पूजन /साधना में अनेकानेक जगहों पर हमें प्राण प्रतिष्ठा की आवश्यकता होती हैं।
यह आवश्यकता यंत्र , माला, पात्र, अस्त्र, मूर्ति, गुटिका आदि किसी भी देव विग्रह पर हो सकता हैं।
उस प्राण प्रतिष्ठा विधान को लिख रहा हूँ जिसकी साधकों को आवश्यकता प्रायः पड़ता रहता हैं।
यह हमेशा यही होगा चाहे किसी भी चीज की प्रतिष्ठा करनी हो उससे कोई फर्क नहीं पड़ता हैं।
हाँ यह संभव है की अलग अलग चीजों के साथ कुछ क्रिया विशेष होते हैं जैसे यंत्र के साथ आवरण पूजन आदि..
एक बात और ध्यान देने योग्य है की प्राण प्रतिष्ठा करते समय जिस देवता की प्रतिष्ठा कर रहे हैं उसका मांत्रिक या मानसिक ध्यान अवश्य करना चाहिए ।
यथा निर्देशित स्थान पर उनका नामोच्चारण भी अवश्य करना चाहिए ।
नामोच्चारण में शंसय हो तो सोऽहं का उच्चारण ही करें ।
क्योंकि सोऽहं महाप्राण हैं।
जिस प्रतिमा का प्रमाण/ आकार अधिक हो या जो नगर पूजित होना हो के प्राण प्रतिष्ठा का विधान वृहदतम होता है उतने गहरे जाने की आवश्यकता भी नहीं हैं।
वस्तुतः यह विधान प्रत्येक साधक को कंठस्थ होना चाहिए । जिससे वो जंगल में भी अपना कार्य बिना किसी पेपर, पेन, मोबाइल पर आश्रित हुए कर सकें।
यूं भी एक समय बाद यह सब झूठ बन जाएगा आपके लिए।
किसी भी विधान स्तोत्र आदि को कंठस्थ करने के लिए उसे रटना नहीं चाहिए रटने से विद्याएं कंठस्थ नहीं होते हैं जीवन में उतारने से होते हैं उसके लिए अनाहत में नित्य इष्ट की प्राण प्रतिष्ठा कर सकते हैं।
विनियोग-
ॐ अस्य श्री प्राण प्रतिष्ठा मंत्रस्य ब्रम्हा विष्णु महेश्वरा: ऋषयः। ऋग्यजु: सामानि छंदांसि। क्रियामय वपु: प्राण शक्ति देवता। आं बीजम्। ह्रीं शक्ति:। क्रौं कीलम्। अमुक देव अमुक विग्रहे प्राण प्रतिष्ठापने विनियोगः।
ऋष्यादि न्यास-
ॐ ब्रम्हा विष्णु महेश्वरा: ऋषिभ्यो नमः शिरसि।
ऋग्यजुः सामच्छन्देभ्यो नमः मुखे।
प्राणशक्त्यै नमः ह्रदये।
आं बीजाय नमः लिँगे।
ह्रीं शक्तये नमः पादयोः।
क्रौं कीलकाय नमः सर्वाँगेषु।
कर न्यास-
ॐ अं कं खं गं घं ङं आं पृथिव्यप्तेजो वाय्वाकाशात्मने अंगुष्ठाभ्यां नमः।
ॐ इं चं छं जं झं ञं ईं शब्दस्पर्श रुप-रस-गंधात्मने तर्जनीभ्यां नमः।
ॐ उं टं ठं डं ढं णं ऊं त्वक् चक्षुः श्रोत्र जिह्वाघ्राणात्मने मध्यमाभ्यां नमः।
ॐ एं तं थं दं धं नं ऐं वाक् पाणि पाद पायूपस्थात्मने अनामिकाभ्यां नमः।
ॐ ओं पं फं बं भं मं औं वचनादान गति विसर्गा नंदात्मने कनिष्ठिकाभ्यां नमः।
ॐ अं यं रं लं वं शं षं सं हं क्षं अः मनो बुद्धयहंकार चित्त विज्ञानात्मने करतलकर पृष्ठाभ्यां नमः।
हृदयादि न्यास-
ॐ अं कं खं गं घं ङं आं पृथिव्यप्तेजो वाय्वाकाशात्मने हृदयाय नमः।
ॐ इं चं छं जं झं ञं ईं शब्दस्पर्श रुप-रस-गंधात्मने शिरसे स्वाहा।
ॐ उं टं ठं डं ढं णं ऊं त्वक् चक्षुः श्रोत्र जिह्वाघ्राणात्मने शिखायै वषट्।
ॐ एं तं थं दं धं नं ऐं वाक् पाणि पाद पायूपस्थात्मने कवचाय हुं।
ॐ ओं पं फं बं भं मं औं वचनादान गति विसर्गा नंदात्मने नेत्रत्रयाय वौषट्।
ॐ अं यं रं लं वं शं षं सं हं क्षं अः मनो बुद्धयहंकार चित्त विज्ञानात्मने अस्त्राय फट्।
ॐ ऐं इति नाभिमारभ्य पादान्तं स्पृशेत्।
ॐ ह्रीं इति हृदयमारभ्य नाभ्यन्तम् स्पृशेत।
ॐ क्रीं इति मस्तकमारभ्य हृदयांतं च स्पृशेत।
ध्यान-
देव विशेष का ध्यान करें
प्राण प्रतिष्ठा मंत्र-
(निम्न मंत्र 3 बार पढें-)
ॐ आं ह्रीं क्रौं यं रं लं वं शं षं सं हं लं क्षं हंसः अमुक देवस्य प्राणा इह प्राणाः।
ॐ आं ह्रीं क्रौं यं रं लं वं शं षं सं हं लं क्षं हंसः अमुक देवस्य जीव इह जीव स्थितः।
ॐ आं ह्रीं क्रौं यं रं लं वं शं षं सं हं लं क्षं हंसः अमुक देवस्य सर्वेंद्रियाणि इह स्थितः।
ॐ आं ह्रीं क्रौं यं रं लं वं शं षं सं हं लं क्षं हंसः अमुक देवस्य वाङ्मनस्त्वक् चक्षुः श्रोत्र जिह्वा घ्राण वाक्प्राण पाद्पायूपस्थानि इहैवागत्य सुखं चिरं तिष्ठंतु स्वाहा।
अब निम्न मंत्र विग्रह पर अंगुष्ठ रखकर 1 बार पढें-
ॐ मनो जुतिर्जुषतामाज्यस्य बृहस्पतिर्यज्ञमिमं तन्नोत्वरिष्टं।
यज्ञं समिमं दधातु विश्वे देवाश इह मादयंतामो अंप्रतिष्ठ॥
ॐ अस्यै प्राणा: प्रतिष्ठंतु अस्यै प्राणा: क्षरंतु च।
अस्यै देवत्व मर्चायै मामहेति च कश्चन॥
ॐ (15 बार) मम देहस्य पंचदश संस्काराः सम्पद्यन्ताम् इत्युक्त्वा।
अब प्रणाम क्षमा प्रार्थनादि कर लें ।
शिव शासनत: शिव शासनत:
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