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शास्त्रोक्त सूर्य पूजन ।।


         भगवान भास्कर को सूर्यनारायण भी कहा जाता है क्योंकि वे परमात्मा नारायण के साक्षात् प्रतीक हैं। वे पंचदेवों में से एक हैं तथा भगवान की प्रत्यक्ष विभूतियों में सर्वश्रेष्ठ, इस ब्रह्माण्ड के केन्द्र, स्थूल काल के नियामक, विश्व के पोषक, प्राणदाता तथा समस्त चराचर प्राणियों के आधार हैं। प्रत्यक्ष रूप से दिखने वाले भगवान भास्कर सभी देवों में श्रेष्ठ हैं। उनकी उपासना से साधक के तेज, बल, आयु एवं नेत्रों की ज्योति में वृद्धि होती है तथा वह पावन सूर्यलोक को प्राप्त करता है। सूर्य भगवान प्रत्यक्ष देव हैं इसलिए सनातन धर्म में उनकी उपासना पर विशेष जोर दिया गया है क्योंकि वे हमारे सभी शुभाशुभ कर्मों के साक्षी हैं। गीता में भगवान ने स्वयं कहा है कि--

यदादित्यगतं तेजो जगद्भासयतेऽखिलम। 
यच्चन्द्रमसि यच्चाग्नौ तत्तजो विद्धि मामकम् ॥

अर्थात जो सूर्यगत तेज समस्त जगत को प्रकाशित करता है तथा चन्द्रमा एवं अग्नि में है उस तेज को तू मेरा ही तेज जान। इससे स्पष्ट है कि परमात्मा और सूर्य ये दोनों अभिन्न है। अतः सूर्य की उपासना करने वाला परमात्मा की ही उपासना करता है।

          भगवान भुवन भास्कर ही एकमात्र ऐसे देव हैं जिनके दर्शन जन्म से लेकर मृत्यु तक प्रत्येक प्राणी करता है अन्य किसी भी देवता की स्थिति में कुछ सन्देह भी हो सकता है किन्तु भगवान सूर्य की सत्ता में सन्देह की कोई गुंजाइश नहीं है। धर्मराज युधिष्ठिर ने भगवान सूर्य की आराधना करके ही अक्षय पात्र प्राप्त किया था। स्वयं भगवान राम ने सूर्य उपासना के फलस्वरूप ही रावण पर विजय पायी थी इसलिए भगवान सूर्य की उपासना के बिना जीवन निरर्थक है। हम यहाँ भगवान भास्कर के पूजन की विधि का वर्णन कर रहे हैं जिसे सम्पन्न कर इस लोक में समस्त सुखों का भोग करते हुए पावन सूर्य लोक को प्राप्त कर सकें।

         पूजन विधि से पूर्व कुछ महत्वपूर्ण बातों का उल्लेख यहाँ आवश्यक है ताकि उन नियमों का पालन कर अभीष्ट सिद्धि का मार्ग सुलभ हो जाय। सूर्य उपासक को चाहिए वह प्रतिदिन सूर्योदय के पूर्व शय्या त्याग दे तथा शौच स्नान आदि से निवृत्त होकर भगवान सूर्य को अर्ध्य देकर प्रणाम करे तथा प्रतिदिन सूर्य के 21 नाम 108 बार या 12 नामों वाले स्तोत्र का पाठ करें। सूर्य सहस्त्रनाम और आदित्य हृदय का प्रतिदिन पाठ समस्त सिद्धियों को देने वाला है। साधक को चाहिए कि वह रविवार को तेल, नमक, अदरक आदि का सेवन न करे और न ही किसी को खिलाए तथा हविष्यान्न खाकर रहे और ब्रह्मचर्य का पालन करे।

पूजन विधि

साधक को चाहिए कि वह स्नानादि नित्य क्रियाओं से निवृत्त होकर स्वच्छ वस्त्र धारण कर पूजा स्थल में बैठे। अपने सम्मुख चौकी पर सूर्य यंत्र या सूर्य चित्र स्थापित कर लें। यदि भगवान भास्कर की प्रत्यक्ष साधना करनी है तो घर से बाहर किसी स्थान पर जहाँ से सूर्य भगवान स्पष्ट दिखाई दें वहाँ पर भूमि को गाय के गोबर से लीपकर वहीं आसन लगाकर बैठें। पूजन के लिए आवश्यक समस्त सामग्री सिन्दूर, अक्षत, कुंकुम, पुष्प, धूप, दीप, चंदन, वस्त्र,यज्ञोपवीत, दूध, दही, पंचामृत आदि अपने पास रख लें। 

पवित्रीकरण

निम्न मंत्र का उच्चारण करते हुए बायें हाथ की हथेली में जल लेकर दाहिने हाथ की अंगुलियों से अपने ऊपर तथा पूजन सामग्री पर छिड़कें।
ॐ अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोऽपिवा। यह स्मरेत पुण्डरीकाक्ष स बाह्यभ्यंतरः शुचिः ॥

आचमन
आचमनी में जल लेकर तीन बार पियें तथा क्रमश: निम्न मंत्रों का उच्चारण करें।

ॐ केशवाय नमः ।
ॐ माधवाय नमः।
ॐ गोविन्दाय नमः।
आचमन के उपरांत हस्त प्रक्षालन (हाथ धोना) कर लें। एवं निम्न मंत्र से शांतिपाठ करें।

ॐ भद्रं कर्णेभिः श्रृणुयाम देवा भद्रं पश्येमाक्षभिर्यजत्राः । स्थिरैरङ्गैस्तुष्टुवा सस्तनूभिर्व्यशेमहि देवहितं यदायुः ॥

तदनन्तर संकल्प कर सूर्य नारायण का निम्नलिखित पूजन विधि से षोडशोपचार पूजन करें।

संकल्प

ॐ तत्सत् । ॐ विष्णुर्विष्णुर्विष्णुः । ओमद्यैतस्य ब्राह्मणो द्वितीयपरार्धे श्रीश्वेतवाराहकल्पे जम्बूद्वीपे भरतखण्डे आर्यावर्तेक देशान्तर्गते पुण्यस्थाने कलियुगे कलिप्रथमचरणे अमुकसंवत्सरे अमुकमासे अमुकपक्षे अमुकतिथौ अमुक वासरे श्री सूर्यनारायणप्रीतये भगवतः श्रीसूर्यस्य पूजनमहं करिष्ये ।
अमुक के स्थान पर क्रमश: संवत, माह, पक्ष, तिथि व दिन का नाम लें।
              इस प्रकार संकल्प कर हाथ में पुष्प लेकर श्री सूर्यनारायण का ध्यान करें।

ध्यान मंत्र

रक्ताम्बुजासनमशेषगुणैक सिन्धुं भानुं समस्तजगतामधिपं भजामि । 
पद्मद्वयाभयवरान् दधत: कराब्जै र्माणिक्यमौलिमरुणाङ्गरुचिं त्रिनेत्रम् ॥

आवाहन मंत्र
हाथ में अक्षत लेकर मंत्र बोलें

ॐ देवेश भक्तिसुलभ परिवारसमन्वित । यावत् त्वां पूजयिष्यामि तावद् देव इहावह ॥ ॐ भूर्भुव: स्व: श्रीसूर्यनारायणाय नमः । श्रीसूर्यनारायणमावाहयामि । श्रीसूर्यनारायण इहागच्छ इह तिष्ठ स्थापयामि पूजयामि च।।
सूर्य नारायण को नमस्कार करके आवाहन करें और अक्षत छोड़ दें।

पाद्य मंत्र
आचमनी से जल लेकर दो बार भगवान सूर्य को अर्पित करे

ॐ यद् भक्तिलेशसम्पर्कात् परमानन्दसम्भवः 
तस्मै ते चरणाब्जाय पाद्यं शुद्धाय कल्पये ॥ 
ॐ भूर्भुवः स्वः श्रीसूर्यनारायणाय नमः, पाठ्योः पाद्यं समर्पयामि।
उक्त मंत्र से मूर्ति के चरणों में पाद्य समर्पित करें।

अर्ध्य मंत्र

ॐ तापत्रयहरं दिव्यं परमानन्दलक्षणम् तापत्रयविमोक्षाय तवार्ध्वं कल्पयाम्यहम्। 
ॐ भूर्भुवः स्वः श्रीसूर्यनारायणाय नमः हस्तयोरर्घ्यं समर्पयामि ।।
उक्त मंत्र से अर्ध्य समर्पित करें

आचमन मंत्र

ॐ उच्छिष्टोऽप्यशुचिर्वापि यस्य स्मरणमात्रतः । शुद्धिमाप्नोति तस्मै ते पुनराचमनीयकम् ॐ भूर्भुवः स्वः श्रीसूर्यनारायणाय नमः, शुद्धम् आचमनीयं समर्पयामि।।
उक्त मंत्र से आचमन के लिये जल समर्पित करें

स्नान मंत्र

ॐ गङ्गासरस्वतीरे वापयोष्णीनर्मदाजलैः । 
स्त्रापितोऽसि मया देव तथा शांतिं कुरुष्व मे ॥ 
ॐ भूर्भुव: स्व: श्रीसूर्यनारायणाय नमः, स्नानं समर्पयामि।
उक्त मंत्र से स्नान के लिये जल समर्पित करें।

वस्त्र मंत्र

ॐ मायाचित्रपट च्छन्ननिजगुह्यो रु तेजरो । निरावरणविज्ञानवासस्ते कल्पयाम्यहम् ॥ ॐ भूर्भुवः स्वः श्रीसूर्यनारायणाय रक्तवस्त्रं समर्पयामि।

उक्त मंत्र से लाल रंग के वस्त्र समर्पित करें। आचमनीयं समर्पयामि इस वाक्य से तीन बार जल छोड़ें। (वस्त्र के बाद आचमन देना चाहिए।)

उपवस्त्र यज्ञोपवीत मंत्र

ॐ नवभिस्तन्तुभिर्युक्तं त्रिगुणं देवतामयम् । उपवीतं चोत्तरीयं गृहाण परमेश्वर ॥ 
ॐ भूर्भुवः स्वः श्रीसूर्यनारायणाय नमः, उत्तरीयं यज्ञोपवीतं च समर्पयामि।
उक्त मंत्र से वस्त्र और यज्ञोपवीत उत्तरीय समर्पित करें।

आभूषण मंत्र

स्वभावसुन्दराङ्गाय सत्यासत्याश्रयाय ते । 
भूषणानि विचित्राणि कल्पयामि सुरार्चित ॥ 
ॐ भूर्भुवः स्वः श्रीसूर्यनारायणाय नमः, भूषणानि समर्पयामि।
उक्त मंत्र से आभूषण अर्पित करें।

गन्ध मंत्र

श्रीखण्डं चन्दनं दिव्यं गन्धाढ्यं सुमनोहरम् । 
विलेपनं सुरश्रेष्ठ चन्दनं प्रतिगृह्यताम् ॥
ॐ भूर्भुवः स्वः श्रीसूर्यनारायणाय नमः, चन्दनं समर्पयामि।
उक्त मंत्र से चन्दन चढ़ायें। (यहाँ अङ्गुष्ठ तथा कनिष्ठिका के मूल को मिलाकर गन्धमुद्रा दिखानी चाहिए।)

अक्षत मंत्र

अक्षताश्च सुरश्रेष्ठ कुङ्कुमाक्ता: सुशोभिताः ।
 मया निवेदिता भक्त्या गृहाण परमेश्वर ॥ 
ॐ भूर्भुवः स्वः श्रीसूर्यनारायणाय नमः, अक्षतान् समर्पयामि।
उक्त मंत्र से अक्षत चढ़ायें। (अक्षत सभी अंगुलियों को मिलाकर देना चाहिए।)

पुष्प एवं पुष्पमाला मंत्र

माल्यादीनि सुगन्धीनि मालत्यादीनि वै प्रभो । मयाऽऽनीतानि पुष्पाणि गृहाण परमेश्वर ॥ 
ॐ भूर्भुवः स्वः श्रीसूर्यनारायणाय नमः, पुष्पाणि पुष्पमाल्यं च समर्पयामि।
उक्त मंत्र से पुष्प और पुष्प की माला चढ़ायें। (तर्जनी अंगुष्ठ मिलाकर पुष्पमुद्रा दिखानी चाहिए।)

धूप मंत्र

वनस्पतिरसोद्भूतो गन्धाढ्यो गन्ध उत्तमः । 
आघ्रेयः सर्वदेवानां धूपोऽयं प्रतिगृह्यताम् ॥ 
ॐ भूर्भुवः स्वः श्रीसूर्यनारायणाय नमः, धूपमाघ्रापयामि।

उक्त मंत्र से धूप दिखायें। (तर्जनी मूल तथा अंगुष्ठ के संयोग से धूप मुद्रा बनती है। नाभि के सामने धूप दिखाकर उसे भगवान सूर्य के बायीं ओर रख देना चाहिए।)

दीप मंत्र

सुप्रकाशो महादीप सर्वतस्तिमिरापहः । 
स बाह्याभ्यन्तरज्योतिर्दीपोऽयं प्रतिगृह्यताम ॥ 
ॐ भूर्भुवः स्वः श्रीसूर्यनारायणाय नमः, दीपं दर्शयामी
उक्त मंत्र से दीपक दिखायें।

नैवेद्य मंत्र

सत्पात्रसिद्धं सुहविर्विविधानेक भक्षणम् । 
निवेदयामि देवेश सानुगाय गृहाण तत् ॥ 
ॐ भूर्भुवः स्वः श्रीसूर्यनारायणाय नमः, नैवेद्य निवेदयामि।
उक्त मंत्र से नैवेद्य निवेदन करें। (अंगुष्ठ एवं अनामिकामूल के संयोग से ग्रासमुद्रा दिखानी चाहिए।)

जल समर्पण मंत्र

नमस्ते देवदेवेश सर्वतृप्तिकरं परम् । परमानन्दपूर्ण त्वं गृहाण जलमुत्तमम् ॥ 
ॐ भूर्भुवः स्वः श्रीसूर्यनारायणाय नमः, पानीयं समर्पयामि।
उक्त मंत्र से पीने के लिये जल अर्पण करें।

आचमन मंत्र

उच्छिष्टोऽप्यशुचिर्वापि यस्य स्मरणमात्रतः । 
शुद्धिमाप्नोति तस्मै ते पुनराचमनीयकम् ॥ 
ॐ भूर्भुवः स्वः श्रीसूर्यनारायणाय नमः, नैवेद्यान्ते पुनराचमनीयं जलं समर्पयामि।
उक्त मंत्र से आचमन करने के लिये फिर जल अर्पित करे।

ताम्बूल मंत्र

पूगीफलं महद्दिव्यं नागवल्लीदलैर्युतम् । 
एलाचूर्णादिकैर्युक्तं ताम्बूलं प्रति गृह्यताम् ॥ 
ॐ भूर्भुवः स्वः श्रीसूर्यनारायणाय नमः, ताम्बूलं समर्पयामि।
उक्त मंत्र से पान चढ़ायें।

फल मंत्र

इदं फलं मया देव स्थापितं पुरतस्तव । 
तेन में सुफलावाप्तिर्भवेजन्मनि जन्मनि ।।
ॐ भूर्भुवः स्वः श्रीसूर्यनारायणाय नमः, फलं समर्पयामि।
इस उपरोक्त मंत्र से फल अर्पित करें।

आरार्तिक मंत्र

कदलीगर्भसम्भूतं कर्पूरं च प्रदीपितम्। 
आरात्रिकमहं कुर्वे पश्य मे वरदो भव ॥ 
ॐ भूर्भुवः स्वः श्रीसूर्यनारायणाय नमः, आरात्रिकं समर्पयामि।
उक्त मंत्र से कर्पूर की आरती दिखायें।

प्रदक्षिणा मंत्र

यानि कानि च पापानि जन्मान्तरकृतानि वै । तानि सर्वाणि नश्यन्तु प्रदक्षिणपदे पदे ।
उक्त मंत्र को पढ़ते हुए भगवान सूर्य का सात बार प्रदक्षिणा करें।

पुष्पाञ्जलि मंत्र

नानासुगन्धपुष्पाणि यथाकालोद्भवानि च । 
पुष्पाञ्जलिं मया दत्तं गृहाण परमेश्वर ॥ 
ॐ भूर्भुवः स्वः श्रीसूर्यनारायणाय नमः, पुष्पाञ्जलिं समर्पयामि।
उक्त मंत्र से पुष्पाञ्जलि समर्पित करें। आदित्य हृदयदे स्तोत्रों से स्तुति करें।

प्रार्थना नमस्कार मंत्र

जपाकुसुमसंकाशं काश्यपेयं महाद्युतिम् । 
ध्वान्तारिं सर्वपापघं प्रणतोऽस्मि दिवाकरम् ॥
उक्त मंत्र को पढ़कर भगवान सूर्य को नमस्कार करें।

श्री सूर्यनाम मंत्र

।। ॐ श्रीसूर्याय नमः।।
इस मंत्र का जप करें। निम्न मंत्र का भी जप क्रिय जा सकता है।
।। ॐ ह्रीं घृणिः सूर्य आदित्यः ॐ।।

                          शिव शासनत: शिव शासनत:

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