आईसटांइन रात भर दिमाग चलाते, रात भर खोज करते। कोई सिद्धांत, कोई यंत्र,कोई सूत्र इत्यादि तलाशने के लिए वे दुनियाभर की माथा पच्ची करते, थक जाते और फिर बिस्तर में कम्बल ओढ़कर सो जाते,खूब गहरी नींद लेते परन्तु जैसे ही उठते अचानक उनके मस्तिष्क में कुछ कौंध उठता,कहीं बिजली चमक उठती, कहीं माँ तारा प्रकाशित हो उठतीं और उन्हें उनके चिंतन, उनके सिद्धांत इत्यादि का सटीक उत्तर मिल जाता। वे खुशी से चिल्ला उठते मिल गया- मिल गया, मुझे मिल गया, दिख गया- दिख गया, मुझे दिख गया, समझ में आ गया-समझ में आ गया यह अधिकांशतः वैज्ञानिकों की, खोजकर्ताओं की, निर्माताओं की, कवियों, लेखको, दार्शनिकों, संन्यासियों, चित्रकारों, तत्व चिंतकों, रचनाकारों इत्यादि की कहानी है।
यह है अद्वैत में झांकने का विधान, घटाघोप अंधेरे में से रत्न ढूंढने का विधान एवं यह सब तभी सम्भव होता है जब तारा की कृपा जातक पर किसी न किसी प्रकार बरसती है। "एक दिन अचानक" यह एक वाक्य है और इस वाक्य के पीछे छिपी हुई हैं तारा। अचानक प्राप्ति, अविस्मरणीय रूप से प्राप्ति, कुछ अलग हटकर प्राप्ति माँ तारा की कृपा से ही होती है। चर्म चक्षु रूपी दो आँखें सभी को मिली हुई है हाँ यह सत्य है कि इन दो चर्म चक्षु की आँखों से मोटे तौर पर हम देख सकते हैं परन्तु यह चर्म के दो चक्षु बड़े ही विलक्षण हैं। प्रत्येक जीव के पास दो चर्म चक्षु हैं परन्तु प्रत्येक जीव एक दूसरे से भिन्न देखता है ऐसा क्यों ? जो आईसटांइन ने देखा वह हम क्यों नहीं देख पाये, जो एक खोजकर्ता देखता है वह आम व्यक्ति क्यों नहीं देख पाता। जो बुद्ध ने देखा वह हम क्यों नहीं देख पाये।
सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड प्रकाशमय है एवं प्रकाश के साथ एकीकरण, प्रकाश के सम्पूर्ण आयामों को देखने की क्षमता, मस्तिष्क में अनंत प्रकाश को ग्रहण करने वाली अनंत आँखों का विकास, प्रकाश को हर तल पर अनुभूत करने का विधान तारा साधना के माध्यम से ही सम्भव है। चंद्रमा पूर्णिमा के रूप में ही पूर्ण प्रकाशित दिखता है इसके पश्चात् कभी वह गायब हो जाता है, कभी वह आधा दिखता है तो कभी बस एक लकीर दिखती है ठीक इस प्रकार मस्तिष्क के सभी तंतु एक साथ प्रकाशित नहीं होते अधिकांशतः लोग तो अल्प प्रकाशित मस्तिष्क लिए हुए ही मर जाते हैं। पूर्ण प्रकाशित मस्तिष्क हो गया पूर्णिमा के चंद्रमा के समान तो अमृत्व की प्राप्ति हो गई। पूर्णिमा और अमावस्या में फर्क है पूर्णिमा शक्ति का दिन है तो अमावस्या शिव को प्रिय है।
बुद्ध को बुद्धत्व पूर्णिमा के दिन प्राप्त हुआ इसलिए आप कह सकते हैं कि बुद्ध शक्तिवादी हैं । सारनाथ से गया जाते समय बुद्ध ने बिहार स्थित तारा पीठ पर २१ दिन तक अपने शिष्यों के साथ तारा साधना सम्पन्न की थी । भगवती सति के तीनों नेत्र तीन अलग-अलग जगहों पर गिरे और इस प्रकार उग्रतारा पीठ जो कि उनकी दायीं आँख गिरने से बनी वह बिहार में स्थित हुई, भगवती की बायीं आँख बंगाल प्रदेश में गिरी थी वहाँ पर भी तारा शक्तिपीठ है एवं तारा साधक वामक्षेपा ने इस पीठ का जागरण किया। भगवती का तीसरा नेत्र सोनभद्र नदी के किनारे गिरा यहाँ पर परशुराम ने तपस्या की और सहस्त्रबाहु को हराया।
भगवती का तीसरा नेत्र जहाँ गिरा वहीं वास्तव में अक्षोभ्य शिव पीठ है, परशुराम जैसा क्षुभित साधक ब्रह्माण्ड में दूसरा कोई हुआ ही नहीं है एवं उनके क्षोभ को भी दूर किया माँ तारा ने । बुद्ध ने कहा चार तरह के साधक होते हैं एक किसान ने चारागाह बनाया वहाँ पर पानी और घास की व्यवस्था की कुछ हिरणों का झुण्ड आकर वहाँ रहने लगा और इस प्रकार वे किसान के अधीनस्थ हो गये, किसान ने उन्हें पकड़ लिया। हिरणों का एक झुण्ड यह समझ गया और वनों की तरफ भाग गया परन्तु वहाँ पर भोजन पानी का अकाल पड़ने पर वह पुनः चारागाह में लौट आये वह भी किसान के हस्तगत हो गये । हिरणों का एक झुण्ड वन में भाग गया किसान ने उस झुण्ड को ढूंढ लिया और जाल लगाकर उन्हें पुनः पकड़ लिया परन्तु हिरणों का चौथा झुण्ड अति मय बुद्धिमान निकला वह घने जंगलों में भाग गया जहाँ किसान उन्हें देख न सके, जहाँ किसान पहुँच न सके और इस प्रकार यह झुण्ड सदा के लिए सुरक्षित हो गया।
बुद्ध ने अपने धम्म में से कुछ साधक ने भूटान की गहनतम वादियों में, हिमालय की गहनतम वादियों में छिपा दिए जहाँ आज भी प्रकाशवान बुद्ध इन साधकों के साथ सबकी नजरों से बचे हुए आनंदित हो मुस्कुरा रहे हैं । तारा जब कृपावान होती हैं तो उसके पुत्र को किसी की नजर न लग जाये इसकी भी व्यवस्था कर देती हैं एवं दुनिया की नजरों से बचाकर उसे अपने आँचल में समेट लेती है।
त्रीं
हे भगवती तारा आप महाविद्याश्रम के सम्पूर्ण प्रकाशमय खंड में रत्न प्रकाश युक्त नीले सिंहासन पर विराजती हैं, आप विशुद्ध प्रकाश की नायिका हैं। आपने कानों में नीलमणि के कुंडल पहने हुए हैं, आपके मुकुट में भी नील मणियाँ सुशोभित हैं, आपके अंग प्रत्यंग नीलमणि के आभूषणों से सुशोभित हैं। हे भगवती तारा आपकी आभा नील मणि लिए हुए है एवं प्रकाश का उत्सर्जन ही एकमात्र कार्य है। आप प्रकाश की पराम्बा हैं, आप स्व प्रकाशिता हैं, आप प्रकाश ही प्रदान करती हैं। आपके आवरण में ब्रह्माण्ड के सबसे स्वच्छ, पूर्ण प्रकाश युक्त शरीर विद्यमान रहते हैं। भगवती आप शव के ऊपर खड़ी हुई हैं। आप भिक्षुकों की देवी हैं, संन्यासियों की देवी हैं अतः आप खड़ी हुई हैं।
शव तो भूमि में लेटा रहता है, प्रकाश के अभाव में जीव भी भूमि पर लोट जायेगा आप ही जीव को खड़ा करती हैं, जिस जीव का मस्तिष्क जितना प्रकाशमय होगा वह उतना ही प्रबुद्ध शुद्ध एवं विकसित होगा। प्रकाश ही विकास की परिभाषा है, प्रकाश ही शुद्धता की परिभाषा है। प्रकाश ही चैतन्यता, जागृतता की परिभाषा है। संन्यासी को कहाँ फुरसत है आराम करने की संन्यासी को कहाँ फुरसत विराम करने की अतः वह जीवन के हर तल पर सदा सर्तक खड़ा रहता है, चलता रहता है एवं यही जड़ता को पराजित करने के भाव हैं, यही स्वयं को शव न बनने देने की एकमात्र प्रक्रिया है। जब शरीर जर्जर हो जाता है, वह जीवन के प्रत्येक तल पर खड़े होने में असमर्थ होने लगता है तब संन्यासी स्वतः ही अपने शरीर से अपनी चैतन्यता को अलग कर लेता है, स्वयं कही प्राणोत्सर्ग कर देता है। वह उस दिन का इंतजार नहीं करता है कि कोई जैविक या रोग ग्रसित प्रक्रिया स्वयं आकर उसे उसके शरीर से अलग करे। हे भगवती तारा आप ही शरीर त्याग अर्थात चोला बदलने की शक्ति, क्रिया एवं गोपनीय रहस्य अपने प्रिय जातक को प्रदान करती हैं, यही सामर्थ्य है। हे भगवती तारा आपके सानिध्य में जीव में सामर्थ्य का विकास होता है अतः आप गुरु स्वरूपिणी हैं।
मैं कौन हूँ? आप किसी के पिता हैं, भाई हैं, पति हैं, मित्र हैं, गुरु हैं, मालिक हैं, नौकर हैं, अभिनेता हैं, वैज्ञानिक हैं, गायक हैं, नेता हैं इत्यादि इत्यादि बहुत सारे अलंकार जीवन में मिल जाते हैं पर इन अलंकारों से मैं कौन हूँ? कहाँ से आया हूँ? का जबाव अनादिकाल से नहीं मिल पाता। एक दिन जब जातक नितांत अकेला होता है तो उसके मन में पुनः मैं कौन हूँ ? का प्रश्न होता है अगर इन अलंकारों से वह संतुष्ट हो जाता तो मैं कौन हूँ? का यक्ष प्रश्न एकांत में आकर उसके कान नहीं खींचता। मैं कौन हूँ? की खोज उसे आत्म खोज की ओर ले जाती है और जीव बुद्ध बनने की प्रक्रिया में संलग्न हो जाता है। साधना का मार्ग मैं कौन की खोज है। यह अनंत खोज हैं, एक जीवन में चर्मोत्कर्ष तक भी पहुँचा जा सकता है या फिर काफी गहराई तक पहुँचकर बहुत कुछ अनुभूत किया जा सकता है। मैं पशु भी नहीं हूँ, मनुष्य भी नहीं हूँ, देवता भी नहीं हूँ अपितु मैं कुछ और हूँ यही बुद्ध की खोज है।
हे भगवती तारा तू ही जब कुछ प्रकाश देना चाहती है तो जातक के मन में मैं कौन हूँ ? के प्रश्न को बार बार खड़ा करती है। एक अलग प्रजाति को निर्माण करती है भगवती तू, प्रकाशमय जीवन जीने वाले लोगों की प्रजाति। भगवती तारा तेरी कृपा है कि मैंने जीवन में सम्पूर्ण प्रकाशमय गुरु पाया, उसके दिव्य प्रकाश युक्त आभामंडल में बैठकर जीवन की अटूट शांति पायी एवं उसके आभा मंडल में बैठकर मैं कौन का उत्तर पाया। ऐसी ही कृपा भगवती तू औंरों पर कर उन्हें भी प्रकाशमय आभमंडल से युक्त धीर गम्भीर गरिमा युक्त सद्गुरुओं से मिलवा दे जिससे कि उनकी अंधेरे में भटकने की स्थिति का नाश हो। हे भगवती तारा तू ही आभा मंडल प्रदान करती है, आभामंडल देखने की शक्ति भी तू ही प्रदान करती है तेरा एकमात्र कार्य है अंधत्व का निवारण तू आँखें प्रदान करती है हर तल पर जीव को ज्ञानमयी आँखें, विज्ञानमयी, अध्यात्ममयी, चित्रमयी आँखें, प्रकाशमयी आँखें, काव्यमयी आँखें, सौन्दर्यमयी आँखें, शांतिमय आँखें तू ही तो भगवती तारा प्रदान करती है और इस प्रकार जगत से अंधत्व का निवारण होता है।
(क्रमशः)
🙏 @Sanatan
त्रीं (२)
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अंधविश्वास का निवारण होता है, अंध श्रद्धा का निवारण होता है इसलिए हे भगवती तारा तू खड़ी है। बुद्ध आँखें बंद किए हुए बैठे हैं, चर्म चक्षु तो बंद हैं पर प्रत्येक तल पर अंधत्व का निवारण हो गया है। अंधत्व का निवारण इसलिए आवश्यक है कि स्वयं की आँखों से अनुभूत करें, स्वयं प्रकाश पहचानने की ताकत आये, स्वयं के अंदर अति विराट एवं अति सूक्ष्म आध्यात्मिक दृष्टि का विकास हो । देखो अर्जुन हाथ जोड़कर कृष्ण से विनती कर रहा है कि हे प्रभु मेरे अंधत्व का निवारण कीजिए, ।वह दिव्य चक्षु प्रदान कीजिए जिससे कि हे परब्रह्म परमेश्वर तेरे दिव्य रूप को देख सकूं, तेरे प्रकाश को अनुभूत कर सकूं, एक तरह से वह तारा साधना कर रहा है और नील आभा से युक्त कृष्ण उसे दिव्य चक्षु प्रदान कर रहे हैं, उसके अंधत्व का निवारण कर रहे हैं।
तू ही ध्यान की अधिष्ठात्री है, तू ही ध्यान करना सिखाती है, तू ही ध्यानस्थ मस्तिष्क का निर्माण करती है, तू ही ध्यान की चरम अवस्था प्रदान करती है। लोग समझते हैं कि गौतम बुद्ध प्रथम बुद्ध हैं परन्तु वास्तव में ऐसा नहीं है गौतम बुद्ध तो सातवें बुद्ध हैं। पहले भी ६ बुद्ध हो चुके हैं तीन क्षत्रिय और तीन ब्राह्मण बुद्ध तो एक श्रृंखला हैं प्रकाशमय मस्तिष्कों की आज भी बुद्ध हैं, आज भी परम ध्यानस्थ मस्तिष्क हैं। यह मनुष्यों की सबसे दुर्लभ, सबसे दिव्य, सबसे प्रज्ञावान, सबसे शांत प्रजाति है जो कि मैं कौन हूँ ? की खोज में लगी हुई है, यही अक्षोभ्य है। अक्षोभ्य का तात्पर्य है जीवन से कोई शिकायत नहीं, जीवन से कोई गिला शिकवा नहीं। एक तरफ अनंत मनुष्यों की खेप है जिसे जीवन में शिकायत ही शिकायत है। सबसे शिकायत, भगवान से शिकायत, समाज से शिकायत, स्वयं से शिकायत ।
शिकायत ही क्षोभ उत्पन्न करती है, क्षोभ ही हिंसा, युद्ध, खींचतान, कटुता उत्पन्न करता है जब तक क्षोभ है हर तल पर अशांति है। ऐसा लगता है कि मानो मनुष्यों की अनंत खेप शिकायत में जन्म लेती है, शिकायत करती है और शिकायत में ही मृत्यु को प्राप्त करती है। वह धर्म चक्र की जगह संसार चक्र में फँस जाती है परन्तु ऐसे भी हैं भगवती तारा के भक्त जिन्हें जीवन में शिकायत नहीं, वे ही धर्म चक्र को घुमाते हैं। हे भगवती तारा महाविद्याश्रम के तारा खंड में हल्का नीला प्रकाश लिए असीम शांति के साथ धर्म चक्र मंडल सदा गतिमान रहता है और उससे दिव्य धर्म ऊर्जा के अमृतमयी बिन्दु झरते रहते हैं एवं तेरे साधक उसका पान कर मंद-मंद मुस्कुराते हुए आनंदित होते रहते हैं।
Maa Tara
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Einstein worked his brain all night, searching all night. In order to find some principle, some instrument, some formula, etc., he used to scratch the head of the world, get tired and then sleep with a blanket in the bed, sleep very deeply, but as soon as he woke up suddenly something flashed in his brain, somewhere lightning flashed. Somewhere Mother Tara would get illuminated and she would get the exact answer of her thinking, her theory etc. They cried with joy. Found it, I got it, got it, I saw it, got it, understood it, mostly it belonged to scientists, explorers, creators, poets, writers, philosophers. It is the story of sannyasins, painters, philosophies, creators, etc.
This is the law to peep into Advaita, the law of finding gems from the dark and all this is possible only when the grace of Tara showers on the person in some way or the other. "One day suddenly" is a sentence and behind this sentence is hidden maa tara. Sudden attainment, unforgettable attainment, different attainment is achieved solely by the grace of Mother Tara. Everyone has got two eyes like skin eye, yes it is true that we can see broadly with the eyes of these two skin eyes, but these two eyes of the skin are very unique. Every living being has two skins, but each living being sees differently from each other, why? Why can't we see what Einstein saw, why the common man cannot see what an explorer sees. Why could we not see what Buddha saw?
The whole universe is luminous and integration with light, the ability to see all the dimensions of light, the development of infinite eyes that receive infinite light in the brain, the law of experiencing light on every plane is possible only through Tara Sadhana. The moon appears fully illuminated in the form of a full moon, after that it disappears, sometimes it appears half and sometimes only a streak is seen, in this way all the fibers of the brain are not illuminated at the same time, most of the people have less illuminated brain They just die. A fully illuminated mind has become like a full moon moon and immortality has been attained. There is a difference between full moon and new moon, if full moon is the day of power, then new moon is dear to Shiva.
Buddha attained Buddhahood on the full moon day so you can say that Buddha is a Shaktism. While going from Sarnath to Gaya, Buddha completed Tara Sadhana with his disciples for 21 days at Tara Peeth in Bihar. The three eyes of Bhagwati Sati fell at three different places and thus the Ugratara Peeth, which was formed by the fall of her right eye, was located in Bihar, the left eye of Bhagwati had fallen in Bengal region, there is also Tara Shaktipeeth and Tara seeker Vamkshepa awakened this bench. Bhagwati's third eye fell on the banks of river Sonbhadra, where Parashurama did penance and defeated Sahastrabahu.
Where the third eye of Bhagwati fell, there is actually an indestructible Shiv Peeth, there is no other in the world of sadhak like Parashuram, and Mother Tara removed his anguish as well. Buddha said that there are four types of seekers, a farmer made a pasture, arranged water and grass there, a herd of deer came and started living there and thus they became subordinate to the farmer, the farmer caught them. A herd of deer understood this and ran towards the forest, but when there was a famine of food and water, they again returned to the pasture, they too became the hands of the farmer. A herd of deer ran into the forest, the farmer found that herd and caught them again with a net, but the fourth herd of deer turned out to be very intelligent, he ran into the dense forests where the farmer could not see them, where the farmer could not reach and In this way this herd became safe forever.
The Buddha hid some of his Dhamma in the deepest valleys of Bhutan, in the deepest valleys of the Himalayas, where even today the luminous Buddha is smiling happily with these seekers remaining out of sight. When Tara is kind, she also arranges that her son should not be seen by anyone and saves him from the eyes of the world and covers him in her lap.
त्रीं
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O Bhagwati Tara, you are seated on a blue throne with gems in the entire luminous section of Mahavidyashram, you are the heroine of pure light. You are wearing sapphire rings in your ears, your crown is also adorned with sapphires, your limbs are adorned with sapphire ornaments. O Bhagwati Tara, your aura is carrying a blue stone and the only work is the emission of light. You are the epitome of light, you are self-illuminated, you give light. In your veil reside the cleanest, fully illuminated bodies of the universe. Bhagwati, you are standing over the dead body. You are the goddess of beggars, the goddess of sannyasins, so you have stood up.
The dead body remains lying on the ground, in the absence of light, the soul will also lie on the ground, you yourself raise the soul, the more luminous the soul of the creature, the more enlightened it will be, pure and developed. Light is the definition of development, light is the definition of purity. Light is the definition of consciousness, awakening. Where does a sannyasin have time to rest, where does a sannyasin have time to stop, so he always stands alert on every level of life, keeps walking and this is the spirit of defeating inertia, this is the only way to not allow himself to become a dead body. process. When the body becomes dilapidated, it becomes incapable of standing on every level of life, then the sannyasin automatically detaches his consciousness from his body, gives himself up somewhere. He does not wait for the day that some biological or disease-causing process will come and separate him from his body. O Bhagwati Tara, she herself gives the power, action and secret secrets to change her body, that is, to change her clothes, this is the power. O Bhagwati Tara, in the presence of you, there is a development of power in the soul, so you are the form of Guru.
Who am I? You are someone's father, brother, husband, friend, guru, master, servant, actor, scientist, singer, leader, etc. Many ornaments are found in life, but from these ornaments I get who am where did i come from? The answer cannot be found from time immemorial. One day when the person is completely alone, who am I again in his mind? The question is, if he is satisfied with these ornaments, then who am I? The question of Yaksha does not pull his ears when he comes in solitude. Who am I? The quest for self leads him to self-discovery and the soul engages in the process of becoming a Buddha. Who am I looking for in the path of meditation? It is an infinite search, one can reach even the climax in a life or by reaching deep enough many things can be realized. I am not even an animal, not a man, not even a deity, but I am something else, this is the discovery of Buddha.
Oh Bhagwati Tara, when you want to give some light, then who am I in the mind of the person? raises the question over and over again. Bhagwati Thou creates a different species, a species of people living a life of light. Bhagwati Tara is by your grace that I found a perfect luminary Guru in my life, sat in his divine light-filled aura and found unbreakable peace of life, and sitting in his aura, I found the answer to whom. May the same grace be showered on you, Bhagwati, and introduce them to Sadgurus with a luminous aura with a dazzling aura so that their condition of wandering in darkness is destroyed. O Bhagwati Tara, you give the aura circle, you also provide the power to see the aura, your only task is the removal of blindness, you provide the eyes to the living being on every plane, the eyes of knowledge, science, spiritual, picturesque eyes, luminous eyes Poetry eyes, beautiful eyes, peaceful eyes You are the one who bestows the Divine Tara and thus removes blindness from the world..
Superstition is eradicated, blind faith is eradicated, that's why you are standing, O Bhagwati Tara. Buddha is sitting with his eyes closed, his skin and eyes closed, but blindness has been eradicated on every plane. The removal of blindness is necessary because it is necessary to feel it with one's own eyes, to gain the power to recognize the light itself, to develop a very vast and very subtle spiritual vision within oneself. Look, Arjuna is praying to Krishna with folded hands, O Lord, remove my blindness. Grant that divine eye so that O Parabrahma Parmeshwar can see your transcendental form, feel your light, in a way that star worship And Krishna with blue aura is giving him divine eyes, removing his blindness.
You are the master of meditation, you teach meditation, you create a meditative mind, you provide the ultimate state of meditation. People think that Gautam Buddha is the first Buddha, but in reality it is not so, Gautam Buddha is the seventh Buddha. There have been 6 Buddhas in the past, three Kshatriyas and three Brahmin Buddhas are just a chain of luminous minds. This is the rarest, most divine, most intelligent, most peaceful species of human beings Who am I? This is inexplicable. Akshobhya means no complaint with life, no grudge against life. On one side there is a consignment of infinite human beings who have only complaints in life. Most complaining, complaining to God, complaining to society, complaining to self.
Grievance generates anger, anger generates violence, war, tussle, bitterness, as long as there is anger, there is unrest on every level. It is as if an infinite batch of human beings are born in complaint, complain and die in complaint itself. She gets trapped in the world wheel instead of the wheel of religion, but there are also devotees of Bhagwati Tara who do not complain in life, they turn the wheel of religion. O Bhagwati Tara Mahavidyashram, in the Tara Khand of Mahavidyashram, the Dharma Chakra Mandala is always in motion with infinite peace with light blue light and from it the nectar of divine dharma energy keeps on springing and your seekers drink it and enjoy smiling softly.
शिव शासनत: शिव शासनत:
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