जीवन में समर्पण, भक्ति, सेवा, बल, बुद्धि, साहस, कर्मठता, तेजस्विता, सिद्धि, निधि, तुरंत निर्णय लेने की क्षमता, संकटों पर विजय प्राप्त कर लेने का साहस इत्यादि का मिला जुला रूप यदि कहीं है तो उसे आप हनुमंत कह सकते हैं बजरंग कह सकते हैं। हनुमतत्व से इन्हीं योग्यताओं का निर्माण सम्भव होता है। हनुमंत साधना के द्वारा साधक अपने अंदर उन सभी क्षमताओं और विशेषताओं को विकसित कर सकता है जो कि रामभक्त हनुमान में उपस्थित हैं। साधना का यही रहस्य है । इस पृथ्वी पर जीवन पंगु, निर्बल, कायर, कामचोर और कर्महीनों के लिये नहीं है। ध्यान रहे शास्त्रों के अनुसार जिसकी इस लोक में पूछ-परख है उसी की मृत्यु के पश्चात अन्य लोकों में भी पूछ-परख होती है। घिसट-घिसटकर जीना और घिसटता हुआ जीवन अपने आप में जीवन नहीं कहलाता है। इस प्रकार का जीवन मृतप्राय जीवन कहलाता है।
जीवन यात्रा की डगर सीधी-साधी नहीं है। मृत्युलोक में शरीर धारण करने का मतलब ही सैकड़ों परेशानी, सैकड़ों संकट, सैकड़ों अड़चने और पग-पग पर घोषित और अघोषित शत्रुओं का सामना, षड्यंत्रों के बीच से निकलना है। आर्यवंश में जब तक हनुमंत साधक बड़ी संख्या में होंगे वैदिक संस्कृति पूर्ण रूप से सुरक्षित रहेगी अन्यथा असुर संस्कृति धीरे-धीरे समस्त विश्व को अपना ग्रास बना लेगी। यदि आपके शरीर में पूर्ण रूप से हनुमान स्थापित हो जाते हैं तो फिर आपको लाचार, असहाय, वृद्ध, रोगी और कामचोर की तरह जीवन बिताने की जरूरत नहीं है फिर आपके सामने संकट नहीं आ सकते, बाधायें नहीं आ सकती और राज्य भय भी नहीं आ सकता। कलयुग में हनुमंत साधना ही सबसे त्वरित फल प्रदान करती है।हनुमंत साधना में साधक को प्राण प्रतिष्ठित और मंत्र सिद्ध हनुमान यंत्र, मूंगे की माला, हनुमान विग्रह एवं लाल हकीक की माला का उपयोग करना चाहिये। इसके अलावा जलपात्र, अबीर, गुलाल, कुंकुम, केसर, लाल चाँवल, सिन्दूर, नारियल, मौली, लाल वस्त्र, घी का दीपक और तेल के दीपक का भी उपयोग किया जाता है।
हनुमंत साधना में पूर्ण सफलता प्राप्त करने के लिये गुरु से पूर्ण हनुमान सिद्धि दीक्षा शक्तिपात के द्वारा प्राप्त करनी चाहिये। यह दीक्षा तीन चरणों में दी जाती है।हनुमान जी भगवान राम के सेवक हैं अत: उनके चरित्रों के श्रवण से वे अति प्रसन्न होते हैं। हनुमान जी की प्रसन्नता के लिये घर में रामचरित मानस, अखण्ड रामायण, सुन्दरकाण्ड, मूल रामायण और वाल्मिकी रामायण आदि का पाठ करवाना चाहिये। जहाँ राम वहीं हनुमान इस बात को साधक मूल मंत्र समझे। रामलीला के आयोजन से भी वे अति प्रसन्न होते हैं।
हनुमानजी की साधना करते समय साधक का मुख पूर्व की ओर होना चाहिये और यदि किसी करणवश ऐसा न किया जा सके तो ऐसी भावना करें कि हनुमान पूर्व में ही प्रतिष्ठित हैं। हनुमान जी का पूजन साधक की कामना के अनुसार पंचोपचार, दशोपचार और षोडशोपचार आदि से किया जाता है। षोडशोपचार पूजन में आह्वान, आसन, पाद्य, अर्ध्य, आचमन, स्नान, वस्त्र, गंध, अक्षत, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य, पुनर्वाचमन, ताम्बूल, दक्षिणा प्रदक्षिणा या नीराजन किया जाता है।
स्नान में कुँये का शुद्ध जल और गंधादि युक्त पवित्र जल उपयोग में लाना चाहिये। विशेष पर्वों पर दूध, दही, घी, मधु और चीनी के पञ्चामृत से स्नान कराके फिर शुद्धोधक से स्नान कराया जाय। उद्वर्तन के स्थान पर तिल के तेल में मिश्रित सिन्दूर का सर्वांग में लेपन किया जाता है इससे हनुमान जी अति प्रसन्न होते हैं। लंका विजय के बाद रामचन्द्र जी ने सुग्रीव को पारितोषिक दिया उस समय सीताजी ने हनुमान जी को बहुमूल्य मोतियों की माला दी, किन्तु उसमें राम नाम न होने से वे उदासीन रहे तब सीता जी ने अपनी सीमन्त का सिन्दूर देकर कहा कि यह मेरा मुख्य सौभाग्य चिन्ह है और इसको मैं धन धान्य और रत्न आदि से भी अधिक प्रिय मानती हूँ, अत: हे पुत्र तुम इसको सहर्ष स्वीकार करो तब हनुमान जी ने सिन्दूर को अंगीकार कर लिया।
गंध में शुद्ध केसर के साथ घिसा हुआ मलयागिरी चन्दन या लाल चन्दन चढ़ाना चाहिये। पुष्पों में पुरुषवाची नाम के लाल पीले, गम्भीर और दीर्घकाय पुष्प (कमल, केवड़ा, सूर्यमुखी, हजारा) अर्पण करें। देवशयनी (आषाढ़ शुक्लैकादशी) से 'देवप्रबोधिनी' (कार्तिक शुक्लैकादशी) तक 121 दिन में प्रतिदिन 108 तुलसी पत्तों पर कदम्ब की कलम से और अष्टगंध से "राम" नाम लिखकर गन्धादि से पूजित करें, “ॐ हनुमते नमः" से एक-एक पत्र हनुमान जी को शिरोधार्य करावें ।
इस प्रयोग से जीवन के घोर से घोर अनिष्ठ दूर हो जाते हैं। प्रातः पूजन में गुड़, नारियल का गोला, मोदक चढ़ाना चाहिये मध्यान्ह में गुड़, घी और गेंहूँ का चूरमा, घी लगी गेंहूँ की रोटी इत्यादि अर्पित करनी चाहिये। मंगलवार को हनुमान जी को चूरमा अवश्य चढ़ाना चाहिये और उसी दिन प्रसाद का भोजन करके एक युक्त भौम व्रत करें। यदि मौन रहकर बायें हाथ से भोजन किया जाय तो यह व्रत रणमोचन में अत्यधिक उपयोगी है।
घी में भीगी हुई एक या पाँच शुद्ध रुई की बत्तियों से आरती करनी चाहिये । महापूजा के समय 5, 11, 51 या 108 बत्तियों से पूजन करना चाहिये। इस अवसर पर शंख, रण सिंघा, विजयघण्ट और नगाड़ा आदि की ध्वनि से हनुमान जी अत्यधिक प्रसन्न होते हैं। हनुमान जी को रुद्रावतार माना गया है इसीलिये चरणामृत का प्रचार कम है। हनुमान साधना पुरुष या स्त्री कोई भी कर सकता है। साधक शब्द में पुरुष या स्त्रो जैसा कोई भेद नहीं है। प्रत्येक हनुमान साधना पुरुषों के साथ-साथ स्त्रियों के लिये भी उतनी ही उपयोगी है। पूजन के पश्चात् जप किया जाता है।
जप तीन प्रकार के हैं -
1. वाचिक इसमें जाप का उच्चारण दूसरों को सुनाई देता है। 2. उपान्शु - जिसमें ओंठ, जीभ हिलते रहें किन्तु उच्चारण सुनाई न दें ।
3. मानसिक इसमें ओंठ बंद रहते हैं, जीभ चिपकी रहती है और जप मन में होता है। मानस जप में आराध्य देव के स्वरूप का ध्यान करना आवश्यक है।
मानस जप करते समय अपने हृदय में हनुमान जी का इस प्रकार से ध्यान करें
उद्यन्मार्तण्डकोटिप्रकटरुचियुतं चारुवीरासनस्र्थ मौञ्जोयज्ञोपवीतारुणरुचिरशिरवाशोभितं कुण्डलाम् । भक्तानाभिष्टदं तं प्रणतमुनिजनं वेदनादप्रमोदं ध्यायेद्देवं विधेयं प्लवगकुलपतिं गोष्दीभूतवार्द्धिम् ॥
उदय होते हुये प्रकाशमान सूर्य जैसे तेजस्वी, मनोरम वीरासन से स्थित, मूँज की मेखला तथा यज्ञोपवीत धारण करने वाले, लाल वर्ण की सुन्दर शिखावाले, कुण्डलों से शोभित, भक्तों को अभीष्ट फल देने वाले, मुनियों से वन्दित, वेदनाद से हर्षित, वानर कुल के स्वामी और समुद्र को गोपद के समान लांघ जाने वाले स्वरूप का ध्यान व्यापक या सर्वानुकूल प्रतीत होता है।
हनुमान साधना में हनुमत विग्रह को एक टक देखते हुये भी मंत्र जप किया जा सकता है हनुमत साधना के दिनों में ब्रह्मचर्य व्रत का पालन नितांत आवश्यक होता है जो साधना की मुख्य धूरी है। हनुमान साधना के लिये रुद्राक्ष या मूंगे की माला का प्रयोग करना चाहिये। हनुमान साधना में लाल आसन पर बैठें, लाल धोती पहने एवं लाल चादर का प्रयोग करें। तेल का दीपक अगरबत्ती या धूप पूरे साधनाकाल में जलती रहनी चाहिये ।.
श्री हनुमान साधना दास्यभाव से करना चाहिये इससे वे शीघ्र प्रसन्न होते हैं। हनुमत साधना में एक समय ही भोजन करें एवं सूर्यास्त के बाद पूजन आदि करके ही भोजन करें। इस भोजन में नमक का सेवन न करें तो अच्छा ही होगा। हनुमत साधकों को पूज्य (गौ, गुरु, द्विज, देव आदि) के सानिध्य में रहना चाहिये। तामसिक प्रवृत्ति के लोगों से किसी भी प्रकार का सम्पर्क नहीं करना चाहिये। हनुमान साधना मंगलवार और शनिवार को अवश्य करनी चाहिये इससे दुष्ट और नीच ग्रह शांत हो जाते हैं। हनुमान जी को शुद्धता एवं पवित्रता अतिप्रिय है अतः साधक शुद्धता एवं पवित्रता का अधिक ध्यान रखें।
अतुलितबलधामं हेमशैलाभ देहं दनुजवन कृशानुं ज्ञानिनामग्रगण्यम् ।
सकलगुणनिधानं वानराणामधीशं रघुपतिप्रियभक्तं वातजातं नमामि ॥
पुराणों से मालुम हो सकता है कि हनुमान जी पवन के पुत्र और रुद्र के अवतार हैं। देव, दानव और मानव सृष्टि में इनका मान और महत्व सर्वोच्च है। जिस समय यह जन्में उस समय ब्रह्मा, विष्णु, महेश, यम, वरुण, कुबेर, अग्नि, वायु, इन्द्रादि ने इनको अजरामर किया था और इन्हें अनेक प्रकार के वर दिये थे।
शिव शासनत: शिव शासनत:
0 comments:
Post a Comment