसे है। बाकी भोगना सबको पड़ता है।

-जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज

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