ॐ अस्य श्री सर्व यन्त्र तन्त्र मन्त्रणाम् उत्कीलन मंत्र स्तोत्रस्य मूल प्रकृति ऋषिये जगतीछन्द: निरंजनो देवता कलीं बीज,ह्रीं शक्ति , ह्रः लौ कीलकम , सप्तकोटि यंत्र मंत्र तंत्र कीलकानाम संजीवन सिद्धियर्थे जपे विनियोग:।
।।अंगन्यास।।
ॐ मूल प्रकृति ऋषिये नमः सिरषि।
ॐ जगतीचछन्दसे नमः मुखे।
ॐ निरंजन देवतायै नमः हृदि।
ॐ क्लीं बीजाय नमःगुह्ये।
ॐ ह्रीं शक्तिये नमः पादयो:।
ॐ ह्रः लौं कीलकाय नमः सर्वांगये।
।।करन्यास।।
ॐ ह्रां अंगुष्ठाभ्यां नमः।
ॐ ह्रीं अनामिकाभ्यां नमः।
ॐ ह्रूं मध्यमाभ्यां नमः।
ॐ ह्रैं तर्जनीभ्यां नमः।
ॐ ह्रौं कनास्तिकाभ्यां नमः।
ॐ ह्रः करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः।
।।ह्रदयन्यास।।
ॐ ह्रां हृदयाय नमः।
ॐ ह्रीं शिरषे स्वाहा।
ॐ ह्रूं शिखायै वषट्।
ॐ ह्रैं कवचाय हूं।
ॐ ह्रौं नेत्रत्रयाय वौषट्।
ॐ ह्र: अस्त्राय फट्।
।।ध्यानम्।।
ॐ ब्रह्मा स्वरूपममलं च निरंजन तं ज्योति: प्रकाशमनिशं महतो महान्तम। कारुण्यरूपमतिबोधकरं प्रसन्नं दिव्यं स्मरामि सततं मनुजावनाय।।१
एवं ध्यात्वा स्मरेनित्यं तस्य सिद्धि अस्तु सर्वदा,वांछित फलमाप्नोति मन्त्रसंजीवनं ध्रुवम।।२
मन्त्र:-ॐ ह्रीं ह्रीं ह्रीं सर्व मन्त्र-यन्त्र-तंत्रादिनाम उत्कीलनं कुरु कुरु स्वाहा।।
।। मूलमंत्र ।।
ॐ ह्रीं ह्रीं ह्रां षट पंचक्षरणां उत्कीलय उत्कीलय स्वाहा।।
ॐ जूं सर्व मन्त्र तंत्र यंत्राणां संजीवनं कुरु कुरु स्वाहा।।
ॐ ह्रीं जूं अं आं इं ईं उं ऊं ऋं ऋ लृ लृ एं ऐं ओं औं अं आ: कं खं गं घं ङ चं छं जं झं ञ टँ ठं डं ढं नं तं थं दं धं नं पं फं बं भं मं यं रं लं वं शं षं हं क्षं मात्राक्षराणां सर्वम् उत्कीलनं कुरु स्वाहा।
ॐ सोहं हं सो हं (११ बार)
जू सों हं हंसः ॐ ॐ(११ बार),
ॐ हं जूं हं सं गं (११ बार),
सोहं हं सो यं (११ बार),
लं(११ बार),
ॐ (११ बार),
यं (११ बार),
ॐ ह्रीं जूं सर्व मन्त्र तन्त्र यंत्र स्तोत्र कवचादिनां संजीवय संजीवनं कुरु कुरु स्वाहा।
ॐ सो हं हं स: जूं संजीवनं स्वाहा।
ॐ ह्रीं मंत्राक्षराणं उत्कीलय उत्कीलनं कुरू कुरु स्वाहा।
ॐ ॐ प्रणवरूपाय अं आं परमरूपिणे।
इं ईं शक्तिस्वरूपाय उं ऊं तेजोमयाय च।।१।।
ऋं ॠं रंजित दीप्ताये लृं ॡं स्थूल स्वरूपिणे।
एं ऐं वांचा विलासाय ओं औं अं अ: शिवाय च।।२।।
कं खं कमलनेत्राय गं घं गरुड़गामिने।
ङ चं श्री चंद्रभालाय छं जं जयकराय ते।।३।।
झं टं ठं जय कर्त्रे डं ढं णं तं पराय च।
थं दं धं नं नमस्तस्मै पं फं यंत्रमयाय च।।४।।
बं भं मं बलवीर्याय यं रं लं यशसे नमः।
वं शं षं बहुवादाय सं हं लं क्षं स्वरूपिणे।।५।।
दिशामादित्यरूपाय तेजसे रूप धारिणे।
अनन्ताय अनन्ताय नमस्तस्मै नमो नमः।।६।।
मातृकाया: प्रकाशायै तुभ्यं तस्मै नमो नमः।
प्राणैशायै क्षीणदायै सं संजीव नमो नमः।।७।।
निरंजनस्य देवस्य नामकर्म विधानत:।
त्वया ध्यातं च शक्तया च तेन संजायते जगत्।।८।।
स्तुताहमचिरं ध्यात्वा मयाया ध्वंस हेतवे।
संतुष्टा भार्गवाया हं यशस्वी जायते हि स:।।९।।
ब्राह्मणं चेत्यन्ति विविध सुरनरां स्तर्पयंती प्रमोदाद्,
ध्यानेनोद्दीपयन्ती निगम जपमनुं षटपदं प्रेरयंती।
सर्वांन देवान जयंती दितिसुतद मनी साप्यहंकार मूर्तिस्तुभ्यं तस्मै च जाप्यं स्मररचितमनुं मोचये शाप जालात।।१०।।
इदं श्री त्रिपुरस्तोत्रं पठेद् भक्त्या तू यो नर:।
सर्वान कामानवाप्नोति सर्वशापाद विमुच्यते।।११।।
।।इति श्री सर्व यन्त्र मन्त्र तंत्रोत्कीलनं सम्पूर्णम।।
हिंदू मन्त्र तन्त्र और यन्त्र सभी भगवान आशुतोष द्वारा कीलित कर दिए गए थे ताकि उनका कलयुग में दुरुपयोग न हो यही इसका मूल कारण था। यन्त्र-मन्त्र-तन्त्र उत्कीलन का यह प्रयोग किसी भी जप/साधना को करने से पहले आप इस स्तोत्र का एक बार अनुष्ठान अवश्य करें।
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